देशहित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम
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भारतीय मजदूर संघ के स्थापना दिवस (23 जुलाई) पर विशेष
अरुण कुमार सिंह
भारतीय मजदूर संघ (भामस) का नारा है-
देशहित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम।
जबकि अन्य मजदूर संगठनों का कहना है-
चाहे जो मजबूरी हो, हमारी मांगें पूरी हों।
भारतीय मजदूर संघ पहले राष्ट्रहित, फिर उद्योगहित और अन्त में मजदूर-हित की बात करता है। शायद यही कारण है कि विभिन्न क्षेत्रों के देशभक्त मजदूर अन्य मजदूर संगठनों के मुकाबले भामस का सदस्य बनना ज्यादा बेहतर और सुरक्षित समझते हैं। अपने प्रति मजदूरों के इसी विश्वास के कारण भारतीय मजदूर संघ आज भारत का सबसे बड़ा मजदूर संगठन है। संख्याबल की दृष्टि से चीन के सरकार नियंत्रित मजदूर संगठन को छोड़ दें तो भारतीय मजदूर संघ विश्व का भी सबसे बड़ा श्रमिक संगठन है। भारत सरकार के एक आंकड़े के अनुसार 31 दिसम्बर, 2002 तक भारतीय मजदूर संघ के सदस्यों की संख्या 62 लाख, 15 हजार, 797 है। जबकि इण्डियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) 39 लाख, 54 हजार, 12 सदस्यों के साथ दूसरे स्थान पर है। 34 लाख, 42 हजार, 239 सदस्यों के साथ ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) तीसरे स्थान पर है।
भारत सरकार हर दस साल पर जांच कर विभिन्न मजदूर संगठनों की सदस्यता घोषित करती है। इस वर्ष यह आंकड़ा दिसम्बर तक आने की संभावना है। भामस के अनुसार 31 दिसम्बर 2010 तक उसके सदस्यों की संख्या 1 करोड़ 20 लाख के करीब थी।
स्थापना
भारतीय मजदूर संघ की स्थापना लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के जन्मदिन (23 जुलाई) पर भोपाल में 1955 में हुई थी। भामस से पहले देश में 5 केन्द्रीय मजदूर संगठन काम करते थे। 1920 में एटक की स्थापना राष्ट्रीय मजबूरी में हुई थी। 1919 में अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) की स्थापना हुई थी। इसमें भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए एटक को अस्तित्व में लाया गया था। एटक कई वर्ष तक ठीक-ठाक चला। किन्तु 1942 में एटक कम्युनिस्टों के चंगुल में फंस गया। इसके बाद 1947 में सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में इंटक का गठन हुआ। जो लोग कम्युनिस्टों के विचारों से सहमत नहीं थे वे इंटक से जुड़ गए। फिर 1948 में समाजवादियों ने हिन्द मजदूर किसान पंचायत (एच.एम.के.पी.) की स्थापना की। किन्तु 1948 में ही एच.एम.के.पी. का विभाजन हो गया और हिन्द मजदूर सभा (एच.एम.एस.) के रूप में एक नया श्रमिक संठन देश के सामने आया। 1949 में फारवर्ड ब्लॉक ने यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेन्टर (यू.टी.यू.सी.) की स्थाना की। इन सभी श्रमिक संगठनों के आधार में सत्ता थी और ये सभी विदेशी सहारे से चलने वाले संगठन थे। भारतीयता इनके लिए गौण थी। भारत के मजदूर अपने देश भारत के लिए भी सोचें, इसी सोच को लेकर श्री दत्तोपंत ठेंगडी ने भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की थी।
दूसरा चिन्तन था राष्ट्र का औद्योगिकीकरण, उद्योगों का श्रमीकरण और श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण। यानी इस देश का हर श्रमिक राष्ट्रभक्त हो। इसी सोच के साथ भारतीय मजदूर संघ श्रमिकों के बीच पहुंचा। उसे श्रमिकों को एक करने में जबर्दस्त सफलता भी मिली है। श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण भी हुआ है। इसका उदाहरण 1962 में और उसके बाद भी कई बार दिखा है। 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय कम्युनिस्ट श्रमिक संगठनों ने रक्षा उद्योग में हड़ताल का आह्वान किया था। इससे सेना को बड़ी दिक्कत हो सकती थी। किन्तु भारतीय मजदूर संघ ने अपने से जुड़े श्रमिकों को संकट के उस काल में और अधिक काम करने की बात कही। मजदूर भामस की बात मान गए। इस प्रकार 1962 में कम्युनिस्टों की हड़ताल विफल हो गई। ऐसा ही कारगिल युद्ध के समय भी हुआ था।
भामस का मानना है कि मजबूरी में मांग पूरी नहीं हो सकती है। इसलिए उसने कहा देशहित में काम करते रहेंगे और उसका दाम भी लेंगे। भामस का यह भी मानना है कि हड़ताल अन्तिम हथियार है। भामस सामूहिक सौदेबाजी (नियोक्ता और कर्मचारी के बीच ताकत के आधार पर किसी मामले को सुलझाना) के सिद्धान्त को नकारता है और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की बात करता है। सामूहिक सौदेबाजी के समय राष्ट्र यानी ग्राहक का भी ख्याल रखा जाना चाहिए। इसे ही भामस 'राष्ट्रीय प्रतिबद्धता' कहता है।
उपलब्धियां
1960 में घोषित मूल्य सूचकांक के कारण महंगाई बढ़ी, पर मजदूरों का वेतन कम हो गया था। इसके विरुद्ध भामस ने 15 अप्रैल 1963 को आन्दोलन प्रारंभ किया। 20 अगस्त 1963 को मुम्बई बन्द का आह्वान किया गया। परिणामस्वरूप सूचकांक की जांच करवाई गई और मजदूरों की मांगें मानी गईं।
भामस ने ही सबसे पहले कहा सभी को बोनस मिलना चाहिए। इसके बाद 1972 में बोनस कानून बना और 1979 में उत्पादकता के आधार पर सरकारी कर्मचारियों को भी बोनस मिला। 8 मई 1974 को रेलवे हड़ताल भामस के कारण ही सफल रही।
1982 में भामस ने कोयला मजदूरों के लिए पेंशन की मांग की, जो 1998 में पूरी हुई। 1982 में ही भामस ने 'अखिल भारतीय ग्रामीण बैंक वर्कर ऑर्गेनाइजेशन' बनाकर ग्रामीण बैंकों में कार्यरत 70 हजार कर्मचारियों को अन्य बैंकों के कर्मचारियों के बराबर वेतन, अन्य सुविधाएं देने की मांग की। परिणामस्वरूप 1987 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक प्राधिकरण का गठन किया और उसने इस मांग के अनुरूप ही वेतन देने की बात कही। 1984 में भारतीय डाक तार मजदूर मंच का गठन करके डाक विभाग में कार्यरत दैनिक वेतन-भोगियों के लिए संघर्ष शुरू किया गया। दिल्ली में लगातार 365 दिन के धरने के बाद 1,25,000 कर्मचारियों को स्थायी करवाने में सफलता मिली।
गांव–गांव तक पहुंच
अपने कार्यों और गतिविधियों के बल पर भामस आज देश के गांव-गांव तक पहुंच चुका है। भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय महामंत्री श्री वैजनाथ राय ने बताया, 'केरल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा सहित अनेक राज्यों में ग्रामीण स्तर पर भामस का कार्य है। आने वाले समय में ग्रामीण क्षेत्रों में और अधिक काम बढ़ाया जाएगा। इसीलिए 2011 के जलगांव अधिवेशन में नारा दिया गया है, 'चलो गांव की ओर और असंगठित को संगठित करो।' इसी आधार पर हम गांव की ओर बढ़ेंगे। ऐसा कोई गांव नहीं होगा, जहां भामस का झण्डा नहीं लहराएगा।'
भामस केवल मजदूर संगठन नहीं है, यह एक सामाजिक आन्दोलन भी है। इस दिशा में सर्वपंथ समादर मंच बनाया गया है। इसके अन्तर्गत सभी पंथों के प्रति समान भाव का निर्माण किया जाता है। इसके आदर्श हैं श्री गणेश शंकर विद्यार्थी। इनके बलिदान दिवस (25 मार्च) पर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। पर्यावरण के क्षेत्र में भी भामस काम करता है। 28 अगस्त को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। 28 अगस्त, 1730 को राजस्थान में खेजड़ी का जंगल बचाने के लिए अमृता देवी बिश्नोई नामक महिला ने अपनी दो बेटियों और अन्य 363 लोगों के साथ चिपको आन्दोलन चलाया था। उन्हीं की स्मृति में भामस 28 अगस्त को पर्यावरण दिवस मनाता है। ठेंगडी जी की पुण्यतिथि (14 अक्तूबर) को सामाजिक समरसता दिवस के रूप में मनाया जाता है, जबकि बाबू गोनू बलिदान दिवस (12 दिसम्बर) को स्वदेशी दिवस के रूप में याद किया जाता है। हर तीन साल में भामस की कार्यकारिणी का गठन होता है। पूरी कार्यकारिणी में कुल 105 पदाधिकारी और सदस्य होते हैं। छह मास में एक बार कार्यकारिणी की बैठक होती है। इस समय श्री सी.के. सजी नारायणन भामस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
भामस से जुड़े महासंघ
* अखिल भारतीय आंगनबाड़ी कर्मचारी महासंघ * अ.भा. बीड़ी मजदूर महासंघ * अ.भा. सीमेन्ट मजदूर महासंघ * अ.भा. कन्स्ट्रक्शन मजदूर महासंघ * अ.भा. डिस्टिलरी मजदूर महासंघ * अ.भा. एम्प्लायज प्रोविडेंट फंड स्टाफ फेडरेशन * अ.भा. इस्पात मजदूर महासंघ * अ.भा. केन्द्रीय सार्वजनिक प्रतिष्ठान अधिकारी एवं पर्यवेक्षक महासंघ * अ.भा. खदान मजदूर महासंघ * अ.भा. खनिज धातु मजदूर महासंघ * अ.भा. कृषि एवं ग्रामीण मजदूर महासंघ* अ.भा. मत्स्य मजदूर महासंघ* अ.भा. शुगर मिल मजदूर महासंघ * अ.भा. वनवासी कृषि एवं ग्रामीण मजदूर महासंघ * भारतीय करेंसी एण्ड क्वाइन्स कर्मचारी महासंघ * भारतीय इंजीनियरिंग मजदूर महासंघ * भारतीय हैण्डलूम मजदूर महासंघ * भारतीय जूट मजदूर महासंघ* भारतीय कागज उद्योग कर्मचारी महासंघ* अ.भा. विद्युत मजदूर महासंघ* भारतीय मेडिकल एण्ड सेल्स रिप्रेजेन्टेटिव्स महासंघ * भारतीय परिवहन मजदूर महासंघ * भारतीय प्लांटेशन मजदूर महासंघ * भारतीय पोर्ट एण्ड शिपयार्ड मजदूर महासंघ * भारतीय पोस्टल एम्प्लायज फेडरेशन * भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर महासंघ * भारतीय प्राइवेट ट्रांसपोर्ट मजदूर महासंघ * भारतीय रेलवे मजदूर संघ * भारतीय स्वायत्तशासी कर्मचारी महासंघ* भारतीय वस्त्र उद्योग कर्मचारी महासंघ* केन्द्रीय कर्मचारी महासंघ * नेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ बैंक ऑफिसर्स * नेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स * नेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंश्योरेंस वर्कर्स * पब्लिक सेक्टर एम्प्लायज नेशनल कान्फेडरेशन * राष्ट्रीय राज्य कर्मचारी महासंघ थ् अ.भा. ठेका मजदूर महासंघ
कुशल संगठनकर्ता ठेंगडी जी
भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेंगडी कुशल संगठनकर्ता, प्रसिद्ध चिन्तक एवं विद्वान थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचारक के रूप में उन्होंने वर्षों तक राष्ट्र-सेवा की। उन्होंने भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच, स्वदेशी जागरण मंच, सर्वपंथ समादर मंच तथा पर्यावरण मंच की भी स्थापना की थी। वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व सहकार भारती के संस्थापक सदस्य भी थे। श्री ठेंगडी 12 वर्ष तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। उनकी लिखी अनेक पुस्तकें भी हैं।
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