दांव पर राष्ट्र-हित
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दांव पर राष्ट्र-हित

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Sep 1, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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दांव पर राष्ट्र-हित

दिंनाक: 01 Sep 2012 13:29:34

सोनिया निर्देशित सरकार की राजनीतिक शतरंज में

राष्ट्रहित को तिलांजलि देकर सदैव अपने वोट बैंक का ही ध्यान रखने वाली सोनिया पार्टी के समक्ष संविधान की मर्यादा, संसद की गरिमा, जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता और राष्ट्रवादी आंदोलनों का कोई महत्व नहीं है। कांग्रेस को देशहित नहीं सत्ताहित चाहिए।

देशभक्त समाजसेवी अण्णा

और उनकी महत्वाकांक्षी टीम

राष्ट्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जड़ जमा चुके भ्रष्टाचारियों को जड़मूल से समाप्त करने के लिए देशभक्त सामाजिक कार्यकर्त्ता अण्णा हजारे देशव्यापी प्रचंड आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। कांग्रेसनीत सरकार में लबालब भरे भ्रष्ट मंत्रियों को यह सहन नहीं हुआ। साम दाम दंड भेद की नीति से अण्णा के आंदोलन को कुचल डालने के प्रयास किए गए। नि:स्वार्थ भाव से समस्त देश को भ्रष्ट शासनतंत्र से मुक्ति दिलाने में जुटे अण्णा हजारे के साथ सरकार ने बार-बार विश्वासघात किया। सरकारी चोटों से घायल इस वयोवृद्ध नेता ने अब स्वच्छ और नि:स्वार्थी राजनीतिक विकल्प की खोज के लिए जन-जन को जाग्रत करने का बीड़ा उठाया है और यह भी घोषणा की है कि वे न तो स्वयं चुनाव लड़ेंगे और न ही किसी राजनीतिक दल का गठन करेंगे। चुनावी राजनीति से दूर रहकर राजनीति को शुद्ध करने का बीड़ा उठाने वाले इस सामाजिक नेता को क्या घोटालेबाज राजनेता सफल होने देंगे?

जो लोग अण्णा के आशीर्वाद और आंदोलन का सहारा लेकर रातोंरात हीरो बन गए थे उन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का भांडा स्वयं ही फोड़ दिया है। यद्यपि अण्णा ने सूझ-बूझ का परिचय देकर अपनी टीम को निरस्त करते देर नहीं की तो भी अरविंद केजरीवाल जैसे अनुभवहीन अण्णा भक्तों ने अपना राजनीतिक दल बनाने का ऐलान कर दिया है। इसी राजनीतिक नशे में अपनी सुघ बुध खो चुके इन लोगों ने भ्रष्टाचार की पोषक कांग्रेस और इस कलंक के खिलाफ जंग लड़ रही भाजपा को एक ही पलड़े में डाल दिया। अण्णा टीम की पूर्व सदस्य किरण बेदी के अनुसार लोकपाल के मुद्दे पर केजरीवाल ने कई बार भाजपा अध्यक्ष गडकरी से मुलाकातें की थीं। भाजपा का पूरा समर्थन अण्णा आंदोलन को था। केजरीवाल और उनके साथियों की कोई सामाजिक पृष्ठभूमि नहीं है। सच्चाई यही है कि ये अनुभवहीन लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ बने माहौल को बिगाड़ रहे हैं।

असम दंगों की जांच में सीबीआई

ने खींचीं कांग्रेस–हित की लकीरें

असम की कांग्रेस सरकार की अकर्मण्यता और केन्द्र की सोनिया निर्देशित सरकार की सोची-समझी अनदेखी की वजह से असम के हालात और भी ज्यादा बिगड़ रहे हैं। वैसे रक्षा मंत्रालय ने माना है कि असम दंगों को रोकने के लिए सेना भेजने का फैसला लेने में दो दिन लग गए। अब चारों ओर से दबाव पड़ने के बाद सरकार ने असम में हो रही हिंसा की जांच के लिए सीबीआई को आगे किया है। सभी जानते हैं कि सीबीआई सरकार की कठपुतली मात्र है जो कांग्रेस के हितों की रक्षा करने वाली एक संवैधानिक एजेंसी है। इस कठपुतली संस्था से निष्पक्षता की उम्मीद करना घुसपैठी दंगाइयों को बल प्रदान करना होगा। असम के दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा करके लौटे भाजपा के नेता एस एस अहलुवालिया ने इस संदर्भ में बहुत सनसनीखेज जानकारी दी है।

अहलुवालिया ने सीबीआई के गुवाहाटी क्षेत्र के निदेशक सलीम अली पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा है कि हिंसा के दौरान पंजीकृत 309 मामलों में से मात्र सात मामले ही जांच दल को सौंपे गए। यह सातों मामले भी बोडो हिन्दुओं के विरुद्ध हैं, जबकि बंगलादेशी घुसपैठियों के खिलाफ एक भी मामला नहीं सौंपा गया। भाजपा नेता ने सलीम अली को हटाकर किसी निष्पक्ष अधिकारी की नियुक्ति की मांग की है। अहलुवालिया ने आल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल को दंगा भड़काने का मुख्य जिम्मेदार पाया और कहा कि इस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई जबकि इस क्षेत्र में बोडो हिन्दू विधायक को गिरफ्तार कर लिया गया। हिंसा का प्रत्यक्ष जायजा लेने गए भाजपा नेता ने बताया कि मुस्लिम बहुल जिलों में हिन्दुओं को भाग जाने अथवा परिणाम भुगतने की धमकियां दी जा रही हैं। तुष्टीकरण की राजनीति हिन्दुओं पर कहर बरपा कर बंगलादेशी घुसपैठियों को संरक्षण दे रही है।

प्रधानमंत्री ने पहुंचाई

संविधान की गरिमा को ठेस

सोनिया गांधी के इशारे पर सरकार चला रहे हमारे प्रधानमंत्री राष्ट्र-हित के अधिकांश मुद्दों की अनदेखी कर रहे हैं। उन्हें देश के संविधान की मर्यादा भी ध्यान में नहीं रहती। यदि ऐसा न होता तो देश उन्हें यह कहते हुए न सुनता कि कोयला खदान आवंटन पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रपट गलत है। डा.मनमोहन सिंह ने सीधे तौर पर देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था द्वारा प्रस्तुत निष्कर्ष को ठुकराने में कतई संकोच नहीं किया। उन्होंने कैग की रपट को संसद की लोक लेखा समिति में चुनौती देने की घोषणा करके अपने दल और सरकार का बचाव करने का रास्ता तो तलाश कर लिया परंतु इससे संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने की राजनीति के दुष्परिणामों की उन्होंने कोई चिंता नहीं की।

लगता है कि पहले की तरह इस बार भी देश का सर्वोच्च न्यायालय ही सरकार की खबर लेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने अभी तक कई  मंत्रियों को जेल भेजा है, राज्यपालों को कानून के पाठ पढ़ाए हैं। जांच एजेंसियों की नकेल कसी है, अनेक अधिकारियों को उनकी सीमा दिखाई है और प्रधानमंत्री को कानूनी नसीहतें दी हैं। कैग को कटघरे में खड़ा करने वाली सरकार को शायद न्यायालय की फटकार का इंतजार है।

योगगुरु बाबा रामदेव की शक्ति

से घबराई भ्रष्ट कांग्रेसी सरकार

राष्ट्र–हित के प्रत्येक मुद्दे पर उभर रहे जज्बातों को दफन करने पर तुली सरकार की गाज अब योगगुरु बाबा रामदेव पर पड़ रही है। भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक, अष्टांग योग को घर-घर पहुंचाने वाले संत, स्वदेशी जागरण की एक बुलंद आवाज और विदेशी तिजोरियों में बंद कालेधन की पोल खोलने वाले जुझारू नायक स्वामी रामदेव के समाज जागृति अभियान को समाप्त करने के उद्देश्य से सरकार अब अनैतिक हथकंडों पर उतर आई है। अपनी कुर्सी हिलते देख इस सरकार ने गत वर्ष दिल्ली के रामलीला मैदान में लाठी और गोली का सहारा लेकर बाबा की जनशक्ति को कुचल डालने की असंवैधानिक हरकत की थी। एक वर्ष के बाद बाबा ने पुन: अपनी शक्ति का सफल प्रदर्शन किया। बाबा रामदेव ने पूरी सरकार और कांग्रेसी पार्टी को हिलाकर रख दिया। अब सरकार ने बाबा द्वारा चलाए जा रहे सेवा प्रकल्पों पर सवालिया निशान लगा दिया है।

सरकार के इशारे पर स्वामी रामदेव के मार्गदर्शन में चल रहे सेवा प्रकल्पों की सम्पत्तियों को जब्त करके कालेधन के विरुद्ध प्रखर हो रहे आंदोलन की हवा निकालने की तैयारी प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है। बाबा के अनुसार पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को दान में मिले 70 करोड़ रुपये को आय मानकर 35 करोड़ की टैक्स अदायगी का नोटिस भेजा गया है। स्वामी रामदेव ने कहा है कि आयकर विभाग की धारा 2/15 के अनुसार 'क्लीनिकल स्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010' में सरकार ने योग को, स्वास्थ्य सेवा को चैरिटी माना है। इस काम के लिए मिले दान को आय मान लेना एक गहरी राजनीतिक साजिश है। बाबा ने आरोप लगाते हुए कहा है कि कांग्रेस ने कोयला खदान के आवंटन में 20 लाख करोड़ की रकम खायी है। बाबा इसकी पोल-पट्टी खोलेंगे।

क्या असम की सरकार

बंगलादेशी घुसपैठियों की होगी?

असम में बंगलादेशी घुसपैठियों का आर्थिक दबदबा और राजनीतिक वर्चस्व यदि इसी प्रकार बढ़ता चला गया तो इस प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री बंगलादेशी घुसपैठियों का नेता होगा। पश्चिम बंगाल और असम में जनसांख्यिकी तेजी से बिगड़ रही है। असम के 12 जिलों में इसका प्रभाव बढ़ रहा है। यह स्थानीय मुसलमान न होकर बंगलादेश से आए घुसपैठिए हैं। अंग्रेजी समाचार पत्र पायनियर के सम्पादक चंदन मित्रा द्वारा की गई समीक्षा के अनुसार एक निश्चित भारत विरोधी साजिश के तहत बंगलादेशी घुसपैठियों को बुलाया, बसाया और संरक्षण दिया जा रहा है। अगर सरकार अभी भी न चेती तो ये बंगलादेशी घुसपैठिए अपनी सरकार बनाने में सफल हो जाएंगे। इन घुसपैठियों की बढ़ती तादाद स्थानीय लोगों पर खतरा बनकर मंडरा रही है। स्थानीय बहुसंख्यक समाज तेज रफ्तार से अल्पसंख्यक होता जा रहा हे। इन घुसपैठियों को मिलने वाली सरकारी सुविधाएं स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी सहित सभी अधिकारों पर भारी पड़ती जा रही है।

कट्टरवादी मुस्लिम नेता बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाला मुख्य विपक्षी दल आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट बंगलादेशी घुसपैठियों का मजबूत राजनीतिक मंच है। यह राजनीतिक दल केवल मात्र मुस्लिम हितों का संरक्षक है और स्थानीय बोडो समाज का प्रबल विरोधी है। प्रदेश और केन्द्र की सरकारें इस गैरकानूनी घुसपैठ से पूरी तरह वाकिफ रही है। वोट बैंक की राजनीति राष्ट्र की सुरक्षा के साथ निरंतर खिलवाड़ करती चली आ रही है। परिणामस्वरूप हिंसा और आतंक का बोलबाला अपना आकार बढ़ाता जा रहा है। चीन और पाकिस्तान द्वारा रचे जा रहे षड्यंत्र सफल हो रहे हैं। कांग्रेसी सरकारें अपना वोट बैंक मजबूत करने के उद्देश्य से देश की अखंडता को ही दांव पर लगा रही है

संसद में चर्चा पर कभी भी

गंभीर नहीं हुई सोनिया पार्टी

केन्द में भाजपानीत शासन के समय तहलका के मुद्दे पर एक महीने तक संसद को न चलने देने और जार्ज फर्नाडिंज के विरोध में दो वर्ष तक संसद में अति असभ्य ढंग से शोर मचाने वाली कांग्रेस आज भाजपा द्वारा संसद को न चलने देने से एक सप्ताह में ही लाल पीली हो गई है। प्रधानमंत्री के कैग विरोधी बयान से पता चलता है कि अगर संसद चली भी तो सरकार संविधान का हनन करके भी अपना बचाव करेगी। कांग्रेसी नेता कुछ भी कहें, वास्तविकता तो यह है कि कांग्रेसी नेताओं और मंत्रियों ने कभी किसी भी मुद्दे को संसद में गंभीरता से चर्चित होने ही नहीं दिया। ये नेता और मंत्री अपने को संसद से सदैव ऊपर मानते चले आ रहे हैं। इन्होंने कभी भी संसद में हुई चर्चा का सम्मान नहीं किया।

अतीत को छोड़कर यदि केवल वर्तमान को ही लें तो लोकपाल विधेयक, महंगाई, राष्ट्रमंडल खेल घोटाले और टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले पर संसद में हुई चर्चाओं का क्या नतीजा सामने आया? कांग्रेस ने कोयला खदान घोटाले पर भी उसी तरह की चर्चा की जोरदार तैयारियां कर ली हैं। अत: भाजपा का जनता के बीच जाने का निर्णय ठीक ही है।

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