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मुलायम समाजवाद

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Jun 2, 2012, 12:00 am IST
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मुलायम समाजवाद

दिंनाक: 02 Jun 2012 15:39:18

बात बेलाग

 समदर्शी

एक हैं मुलायम सिंह यादव जो नेताजी के नाम से समर्थकों में मशहूर हैं। समाजवादी पार्टी के नाम से राजनीतिक दल चलाते हैं, हालांकि उनका समाजवाद पांच सितारा है और सरोकार बजाय जनता के सत्ता तक सिमट गया है। परिवारवाद समेत अनेक मुद्दों पर गैर कांग्रेसी राजनीति कर इस मुकाम तक पहुंचे मुलायम ने परिवारवाद को तो अपना ही लिया है, सत्ता सुख की खातिर उन्हें कांग्रेस की गोद में बैठने से भी कोई परहेज नहीं है। वर्ष 2004 में जब केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार बनी तो माकपा के तत्कालीन दिग्गज हरकिशन सिंह सुरजीत मुलायम और उनके तब के सिपहसालार अमर सिंह को प्रधानमंत्री निवास पर रात्रिभोज में साथ ले गये, जहां उनकी बेइज्जती के चर्चे बाद में आम हुए। बाद में कांग्रेस ने घूम-घूमकर उत्तर प्रदेश में मुलायम शासन को जंगलराज भी करार दिया। हाल के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेसी 'युवराज' ने मायावती के साथ-साथ मुलायम पर भी निशाना साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पर उनकी समाजवादी राजनीति की फितरत देखिए कि संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल के तीन साल पूरे होने पर फिर रात्रिभोज में प्रधानमंत्री निवास पहुंच गये। कभी अध्यापक के साथ-साथ पहलवान भी रहे मुलायम को चारों खाने चित करने वाले इस कांग्रेसी दांव को अंदर की खबर रखने वाले सीबीआई का नाम देते हैं। ध्यान रहे कि मुलायम के विरुद्ध आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति समेत भ्रष्टाचार के अनेक मामलों की जांच सीबीआई कर रही है। वैसे सीबीआई जांच तो मायावती के विरुद्ध भी कई मामलों में चल रही है। उन्हें भी इस रात्रिभोज का न्योता दिया गया था, लेकिन न तो वह खुद गयीं और न ही अपने किसी प्रतिनिधि को भेजा।

शह–मात का खेल

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री सी. पी. जोशी का छत्तीस का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है। गहलोत पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं तो जोशी की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जगजाहिर है। इसी महत्वाकांक्षा के चलते उन्होंने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए विधानसभा चुनाव में उन सभी दबंग जाट नेताओं को भितरघात के जरिये हरवा दिया था तो चुनौती बन सकते थे। दरअसल जोशी, गहलोत के बजाय जाट नेताओं से ज्यादा आशंकित थे, लेकिन गहलोत ने चुपचाप अपना काम कर दिया। नतीजतन जोशी खुद मामूली अंतर से चुनाव हार गये और गहलोत एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गये। गहलोत अच्छे प्रशासक कभी नहीं माने गये। फिर इस बार तो सरकार भी जोड़-तोड़ से बन पायी थी। सो, आधा कार्यकाल पूरा होने के बाद से ही असंतोष मुखर होने लगा है। आलाकमान भी मानता है कि गहलोत के मुख्यमंत्री रहते अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है। राजस्थान में कांग्रेस की हालत इतनी खराब है कि अगर जोशी को मुख्यमंत्री बना दिया जाये तो उनकी लोकसभा सीट के लिए होने वाला उप चुनाव भी पार्टी नहीं जीत पायेगी। मौजूदा हालात में जाट मुख्यमंत्री का दांव कांग्रेस आलाकमान को फायदेमंद नजर आता है, लेकिन मुख्यमंत्री बन सकने लायक किसी जाट को तो जोशी ने पिछले विधानसभा चुनाव में जीतने ही नहीं दिया।

सोनिया उवाच

संप्रग सरकार का नेतृत्व भले ही मनमोहन सिंह कर रहे हों, पर संप्रग की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी हैं। जानकार उन्हें 'सुपर प्रधानमंत्री' भी मानते हैं। यह भी कोई गोपनीय तथ्य नहीं है कि सारे बड़े फैसले दस, जनपथ से ही होते हैं और सरकार की भूमिका उन पर मुहर लगाने भर की है, यह भी कि मनमोहन सरकार आजाद भारत की भ्रष्टतम सरकार है। आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला पौने दो लाख करोड़ रुपये का 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन तो इस सरकार के पहले कार्यकाल में हुआ ही, अन्य घोटालों की फेहरिस्त भी बहुत लंबी होती जा रही है। आदर्श हाउसिंग सोसायटी, राष्ट्रमंडल खेल और एंट्रिक्स-देवास सौदे के घोटाले तो जगजाहिर हो चुके हैं, अब इस सिलसिले में नवीनतम है कोयला घोटाला। इसे 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन से भी कई गुना बड़ा घोटाला माना जा रहा है और महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस अवधि में यह हुआ, उसमें कुछ समय तक कोयला मंत्रालय 'ईमानदार' बताये जाने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास भी रहा। जाहिर है, मनमोहन सरकार के अभी तक के कुल आठ साल के कार्यकाल में घोटालों के घटाटोप के अलावा कुछ और नजर नहीं आता। फिर भी सोनिया ने सरकार के दूसरे कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे होने पर फरमाया कि 'भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा', जबकि उसके अलावा तो मनमोहन राज में कुछ हो ही नहीं रहा है।

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