आर्थिक मंदी के बहाने सुधारों की कवायद
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

आर्थिक मंदी के बहाने सुधारों की कवायद

by
Sep 8, 2012, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 08 Sep 2012 14:57:54

आर्थिक मंदी के बहाने सुधारों की कवायद

डॉ. अश्विनी महाजन

हालांकि संसद का मानसून सत्र कोयला घोटाले के चलते पूरी तरह धुल गया है, लेकिन सरकार की आर्थिक सुधारों के नाते राजनीतिक गतिविधियां तेजी से चल रही हैं। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव, जो खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के प्रबल विरोधी रहे हैं, को मनाने की भरसक कोशिश सरकार द्वारा की जा रही है। साथ ही पेंशन विधेयक और बीमा विधेयक पर भी राजनीतिक समर्थन प्राप्त करने की सरगर्मियां जोरों पर हैं। गौरतलब है कि पिछले लगभग एक वर्ष से भी अधिक समय से सरकार आर्थिक सुधारों के नाम पर कुछ ऐसे नीतिगत परिवर्तन करना चाह रही है, जिस पर देश में आम सहमति नहीं है। पिछले लगभग 15 वर्षों से देश में मिलीजुली सरकारों का चलन रहा है। 1991 में आर्थिक सुधारों के सूत्रधार रहे उस समय के वित्तमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और उनके सलाहकार लगातार यह प्रयास कर रहे हैं कि वे दूसरे दौर के आर्थिक सुधार लागू करें। जुलाई 2010 में भारत सरकार के औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग ने एक चर्चा पत्र जारी कर सरकार की खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश खोलने की मंशा जाहिर कर दी थी। उससे पूर्व योजना आयोग ने वर्ष 2005 और वर्ष 2008 में 'इकरियर' नामक आर्थिक शोध संस्थान से इस संबंध में सर्वेक्षण भी करवाया था। पिछले लगभग 7 वर्षों से चल रहे इस प्रयास को उस समय एक बड़ा धक्का लगा, जब संप्रग के एक प्रमुख सहयोगी दल, तृणमूल कांग्रेस ने गठबंधन से अलग होने तक की धमकी दे दी थी।

बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश सीमित हो

बीमा विधेयक भी एक बड़े नीतिगत परिवर्तन का संकेत दे रहा है। गौरतलब है कि राजग के शासनकाल में बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश को 26 प्रतिशत तक की सीमा में अनुमति दी गई थी। सरकार इस सीमा को बढ़ा न सके, इसके लिए इस हेतु संसदीय संकल्प किया गया था। इसलिए बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए संसद द्वारा उसे पारित किया जाना जरूरी है। पेंशन विधेयक भी एक महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन है, जिसके आधार पर पेंशन अनुदानों को शेयर बाजार में लगाने की छूट हो जायेगी। गौरतलब है कि इन दोनों विधेयकों का तृणमूल कांग्रेस विरोध कर रही है।

आर्थिक सुधारों के समर्थक सरकार द्वारा इन तथाकथित आर्थिक सुधारों को लागू न करवा पाने के कारण सरकार की यह कहकर आलोचना करते हैं कि सरकार को नीतिगत लकवा (पॉलिसी पैरालिसिस) मार गया है और वह कुछ भी कर पाने में सक्षम नहीं है। असलियत यह है कि पिछले लगभग एक वर्ष से सरकार के कुप्रबंधन के चलते अर्थव्यवस्था अत्यंत विकट स्थिति में पहुंच चुकी है। आर्थिक संवृद्धि की दर पिछले कई वर्षों का न्यूनतम रिकार्ड (6.5 प्रतिशत) छू रही है। आम जनता दो अंकीय महंगाई से जूझ रही है, रुपया अत्यंत कमजोर स्थिति में आ गया है और ऊंची ब्याज दरों और कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के कारण औद्योगिक विकास थम सा गया है और उसमें सुधार के कोई लक्षण भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐसे में सरकार और उसके सलाहकार आर्थिक सुधारों की गति को तेज करने की कवायद में लगे हैं। पहले अमरीकी आर्थिक पत्रिका 'द इकॉनोमिस्ट' और अब 'टाइम' ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की कुशलता पर एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का एक हालिया बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत विदेशी निवेश को रोक रहा है और देश में निवेश के लिए हालात बिगड़ रहे हैं, यह इंगित कर रहा है कि अब बराक ओबामा भी भारत पर दबाव बना रहे हैं। उनकी मंशा यह है कि भारत किसी भी हालत में उनके देश की कंपनियों को अपने देश में आने की अनुमति प्रदान करे।

सही प्रबंधन है इलाज

यह सही है कि भारत में आर्थिक हालात बिगड़े हुए हैं, लेकिन उसका इलाज विदेशी निवेश नहीं, अर्थव्यवस्था का सही प्रबंधन है। हम देख रहे हैं कि देश का विदेशी व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2010-11 में विदेशी व्यापार घाटा 130 अरब डॉलर था, जबकि अनिवासी भारतीयों द्वारा भेजी जाने वाली विदेशी मुद्रा और सॉफ्टवेयर बीपीओ निर्यात इत्यादि से प्राप्तियां कुल 86 अरब डॉलर की थीं। इस भुगतान शेष को विदेशी निवेश से पाटा गया। सरकार द्वारा विदेशी निवेश के लिए जो सबसे बड़ा तर्क दिया जाता है, वह है हमारे बढ़ते भुगतान शेष को पाटने की मजबूरी। कच्चा तेल और कुछ अन्य प्रकार के आयात करना देश की मजबूरी हो सकती है। लेकिन वर्ष 2011-12 में व्यापार घाटे में अभूतपूर्व वृद्धि देखने में आई, जबकि हमारा व्यापार घाटा बढ़कर 190 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इतना बड़ा व्यापार घाटा पाटने के लिए विदेशी निवेश भी अपर्याप्त रहा और इसका असर यह हुआ कि देश में विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव आ गया। इसका सीधा-सीधा असर रुपये के मूल्य पर पड़ा और रुपया फरवरी 2012 में 48.7 रुपये प्रति डॉलर से कमजोर होता हुआ जुलाई माह तक 57 रुपये प्रति डॉलर के आसपास पहुंच गया।

रुपये के अवमूल्यन के कारण देश में कच्चे माल की कीमतें और ईंधन की कीमतें बढ़ने लगीं। उद्योग, जो पहले से ही ऊंची ब्याज दरों के कारण लागतों में वृद्धि का दंश झेल रहा था, को अब कच्चे माल और ईधन के लिए भी ऊंची कीमतें चुकानी पड़ रही हैं। औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर घटते-घटते ऋणात्मक तक पहुंच गयी और वर्ष 2011-12 की अंतिम तिमाही में यह 5.3 प्रतिशत पहुंच गई। औद्योगिक क्षेत्र न केवल बढ़ती लागतों के कारण प्रभावित हुआ, बल्कि देश में स्थायी उपभोक्ता वस्तुओं जैसे- कार, इलेक्ट्रानिक्स और यहां तक कि घरों की मांग भी घटने लगी। भारी महंगाई के चलते रिजर्व बैंक ब्याज दरों को घटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। आर्थिक जगत में यह चिंता व्याप्त हो गई है कि कहीं भारत की आर्थिक संवृद्धि की गाथा में लंबा विघ्न न आ जाए।

ऐसे में सरकार अपनी कमजोरियों और कुप्रबंधन को छुपाने के लिए सारा दोष राजनीतिक परिस्थितियों को दे रही है और खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश खोलने और नए विधेयकों को पारित करने को ही समाधान बता रही है। लेकिन अर्थव्यवस्था की दुर्दशा इन नई नीतियों के रुकने से नहीं है, बल्कि सरकार के बेहद चिंताजनक कुप्रबंधन के कारण है।

चीनी आयात रोको

यदि देश का व्यापार घाटा पिछले वर्ष 190 अरब डॉलर पहुंच गया, जबकि औद्योगिक उत्पादन की संवृद्धि दर शून्य के आसपास घूम रही है, या रुपये का अवमूल्यन हो रहा है, तो उसके लिए राजनीतिक सहयोग में कमी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। व्यापार घाटा बढ़ना राजनीतिक असहयोग के कारण नहीं बल्कि सरकार द्वारा सोने और चांदी के आयात को न रोक पाने के कारण हुआ। सरकार द्वारा चीन से आयातों पर रोक न लगाए जाने के कारण चीनी आयात लगातार बढ़ता जा रहा है।

अर्थव्यवस्था की दुर्दशा के मद्देनजर सरकार का विदेशी निवेश बढ़ाने और बीमा तथा पेंशन के नए अधिनियम लाने का तर्क सही नहीं है। सरकार द्वारा महंगाई पर काबू करते हुए, ब्याज दरों को घटाने और आयातों  पर अंकुश लगाने की जरूरत है, तभी अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाया जा सकता है।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

एयर इंडिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त

Air India Crash Report: उड़ान के तुरंत बाद बंद हुई ईंधन आपूर्ति, शुरुआती जांच रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे

पुलिस की गिरफ्त में अशराफुल

फर्जी आधार कार्ड बनवाने वाला अशराफुल गिरफ्तार

वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम

देश की एकता और अखंडता के लिए काम करता है संघ : अरविंद नेताम

अहमदाबाद विमान हादसा

Ahmedabad plane crash : विमान के दोनों इंजन अचानक हो गए बंद, अहमदाबाद विमान हादसे पर AAIB ने जारी की प्रारंभिक रिपोर्ट

आरोपी

उत्तराखंड: 125 क्विंटल विस्फोटक बरामद, हिमाचल ले जाया जा रहा था, जांच शुरू

उत्तराखंड: रामनगर रेलवे की जमीन पर बनी अवैध मजार ध्वस्त, चला बुलडोजर

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

एयर इंडिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त

Air India Crash Report: उड़ान के तुरंत बाद बंद हुई ईंधन आपूर्ति, शुरुआती जांच रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे

पुलिस की गिरफ्त में अशराफुल

फर्जी आधार कार्ड बनवाने वाला अशराफुल गिरफ्तार

वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम

देश की एकता और अखंडता के लिए काम करता है संघ : अरविंद नेताम

अहमदाबाद विमान हादसा

Ahmedabad plane crash : विमान के दोनों इंजन अचानक हो गए बंद, अहमदाबाद विमान हादसे पर AAIB ने जारी की प्रारंभिक रिपोर्ट

आरोपी

उत्तराखंड: 125 क्विंटल विस्फोटक बरामद, हिमाचल ले जाया जा रहा था, जांच शुरू

उत्तराखंड: रामनगर रेलवे की जमीन पर बनी अवैध मजार ध्वस्त, चला बुलडोजर

मतदाता सूची पुनरीक्षण :  पारदर्शी पहचान का विधान

स्वामी दीपांकर

1 करोड़ हिंदू एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने की “भिक्षा”

दिल्ली-एनसीआर में 3.7 तीव्रता का भूकंप, झज्जर था केंद्र

उत्तराखंड : डीजीपी सेठ ने गंगा पूजन कर की निर्विघ्न कांवड़ यात्रा की कामना, ‘ऑपरेशन कालनेमि’ के लिए दिए निर्देश

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies