वीरांगना कोटा रानी
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गौरवशाली इतिहास-7
कश्मीर में भारतीय
राष्ट्रवाद की रक्षा के लिए
जीवन भर जूझती रही अंतिम हिन्दू सम्राज्ञी
नरेन्द्र सहगल
कश्मीर रियासत की अंतिम हिन्दू सम्राज्ञी महारानी कोटा एक शक्तिशाली, कूटनीतिज्ञ और व्यवहार कुशल राजनेता थी। इस महान नारी ने अपने जीवन काल में वह सब कार्य एवं प्रयास किए जिनसे कश्मीर राज्य सुरक्षित रह सके और भारत के राष्ट्रीय जीवन की मुख्यधारा भी अक्षुण्ण रहे।
पिता के कातिल से विवाह
चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभ में जब तिब्बत के एक बागी बौद्ध मतावलंबी राजकुमार रिंचन ने एक राजनीतिक साजिश के तहत कश्मीर के प्रधान सेनापति, बाद में शासक और कोटा रानी के पिता रामचन्द्र को समाप्त करके कश्मीर पर अपना कब्जा जमा लिया उस समय कश्मीर की स्थिति अत्यंत भयानक हो गई थी। प्रशासन में पूर्ण अराजकता थी। विद्रोही तत्व सक्रिय हो गए। उस काल में बौद्ध मत की जड़ें भारतीय राष्ट्रवाद से कटती जा रही थीं। रिंचन भी क्योंकि बौद्ध मतावलंबी था, अत: उसके मानस को भारतीयता में ढालने के पवित्र उद्देश्य से कोटा रानी ने रिंचन के साथ विवाह कर लिया।
कोटा रानी के मार्गदर्शन में रिंचन ने सत्ता तो संभाली परंतु शासन के सभी सूत्र रानी ने अपने सुदृढ़ हाथों में ही रखे। उसने रिंचन को कश्मीरियत के रंग में भी रंगने के सभी प्रयास प्रारंभ कर दिए। रानी को संदेह था कि कहीं रिंचन विदेशी हलावरों की सहायता करने जैसे राष्ट्रघातक कार्यों में न फंस जाए।
राष्ट्रीय भूल
कोटा रानी ने अपने संस्कारों और अपनी सूझबूझ से रिंचन को हिन्दू धर्म स्वीकार करने के लिए भी तैयार कर लिया। रानी ने उसे विधिवत धार्मिक रीतियों से हिन्दू धर्म में दीक्षित होने के लिए योग्य पंडितों के पास भेजा। परंतु राष्ट्रीयता के भावों से पूर्णतया शून्य पंडितों ने रिंचन को हिन्दू धर्म में लेने से इनकार कर दिया। यह एक बहुत बड़ी राष्ट्रीय भूल थी।
रिंचन क्रोधित होकर लौटा और उसने इस्लाम कबूल कर लिया। पंडितों ने कोटा रानी के राष्ट्रीय प्रयासों पर पानी फेर कर कश्मीर में मतान्तरण के कैंसर के बीज बो दिए। रिंचन ने अब एक मुस्लिम सुल्तान मलिक सदरूद्दीन के रूप में राज्य की सत्ता संभाली। कोटा रानी ने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपने चातुर्यपूर्ण व्यवहार से प्रशासनिक गतिविधियों को अपने नियंत्रण में रखा। रानी ने पूरी ताकत झोंक कर आंतरिक विद्रोहों को तो दबा दिया परंतु रिंचन से पहले कश्मीर में हुई एक विदेशी हमलावर डलचू की विनाशलीला के समय दुम दबाकर भागा राजा उड्यनदेव रिंचन एवं रानी को समाप्त करके स्वयं कश्मीर पर काबिज होने के षड्यंत्र रचने लग गया।
राजा की नाक में नकेल
उड्यनदेव ने विदेशी तत्वों के सहारे रिंचन के महल पर आक्रमण करवा दिया। कोटा रानी की सतर्कता और रक्षात्मक सूझबूझ से यह साजिश तो विफल हो गई और उड्यनदेव भागने में सफल हो गया परंतु अत्यधिक जख्मी होने से सन् 1320 में रिंचन की मृत्यु हो गई। प्राण छोड़ने से पहले उसने अपनी पत्नी कोटा रानी और पुत्र हैदर को अपने एक विश्वस्त मंत्री शाहमीर की देख रेख में सौंप दिया। यह वही शाहमीर था जो स्वात से इस्लामिक मत प्रचारक के रूप में कश्मीर आया था और एक तत्कालीन अदूरदर्शी राजा सहदेव ने इसे मंत्री पद सौंप दिया था।
रिंचन की मृत्यु के बाद उड्यनदेव ने पुन: बाहरी तत्वों की मदद से एक विशाल सेना तैयार की और कश्मीर की ओर बढ़ने लगा। इस आक्रमण को झेल पाने में कश्मीर असमर्थ था। रानी कश्मीर के इस संभावित पतन से चिंतित हो उठी। परंतु उसने साहस नहीं छोड़ा। कूटनीतिज्ञ वह थी ही। उसने कश्मीर की रक्षा को सर्वोपरि मानकर एक सोचा समझा कदम उठाने की ठान ली। उड्यनदेव की नाक में नकेल डालने का एक ही मार्ग उसे सूझा और इसी उद्देश्य से उसने उड्यनदेव से शादी का प्रस्ताव रख दिया। अपने पुत्र हैदर के सभी अधिकार छोड़ दिए। विवाह हो गया। कश्मीर की रक्षा के लिए अपने पुत्र के भावी सिंहासन की बलि चढ़ाकर कोटा रानी ने उड्यन देव को अपने राजनीतिक शिकंजे में कस लिया।
रानी का अद्भुत रणकौशल
इसी समय कश्मीर पर एक और प्रबल आक्रमण हुआ। एक परशियन तातार सरदार अचल ने एक भारी सेना के साथ कश्मीर को घेर लिया। कायर राजा उड्यनदेव फिर भाग खड़ा हुआ। लेकिन कोटा रानी नहीं घबराई। उसने अपनी एक जोशीली अपील से कश्मीरियों की देशभक्ति को जाग्रत कर दिया। कश्मीरी नेता और योद्धा अपनी दलगत भावनाओं से ऊपर उठे और इस राष्ट्रीय संकट की घड़ी में एक झंडे के नीचे आ गए। कोटा रानी ने युद्ध का संचालन स्वयं अपने हाथ में रखा। उसके युद्ध कौशल के आगे अचल की सेना का प्रचंड वेग रुक गया।
परंतु अचल की सैनिक संख्या बहुत अधिक थी। शक्ति और शस्त्र बल से इस दुर्दांत विदेशी आक्रमणकारी को पराजित करना असंभव था। कोटा रानी ने फिर कूटनीति का सहारा लिया। उसने अचल के पास संदेश भेजा 'हमारी सेना थक चुकी है। युद्ध बंद कर दिया जाए। कश्मीर का राजा आपसे डर कर राजसिंहासन छोड़कर भाग गया है। हम आपको सत्ता सौंपना चाहते हैं। हमारी एक शर्त है कि आप अपनी सारी सेना को वापस भेज दें। कश्मीर की हूरें आपका स्वागत करेंगी। यह कोटा रानी स्वयं भी आपकी प्रत्येक प्रकार की सेवा में उपस्थित रहेगी।'
हमलावर का शिरोच्छेद
सेनापति अचल कोटा रानी के शब्द जाल में फंस गया। उसने सेना को वापस भेज दिया। अपने चंद साथियों के साथ वह सज-धजकर कोटा रानी और कश्मीरी हूरों का बेतावी से इंतजार करने लगा। जब अचल श्रृंगार रस का यह काल्पनिक आनंद ले रहा था तभी शेरनी की तरह दहाड़ती हुई कोटा रानी वहां पहुंची और उसने तलवार के एक ही फटके से अचल का सिर धड़ से अलग कर दिया। अचल के शेष साथी भी गाजर-मूली की तरह काट दिए गए। पहले से दूर खड़ी अचल की सारी सेना भाग गई।
कोटा रानी की विजय हुयी। कश्मीर की प्रजा में वह दुर्गा स्वरूप बनकर उभरी। सर्वसम्मति से कोटा रानी को कश्मीर की सम्राज्ञी घोषित कर दिया गया। आज तक हिन्दू समाज जिस उदार नीति से मार खाता आ रहा है उस तथाकथित उदारता के जुए को उतार फेंका था कोटा रानी ने।
देशद्रोहियों पर दया नहीं
कोटा रानी जन्मजात प्रशासिका और योद्धा थी परंतु कश्मीर के अनेक सैनिक अधिकारियों और मंत्रियों को अपने ऊपर एक नारी का वर्चस्व पसंद नहीं आया। उन्होंने रानी को सत्ता से हटाने के लिए बार-बार प्रयास किए परंतु प्रत्येक बार रानी के हाथों पिटते रहे। एक बार एक उच्च सैनिक अधिकारी ने धोखे से रानी के महल पर हमला करके रानी को गिरफ्तार कर लिया। साहस की धनी रानी को एक किले में कैद कर दिया गया। परंतु रानी अपनी चतुराई से किले से बाहर निकल जाने में सफल हो गई। अपनी राजधानी में पहुंचकर उसने तुरंत एक सैनिक अभियान द्वारा सभी विद्रोही सैनिकों एवं प्रशासनिक अधिकारियों को ठिकाने लगवा दिया। देशद्रोहियों पर कोटा रानी ने कभी दया नहीं की।
इन सभी घटनाक्रमों के बीच शाहमीर शांत भाव से परंतु उद्देश्यपूर्ण दृष्टि से देखता रहा। मुस्लिम मत प्रचारक होने के कारण शाहमीर जिस उद्देश्य से कश्मीर में आया था वह उद्देश्य कोटा रानी के शासन में रहते हुए पूरा नहीं किया जा सकता था। शाहमीर ने राजा उड्यनदेव को रानी के विरुद्ध भड़काना प्रारंभ कर दिया। इस बीच सन् 1338 में शिवरात्रि के दिन उड्यनदेव की मृत्यु हो गई। इस अवसर पर कहीं शाहमीर और उसके साथी राज्य पर कब्जा न कर लें, रानी ने पांच दिनों तक राजा की मृत्यु का समाचार छिपा कर रखा और राज्य की सीमाओं पर चौकसी बढ़ाकर राज्य की सफल किलेबंदी कर ली। शाहमीर और उसके साथी हाथ मलते रह गए।
शाहमीर के इस्लामिक मंसूबे
शाहमीर ने कश्मीर की इस अंतिम हिन्दू रानी को समाप्त करके इस्लामिक राज्य का निर्माण करने के अपने मजहबी उद्देश्य को पूरा करने के सभी दांव चलने जारी रखे। उसने कोटा रानी के सशक्त प्रधानमंत्री भिक्षण भट्ट को एक षड्यंत्र के तहत मार दिया। शाहमीर बिना बोले चुपचाप राजनीतिक एवं सैनिक साजिशें रचने में माहिर था। अपने विश्वस्त साथी भिक्षण भट्ट की मौत से रानी अत्यंत दुखी और क्रोधित हुई परंतु उसके एक सहयोगी मंत्री लावण्य ने उसे तुरंत कार्रवाई करने से रोक दिया। तो भी रानी ने शाहमीर को सबक सिखाने की ठान ली।
कोटा रानी ने इस नए परंतु भविष्य की दृष्टि से अत्यंत भयानक खतरे से निपटने की तैयारियां प्रारंभ कर दीं। कुछ समय बाद कश्मीर के एक क्षेत्र कमराज में अकाल पड़ गया। उसने तुरंत राहत सामग्री भिजवाई और राहत कार्यों के निरीक्षण हेतु स्वयं भी सारे अकालग्रस्त क्षेत्र के प्रवास पर चली गई। शाहमीर को जब समाचार मिला कि रानी राजधानी श्रीनगर में नहीं है तो वह तुरंत अपने सशस्त्र सहयोगियों के साथ राजधानी जा पहुंचा। एक गद्दार सैन्याधिकारी के सहयोग से शाहमीर ने नगर पर कब्जा करके अपने को कश्मीर का राजा घोषित कर दिया।
रानी का कूटनीतिक पासा
श्रीनगर पर शाहमीर के आधिपत्य का समाचार जब रानी को मिला तो उसने कमराज के निकट जयपुर (आज का अन्दुकोट) नामक स्थल पर सेना को एकत्रित करना प्रारंभ किया। परंतु समय बहुत निकल चुका था। श्रीनगर पर अधिकार करके शाहमीर ने और भी अधिक शक्ति अर्जित कर ली थी। शाहमीर ने रानी को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से जयपुर के किले की ओर कूच कर दिया जहां रानी अपनी सेना के साथ अभी स्वयं की सैन्य व्यूह रचना पर विचार ही कर रही थी।
कोटा रानी अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ किले के अंदर फंस गई। शाहमीर की सेना ने किले की जबरदस्त घेराबंदी कर दी। रानी ने स्वयं को घिरा देखकर किले से भाग जाने की योजना बनाई परंतु सख्त घेराबंदी के कारण उसकी योजना सफल नहीं हो सकी। रानी समझ गई कि अब आत्मबलिदान का समय आ गया है। तो भी रानी ने हिम्मत नहीं हारी। रानी ने एक गुप्त योजना तैयार करके शाहमीर को यमलोक पहुंचाने की ठान ली। रानी ने पुन: एक कूटनीतिक पासा फेंका। रानी ने शाहमीर को राजगद्दी सौंपने और उसके साथ विवाह करने का प्रस्ताव उसके पास भेज दिया।
कोटा रानी का आत्मबलिदान
शाहमीर को जब सूचना मिली कि उसे राज्य सिंहासन और कोटा रानी दोनों मिलने वाले हैं तो उसने प्रसन्न होकर रानी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। शाहमीर ने जश्न का इंतजाम करके रानी को अपने महल में दुल्हन के रूप में आने का निमंत्रण दे दिया। रानी भी उसके पास जाने को तैयार हो गई। कई प्रकार के सुंदर आभूषणों और परिधान से सुसज्जित इस नई नवेली दुल्हन ने जाने से पूर्व एक तेज कटार अपने कपड़ो में छिपा ली। वह इस कटार के वार से शाहमीर का काम तमाम करना चाहती थी। जब रानी महल में पहुंची तो शाहमीर ने उसे अपने सजे सजाए शयनकक्ष में बुलाया।
रानी सतर्क हो गई
जैसे ही शराब के नशे में धुत्त शाहमीर रानी के स्वागत के लिए आगे बढ़ा तो रानी ने तुरंत कटार का वार उसके पेट पर कर दिया। परंतु दुर्भाग्य से वार चूक गया। जैसे ही शाहमीर ने उसे पकड़ने की कोशिश की रानी ने वही कटार अपने सीने में घोंपकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। रानी के पास आत्मबलिदान के सिवाय और कोई रास्ता भी तो नहीं बचा था। कोटा रानी के बलिदान के बाद शाहमीर कश्मीर के सिंहासन पर बैठने वाला पहला मुस्लिम सुल्तान था और यहीं से प्रारंभ हुई क्रूर मतान्धता की वह खूनी कहानी, बलात् मतान्तरण का वह मर्मांतक दर्द जिसकी चीखें आज भी कश्मीर की वादियों में गूंज रही हैं।
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