भाजपा के सामने चुनौतियां
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

भाजपा के सामने चुनौतियां

by
Jun 2, 2012, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

भाजपा के सामने चुनौतियां

दिंनाक: 02 Jun 2012 15:20:42

मंथन

देवेन्द्र स्वरूप

राष्ट्रीय राजनीति के वर्तमान परिदृश्य को देखकर मेरा मन इतना दुखी व चिंतित क्यों है? जहां तक मेरा अपना संबंध है, स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर 1972 तक राजनीति का निकट से गहरा अध्ययन करके मैं इस निष्कर्ष पर पहुंच चुका था कि भारत का संकट विचारधारा, दल या नेतृत्व का संकट नहीं है अपितु उस राजनीतिक प्रणाली का संकट है जिसे हमने ब्रिटिश शासकों द्वारा आरोपित तथाकथित संवैधानिक सुधार प्रक्रिया का अंधानुगमन करते हुए अंगीकार कर लिया है। इसके फलस्वरूप हमारा सम्पूर्ण सार्वजनिक जीवन समाज से खिसक कर राजसत्ता और सत्ताभिमुखी राजनीति में केन्द्रित हो गया, राजनीति जल्दी-जल्दी होने वाले चुनावों की धुरी पर घूमने लगी, चुनाव राजनीति में सिद्धांत, निष्ठा और आदर्शवाद के लिए कोई जगह नहीं बची, चुनाव जीतना एक कला बन गयी जिसमें जातिवाद, क्षेत्रवाद और सम्प्रदायवाद पर आधारित संगठित वोट बैंकों को रिझाने के साथ धन शक्ति और डंडा शक्ति की निर्णायक भूमिका बन गयी। चुनावी राजनीति के इस चरित्र ने राष्ट्रीय चेतना को समाप्त किया, संकीर्ण निष्ठाओं को बलवती बनाया, नेतृत्व को व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का बंदी बनाया, सम्पूर्ण सार्वजनिक जीवन को भ्रष्टाचार की दलदल में धकेल दिया।

वोट और दल की चुनावी राजनीति

बौद्धिक धरातल पर मुझे लगा कि वोट और दल की वर्तमान राजनीति के चौखटे में भारत एक राष्ट्र के रूप में जीवित नहीं रह जाएगा, उसे अपने राष्ट्रीय आदर्शों और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वोट और दल की ब्रिटिश प्रणाली का भारत की स्थिति-प्रवृत्ति के अनुरूप कोई स्वस्थ विकल्प ढूंढना होगा। अपने इस निष्कर्ष को हमने पाञ्चजन्य के 'स्वतंत्रता का रजत जयंती वर्ष' के अवसर पर 15 अगस्त, 1972 को प्रकाशित विशेषांक में 'आवाहन नयी क्रांति का' शीर्षक से लिपिबद्ध कर दिया था। तभी से मैं व्यक्तिश:, मानसिक तौर और भावना के धरातल पर वोट और दल की चुनावी राजनीति में प्रत्यक्ष सहभागी नहीं हूं। किन्तु मेरे अकेले के वोट और दल की राजनीति से सम्बंध विच्छेद करने से क्या होता है? अकेला चना भाड़ तो नहीं फोड़ सकता। चुनावी राजनीति तो पूरे देश के मानस पर छायी हुई है। बीच-बीच में जो गैरराजनीतिक आंदोलन इसके शुद्धिकरण की कामना में से जन्म लेते हैं, वे भी अंतत:चुनावी राजनीति के दलदल में ही फंस जाते हैं। 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जिस सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन को जन्म दिया, उसका प्रारंभिक लक्ष्य भी वोट और दल की राजनीति का विकल्प ढूंढना ही था, किन्तु आगे चलकर वोट और दल की चुनावी राजनीति ही जयप्रकाश की लोकप्रियता के कंधे पर सवार होकर सत्ता में पहुंच गयी और उसका क्या हश्र हुआ, यह 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी के रूप में सबके सामने आ गया। पिछले एक डेढ़ वर्ष से अण्णा हजारे और बाबा रामदेव के नेतृत्व में जो भ्रष्टाचार विरोधी जनांदोलन उभरा है, कहीं उसकी गति भी जे.पी.के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन जैसी न हो, यह आशंका लोगों के मनों में अभी उभरने लगी है।

इस समय राष्ट्रीय राजनीति की स्थिति बहुत ही खराब है। लोकतंत्र के सभी खम्भे चरमराने लगे हैं-चाहे वह विधायिका हो या कार्य पालिका, न्यायपालिका हो या मीडिया या विदेशी धन से पोषित स्वयंसेवी क्षेत्र। राजनीति की प्रेरणा पूरी तरह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा बन गयी लगती है। दल और विचारधारा आवरण मात्र रह गए हैं। समाज पूरी तरह विखंडित हो गया है। अखिल भारतीय राष्ट्रीयता के आधार पर किसी एक दल के पूर्ण बहुमत पाकर केन्द्र में सत्तारूढ़ होने की संभावना लगभग समाप्त-सी हो गयी है और सत्ता के टुकड़ों की जोड़-तोड़ व मोल-तोल को 'गठबंधन धर्म' के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया गया है। इस सामाजिक विखण्डन और राजनीतिक विघटन का लाभ उठाकर विदेशी रक्त का वंशवाद केन्द्र की सत्ता पर काबिज हो गया है। यद्यपि देश का मीडिया और प्रबुद्ध वर्ग सिद्धांतत: वंशवाद को स्वीकार नहीं करता है, तथापि उसकी अपनी दुर्बलताएं वंशवादी राजनीति को पनपने का अनुकूल वातावरण पैदा कर रहीं हैं। इन दुर्बलताओं का लाभ उठाकर वंशवादी नेतृत्व राष्ट्रीय नीतियों एवं उद्वेलनकारी विवादों के प्रति मौन अपनाकर मीडिया व प्रशासन तंत्र पर हावी हो रहा है। 18 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक और 5 प्रतिशत चर्च नियंत्रित ईसाई वोट बैंक उसके चुनावी गणित का एकमात्र आधार है। इन दो वोट बैंकों के बल पर यदि वंशवाद को पुन:केन्द्र में सत्ता में आने का अवसर मिल गया तो दूरदर्शी राष्ट्रभक्त विश्लेषकों को भय है कि इस बार निकृष्ट कोटि का वंशवादी अधिकनायकवाद आरोपित हो सकता है। इंदिरा गांधी का अधिनायकवाद व्यक्तिवादी होते हुए भी उसकी जड़ें भारत की धरती में विद्यमान थीं, इंदिरा गांधी प्रखर राष्ट्रभक्त थीं, भारतप्रेमी थीं। पर अब एक चालाक विदेशी महिला एक अयोग्य पुत्र को भारत का निरंकुश शासक बनाने पर तुली प्रतीत होती हैं।

वंशवादी राजनीति का विकल्प

इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने का उपाय क्या है? हम भले ही चुनावी राजनीति के प्रति तटस्थ भाव अपनाएं किन्तु राष्ट्र के भविष्य के प्रति उदासीन और निष्क्रिय तो नहीं रह सकते। जब तक वर्तमान राजनीतिक प्रणाली का स्वस्थ लोकतांत्रिक विकल्प उभरकर सामने नहीं आता, तब तक भारत को इसी ब्रिटिश प्रणाली के रास्ते से अपनी राजनीतिक यात्रा तय करनी होगी। इस दृष्टि से देखें तो केन्द्र में वंशवादी अधिनायकवाद के बढ़ते कदमों को रोकने का दायित्व भारतीय जनता पार्टी पर सहज रूप से आ पड़ा है। किन्तु क्या भाजपा और उसके सहयोगी दल इस चुनौती को गंभीरता से ले रहे हैं? लोकतांत्रिक राजनीति छवि निर्माण पर पलती है। छवि निर्माण में मीडिया की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अत: यह विचार करना आवश्यक है कि इस समय एक व्यक्ति केन्द्रित वंशवादी पार्टी की छवि क्या है और अनेक क्षमतावान, विचारधारा-निष्ठ कार्यकर्त्ताओं वाली भाजपा की मीडिया में क्या छवि बन रही है। इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि सोनिया और उनके प्रधानमंत्री पद के एकमेव उत्तराधिकारी चुनावी राजनीति और प्रशासन के क्षेत्र में पूरी तरह असफल सिद्ध हुए हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, प.बंगाल, तमिलनाडु, पंजाब, गुजरात, गोवा-हर जगह सोनिया और राहुल व्यक्तिगत रूप से धुआंधार प्रचार करके भी असफल रहे हैं। राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों में सत्ता पाकर भी वे भ्रष्टाचार और अवसरवादी जोड़-तोड़ का सहारा लेकर सत्ता में टिके हुए हैं। किन्तु यह सब होते हुए भी सोनिया की छवि एक शक्ति केन्द्र के रूप में बढ़ती जा रही है।

इसके विपरीत भाजपा शासित राज्यों का नेतृत्व काफी सक्षम और लोकप्रिय होने के बाद भी भाजपा में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के टकराव और गुटबंदी के समाचार ही मीडिया में छाये रहते हैं। गुजरात का ही उदाहरण लें। 2002 में गोधरा नरमेध की प्रतिक्रियास्वरूप साम्प्रदायिक दंगों को लेकर पिछले दस साल से पूरा मीडिया प्रचार नरेन्द्र मोदी विरोध पर केन्द्रित रहा। पूरे दस साल तक तीस्ता सीतलवाड़, शबनम हाशमी, पुलिस अधिकारी श्रीकुमार, संजीव भट्ट आदि सोनिया पार्टी द्वारा प्रदत्त आर्थिक, प्रचारात्मक व कानूनी सहयोग के बल पर नरेन्द्र मोदी को फांसी पर लटकवाने की जी तोड़ कोशिशें करके हार चुके हैं, पर नरेन्द्र मोदी का बाल बांका नहीं कर पाये। नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार ऊपर चढ़ता गया है। गुजरात आर्थिक विकास और प्रशासकीय कुशलता का उदाहरण बन गया है। गुजरात राज्य का मुस्लिम समुदाय भी विकास के सुफल मार्ग पर बढ़ रहा है और नरेन्द्र मोदी सरकार की साम्प्रदायिक निष्पक्षता को स्वीकार करता है। स्वयं सोनिया गांधी, राहुल गांधी व उनके दरबारी दिग्विजय सिंह वहां हफ्तों चुनाव प्रचार करके भी नरेन्द्र मोदी को लोकप्रियता में गढ्ढा नहीं डाल पाये। नरेन्द्र मोदी की योजना कुशलता, प्रशासकीय क्षमता एवं विकासोन्मुखी राजनीति के सामने राहुल बौना सिद्ध हुए हैं। इसी से चिंतित होकर सोनिया अपनी वंशवादी राजनीति की राह में उन्हें सबसे बड़ी बाधा मानती हैं, इसीलिए उन्होंने गुजरात के बाहर शेष भारत में मुस्लिम और चर्च नियंत्रित ईसाई वोट बैंक को अपने साथ बनाए रखने के लिए नरेन्द्र मोदी को मुस्लिम-ईसाई विरोधी चित्रित करने में पूरी ताकत लगायी। यह षड्यंत्री राजनीति भारत से लेकर अमरीका तक सक्रिय है। चर्च की सहायता से अमरीका प्रवेश का वीजा नरेन्द्र मोदी को नहीं मिल पा रहा है।

सोनिया पार्टी की चाल

पुलिस अधिकारियों, विशेष जांच समितियों (एसआईटी) की रपटों और न्यायालयी निर्णयों से नरेन्द्र मोदी के बेदाग निकल जाने के बाद अब सोनिया पार्टी ने दूसरा रास्ता अपनाया है। उनकी कोशिश है कि गुजरात भाजपा के सभी असंतुष्ट तत्व इकट्ठे आकर नरेन्द्र मोदी विरोधी अभियान की कमान संभालें। शायद इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि कल (30 मई) को भाजपा के सम्माननीय कार्यकर्त्ता श्री केशुभाई पटेल के निवास स्थान पर असंतुष्ट नेताओं की तीन घंटे लम्बी मीटिंग हुई। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल, पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता, पूर्व केन्द्रीय मंत्री काशीराम राणा, गुजरात के पूर्व गृहराज्यमंत्री गोरधन झाडपिया, सूरत के पूर्व महापौर फकीर चौहान, पूर्व मंत्री के.डी.जासवानी, महेसाणा के पूर्व सांसद ए.के.पटेल आदि सम्मिलित हुए। इस बैठक में संघ के एक वयोवृद्ध कार्यकर्त्ता भास्कर राव दामले की उपस्थिति रहस्यमयी है। भास्कर राव दामले को मैं 1942 से जानता हूं जब वे मेरे जिले मुरादाबाद में संघ के जिला प्रचारक होकर आये थे। इस समय उनकी आयु 90 वर्ष के आसपास होनी चाहिए। उनको इस बैठक में कौन व कैसे लाया यह समझने की बात है। इस बैठक में उपस्थित सभी लोगों ने स्वयं को संघ का कार्यकर्त्ता और भाजपा के प्रति निष्ठावान कार्यकर्ता घोषित किया। केशुभाई की ओर से कहा गया कि वे दिल्ली जाकर भाजपा नेतृत्व के सामने गुजरात की स्थिति रखेंगे, किन्तु साथ ही यह भी घोषणा की कि इस शनिवार (2 जून) को अमदाबाद के निकट ढोलका नामक स्थान पर आयोजित पटेल जाति के सम्मेलन में भाग लेंगे। इसका अर्थ हुआ कि 2002 और 2007 के विधानसभा चुनावों व 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में जाति और सम्प्रदाय के आधार पर गुजराती समाज को विभाजित करने के सब प्रयास विफल होने पर अब स्वयं भाजपा के पुराने चेहरों को सामने लाकर जातिवाद का कार्ड खेलने की तैयारी है। वैसे इनमें से कुछ नेता पहले ही खुला विद्रोह करके अलग संगठन खड़ा करके जोर आजमाईश कर चुके हैं। गोरधन झाड़पिया ने महागुजरात जनता पार्टी बनायी थी। सुरेश मेहता ने प्रबुद्ध नागरिक संस्था खड़ी की, किन्तु इससे नरेन्द्र मोदी की चुनावी लोकप्रियता और प्रशासन पर पकड़ में कोई कमी नहीं आई।

विवाद का प्रचार

किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि भाजपा के इतने पुराने प्रमुख कार्यकर्त्ताओं के सामूहिक मोर्चे को हल्के से लिया जाना चाहिए। इससे नरेन्द्र मोदी को भी अपनी कार्यशैली और संगठन क्षमता के बारे में पुनर्विचार करने की आवश्यकता प्रतीत होती है। मुम्बई में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक के समय संजय जोशी प्रकरण में नरेन्द्र मोदी की भूमिका बहुत विचारणीय है। संजय जोशी के किस व्यवहार से नरेन्द्र मोदी नाराज हुए, इसकी हमें कोई जानकारी नहीं है। हम केवल इतना जानते हैं  कि नरेन्द्र मोदी और संजय जोशी दोनों ही संघ के प्रचारक रहे हैं। नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के पहले प्रांत प्रचारक, स्व.लक्ष्मण राव इनामदार, दूसरे प्रांत प्रचारक स्व.मधुकर राव भागवत, जो वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के पिताश्री थे, की जीवनियां लिखकर अपने जीवन में उनके भारी योगदान को स्वीकार किया है। संघ के दूसरे सरसंघचालक श्रीगुरूजी के जन्म शताब्दी वर्ष में नरेन्द्र मोदी ने एक पुस्तिका लिखकर उनके प्रति श्रद्धाञ्जलि प्रकट की। संघ के प्रति इतनी गहरी निष्ठा रखते हुए भी नरेन्द्र मोदी अपने ही सहकारी प्रचारक संजय जोशी के प्रति अपनी नाराजगी का शमन क्यों नहीं कर पाये, यह एक पहेली ही है। भाजपा की कार्यकारिणी में संजय जोशी की उपस्थिति को उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा का विषय बनाकर मीडिया को संघ और भाजपा के विरुद्ध कुप्रचार का अवसर क्यों दिया? मीडिया रपटों के अनुसार संजय जोशी मुम्बई से दिल्ली वापस आने के लिए यात्रा ट्रेन से करने वाले थे, वह ट्रेन गुजरात से गुजरती, संभवत: वहां कुछ स्टेशनों पर भाजपा और संघ के कार्यकर्त्ता उन्हें मिलने आते, किन्तु इन रपटों के अनुसार नरेन्द्र मोदी के आग्रह पर उन्होंने रेल से अपनी यात्रा रद्द करके विमान से यात्रा की। इन रपटों में कितना सत्यांश है, यह हम नहीं जानते, परन्तु उनके जैसे लोकप्रिय नेता की छवि ऐसी बने कि वे अपने निकट सहयोगियों के प्रति सहिष्णु नहीं हैं और उन्हें साथ लेकर नहीं चल सकते, तो भाजपा के विरोधियों को उनके विरुद्ध बोलने का अवसर तो मिलता ही है।

भाजपा के अनेक कार्यकर्त्ताओं के मन में प्रधानमंत्री पद के लिए आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा का होना अस्वाभाविक नहीं है, क्योंकि इसमें संदेह नहीं कि कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ केन्द्रीय नेतृत्व में कई ऐसे चेहरे हैं जिनमें प्रधानमंत्री पद की योग्यता व क्षमता मौजूद है, किन्तु भाजपा का संगठनात्मक ढांचा लोकतांत्रिक होने के कारण वर्तमान संवैधानिक संरचना का तकाजा है कि चुनाव परिणाम सामने आ जाने पर विजेता दल की संसदीय पार्टी अपना नेता चुने और वही प्रधानमंत्री पद का दावा प्रस्तुत करे। यदि भाजपा आगामी चुनाव में लोकतंत्र बनाम वंशवाद को मुख्य मुद्दा बनाने जा रही है तो उसे प्रधानमंत्री पद के बारे में यह सैद्धांतिक भूमिका अपनानी होगी। उसे दल के भीतर अभी से इस बिन्दु पर बहस आरंभ कर देनी चाहिए। साथ ही, सोनिया पार्टी को अपने प्रधानमंत्री के नाम की घोषणा करने के लिए बाध्य करके उसकी राजनीति के वंशवादी चरित्र को मीडिया व मतदाताओं के सामने लाना चाहिए।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

वैष्णो देवी यात्रा की सुरक्षा में सेंध: बिना वैध दस्तावेजों के बांग्लादेशी नागरिक गिरफ्तार

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies