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पाठकीय

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May 20, 2012, 12:00 am IST
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दिंनाक: 20 May 2012 21:22:59

पुरस्कार प्राप्त पत्र

दरबारियों का सम्मान

“भारत रत्न', भारत सरकार द्वारा कला, साहित्य, विज्ञान और निर्विवाद उच्चस्तरीय समाज सेवा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान के लिए प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। देश के अद्वितीय भौतिक वैज्ञानिक प्रो. सी. वी. रमन “भारत रत्न' से अलंकृत होने वाले प्रथम व्यक्ति थे। वे वास्तव में भारत रत्न थे। उनके कारण इस सम्मान की गरिमा बढ़ी। लेकिन इन्दिरा गांधी के आगमन के साथ ही इस सर्वोच्च सम्मान की गरिमा में ह्मास होना आरंभ हो गया। इस सम्मान का उपयोग वोट बैंक, नेहरू परिवार के प्रति वफादारी और अपनों को उपकृत करने के लिए किया जाने लगा। यह सम्मान कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए था। 1992 में प्रख्यात व्यवसायी  और उद्योगपति जे.आर.डी.टाटा को इस सम्मान के लिए चुना गया। उसी वर्ष, पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम पद्मविभूषण प्राप्त करने वालों में शामिल था। कैसी विडंबना थी – एक समाजसेवी पद्म पुरस्कार के लिए नामित था और एक व्यवसायी, भारत रत्न पा गया! यह बात और है कि जनता ने कुछ ही वर्षों के पश्चात् अटल जी को प्रधानमंत्री बना दिया। एक सामान्य आदमी भी अन्दाजा लगा सकता है कि ऐसा क्यों हुआ था? के. कामराज, एम. जी. रामचन्द्रन और राजीव गांधी को भारत रत्न दिया जा सकता है लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी को नहीं। कम्युनिस्टों के दबाव में अरुणा आसफ अली को मरणोपरान्त 1997 में “भारत रत्न' प्रदान किया गया, लेकिन क्या कभी यह सम्मान भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद या वीर सावरकर को मरणोपरान्त ही सही, दिए जाने की कोई कल्पना कर सकता है?

आजकल मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के तहत साहित्य के लिए मिर्जा गालिब और कला-संगीत के लिए प्रख्यात पाश्र्वगायक मोहम्मद रफी को भारत रत्न देने की मांग उठ रही है। मिर्जा गालिब की शायरी और मोहम्मद रफी की गायकी का सम्मान हर भारतीय करता है, लेकिन उन्हें सांप्रदायिक आधार पर यह अलंकरण दिया जाय, यह स्वागत योग्य नहीं होगा। जब गालिब के नाम पर विचार हो सकता है, तो तुलसीदास, कालिदास, महर्षि व्यास और आदिकवि वाल्मीकि के नाम पर विचार क्यों नहीं हो सकता? मो.रफी के नाम पर विचार किया जा सकता है, तो किशोर कुमार, मुकेश और कुन्दन लाल सहगल के नाम पर विचार क्यों नहीं हो सकता? इन्होंने कौन सा अपराध किया है? ये तीनों लोकप्रियता, शैली और स्वर-माधुर्य में अपने समकालीन से बीस ही पड़ते हैं, उन्नीस नहीं। मुकेश ने तो तत्कालीन राष्ट्रपति से देश के सर्वश्रेष्ठ गायक का पुरस्कार भी प्राप्त किया था। संविधान ने इस पुरस्कार के लिए समय की कोई लक्ष्मण रेखा भी नहीं खींची है।

“भारत रत्न' प्राप्त करने वाले एक ही वंश के तीन व्यक्ति हैं – जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी। एक ने प्रधान मंत्री की कुर्सी के लिए देश का बंटवारा किया, दूसरी ने आपातकाल थोपकर तानाशाही स्थापित की और तीसरे काल में बोफर्स तोप खरीद में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार की शुरुआत हुई। घोर आश्चर्य की बात है – अब तक इस अलंकरण से सोनिया गांधी क्यों वंचित हैं? उनमें भी अपने वंश के अनुसार वे सारी योग्यताएं हैं, जो इस समय यह पुरस्कार पाने के लिए “आवश्यक' मानी जाती हैं।

आजकल सचिन तेन्दुलकर के लिए भी इस सम्मान की मांग की जा रही है। राज्यसभा की सदस्यता की भांति उनकी लोकप्रियता को भुनाने और अपने पापों को कुछ हद तक धोने के लिए यह सरकार उन्हें भी भारत रत्न दे सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सचिन इस सम्मान के सर्वथा योग्य प्रत्याशी हैं, लेकिन सरकार की नीयत साफ नहीं है। अगर क्रिकेट से ही किसी को राज्यसभा के लिए नामित करना इतना आवश्यक था, तो यह नाम सुनील गावस्कर का भी हो सकता था। सचिन अन्तर्मुखी व्यक्ति हैं, अभी नियमित खिलाड़ी हैं। वे किसी भी विषय पर अपनी टिप्पणी देने से कतराएंगे। राज्य सभा की कार्यवाही में वे नियमित रूप से भाग भी नहीं ले सकते। इसके विपरीत गावस्कर एक महान खिलाड़ी के साथ, एक अच्छे वक्ता तथा विचारक भी हैं। अंग्रेजी राज में अपने वफादारों को सम्मानित करने के लिए और वफादारी खरीदने के लिए सर, राय बहादुर, खान बहादुर आदि उपाधियां रेवड़ी की तरह बांटी जाती थीं। उम्मीद थी आजाद भारत में इसे समाप्त कर दिया जाएगा। लेकिन उसी परिपाटी को जारी रखते हुए स्वतंत्र भारत की सरकार ने भी पद्म पुरस्कारों और भारत रत्न सरीखे सजावटी सम्मान की व्यवस्था की। इतिहास साक्षी है कि इन उपाधियों का सदुपयोग से ज्यादा दुरुपयोग हुआ है। अब समय आ गया है कि जनता की गाढ़ी कमाई से दरबारियों को दिए जाने वाले ये अलंकरण समाप्त किए जाएं।

-बिपिन किशोर सिन्हा

bipin.kish@googlemail.com


सम्पादकीय “अग्नि परीक्षा में भारत की सफलता' अपने देश के प्रति गौरव का अनुभव कराने में सफल रहा। भारतीय मेधा ने अग्नि-5 का सफल परीक्षण कर पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया है। भारत एक सहिष्णु राष्ट्र है। यह किसी पर हमला नहीं करता है। इसलिए दुनिया यह न सोचे कि भारत का शक्ति-सम्पन्न होना ठीक नहीं है। वैश्विक शान्ति के लिए भारत का शक्तिशाली होना बहुत जरूरी है।

-प्रदीप सिंह राठौर

एम.आई.जी.36, ब्लॉक-बी, पनकी, कानपुर (उ.प्र.)


 

अग्नि-5 के सफल परीक्षण से भारत उन पांच देशों की श्रेणी में खड़ा हो गया है, जिनके पास अन्तरद्वीपीय मारक-क्षमता है। इससे भारत का सुरक्षा कवच और मजबूत हो गया है। अग्नि- 5 को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों का सम्मान होना चाहिए। वैज्ञानिकों ने वर्षों तक बड़ी लगन के साथ काम करके गौरव का यह क्षण देशवासियों को उपलब्ध कराया है।

-हरिहर सिंह चौहान

जंवरीबाग नसिया, इन्दौर-

452001 (उ.प्र.)

 


स्वदेशी तकनीक से निर्मित प्रक्षेपास्त्र के प्रक्षेपण से विश्व की महाशक्तियों को भारत की सामरिक शक्ति का अनुमान हो गया है। विरोधी मानसिकता रखने वाले चीन और पाकिस्तान जैसे देशों को भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण करने से पूर्व अनेक बार सोचना पड़ेगा। इस प्रकार की सामरिक गतिविधियां शक्ति संतुलन बनाए रखने के साथ- साथ क्षेत्र में शान्ति बनाए रखने के लिए अति महत्वपूर्ण होती हैं।

-विक्रम सिंह

15/92, मोहल्ला जोगियों

वाला, घरौंडा

करनाल-132114 (हरियाणा)


 

शिक्षा की अवहेलना चर्चा सत्र के अन्तर्गत श्री विशेष गुप्ता का आलेख “चुनौतियों को अनदेखा न करें' अच्छा लगा। यद्यपि छह से चौदह वर्ष तक के बच्चों के लिए

अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा का प्रावधान भारत के संविधान में पहले से ही किया हुआ है, परन्तु भ्रष्ट व्यवस्था इसकी सफलता में आड़े आती रही है। अब शिक्षा का अधिकार कानून 2009 ने इसे एक बार फिर से प्रभावी बनाने की दिशा में कदम उठाया है।

परन्तु इसकी सार्थकता तभी है जब इसका सही तरह से क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए।

-आर.सी. गुप्ता

द्वितीय ए-201, नेहरू नगर

गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)

 


श्री अरुण कुमार सिंह की रपट “दिल्ली में फिर खिला कमल' में कांग्रेस की पतली होती हालत पर नजर दौड़ाई गई है। लोग कांग्रेस की नीतियों से बहुत परेशान हैं। कांग्रेस की नीति एक मजहब पर केन्द्रित हो गई है। कांग्रेसी सरकारें कुछ भी करती हैं, उनके पीछे वोट बैंक की सोच हावी रहती है। अच्छा है लोग कांग्रेस को अच्छी तरह जानने लगे हैं। भाजपा कांग्रेस की देश-तोड़क नीतियों को आम जनता तक ईमानदारी से ले जाए। यदि ऐसा हो पाया तो फिर कांग्रेस को परास्त करना कोई बड़ी बात नहीं है।

-प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर

1-10-81, रोड नं.-8बी, द्वारकापुरम, दिलसुखनगर

हैदराबाद-500060(आं.प्र.


दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा की जीत फूलों की सेज नहीं, कांटों का ताज है। दिल्ली की कांग्रेस सरकार अपनी कमियों का ठीकरा नगर निगम यानी भाजपा पर फोड़ेगी। इसके लिए भाजपा तैयार रहे। दिल्ली भाजपा खुशी तब मना सकती है जब वह यहां की शीला सरकार को उखाड़ फेंकेगी और लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करेगी।

-बी.एल. सचदेवा

263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली-110023

 


मुश्किल में हैं पाकिस्तानी हिन्दू

श्री मुजफ्फर हुसैन ने अपने लेख “पाकिस्तानी हिन्दुओं की मांग हिन्दू विवाह पंजीकरण कानून बनाओ' में एक जरूरी मुद्दे की ओर भारत के हिन्दुओं का ध्यान खींचा है। पाकिस्तानी हिन्दुओं की रक्षा के लिए हमें वहां की सरकार और जनता के साथ सहयोग का रूख अपनाना चाहिए। यह चिन्ता की बात है कि पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी तेजी से घट रही है, जबकि भारत में तेजी से बढ़ रही है। पाकिस्तानी हिन्दू मुश्किल में हैं। अवश्य ही वहां की संसद को विवाह पंजीकरण कानून बनाना चाहिए।

-प्रो. परेश

1251/8सी, चण्डीगढ़

 


पाकिस्तानी हिन्दुओं के साथ भारत सरकार को हमदर्दी दिखानी चाहिए। पाकिस्तानी हिन्दुओं को भारत से मदद नहीं मिलेगी तो कहां से मिलेगी? यदि भारत सरकार हिन्दू के नाते उनकी मदद नहीं करना चाहती है, तो मानवता के नाते करे।

-सूर्यप्रताप सिंह

सोनगरा

कांडरवासा, रतलाम-

457222 (म.प्र.)


संस्कृत के साथ अन्याय

विदेशी भाषा की चाह में संस्कृत की हत्या का प्रयास हो रहा है। फ्रेंच और जर्मन के लिए संस्कृत का गला घोटना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। संस्कृत को संरक्षण देने की आवश्यकता है। किन्तु ऐसा हो नहीं रहा है। यही नहीं, संस्कृत की पुस्तकों में बड़े आपत्तिजनक पाठों को शामिल किया गया है। कक्षा नवम में संस्कृत की पुस्तक “मणिका' पढ़ाई जाती है। इसमें महाराणा प्रताप के सैनिकों को आत्महत्या करने वाले और विभीषण एवं कुम्भकरण को द्रौपदी का पुत्र बताया गया है। लगता है कि इस पुस्तक को पराधीन मानसिकता वालों ने लिखा है। क्या बच्चों को इसी तरह की तथ्यहीन बातें पढ़ाई जाएंगी?

-विशाल कोहली

110, ए-5/बी, पश्चिम

विहार, नई दिल्ली-110063

 

 

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