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अलग राज्य के समर्थन में गत 30 सितम्बर (रविवार) को आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में आयोजित 'तेलंगाना मार्च' के दौरान हिंसा फूट पड़ी। प्रदर्शनकारियों ने निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया और केन्द्र सरकार और कांग्रेस की राज्य सरकार की अवसरवादी राजनीति के प्रति अपना आक्रोश प्रकट किया। तेलंगाना संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा आयोजित 'तेलंगाना मार्च' को सरकार ने हुसैन सागर के निकट नेकलेस रोड तक सीमित रखने की अनुमति दी थी। कार्यक्रम को केवल तीन बजे से शाम सात बजे तक की अनुमति दी गई थी। लेकिन हिंसा तब भड़की जब सुरक्षाकर्मी हर रास्ते पर 'अवरोधक' लगाने लगे और हैदराबाद पहुंचने वाली सभी रेलगाड़ियां और राज्य परिवहन की बसों का परिचालन बंद करा दिया। प्रदर्शनकारियों को कई किलोमीटर लम्बा चक्कर लगाकर नेकलेस रोड (सभा स्थल) पर जाने के लिए कहा जा रहा था। इस पर गुस्साई जनता ने कई जगहों पर प्रदर्शन किए और पुलिस की अवरोधकों को तोड़ने की कोशिश की। इसके बाद तेलंगाना समर्थकों की पुलिस के साथ झड़प हुई और अलग-अलग जगहों पर हिंसा की घटनाएं सामने आने के बाद हैदराबाद में तनाव फैल गया। इस घटनाक्रम में कई लोग घायल भी हुए।
उधर हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से तेलंगाना मार्च स्थल की ओर मोटर साइकिल रैली निकाल रहे छात्रों को रोकने की कोशिश कर रहे पुलिसकर्मियों ने अश्रू गैस के गोले दागे, जिसके बाद विश्वविद्यालय परिसर में भी तनाव फैल गया। सरकार ने छात्रों से कहा था कि वे मार्च स्थल तक अकेले पहुंचें, समूहों में नहीं। इसके बावजूद छात्रों ने एक विशाल रैली निकाली, लेकिन वे जैसे ही विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार तक पहुंचें, वहां तैनात पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। इस पर छात्रों ने पहले तो उनके साथ झड़प की, फिर उन पर पथराव शुरू कर दिया, जिसे रोकने के लिये पुलिस को अश्रू गैस के गोले दागने पड़े। आयोजन स्थल पर भी तेलंगाना समर्थकों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को पानी की बौछारों और अश्रुगैस का इस्तेमाल करना पड़ा। इन सब के बावजूद नेकलेस रोड पर बड़ी संख्या में लोग जमा हो गए।
तेलंगाना क्षेत्र के कांग्रेस सांसदों को भी उस वक्त हिरासत में ले लिया गया जब उन्होंने मुख्यमंत्री किरन कुमार रेड्डी से मिलने की मांग की। मुख्यमंत्री से मुलाकात की इजाजत न मिलने पर कांग्रेस सांसदों ने अपने ही मुख्यमंत्री के कार्यालय में धरना प्रदर्शन का नाटक शुरू कर दिया, जिस पर उन्हें दिखावे के लिए हिरासत में ले लिया गया। हालांकि तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख चन्द्रशेखर राव, तेलंगाना क्षेत्र के कांग्रेसी मंत्री व सांसद तथा तेलुगू देशम पार्टी के नेता इस मार्च से व्यक्तिगत रूप से दूर रहे, फिर भी तेलंगाना समर्थकों की भीड़ ने तेलंगाना के जयघोष के साथ मार्च जारी रखा। पुलिस ने इस मार्च का सीधा प्रसारण करने वाले न्यूज चैनलों का प्रसारण भी कुछ देर के लिए बंद करा दिया। तेलंगाना समर्थकों एवं पुलिस के बीच संघर्ष में एक आईपीएस अधिकारी सहित 25 पुलिसकर्मी और 20 से अधिक तेलंगाना समर्थक घायल हुए। 25 से अधिक वाहनों को नुकसान पहुंचा। पुलिस ने इस सबके पीछे हिंसक नक्सलियों का हाथ होने की आशंका जताई है। लेकिन तेलंगाना संयुक्त संघर्ष समिति के प्रमुख कोदंडराम ने इस आरोप को नकारते हुए कहा कि राज्य के पुलिस महानिदेशक आंदोलनकारियों को उकसाने का काम कर रहे हैं। मार्च की अनुमति देने के बावजूद जगह-जगह उन्हें रोककर हिंसा के लिए मजबूर किया गया।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री व भाजपा नेता बंडारू दत्तात्रेय ने संसद में तेलंगाना के लिए विधेयक लाने की मांग करते हुए कहा कि सरकार ने मार्च को जितना दबाने का प्रयास किया, उतनी ही अधिक संख्या में लोगों ने भाग लिया। विश्लेषकों का मानना है कि पृथक तेलंगाना राज्य की मांग जायज है या नहीं, अभी इस बहस में पड़ने से ज्यादा जरूरी यह सोचना है कि यह आंदोलन और उसका प्रदर्शन हिंसक न हो।
पहले प्रदर्शन की अनुमति दी गई, फिर ट्रेनें रोक दी गईं, सड़कों पर अवरोधक लगा दिए गए, जवाब में छात्रों ने भी पुलिस पर पथराव किये। सवाल उठता है कि जब पुलिस और प्रशासन ने 'नेकलेस रोड' पर जमा होकर प्रदर्शन करने की इजाजत दे ही दी थी, तो उसे यह भी तो समझना चाहिए था कि प्रदर्शन स्थल पर प्रदर्शनकारी आसमान से नहीं उतरेंगे। उधर कुछ जानकारों का मानना है कि तेलंगाना मार्च के दौरान हुई हिंसा के पीछे नक्सलवादियों की भूमिका हो सकती है। ध्यान रखना चाहिए कि चंद्रबाबू नायडू की 'तेदेपा' को सत्ता से हटाने के लिए तब कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने मिलकर नक्सलवादियों का सहयोग लिया था। ऐसे में स्वाभाविक है कि इस आंदोलन में वे भी साथ आ जुड़े हों। यदि ऐसा है तो यह बहुत गंभीर विषय है और तेलंगाना सहित देश के लिए खतरा है।
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