पाकिस्तानी हिन्दुओं का दर्द
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पाकिस्तानी हिन्दुओं का दर्द
पंजाब/राकेश सैन
गत 10 अगस्त को लगभग 250 हिन्दू पाकिस्तान से भारत आए। कई रेल द्वारा आए तो कई पैदल ही वाघा और अटारी सीमा पार कर अमृतसर पहुंचे। जो पैदल आए उन्हें पहले तो पाकिस्तान के सैनिकों ने रोकने का प्रयास किया, लेकिन बाद में यह वादा लेकर कि वे पाकिस्तान को बदनाम नहीं करेंगे और अपनी यात्रा पूरी कर वापस लौट आएंगे, जाने दिया। जो ट्रेन से आए हैं वे इतना सामान लेकर आए हैं कि साफ पता चलता है कि वे यहां बसने आए हैं। अभी भी भारत आने के इच्छुक सैकड़ों हिन्दुओं को पाकिस्तान सरकार जबरन रोके हुए है। पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक को अपने देश की बदनामी का डर है। पर शायद उन्हें उस समय बदनामी का यह डर नहीं सताता जब उनके देश में हिन्दू लड़कियों का अपहरण किया जाता है, उनसे बलात्कार किया जाता है, और फिर जबरन इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया जाता है। उल्लेखनीय है कि 7 अगस्त को सिंध के जैकोबाबाद में एक और 14 वर्षीय हिन्दू लड़की का अपहरण कर लिया गया, उसी के बाद से पलायन का यह सिलसिला तेज हुआ हैं। पाकिस्तान से आए हिन्दू बताते हैं कि वहां वे सुरक्षित नहीं हैं। बंदूक की नोक पर कट्टर मजहबी हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर रहे हैं। एक इंसान सब कुछ बर्दाश्त कर लेता है, पर यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई उसकी बहू-बेटी की इज्जत पर हाथ डाले।
निरन्तर घटते हिन्दू
विभाजन के समय पाकिस्तान में 22 प्रतिशत हिन्दू थे। जिन्ना ने तब कहा था कि 'आप आजाद हैं, आप अपने मंदिर जाने के लिए आजाद हैं।' लेकिन यह 'आजादी' केवल कागजों तक रह गई। आज पाकिस्तान में केवल 1 प्रतिशत हिन्दू रह गए हैं। सवाल है कि बाकी कहां गए? और जो बचे भी हैं उनका भी उत्पीड़न हो रहा है। पाकिस्तान से आए एक हिन्दू ने बताया, 'सच्चाई यह है कि पाकिस्तान में हम हिन्दुओं की 'नस्ली सफाई' देख रहे हैं, ठीक वैसी ही जैसी हिटलर ने यहूदियों की थी। वहां हमें मार दिया जाता है या हमारा मतान्तरण करवाया जाता है, या हमें भारत जाने के लिए मजबूर किया जाता है, और दोनों देशों की सरकारें तमाशा देखती रहती हैं। पाकिस्तान में इससे अंतर नहीं पड़ता कि वहां सरकार आसिफ अली जरदारी की है या नवाज शरीफ की या परवेज मुशर्रफ कीया बेनजीर भुट्टो की। जहां तक हिन्दुओं का सवाल है, उनके उत्पीड़न पर सबकी आंखें बंद रहती हैं।'
कहां हैं मानवाधिकारवादी?
कहा जाता है कि मानवाधिकारवादियों और मीडिया के कारण आज की दुनिया में कहीं भी किसी भी समुदाय का उत्पीड़न आसान नहीं है। लेकिन पाकिस्तान में बहुत आसान है, अगर आप हिन्दू हों, क्योंकि दुनिया में कोई भी हिन्दू के पक्ष में आवाज उठाने के लिए तैयार नहीं है। उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ दिया गया है। इस वर्ष मार्च में हिन्दुओं, सिखों तथा ईसाइयों ने इस समाचार के बाद कि 17 वर्षीय एक हिन्दू लड़की को पी.पी.पी. (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) के एक नेता के संरक्षण में इस्लाम कबूल करने पर मजबूर किया गया, कराची के प्रेस क्लब के बाहर भारी प्रदर्शन किया, लेकिन सरकार के रवैये में कोई अंतर नहीं आया। एक टीवी चैनल ने तो एक हिन्दू लड़की द्वारा इस्लाम कबूल करते सीधे प्रसारण दिखाया, लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने ऐसे घिनौने कार्यक्रम को दिखाने पर भी कोई कार्रवाई नहीं की। दु:ख इस बात का भी है कि उनकी 'सिविल सोसायटी', जो कई मामलों में बहुत मुखर है, इस मामले में बिल्कुल खामोश रही।
न्यायालय भी बेबस
इस वर्ष मार्च में रिंकल कुमारी का मीरपुर से अपहरण किया गया तो आशा कुमारी का जैकोबाबाद से। इन मामलों में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने भी दखल देने से इनकार कर दिया और न्याय मांगती इन हिन्दू लड़कियों को मुस्लिम अपहरणकर्ताओं के हवाले कर दिया गया। अमरीका ने पाकिस्तान को उन देशों की सूची में शामिल किया है जहां पिछले एक साल में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न बढ़ा है। हालांकि पाकिस्तान ने इस रपट की परवाह ही नहीं की। पर भारत सरकार की इस मामले में चुप्पी शर्मनाक है। जिस 14 वर्ष की हिन्दू लड़की का सिंध के जैकोबाबाद से अपहरण हुआ, उसके पिता रेवत मल का भी कहना है कि उसे जबरदस्ती मुसलमान बनाकर एक मुसलमान लड़के के साथ उसका जबरन निकाह कर दिया गया है। रेवत मल का कहना है कि उनकी बेटी कभी अपना धर्म नहीं छोड़ सकती थी, उससे जबरन ऐसा करवाया गया है।
यह है सचाई
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने 'अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना' पर 'गम्भीर' होते हुए पिछले दिनों तीन सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल बनाया, जो स्थिति की समीक्षा करेगा। पर स्थिति तो पहले से ही साफ है कि पाकिस्तान में हिन्दू और उनकी महिलाएं सुरक्षित नहीं है, उनके घर तथा दुकानें सुरक्षित नहीं है। उनके अपहरण और उसके बदले फिरौती सामान्य बात है। वहां अब कोई महिला बिन्दी लगाकर बाहर नहीं निकल सकती। कई तो बुर्का पहनकर खरीददारी के लिए बाजार जाती हैं। अपने ही घर में हिन्दू बेबस हो गए, इसलिए वह भारत भाग रहे हैं। पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की एक शीर्ष संस्था ने तो पाकिस्तान की सेना पर ही आरोप लगाया है कि वह अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार में सहयोग करती है। रपट के अनुसार पाकिस्तानी सैनिक अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं को उठा ले जाते हैं और सेना के शिविरों में उन्हें 'यौन दासी' बनाकर रखते हैं। इसीलिए अधिकतर हिन्दू पाकिस्तान छोड़कर भारत में बसना चाहते हैं।
क्या करे भारत?
ऐसे में भारत सरकार को तत्काल दो काम करने चाहिए। सबसे पहले तो पाकिस्तान सरकार से कड़ाई से यह मामला उठाना चाहिए। प्रधानमंत्री को टेलीफोन द्वारा जरदारी से बात करनी चाहिए और भारत की आपत्ति दर्ज करवानी चाहिए। पाकिस्तान स्थित भारतीय वाणिज्यिक दूतावास को हिन्दुओं के पक्ष में सक्रिय करना चाहिए। एक संसदीय प्रतिनिधिमण्डल वहां भेजा जाना चाहिए जो पीड़ित हिन्दुओं से मुलाकात करे और वस्तु स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करे। दूसरे, जो हिन्दू परिवार यहां आकर बस चुके हैं उन्हें दीर्घावधि शरणार्थी वीजा दिए जाने चाहिए। वे लोग तो नागरिकता की मांग कर रहे हैं, तत्काल वह देना भले संभव न हो पर समझ लेना चाहिए कि ये लोग अब वापस पाकिस्तान नहीं जाएंगे। हालांकि सच्चाई यह भी है कि 1947 में जो हजारों हिन्दू परिवार पाकिस्तान से जम्मू आए थे उन्हें अब तक भारतीय नागरिकता नहीं दी गई है। नियमों का बहाना बनाया जा रहा है। पर इसी देश में करोड़ों बंगलादेशियों की अवैध घुसपैठ हुई है और उनमें से बहुत से भारतीय नागरिक भी बन गए हैं। असम की समस्या उसी की उपज है। लेकिन जब पाकिस्तान से विस्थापित हिन्दुओं का सवाल आता है तो नियम आड़े आ जाते हैं। यह शर्मनाक राजनीति केवल भारत में ही हो सकती है।
फौलादी सीनों की नम आंखें
भारतीय सैनिकों व सुरक्षा बलों की आंखें उस समय भर आई जब सरहदी लोक सेवा समिति के कार्यकर्ताओं ने भारत–पाकिस्तान सीमा पर के अग्रिम जाकर रक्षाबंधन उत्सव मनाया। कार्यकर्ता बहनों ने सैनिक भाइयों को राखी बांधकर जहां देश की रक्षा का संकल्प दोहराया, वहीं यह भी अहसास करवाया कि देश की सुरक्षा में देश का हर नागरिक दूसरी रक्षा पंक्ति के रूप में उनके साथ खड़ा है। सीमा जागरण प्रकल्प से संबद्ध सरहदी लोक सेवा समिति के महामंत्री राजीव नैब ने बताया कि गत 2 अगस्त की रक्षाबंधन के दिन 149 पुरुष व 264 बहनें 14 टोलियां बनाकर पंजाब के सीमावर्ती जिलों–फाजिल्का, फिरोजपुर, तरनतारन, अमृतसर, गुरुदासपुर, पठानकोट के साथ लगती अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर 44 सैनिक चौकियों पर गए और सैनिकों व सुरक्षा बलों को राखी बांधी। सैनिकों व उनके अधिकारियों का कहना था कि उनके लिए पूरा देश ही एक परिवार है और इस परिवार की रक्षा करना उनका पहला धर्म है। उन्होंने कहा कि समाज से इस तरह स्नेह मिलने से उनका हौंसला बढ़ता हैं और उनमें नई शक्ति का संचार होता है।
गुरुद्वारा हत्याकांड पर संघ ने शोक जताया
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अमरीका के एक गुरुद्वारे में हुई गोलीबारी पर शोक व्यक्त करते हुए भारत सरकार से मांग की है कि दुनिया में जहां कहीं भी भारतवंशी रह रहे हों, उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाए। रा.स्व. संघ (पंजाब प्रांत) के संघचालक सरदार बृजभूषण सिंह बेदी ने कहा है कि सिख पंथ ने सदैव 'सरबत दा भला' ही चाहा है, ऐसे पंथ के लोगों को इस तरह हिंसा का शिकार बनाया जाना कायरता है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। श्री बेदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से हत्याकांड में शहीद हुए लोगों को श्रद्धाञ्जलि देते हुए पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की और भारत सरकार से आग्रह किया है कि इस मामले को गंभीरता के साथ अमरीका के सामने उठाए।
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