तालिबान के निशाने परखिलाड़ी लड़कियां
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पाकिस्तान में
तालिबान के निशाने पर
लंदन ओलम्पिक पिछले दिनों बड़े दबदबे के साथ सम्पन्न हो गए। खेलों के दौरान लंदन में बड़ी तगड़ी सुरक्षा-व्यवस्था की गई थी। इस कारण वहां कोई भी आतंकी गुट अपनी मंशा में सफल नहीं हो सका। विशेषकर मुस्लिम राष्ट्रों से गईं महिला खिलाड़ी उनके निशाने पर थीं। लंदन से पूर्व जब चीन में ओलम्पिक खेलों का आयोजन हुआ था तो लग रहा था कि सिक्यिांग प्रांत के अतिवादी निश्चित ही इन खेलों में गड़बड़ करेंगे। लेकिन वे अपने कारनामों में सफल नहीं हो सके। यद्यपि चीन सरकार की नीति के अनुसार लगभग 120 सिक्यिांगवासियों को दूसरे ही दिन गोली से उड़ा दिया गया। इन खेलों में समय-समय पर हिंसा तो होती ही रही है। हर देश और हर वर्ग अपनी शिकायतों के झंडे लेकर वहां पहुंच जाते हैं। इस बार इस परंपरा का निर्वाह अलकायदा और तालिबान के आतंकवादियों ने किया। उनके निशाने पर विशेष रूप से मुस्लिम महिला खिलाड़ी थीं। ओलम्पिक की शुरुआत के पहले ही उन्होंने मुस्लिम देशों को सतर्क कर दिया था कि उनकी महिला खिलाड़ी इस स्पर्धा में कदापि शामिल न हों। अनेक मुस्लिम राष्ट्र भयभीत हो गए। उन्होंने अपना निर्णय वापस ले लिया। इस पर आतंकवादी संगठनों के नेताओं का खुश होना स्वाभाविक है। लेकिन बहुत सारे सदस्य देशों ने उनकी चिंता नहीं की और अपनी बेटियों को स्पर्धा के मैदान में उतरने के लिए हरी झंडी दे दी। जिन लड़कियों ने इसमें भाग लिया न केवल उन्हें, बल्कि उनके देश को अब आतंकवादी संगठन चुनौती दे रहे हैं। इतना ही नहीं पाकिस्तान सहित अन्य देशों की वे पीठ भी थपथपा रहे हैं, जिन्होंने तालिबानी फरमान को सिर पर चढ़ाकर उनके आदेश का पालन किया। लेकिन इन आतंकवादियों का कहना है कि जब तक सम्पूर्ण इस्लामी जगत उनकी बात नहीं मानता वे अपनी कार्रवाई करने में हिचकिचाएंगे नहीं। भारत जैसे अनेक देश हैं जो इस्लामी तो नहीं हैं, लेकिन उनकी मुस्लिम महिला खिलाड़ियों ने इसमें भाग लिया, उन पर क्या कार्रवाई की जाए इस पर वे विचार कर रहे हैं।
वीरता या कायरता
आतंकवादी अपने आपको साहसी और निडर कहते हैं। लेकिन वे महिलाओं को मारने और सबक सिखाने के लिए हुंकार भर रहे हैं यह उनकी वीरता है या कायरता? कट्टरवादी मुस्लिमों को इसका उत्तर तो देना ही होगा। शरीयत और इस्लाम के इन ठेकेदारों के विरुद्ध एक भी मुस्लिम राष्ट्र ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है। पाकिस्तान के दैनिक जंग ने 3 अगस्त के अंक में इस संबंध में एक लेख प्रकाशित किया है जिसका शीर्षक है 'पाक साफ और नेक मुसलमान सिर्फ पाकिस्तान में रहते हैं।' इस शीर्षक के तहत अमर जलील लिखते हैं कि पाकिस्तान में पचासों टीवी चैनल हैं। जिनसे न जाने किस-किस प्रकार के समाचार और विचार परोसे जाते हैं, यह गरीब पाकिस्तानी भली प्रकार जानता है। लेकिन मजबूर पाकिस्तान की जनता वही तो देखेगी जो उसे दिखाया जाएगा। पाकिस्तान में कुछ घटनाएं इस प्रकार की भी घटती हैं, जो टीवी के पर्दे पर भले ही न आएं लेकिन किसी न किसी तरह जनता तक पहुंच ही जाती है। पिछले दिनों एक सनसनीपूर्ण समाचार सुनने को मिला जो आज सारे देश में घूम रहा है। पाकिस्तानी तालिबान का एक खुफिया दस्ता ऐसे परिवारों की तलाश में घूम रहा है जहां से लड़कियां अपना नाम बदलकर निकलीं और दूसरे देशों में जा पहुंचीं। क्या उनके पास उनका पाकिस्तानी पासपोर्ट था? जहां वे पहुंच गईं उस देश का वीजा किसने दिलाया? उनकी नागरिकता शंका के कटघरे में है। उनकी यह यात्रा प्रथम बार थी या इससे पहले भी वे इस प्रकार की यात्रा कर चुकी हैं। किस नाम पर और किस पते पर? लेकिन आश्चर्य की बात है कि वे लंदन पहुंच गईं। न तो विवाह करने के लिए और न ही पर्यटक की हैसियत से। वहां पहुंचकर उन्होंने अपनी पहचान भी नहीं छिपाई। लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या उनको रोका जा रहा था? लेकिन सवाल यह है कि उन्होंने यह सब क्यों किया? किस के इशारे पर किया? जब वे अपने उद्देश्य में सफल हो गईं तब पाकिस्तान के अखबारों ने लिखा कि पाकिस्तान की खिलाड़ी महिलाएं लंदन ओलम्पिक में भाग लेने के लिए सुरक्षित तौर पर खेल नगरी में पहुंच गई हैं। ब्रिटिश सरकार ने पाकिस्तान को यह भरोसा दिलाया कि इन खिलाड़ियों को पूरी रक्षा प्रदान की जाएगी। ब्रिटिश सरकार का उत्तरदायित्व है और सरकार उसे जरूर निभाएगी। पाकिस्तानी तालिबानों को जब यह समाचार मिला तो उन्होंने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा इस प्रकार की लड़कियां अपने माता-पिता और इस्लाम के नाम पर बदनुमा धब्बा हैं। इतना ही नहीं, वे वाजेबुल कत्ल यानी हत्या कर देने की पात्र हैं। पाकिस्तान के तालिबान का कहना है कि यह उनके द्वारा किया इस्लाम विरोधी कृत्य है जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता है। इस पाप में वे अकेली शामिल नहीं हैं, बल्कि उनके माता-पिता भी भागीदार हैं।
तालिबान पूछते हैं आलिया मुस्तफीना, जिसने रूस की ओर से ओलम्पिक में भाग लिया और जिमनास्टिक में स्वर्ण पदक प्राप्त किया, कौन है? तालिबान को विश्वास है कि आलिया मुस्तफीना का असली नाम कुछ और है। वह फरेयर टाउन किलिफ्टन की रहने वाली है।
इस्लाम का किला
इसी प्रकार सलीमा शोलोखोफ का असली नाम क्या है? वह कराची के किस इलाके की रहने वाली है? उसके माता-पिता क्या करते हैं? सलीमा शोलोखोफ ने भी रूस की ओर से सोने का पदक जीता है। पत्र का कहना है कि अत्यंत दुख और शर्म की बात है कि दो पाकिस्तानी मुसलमान लड़कियों ने अपना नाम बदलकर एक साम्यवादी देश की ओर से ओलम्पिक स्पर्धा में भाग लिया। उनके शरीर पर कपड़े तो देखो, कपड़े हैं भी या नहीं? फिर भी इन बेशर्म लड़कियों को मुसलमान कहा जा रहा है? इस्लाम की इससे बढ़कर और क्या खिल्ली उड़ाई जा सकती है? पाकिस्तान तो पैदा ही इस्लाम के लिए हुआ है फिर वे कौन सी सेवा कर रही हैं, हमें यह बता देना चाहिए।
तालिबान का अगला सवाल था वह मिर्जा सानिया कौन है? कहती है मैं भारत की हूं। लेकिन अब तो वह पाकिस्तान की बहू बन चुकी है। अच्छा है अब उसका पति अपनी स्वयं की और पत्नी की नागरिकता के बारे में स्पष्ट कर दे। सानिया सब कुछ छोड़ सकती है लेकिन क्या इस्लाम छोड़ सकती है? उससे कहो पहले अपने कपड़े और उछलकूद के समय अपने शरीर के प्रदर्शन को किसी आईने में देख ले और फिर सानिया मिर्जा से स्वयं की पहचान करवाए? किसी ने तालिबान से यह सवाल किया कि मिस्र, इंडोनेशिया, तुर्की, सऊदी अरब, मलेशिया, अलजीरिया, नाइजीरिया, कतर, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान की तरफ से महिलाओं ने ओलम्पिक में हिस्सा नहीं लिया? क्या वे मुसलमान नहीं हैं?
तालिबान कमांडो ने कड़क आवाज में कहा वे क्या हैं और क्या नहीं यह हम नहीं जानते। हम केवल इतना जानते हैं कि पाक साफ और निष्ठावान मुसलमान केवल पाकिस्तान में रहते हैं? हमें तो पाकिस्तान को सच्चे इस्लाम का किला बनाना है। हमें इन महिलाओं को आईना दिखाना है। अंत में दैनिक जंग ने लिखा है कि पाकिस्तानी तालिबान नादिरा के साथ अपने क्षेत्रीय कार्यालय पाकिस्तान में खोल रहे हैं, जहां पाकिस्तानियों को फिर से अपनी मुसलमानियत का प्रमाण-पत्र लेना पड़ेगा।
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