नए राज्यों की बेमानी मांगभरभरा कर ढह जाएगा पाकिस्तान
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भरभरा कर ढह जाएगा पाकिस्तान
मुजफ्फर हुसैन
भारतीय उपखंड में एक कहावत प्रचलित है कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है वह स्वयं उस गड्ढे में गिर जाता है। पिछले दिनों पाकिस्तान में कुछ ऐसा ही हुआ। सत्ताधारी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने सोचा कि नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग को कमजोर करने के लिए पंजाब का विभाजन कर दिया जाए ताकि एक तो पीपीपी के इस सबसे बड़े विरोधी दल की ताकत घट जाए और पंजाब के दूसरे भाग में मुस्लिम लीग के अतिरिक्त किसी अन्य पार्टी की सरकार बन जाए। पीपीपी का दांव तो बड़ा होशियारी भरा था, लेकिन नवाज शरीफ ने भी ऐसी चाल चली कि पाकिस्तान के अन्य राज्यों में भी विभाजन की मांग उठ खड़ी हुई। देखते ही देखते सिंध से लेकर सीमांत तक यह आग फैल गई। जब कोई सरकार ही किसी राज्य के विभाजन की मांग करे तो फिर विरोधी दल किस प्रकार चुप बैठ सकते हैं? पाकिस्तान का मीडिया इसे 'खतरनाक खेल' की संज्ञा दे रहा है।
मीडिया की टिप्पणी
पाकिस्तान के लगभग सभी दैनिकों ने इस मांग का जबरदस्त विरोध किया है। दैनिक नवाए वक्त का कहना है कि 'हमारी सरकारें इतिहास से कोई सबक नहीं लेना चाहती हैं। यह राज्यों के बंटवारे का मामला नहीं है, बल्कि देश के बंटवारे की दस्तक है। अपने अपने राज्यों को लेकर जो आंदोलन उठेंगे उस से सारे पाकिस्तान में उथल-पुथल मचेगी। इसका लाभ सबसे अधिक अलगाववादी तत्वों को मिलेगा। सम्पूर्ण पाकिस्तान आतंकवादियों की मुट्ठी में है। इसलिए पाकिस्तान में इस उलझन के हालात में आतंकवाद अपने चरम पर होगा।' पाकिस्तान के मीडिया में जो समाचार प्रकाशित हो रहे हैं उनसे ऐसा लगता है कि अब तक 17 नए राज्यों की मांग खड़ी हो गई है। आतंकवादी यदि इस मांग का समर्थन करते हैं तो उनका काम सरल बनता है, क्योंकि वे तो कुल मिलाकर पूरे पाकिस्तान पर कब्जा जमाना चाहते हैं। राज्यों की मांग को समर्थन देकर वे यदि चरणबद्ध आगे बढ़ते हैं तो उनका काम सरल हो जाता है। पाकिस्तान की सत्ताधारी पार्टी तोड़ने चली थी पंजाब, लेकिन अब उसे इस बात का अहसास होने लगा है कि राज्यों का विभाजन तो देश के विभाजन का पिटारा खोलने वाला साबित हो जाएगा।
पंजाब के बंटवारे की बात सर्वप्रथम प्रधानमंत्री गिलानी ने कही, जिसका समर्थन मुल्तान यात्रा के समय राष्ट्रपति जरदारी ने किया। पीपीपी द्वारा पंजाब को तोड़ने की मांग से मुस्लिम लीग दबाव में आ गई। लेकिन जब पंजाब के दो राज्य के स्थान पर तीन राज्य बनाए जाने की घोषणा हुई तो राष्ट्रीय असेम्बली में बैठे सांसद आश्चर्य में पड़ गए। सरकार ने पुराने बहावलपुर राज्य को पुनर्गठित करने की घोषणा कर दी। यानी आज का पंजाब तीन भागों में बंट गया। सरकार ने इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई, यह प्रश्न विचार करने लायक है। नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग भी इसके समर्थन में हो गई। यदि निर्वाचित विधायकों की गिनती की जाए तो बहावलपुर और दक्षिणी पंजाब में मुस्लिम लीग की सरकार बन जाती है, जबकि शेष पंजाब में पीपुल्स पार्टी का झंडा लहराएगा। यानी सत्ताधारी और विरोधी दल को कोई नुकसान नहीं होगा। पीपीपी पंजाब में कदम रख देगी और नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग दो राज्यों में अपनी सरकार बना लेगी। पाकिस्तान के ये दोनों बड़े राजनीतिक दल चाहे जिस प्रकार की चाल चलें, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि इससे सम्पूर्ण पाकिस्तान की जनता नाराज है। राजनीतिक दल अपना स्वार्थ चाहे जैसा देखें, लेकिन अंतत: देश को तो इससे नुकसान ही होने वाला है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है। यदि अधिक राज्य बनते हैं तो प्रशासकीय खर्च कई गुना बढ़ जाने वाला है। इसका प्रभाव अंतत: सम्पूर्ण देश पर पड़ने वाला है।
सबके अपने स्वार्थ
पंजाब के तीन राज्य बनते ही अब अन्य राज्यों में भी विभाजन की मांग पर राजनीतिक पार्टियां एवं जनता का निहित स्वार्थ वाला वर्ग मैदान में आ गया है।
पाकिस्तान में सिंध के विभाजन की मांग तो बहुत पहले ही से मौजूद है। विभाजन के समय यह सवाल भी वहां की सिंधी जनता एवं तत्कालीन सिंध के प्रधानमंत्री अब्दुल्ला खोडू ने उठाया था कि यदि मजहब के नाम पर पंजाब और बंगाल बंट सकते हैं तो सिंध क्यों नहीं विभाजित हो सकता है? उन दिनों कराची और थरपारकर जिला हिन्दू बहुल था। इसलिए जोधपुर के तत्कालीन राजा ने अब्दुल्ला खोडू से कहा था कि 'यदि तुम कराची और थरपारकर के नाम पर हिन्दू सिंध बनाना चाहते हो तो मैं जोधपुर रियासत के तीन जिले हिन्दू सिंध में शामिल करने के लिए तैयार हूं।' अब्दुल्ला खोडू ने जब यह मांग उठाई तो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल ने उन्हें बुरी तरह से फटकारा। लेकिन जब तत्कालीन सिंध के राष्ट्रवादी नेता इस मुद्दे पर मानने के लिए तैयार नहीं हुए तो तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना आजाद के नेतृत्व में एक सदस्यीय आयोग मनोनीत कर दिया गया। मौलाना तो उन दिनों जवाहर लाल के हमसाया बने हुए थे। इसलिए उन्होंने मात्र दो सप्ताह में एक पृष्ठ की रपट पेश कर दी और कह दिया कि सिंध के विभाजन की कोई मांग नहीं है। ज्यों ही रपट आई उसी सप्ताह अब्दुल्ला खोडू की हत्या कर दी गई। अब्दुल्ला खोडू पहले राष्ट्रवादी मुसलमान थे जो विभाजन की बलिवेदी पर शहीद कर दिए गए। यदि सिंध का विभाजन हो जाता तो वहां रहने वाले हिन्दुओं को उनका प्रदेश मिल जाता। आज जिस तरह से पाकिस्तान में हिन्दुओं का कत्लेआम होता है, वह नहीं होता। इसलिए सिंध के विभाजन पर अब मुहाजिरिस्तान बनेगा, जिसकी मांग मुहाजिर आंदोलन के नेता अल्ताफ हुसैन लम्बे समय से कर रहे हैं। भारत से गए मुसलमानों को पाकिस्तान में मुहाजिर कहा जाता है। वहां उनके साथ भीषण अन्याय होता है।
सिंध का बंटवारा
सिंध में भी पंजाब की तरह ही तीन राज्य बनाने की मांग चल रही है। यानी सिंध टूटा तो वह भी तीन अलग अलग राज्यों में बंट जाएगा। पंजाब और सिंध के विभाजन के बाद सीमांत और बलूचिस्तान का बंटवारा तय है। सराइकी, फाटा, हजारा और पठानिस्तान तो मुंहबाए खड़े ही हैं, इस के बावजूद पाकिस्तान की केन्द्र सरकार ने जिन्हें अपने अधीन कर रखा है उस चित्राल और गिलगित के साथ साथ भारतीय कश्मीर का वह भाग, जो पाकिस्तान ने जोर-जबदरस्ती दबा रखा है, उसे भी यदि राज्य घोषित कर दिया गया तो आश्चर्य की बात नहीं। इसे वे नीलम घाटी नाम दे सकते हैं। भारतीय कश्मीर के जिस भाग को पाक सरकार ने वर्षों से अवैध रूप से कब्जा रखा है उसे भी राज्य बनाकर पाकिस्तान सरकार दुनिया को यह जताने की कोशिश करेगी कि देखा, उस भाग पर अब कश्मीरियों का ही राज है। पाकिस्तान के कुछ समाचार पत्रों ने नए बनने वाले राज्यों की संख्या कम से कम 12 बताई है जबकि पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में कम से कम 17 राज्य बनेंगे।
सवाल यह है कि इन राज्यों को चलाने के लिए धन कहां से आएगा? पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति किसी से छिपी नहीं है। उसके पास पर्याप्त बिजली नहीं है। पिछले दिनों पाक सरकार ने 500 मेगावाट बिजली और सौ रेलवे इंजन भारत से खरीदने के लिए अर्जी दी है। पाकिस्तान अपने कच्चे तेल को रिफाइनरी में शुद्ध नहीं कर सकता इसलिए भारत से पिछले दिनों उसने अनुबंध किया है। अमरीका उसे किसी कीमत पर न तो ऋण देना चाहता है और न ही उसकी किसी प्रकार की आर्थिक सहायता करना चाहता है। अमरीका ने पिछले दिनों पाक सरकार को यह जता दिया है कि यदि एक भी अमरीकी नागरिक पाकिस्तान में आतंकवादियों की गोली का निशाना बनता है तो अमरीका सरकार उसे दी जाने वाली सहायता में से पांच करोड़ डालर काट लेगी। पाकिस्तान में आर्थिक संकट कदम-कदम पर है। इस स्थिति में नए राज्य बनाना और उनके लिए आर्थिक स्रोत जुटाना कठिन ही नहीं, असंभव है। सरकार इनके लिए राजस्व कहां से जुटाएगी, यह उत्तर नहीं मिला है। पाकिस्तान के दैनिक नवाए वक्त ने अपने 11 मई के अंक में ठीक ही लिखा है कि 'पाक सरकार नए राज्यों के नाम पर विधानसभा, राज्यपाल, उच्च न्यायालय, विश्वविद्यालय और प्रशासन चलाने के लिए नौकरशाहों की लम्बी फौज तो दे सकती है, लेकिन गरीब पाकिस्तानी नागरिक को दो वक्त का भोजन, पीने का पानी और अंधकार दूर करने वाली बिजली नहीं दे सकती। पाकिस्तान को दुनिया असफल देश तो कहने ही लग गई है, अब कुछ दिनों बाद उसे 'डेड कंट्री' (निर्जीव देश) की उपमा मिल जाए तो आश्चर्य नहीं।
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