साहित्यिकी
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साहित्यिकी
राकेश भ्रमर
कौन गुलशन से बहारों को चुरा लेता है,
अपने साए से उजालों को डरा देता है,
आग वो दिल में नहीं, मुख में लिए फिरता है,
अपनी बातों से हवाओं को जला देता है,
पेड़ सहमे हैं, सांस पत्तियां नहीं लेतीं,
कौन वादी में नज़ारों को जला देता है,
मौज साहिल की तरफ आजकल नहीं आती,
लहर को देख, किनारों को गिरा देता है,
साथ जुगनू के उड़ा है तो भटक जाएगा,
चांद के साथ सितारों को मिटा देता है,
खेत–खलिहान जले, गांव में बचा क्या है,
अज़ाब सबको दियारों सा ढहा देता है,
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