उत्तर प्रदेश में पुलिस बनी हैवानमहिलाओं पर हमले बढ़े,पुलिस अधिकारी अपने साथियों को बचाने में जुटे
|
उत्तर प्रदेश/ शशि सिंह
उत्तर प्रदेश में पुलिस बनी हैवान
पुलिस अधिकारी अपने साथियों को बचाने में जुटे
राज किसी का भी हो, उत्तर प्रदेश पुलिस की हैवानियत कम नहीं होती। मायावती के शासन में महिलाओं पर बहुत अत्याचार हुए। लखीमपुर खीरी जिले के एक थाने में लड़की से बलात्कार के बाद हत्या के मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि उसकी जांच सीबीआई को देनी पड़ी थी। तब समाजवादी पार्टी ने खूब हंगामा किया था। लेकिन अब सपा की सरकार में भी थानों में महिलाओं की अस्मत पर डाका डाला जा रहा है। मायावती शासन की तरह ही अब भी मानवाधिकार आयोग और उच्च न्यायालय तक को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है, लेकिन हालात में कोई बदलाव नहीं आ रहा है। महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं।
सबसे पहले बात प्रदेश की राजधानी लखनऊ की ही करें। माल थाने के पुलिस अधिकारी कामता प्रसाद अवस्थी ने एक महिला को पहले तो इशारों-इशारों में परेशान किया। फिर एक रात समस्या के समाधान के लिए थाने बुलाया। शराब पीकर उसे बहाने से अपने कमरे में ले गया और अश्लील हरकतें करने लगा। उसका इरादा समझ महिला ने भागने की कोशिश की तो वह हैवानियत पर उतर आया। लेकिन वह बहादुर महिला उससे भिड़ गई, दातों से उसे कई स्थानों पर काट लिया। उसके कपड़े फाड़ डाले। संयोग से पूरे घटनाक्रम की फोटो खिंच गई। वह जैसे ही समाचार पत्रों में छपी तो शासन-प्रशासन में हलचल मची। पहले तो उस पुलिस अधिकारी को मंदबुद्धि बताकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बचाते रहे। जब चौतरफा दबाव बढ़ा तो लाइन हाजिर कर दिया गया। बाद में उच्च न्यायालय ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया, सरकार को फटकारा। अब उसे निलंबित कर बर्खास्त करने की तैयारी चल रही है।
प्रदेश के बस्ती, कुशीनगर, बदायूं, प्रतापगढ़, महोबा, फर्रुखाबाद, जालौन आदि में पुलिस द्वारा महिलओं से अभद्रता की वारदातें सामने आ चुकी हैं। ऐसे अनेक मामले हैं जहां पुलिस ने रपट नहीं लिखी, लिखी भी तो उच्चस्तरीय दबाव के बाद। बदायूं की लालपुर पुलिस चौकी में दो माह पूर्व एक जायरीन लड़की से दुराचार की घटना घटी। पीड़िता का मुकदमा तक नहीं लिखा गया। मीडिया के माध्यम से शासन तक बात पहुंची तो छह पुलिस वालों पर मुकदमा दर्ज किया गया। जांच के बाद उन्हें निलंबित किया गया। टूंंडला के रसूलपुर में तैनात सिपाही ने एक लड़की से साथ दुराचार तो किया ही, उसे एक होमगार्ड के हवाले कर दिया। उसने भी उसकी इज्जत लूटी। बाद में हंगामा मचा तो दोनों पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा गया।
8 मई, 2012 की बात है। बस्ती नगर थाने में तैनात सब इन्सपेक्टर मनोज सिंह ने आत्महत्या कर ली। पत्नी ने उसके थाने के दरोगा पर मनोज सिंह को आत्महत्या के लिए विवश करने की शिकायत की तो सुनी नहीं गई। जून में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक किसी माध्यम से फरियाद पहुंची तो दरोगा समेत छह पुलिस वालों पर मुकदमा दर्ज हुआ। अप्रैल, 2012 में मेले में पहुंचे एक सैनिक की पत्नी के साथ कुछ सिपाहियों ने छेड़छाड़ की, इसका विरोध करने पर उस सैनिक की पिटाई की, फर्जी मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया। मामला पुलिस महानिरीक्षक के पास पहुंचा तो दोषी पुलिस वालों पर कार्रवाई की गई। अपने प्रेमी के साथ एक युवती सीतापुर के एक थाने में शिकायत लेकर गई तो उसको न्याय देने की बजाय दरोगा ने दुराचार किया। उच्च पुलिस अधिकारी उसे दोषी मानने के लिए तैयार ही नहीं थे। बाद में सामाजिक और राजनीतिक दबाव में उसे लाइन हाजिर किया गया। इस मामले को मानवाधिकार आयोग ने भी गंभीरता से लिया। आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति विष्णु सहाय ने पूरी घटना की रपट मांगी है।
फर्रुखाबाद में तो अजीब घटना हुई। यहां के मौहम्मदाबाद थाने में तैनात एक सिपाही ने एक युवती का योन शोषण किया। बाद में उसे भगा दिया। उसने उच्च स्तर पर शिकायत की तो मुकदमा दर्ज किया गया। दोषी पुलिसकर्मी को जेल भेज दिया गया। लेकिन उसने लड़की से शादी का वादा किया तो मुकदमा वापस कर लिया गया। रिहा हो जाने के बाद वह फिर शादी से मुकरा तो दबाव पड़ा। अतत: उसे उस लड़की से शादी करनी ही पड़ी।
प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ए.सी. शर्मा इन सब घटनाओं पर नसीहत देने वाले अंदाज में कहते हैं, 'पुलिस वालों को अपना आचरण व व्यवहार दुरुस्त रखना चाहिए। उच्च पदों पर बैठे लोगों से अच्छे आचारण की अपेक्षा की जाती है। प्रशिक्षण से लेकर अन्य अवसरों पर पुलिस वालों को ऐसी नसीहत दी भी जाती है। उन्हें ऐसा करने के निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं। अब मुख्य पदों पर दागी लोग तैनात नहीं किए जाएंगे।'
टिप्पणियाँ