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सरकार के निशाने पर संवैधानिक संस्थाएं

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Sep 1, 2012, 12:00 am IST
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सरकार के निशाने पर संवैधानिक संस्थाएं

दिंनाक: 01 Sep 2012 15:17:33

नींद कहां उनकी आंखों में जो धुन के मतवाले हैं?

गति की तृषा और बढ़ती, पड़ते पद में जब छाले हैं।

–रामधारीसिंह 'दिनकर' (चक्रवाल, पृ. 54)

देश के खजाने और भारत की प्राकृतिक संपदा को यह सरकार किस तरह लूटने के अवसर मुहैया करा रही है, 142 कोयला खदानों का बिना नीलामी के निजी कंपनियों को आवंटन इसका ताजा उदाहरण है। प्रधानमंत्री सफाई देते हुए कह रहे हैं कि 'कैग' की रपट गलत है और वह पद से इस्तीफा नहीं देंगे, एक संवैधानिक संस्था पर ही वे स्वयं व उनके मंत्रिगण सवाल उठा रहे हैं। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वयं सरकार ही संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है, बल्कि अपने राजनीतिक हितों पर आंच आते देख संवैधानिक संस्थाओं पर कीचड़ उछालना शुरू कर देती है। इससे साफ है कि सरकार चाहती है कि संवैधानिक संस्थाएं अपने स्वायत्त स्वरूप को छोड़कर इसके, विशेषकर कांग्रेस के राजनीतिक हितों की पैरवी करें और इसके लिए अपने इस्तेमाल पर भी वे आंखें मूंद लें जैसे कि सीबीआई सरकार की पिट्ठू बन गई है। वह कहने को भले ही एक स्वायत्त जांच एजेंसी हो, लेकिन उसका पूरा इस्तेमाल संप्रग सरकार की देखरेख में कांग्रेस के राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है। कब किसको डराना है और कब किसके विरुद्ध चुप बैठ जाना है, यह खेल सीबीआई के माध्यम से मनमोहन सिंह सरकार खूब खेल रही है। मुलायम सिंह यादव और मायावती तो इसके ताजा उदाहरण हैं।

यह सब करते हुए सरकार भूल रही है कि उसकी इन हरकतों से भारत का संवैधानिक ढांचा कमजोर होगा। प्रधानमंत्री 'कैग' पर उंगली उठाते समय यह भी भूल गए कि 'कैग' केन्द्र सरकार की ही 'ऑडिट एजेंसी' है, उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाकर सरकार अपनी विश्वसनीयता (यदि कोई बची हो) भी खतरे में डाल रही है। कैग की रपट को झूठी बताने वाले डा.मनमोहन सिंह केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय की सिफारिशी चिट्ठी के बारे में क्या कहेंगे जिसके आधार पर तुरत–फुरत दो खदानों का आवंटन कर दिया गया? 'कैग' ने कोयला खदानों के आवंटन में जिस अनियमितता का जिक्र किया है, यह आवंटन उसकी पुष्टि करता है। ऐसे में यदि मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी खदानें बांटने में कांग्रेस को मोटा माल मिलने का आरोप लगा रही है तो इसे यों ही खारिज नहीं किया जा सकता। कांग्रेस को आर्थिक लाभ पहुंचाने की सरकार की मंशा का ही परिणाम था कि इस मामले में जान–बूझकर कानून बनाने में देरी की गई और आश्चर्य यह कि कानून बन जाने के बाद भी उसे अमल में लाने में क्यों देर हुई?

देश कांग्रेस की जागीर नहीं है कि मनमाने तरीके से सरकारी खजाने की लूट से जनता आंखें मूंद ले और राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला व अब कोयला खदान आवंटन घोटाला जैसे महा भ्रष्टाचार के एक के बाद एक आयाम जुड़ते चले जाएं, जबकि प्रधानमंत्री गठबंधन की मजबूरी की आड़ लेकर सफाई देते रहें! कोयला खदान आवंटन घोटाला तो स्वयं प्रधानमंत्री के कोयला मंत्रालय के प्रभारी रहते हुआ, तो दोष 'कैग' के मत्थे क्यों मढ़ा जा रहा है? जबकि वास्तव में इसके लिए प्रधानमंत्री स्वयं नैतिक और प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार हैं। इस सारी छीछालेदर से बौखलाई कांग्रेस विपक्ष पर बहस से भागने का आरोप लगा रही है जबकि वह खुद इस सरकार की छत्रछाया में हो रहे बड़े-बड़े घोटालों पर जवाब देने से कतराती रही है। अब उसके एक बड़बोले महासचिव ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की राजनीतिक मंशा का जुमला उछाला है। प्रधानमंत्री भी जब लोकसभा में जवाब देने आए तो उन्होंने तथ्यों को रखने की बजाय विपक्ष और 'कैग' पर निशाना साधकर अपनी बेगुनाही साबित करने की कोशिश की। स्वयं कांग्रेस ने भी भाजपा और 'कैग' के प्रति ही अपनी तल्खी दिखाई है और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसके विरोध में पार्टी के सड़कों पर उतरने का ऐलान कर दिया है। वे भूल रही हैं कि देश उनकी असलियत जान गया है और वह इस भ्रष्टाचारी सरकार को माफ करने के लिए कतई तैयार नहीं है, क्योंकि इस सरकार की न देश में आस्था है और न देश के संविधान में।

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