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दिल्ली में वार्ताकारों की रपट के विरोध में विशाल धरना
देशद्रोहियों की आवाज है वार्ताकारों की रपट
–राममाधव, सह सम्पर्क प्रमुख, रा.स्व.संघ
'देश के संविधान का सम्मान नहीं करने वालों को देशद्रोही कहा जाता है। लेकिन जम्मू-कश्मीर पर वार्ताकारों की रपट में ऐसे लोगों के विचारों को ही महत्व दिया गया है। रपट में भारत के संविधान की बार-बार धज्जियां उड़ाने वाले अलगाववादियों की बात को प्रमुखता से कहा गया है। पीड़ित कश्मीरी पंडितों की बात को रपट में बिल्कुल भी जगह नहीं दी गई'। उक्त विचार रा.स्व.संघ के अ.भा. सह सम्पर्क प्रमुख श्री राममाधव ने गत 16 जुलाई को नई दिल्ली में वार्ताकारों की रपट के विरोध मंे आयोजित धरने को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। धरने का आयोजन जम्मू-कश्मीर पीपुल्स फोरम के तत्वावधान मंे हुआ। इसमें दिल्ली की अनेक सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक संस्थाओं के कार्यकर्ताओं तथा आम लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। धरने के अंत मंे वार्ताकारों की रपट की प्रतियां भी जलाई गईं।
श्री राममाधव ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है। इस राज्य का भारत में पूर्ण विलय हुआ था, जो इस बात को नकारेगा हम उसका कड़ा विरोध करेंगे। उन्होंने कहा कि वार्ताकारों की यह रपट भारत में जम्मू-कश्मीर के पूर्ण विलय को नकारने वाली है। इस रपट का स्थान कूड़ेदान के अलावा और कहीं नहीं है, इसलिए इसे कूड़ेदान में फेंकना ही उचित होगा। श्री राममाधव ने कहा कि जम्मू-कश्मीर सिर्फ वहां के लोगों का ही नहीं है पूरे देश का है। इसलिए हर देशवासी को जम्मू-कश्मीर की रक्षा का संकल्प लेकर इस रपट का खुलकर विरोध करना चाहिए।
धरने को संबोधित करते हुए लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज ने कहा कि वार्ताकारों की यह रपट घड़ी की सुई को पीछे घुमाने तथा कालचक्र को वापस पीछे धकेलने के समान है। यह रपट पी.ओ.के. (पाक अधिकृत कश्मीर) को पाक प्रशासित कश्मीर (पी.ए.के.) बताती है, जैसा कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने अपनी शब्दावली में पी.ओ.के. को पी.ए.के. कहा था। उन्होंने कहा कि रपट धारा 370 को स्थायी बनाने का सुझाव दे रही है। यह रपट उन कानूनों पर ही प्रश्न चिह्न लगाती है जो कश्मीर को भारत में जोड़ने के लिए सहायक हैं। उन्होंने कहा कि रपट डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान का अपमान है।
कार्यक्रम के अन्य वक्ता विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री डा. सुरेन्द्र जैन ने कहा कि वार्ताकारों की इस रपट में केवल अलगाववादियों के ही सुर हैं। प्रतिनिधि
भारत नीति प्रतिष्ठान का पुस्तक विमोचन कार्यक्रम
हिन्दू संस्कृति को बचाएं स्वैच्छिक संस्थाएं
–डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी, अध्यक्ष, जनता पार्टी
'भारत की पहचान हिन्दू संस्कृति है। यह पहचान कैसे बनी रहे, इसके लिए स्वैच्छिक संस्थाओं की आवश्यकता है। इतिहास की अच्छी पुस्तकें लिखने के लिए स्वैच्छिक संस्थाओं की जरूरत है'। उक्त विचार जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने व्यक्त किए। वे गत 14 जुलाई को नई दिल्ली में भारत नीति प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री मिलिंद ओक की पुस्तक 'भ्रामक उद्देश्य' का लोकार्पण भी किया गया। साथ ही भारत नीति प्रतिष्ठान की पुस्तक 'समकालीन समाज में बुद्धिजीवी' का भी इस अवसर पर लोकार्पण किया गया।
डा. स्वामी ने कहा कि स्वैच्छिक संस्थाओं को सरकार द्वारा जो पैसा अनुदान के रूप मंे दिया जाता है, उस पैसे का क्या उपयोग है हमें यह जानना चाहिए। क्योंकि यह पैसा हमारा ही है। कर के रूप में जो पैसा हम सरकार को देते हैं, सरकार उस पैसे को इन संस्थाओं को अनुदान के रूप में देती हैं। साथ ही देश के बाहर से आने वाले पैसे के बारे में भी हमें जानना चाहिए कि आखिर जो पैसा बाहर से आ रहा है उसकी मंशा क्या है। उन्होंने कहा कि कई बार देखने मंे आया है कि बाहर से अनुदान के रूप में आने वाले पैसे का उपयोग देश विरोधी कामों में किया जाता है। इसलिए स्वैच्छिक संस्थाआंे के कार्य की समीक्षा तथा बाहर से अनुदान के रूप में आने वाले पैसे की जांच होनी चाहिए।
डा. स्वामी ने कहा कि स्वैच्छिक संस्थाओं की विश्वसनीयता बनी रहे इसलिए लिए इन संस्थाओं को अपनी वेबसाइट पर पूरा हिसाब देना चाहिए। साथ ही सरकार का जो विभाग इन संस्थाओं को अनुदान दे रहा है उन विभागों को भी अपनी वेबसाइट पर इनकी जानकारी देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह बात भी सही है कि हर संस्था को शक की नजर से नहीं देखा जा सकता। देश में अनेक संस्थाएं ऐसी हैं जो देशहित में अच्छा काम कर रही हैं। एकल विद्यालय का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि एकल विद्यालय का काम देखने लायक है। ऐसी संस्थाओं का हमें दिल खोलकर सहयोग करना चाहिए।
मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित वरिष्ठ पत्रकार तथा समाजसेवी श्री के. बद्रीनाथ ने कहा कि हर साल बड़ी संख्या में स्वैच्छिक संस्थाओं का पंजीकरण होता है। इन संस्थाओं पर प्रश्न खड़े होते हैं, लेकिन सभी संस्थाएं चोर नहीं हैं। देश में बहुत संस्थाएं ऐसी हैं जो बहुत अच्छा काम कर रही हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार श्री अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि जिस तादाद मंे स्वैच्छिक संस्थाओं की संख्या बढ़ रही है, उस मात्रा में विकास होता दिखाई नहीं देता। इसलिए इन संस्थाओं की छानबीन अवश्य होनी चाहिए।
'भ्रामक उद्देश्य' पुस्तक के लेखक श्री मिलिंद ओक ने पावर प्वाइंट के जरिए पुस्तक की विषयवस्तु पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन किया प्रो. राजवीर शर्मा ने। प्रतिनिधि
संस्कृत शिक्षकों को प्रशिक्षण
गत 12 जुलाई को असम के डिब्रूगढ़ में विद्या भारती, पूर्वोत्तर क्षेत्र द्वारा आयोजित दस दिवसीय संस्कृत आचार्य प्रशिक्षण शिविर सम्पन्न हो गया। इसमें असम के 14 जिलों और मेघालय के आचार्यों ने भाग लिया।
शिविर के समापन समारोह का शुभारम्भ विशिष्ठ अतिथि डा. नारायण उपाध्याय ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। समारोह में वक्ता के रूप में विद्या भारती के संस्कृत विभाग के राष्ट्रीय संयोजक श्री विजय गणेश कुलकर्णी व विद्या भारती के क्षेत्रीय सचिव श्री जयकान्त शर्मा उपस्थित थे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री कुलकर्णी ने कहा की आज पूरे विश्व में संस्कृत अपना अलग स्थान रखती है। अब संस्कृत भाषा का उपयोग नासा द्वारा बनाए जा रहे सुपर कम्प्यूटर में भी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि नासा के वैज्ञानिकों की एक रपट के अनुसार आने वाले सुपर कम्प्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित होंगे। संस्कृत भाषा के आधार पर सुपर कम्प्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग कर सकेगा। श्री कुलकर्णी ने कहा कि संस्कृत की जन्मभूमि भारत है, जबकि यहां के लोग ही इसे बोलने में संकोच करते हैं। वहीं विदेशों से आए लोग भारत में संस्कृत सीख रहे है।
समारोह में 2012 में सम्पन्न हुई दसवीं की परीक्षा में संस्कृत विषय मंे अच्छे अंक अर्जित करने वाले सरस्वती शिशु मंदिरों के छात्रों को सम्मानित किया गया। शिविर की खास बात यह रही कि यहां आचार्यों ने पूरे समय संस्कृत में ही बातचीत की। मनोज पांडे
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