एकबारफिर सिद्ध हो गया है कि केन्द्र सरकार की मंशा राष्ट्रविरोधियों को परास्त करने की नही बल्कि राष्ट्रवादियों पर ही लगाम लगाने की है। पाकिस्तान द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट्स द्वारा अफवाह फैलाने की आड़ लेकर केन्द्र सरकार ने दबाव डालकर ट्वीटर और फेसबुक के जिन पतों (एकाउण्ट्स) को प्रतिबंधित (ब्लॉक) कराया उनमें राष्ट्रभक्तों और हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों और लोगों के भी एकाउण्ट हैं। और तो और सरकार ने ट्वीटर पर संलग्न पाञ्चजन्य के पते को भी प्रतिबंधित सूची में डाल दिया है। हालांकि सरकार की ओर से नहीं बताया गया है कि पाञ्चजन्य के किस अंक और किस आलेख में क्या राष्ट्रविरोधी, भड़काऊ या आपत्तिजनक था। इसी के साथ डा. प्रवीण भाई तोगड़िया व कुछ अन्य राष्ट्रचिंतक लेखकों, पत्रकारों के ट्वीटर एकाउण्ट भी प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। साफ है कि अण्णा आंदोलन के समय से ही सोशल मीडिया नेटवर्क की प्रभावी भूमिका से खार खाए बैठी केन्द्र सरकार और उसके कुछ मंत्रियों ने 'अफवाहों की अफवाह' उड़ाकर अपने राजनीतिक विरोधियों से बदला लेने की नीयत से ऐसा किया है। निरंकुश और तानाशाह प्रवृति के चलते वर्तमान केन्द्र सरकार न तो अपनी 'मैडम' के बारे में कुछ सुनना चाहती है और न अपने 'युवराज' के, जबकि सोशल मीडिया पर सरकार के साथ इन दोनों 'कांग्रेसी आकाओं' के खिलाफ अभियान-सा चलता रहता है। इसीलिए सड़कों पर हो रहे प्रदर्शनों की अनदेखी करने के बाद अब सरकार अन्तरताने के पर भी कतरना चाहती है और इसी बहाने उस पर 'सेंशरशिप' लगाना चाहती है। मंशा साफ है- इरादा उपद्रवियों और कट्टरवादियों पर नियंत्रण का नहीं है, बल्कि राष्ट्रवादियों की जुबान बंद करने का है, ताकि वे सरकार के कुकर्मों का विरोध न कर सकें। इसके पीछे एक कारण वोट राजनीति का संतुलन साधे रखना भी है, कि देखो हमने हिन्दुत्वनिष्ठों को भी घेरा है। लेकिन सरकार बताए कि ये हिन्दुत्वनिष्ठ क्या नफरत या अफवाहें फैला रहे थे?
सत्रह साल पहले, स्वतंत्रता दिवस के दिन, 15 अगस्त सन् 1995 को जब विदेश संचार निगम लिमिटेड ने भारत में अन्तरताने (इन्टरनेट) की सुविधा प्रदान की तो मानो सूचना के क्षेत्र में क्रांति-सी आ गई। इतने छोटे से अन्तराल में ही अब देश के 12 करोड़ से अधिक लोग इन्टरनेट का प्रयोग करते हैं। हालांकि यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि 84 प्रतिशत भारतीय, विशेषकर ग्रामीण जगत इस वैश्विक मकड़जाल से पूरी तरह अछूता है, लेकिन टिकट के लिए रेल आरक्षण केन्द्रों में लम्बी लाइन लगानी हो या भारतीय डाक विभाग द्वारा चिठ्ठी पहुंचाने में की जाने वाली देरी, नौकरी के लिए आवेदन हो या देश-दुनिया की जानकारी या फिर अपने बेटे-बेटी के लिए रिश्ते खोजते रहने का झंझट-इंटरनेट ने इन सब मुसीबतों से कुछ हद तक आजादी तो दिला ही दी। और अब उसमें एक नया आयाम जुड़ गया है सोशल नेटवर्किंग का- गूगल, फेसबुक और ट्वीटर से जुड़कर पांच करोड़ से अधिक लोग मानो खुद को मीडिया का हिस्सा ही समझने लगे। इसका कुछ लाभ भी हुआ- शहरी मध्यम वर्ग अधिक जागरूक हुआ, राजनेताओं और स्वयं मीडिया को भी इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर चली बहस के कारण कुछ मुद्दों पर संज्ञान लेना पड़ा, स्पष्टीकरण भी देना पड़ा। उधर हर हाथ तक पहुंच रहे मोबाइल में 1 पैसे के लघु संदेश (एसएमएस) के द्वारा प्रचार का अधिकार पा चुके बाजार ने लोगों को जैसे उसका 'गुलाम-सा' बना दिया है। इसका आदी बन चुके आदमी की बिना मोबाइल के जिंदगी जैसे ठहर-सी जाती है। लेकिन इसी मोबाइल और इन्टरनेट के माध्यम से जब पाकिस्तान ने 1 पैसे (सामान्यत: इन माध्यमों से बड़ी संख्या में संदेश भेजने में इतना ही खर्च आता है) का बम फोड़ा तो उसने उस बम से भी अधिक नुकसान पहुंचाया कि जो वह करोड़ों रुपए खर्च करके कश्मीर की सीमा पर फोड़ता है।
असम के कोकराझार इलाके में जनजातीय बोडो समाज और बंगलादेशी घुसपैठियों के बीच हुई हिंसा को साम्प्रदायिक रंग देने की कांग्रेस की कोशिशों का वास्तविक लाभ पाकिस्तान और भारत में बैठे जिहादियों ने ही उठाया। कुछ लोगों के मारे जाने और लाखों के बेघरवार होकर शरणार्थी शिविरों में पहुंच जाने के बीच पाकिस्तान की कथित 'साइबर आर्मी' ने एक साजिश रची और भारत में सक्रिय 'हूजी' (हिज्बुल मुजाहिद्दीन) और केरल के कट्टरवादी गुट पीएफआई (पापुलर फ्रंट आफ इंडिया) ने उसे अंजाम दिया। इस साजिश के तहत म्यांमार और पूर्वोत्तर भारत में आई प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के क्षत-विक्षत शवों के चित्रों के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें इन्टरनेट के जरिए 'असम में साम्प्रदायिक हिंसा' के रूप में प्रचारित किया गया और फेसबुक तथा ट्वीटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बहस का हिस्सा बनाया गया। इतने वीभत्स व आपत्तिजनक चित्रों को हालांकि इन 'साइट्स' पर डालने की मनाही है, लेकिन अमरीकी मूल की इन कम्पनियों को लगा कि वे इस प्रकार असम और म्यांमार में पीड़ित 'अल्पसंख्यकों' के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मुहिम चला रहे हैं। इन्टरनेट और एसएमएस, एमएमएस द्वारा दुष्प्रचार की बड़ी प्रतिक्रिया 11 अगस्त को मुम्बई के आजाद मैदान पर देखने को मिली जब रजा अकादमी के बैनर तले एकत्र गोल टोपी लगाए कुछ मुस्लिम युवकों ने न केवल पुलिस व मीडिया के वाहन फूंके बल्कि कुछ दूर जाकर स्वतंत्रता सेनानियों और बलिदानियों के पवित्र स्मारक 'अमर जवान ज्योति' को भी अपमानित किया। इसके बाद अलविदा की नमाज (शुक्रवार, 17 अगस्त) के बाद लखनऊ, कानपुर और और इलाहाबाद में उपद्रवियों ने जमकर उत्पात मचाया।
साजिश सफल होती देख पाकिस्तान और हिन्दुस्थान के कट्टरवादियों ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर झूठे नामों से खोले गए 'एकाउण्ट्स' (पते) के द्वारा 'मुस्लिमों के नरसंहार' के लिए असमियों के विरुद्ध जहर उगलना शुरू कर दिया, असमियों के विरुद्ध नफरत फैलाने वाले और उनसे बदला लेने वाले लधु संदेशों (एसएमएस और एमएमएस) को बड़ी संख्या में भेजा गया। इससे प्रेरित होकर हिंसक मजहबी मनोवृत्ति वाले कट्टरवादी बंगलूरु, अमदाबाद, पुणे और मुम्बई में रहकर नौकरी आदि कर रहे पूर्वोत्तरवासियों को जान से मारने की धमकी देने लगे।
इन धमकियों के बाद जब देशभर से भर-भर कर ट्रेनें गुवाहाटी पहुंचने लगीं, उसमें भी रास्ते में दो समुदायों के बीच संघर्ष हुए और कुछ लोगों के शव रेलवे लाइनों पर पड़े मिले, तब कहीं जाकर असम और अल्पसंख्यकों के गम में डूबी केन्द्र सरकार की तंद्रा टूटी। आनन-फानन में जांच हुई और उसे पता चल गया कि यह सब उन अफवाहों के चलते हो रहा है जो पाकिस्तान द्वारा फैलायी जा रही हैं। तुरंत इंटरनेट की सेवा प्रदाता कम्पनियों को चेतावनी दी गई, उन्होंने बताया कि अधिकांश आपत्तिजनक चित्र पाकिस्तान से डाले (अपलोड) गए थे, उनके आईपी एड्रेस (एक प्रकार का इन्टरनेट प्रयोगकर्ता का क्रमांक या पता) भी मिल गए, ऐसी 275 वेबसाइट्स और वेब पृष्ठों को प्रतिबंधित कर दिया गया। भारत के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक से फोन पर बात की और कड़ी आपत्ति दर्ज की तो पाकिस्तानी गृहमंत्री ने सुबूत मांग लिए। केन्द्रीय गृह सचिव आर.के. सिंह कह रहे हैं कि पुख्ता सुबूत हैं, पाकिस्तान भेज रहे हैं।
पर प्रश्न यह है कि क्या पाकिस्तान को नहीं पता है कि वह क्या कर रहा है? क्या उसे नहीं पता है कि सीमा पर तारबंदी के बावजूद घुसपैठ और तस्करी उसके सैनिकों की मदद के बिना नहीं हो सकती? क्या उसे नहीं पता है कि सीमा पर पक्की, गहरी और लम्बी सुरंग उसकी मदद के बिना नहीं खोदी जा सकती? क्या उसे नहीं पता कि कश्मीर के आतंकवादी उसकी मदद के बिना कुछ भी नहीं कर सकते? क्या उसे नहीं पता कि मुम्बई पर हमले की साजिश पाकिस्तान में ही रची गई थी और उसमें पाकिस्तानी जिहादी ही शामिल थे? या उसे नहीं पता कि दाउद और अन्य 'मोस्ट वांटेड' उसी के यहां छिपे हुए हैं? वह तो भारत का जन्मजात दुश्मन है और वह दुश्मनी ही निभा रहा है। आप देते रहिए सुबूत और अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते रहिए, अपनी नाकामियों पर पर्दा डालते रहिए। क्या दुश्मन देशों द्वारा संचार माध्यमों से छेड़छाड़ कर भारत के इस क्षेत्र में सुरक्षा तंत्र को चुनौती देने का यह पहला मामला है? याद नहीं अभी कुछ माह पूर्व ही भारत के रक्षा संस्थानों की आधिकारिक वेबसाइट्स को 'हैक' (एक प्रकार से घुसपैठ या कब्जा) कर कथित 'पाकिस्तान साइबर आर्मी' ने उस पर भारत विरोधी नारे और गालियां लिख दी थीं। राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में केन्द्रीय संचार और सूचना तकनीकी राज्यमंत्री सचिन पायलट ने भी बताया कि इस वर्ष के शुरुआती तीन महीनों में ही 133 सरकारी वेबसाइट्स 'हैक' की गईं। एक बंगलादेशी हैकर समूह ने दावा किया कि उसने भारत की 20,000 वेबसाइट्स 'हैक' कर रखी हैं। कम्प्यूटर के भीतर चीनी कलपुर्जों के माध्यम से सूचनाओं के 'लीक' हो जाने, चुरा लिए जाने की चेतावनियां भी मिलती रहती हैं। तो क्या कर रही है भारत की सरकार और उसका भारी-भरकम सूचना और तकनीकी मंत्रालय? असम की हिंसा को बढ़ा-चढ़ाकर, झूठे चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने की मुहिम तो 13 जुलाई से चल रही है और उसका असर 13 अगस्त से देखने को मिला, क्या कर रहा था इस बीच बड़बोले कपिल सिब्बल का मंत्रालय?
हालांकि इस बड़े खुलासे के बाद सोशल नेटवर्किंग साइट्स की लगाम कुछ कसी गई है, कुछ राज्यों में एक साथ बड़ी संख्या में एसएमएस भेजने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, कर्नाटक में अफवाह फैलाने और धमकाने के आरोप में 16 लोगों को हिरासत में लिया गया है। बरेली, मुम्बई सहित देश में कुछ और जगहों पर गिरफ्तारियां हुई हें, पूर्वोत्तरवासियों का इन क्षेत्रों से पलायन रुक गया है और पुन: वापसी चालू हो गई है, कहा जा सकता है कि स्थिति सामान्य होती जा रही है। पर एक बड़ा प्रश्न यह खड़ा हो गया है कि अफवाह फैलाने वाले तो दुश्मन हैं ही, पर बंगलादेशी या म्यांमार के मुस्लिमों के लिए भारत के हिन्दुओं पर हमला करने वाले कौन हैं? 'अमर जवान ज्योति' को अपमानित करने वाली सोच किसने पैदा की? ऐसी सोच वाले लोगों के लिए क्या भारत की सरकार और अनेक राज्यों की सरकारें क्या अलग-अलग प्रकार से लाभान्वित करने की घोषणाएं नहीं करती हैं? वोट बैंक के लालच में राजनेता और उनकी सरकारें जब अलगाववादी और कट्टरवादी सोच को हतोत्साहित करने की बजाय प्रोत्साहित करेंगी तो देश को अफवाहों की आग से कैसे बचा पाएंगी?
अफवाह फैलाने वाले तो दुश्मन हैं ही, पर बंगलादेशी या म्यांमार के मुस्लिमों के लिए भारत के हिन्दुओं पर हमला करने वाले कौन हैं?
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