आँगन की तुलसी
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आँगन की तुलसी

by
May 20, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 May 2012 21:17:54

सृष्टि और भविष्य को संवारने वाली उर्जा है नारी – डा. आशा पाण्डेय

परिवार एक ऐसी आधारभूत एवं सर्वव्यापी सामाजिक संस्था है जो गुणदायिनी के रूप में अन्य संस्थाओं से तुलना में भारी पड़ती है। परिवार के प्रति नारी का गहन उत्तरदायित्व है। नारी के प्रत्येक क्रियाकलाप का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष प्रभाव परिवार पर पड़ता है। परिवार तथा समाज की निर्मात्री होने की वजह से नारी सर्वदा पूज्य है।

भारतीय समाज में नारी को सर्वदा श्रेष्ठ स्थान पर स्वीकार किया गया है। वैदिककाल में अनेक विदुषी महिलाएं हुई हैं। लोपामुद्रा, मैत्रेयी, गार्गी आदि विदुषी महिलाओं ने ऋचाओं की रचना की है। किन्तु दुर्भाग्य से बाद का बहुत बड़ा कालखण्ड महिलाओं के लिए अन्धकारपूर्ण रहा। उनकी स्थिति दिनोंदिन गिरती गई। उनकी उपस्थिति, उनकी भावना, उनकी बुद्धि को पुरुषों के द्वारा नकारा जाने लगा। किन्तु स्वतंत्रता आन्दोलन नारी शक्ति के लिए पुन: वरदान सिद्ध हुआ।

स्वतंत्रता आन्दोलन के समय नारी फिर से साक्षर हुई और अपना भिन्न व्यक्तित्व लेकर समाज के समक्ष आई। नारीवादी आन्दोलनों ने नारी समस्याओं के प्रति ध्यान आकर्षित किया। यह सर्वविदित है कि महिलाओं को सर्वाधिक अपनत्व अपने परिवार से होता है। उनके जीवन  का कार्यफलक चाहे कुछ भी हो पर उनके चिन्तन का केन्द्रबिन्दु उनका परिवार ही होता है। इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच अपने परिवार को खड़ा करने के लिए नारी घर की दहलीज को लांघकर बाहर निकली है। घर की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ ही साथ वह अर्थोपार्जन में भी लगी है। नारी के इस कदम ने घर को आर्थिक रूप से मजबूत तो किया है, किन्तु परिवार के असहयोग से स्वयं नारी ही इस दोहरी भूमिका को निभातेनिभाते पल-पल टूट रही है। यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि नारी के परम्परागत दायित्वों का क्षेत्र तो बढ़ा है, किन्तु पति या परिवार-जन वही सदियों पुरानी भूमिका निभाना चाहते हैं। पतियों को घरेलू कामों से कोई सरोकार नहीं रहता है, उल्टे अगर कोई कमी दिखती है तो मीन-मेख निकालना भी नहीं भूलते हैं। अगर पति अपनी पत्नी को घरेलू कार्यों में मदद करें, बच्चों की परवरिश में रुचि लें, उसकी बाहरी जान-पहचान का सम्मान करें तो पत्नी को बड़ी राहत मिलती है, नहीं तो काम का दबाव उसे चिड़चिड़ा और बीमार बना देता है। जिसका भयानक परिणाम परिवार एवं बच्चों को ही झेलना पड़ता है। वास्तव में पत्नी तभी स्वस्थ एवं अच्छी भूमिका निभा सकती है जब उसे पति की मदद, प्रोत्साहन, प्रशंसा और विश्वास मिले। महिलाओं के जीवन में विश्वास एवं प्रेम वह संजीवनी है जिसके भरोसे वे हर पीड़ा को हंसकर सह लेती हैं।

यह सच है कि महिलाएं आज मुक्त होना चाहती हैं, लेकिन अपने घर-परिवार या जिम्मेदारियों से नहीं, बल्कि उन नाकारा बन्धनों से जो उनकी कार्यक्षमता को सीमित कर देते हैं और उन्हें इंसान तक का दर्जा न देते हुए मात्र वस्तु बना देते हैं। घर परिवार में भी उन्हें उचित स्थान नहीं मिलता।


स्त्रियों को समझना होगा कि हम सृजन के माध्यम से सृष्टि एवं भविष्य को संवारने वाली एक ऊर्जा हैं। प्राणों को भिगोने वाली रागिनी हैं। जीवन का स्पन्दन हैं।


अगर हम अपवाद को छोड़ दें तो अक्सर यह देखा जाता है कि पति यदि पत्नी के लिए कुछ पैसा खर्च कर देता है, कुछ अच्छा सामान ला देता है तब बात-बात पर उसे याद दिलाता रहता है कि देखो मैं तुम्हारे लिए इतना खर्च करता हूं। पति यह भूल जाता है कि पत्नी भी तो पति के लिए, पति के परिवार के लिए सुबह से शाम तक बहुत कुछ करती रहती है। पत्नी के इन कामों को उसका कर्तव्य निरूपित कर दिया जाता है, तो क्या कर्तव्य सिर्फ पत्नियों के हुआ करते हैं? पति के नहीं? यह कैसी बराबरी है? सत्य तो यह है कि पति, पत्नी के लिए करता है तो पत्नी पति के लिए करती है। दोनों एक-दूसरे के अपने हैं, दोनों अपनों के लिए करते हैं। न जाने क्यों पति ये भूल जाते हैं कि उनके द्वारा कही गई ऐसी बातें पत्नी के मन में अपमान एवं अलगाव के भाव को उपजाती हैं। और इससे परिवार का ही अहित होता है। महापुरुषों ने भी कहा है कि महिलाओं को सम्मान देना, उन्हें अवसर देना, अधिकार देना स्त्रीहित का कार्य नहीं, बल्कि परिवार और राष्ट्रहित का अनुष्ठान है। इसलिए स्त्रियों को मात्र पुरुष के बराबर नहीं, बल्कि उनसे बढ़कर “विशेष' मानना होगा। क्योंकि, एक नारी को जगा देने से पूरा समाज जागता है। अब जब बात बराबरी, मुक्ति, स्वतंत्रता की हो रही हो तो हमें यह भी तय करना होगा कि क्या भारतीय समाज की महिलाएं जो आज पश्चिमी सभ्यता का अन्धनुकरण कर रही हैं वह उनकी आजादी है? मुक्ति है?

वास्तव में स्त्री का सशक्तीकरण परिवार का सशक्तीकरण साबित होना चाहिए, परिवार की कमजोरी या परिवार की टूटन नहीं। हमें याद रखना होगा कि फर्क सुमति एवं कुमति का है, स्वतंत्रता एवं स्वच्छन्दता का है, शालीनता एवं उच्छृखलता का है। चूंकि नारी अर्धांगिनी है आधी दुनिया है । इसलिए नैतिक मूल्यों के सृजन की सहभागिता से वह मुंह नहीं मोड़ सकती। परिवार में नारी की स्थिति को ढूंढ़ने के लिए बहुत कुछ खंगालने की जरूरत है। स्वयं नारी को आत्मनिरीक्षण करते हुए पुन: अपनी सकारात्मक भूमिका तलाशनी होगी। बहुत देर नहीं हुई है। आज भी परिवार को सशक्त बनाते हुए स्वयं सम्मान पाती नारियों की कमी नहीं है। अधिकार की परिभाषा में उलझे बिना हमें अपने कर्तव्य करने हैं। नारियों का उचित आदर करना पुरुष एवं परिवार का कर्तव्य है। यदि वे अपने कर्तव्य को भूल चुके हैं तो भूलें, हम ऐसा क्यों करें।

स्त्रियों को समझना होगा कि हम सृजन के माध्यम से सृष्टि एवं भविष्य को संवारने वाली एक ऊर्जा हैं। प्राणों को भिगोने वाली रागिनी हैं। जीवन का स्पन्दन हैं। हमारे पास अपना विवेक है और निर्णय लेने का अपना अधिकार भी। हमारा चित्र ही कुछ अलग है। हमारा काम ही कुछ विशेष है। तभी तो कामायनी में जयशंकर प्रसाद कहते हैं –

नारी जीवन का चित्र यही

क्या? विकल रंग भर देती हो,

अस्फुट रेखा की सीमा में,

आकार कला को देती हो।

 

स्त्रियों को समझना होगा कि हम सृजन के माध्यम से सृष्टि एवं भविष्य को संवारने वाली एक ऊर्जा हैं। प्राणों को भिगोने वाली रागिनी हैं। जीवन का स्पन्दन हैं। हमारे पास अपना विवेक है और निर्णय लेने का अपना अधिकार भी।

 

खान-पान

चावल का उपमा

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प्रमिला पोपली

कई बार ऐसा होता है कि लोग बचे हुए पके चावल, जिसे भात कहते हैं, को फेंक देते हैं। अन्न को फेंकना तो उसका अपमान है। महंगाई के इस दौर में अन्न फेंकना तो महापाप

भी है। आइए इस बार यह जानने का प्रयास करते हैं कि पके हुए चावल को किस प्रकार स्वादिष्ट बनाया जाए और उसे घर वालों को खाने के लिए लालायित किया जाए।


सामग्री

तेल – 1 चम्मच (बड़ा), उबले चावल- 1 कप, मूंगफली- 1 बड़ा चम्मच, लहसुन- दो कली, प्याज- 1 (बड़ा), टमाटर- 1 (बड़ा), कढ़ी पत्ता- 1 चम्मच, सरसों के दाने- आधा चम्मच, सूखी लाल मिर्च – एक, नमक, मिर्च और हल्दी स्वाद अनुसार ले सकते हैं


विधि: सरसों को भूनकर उसमें लहसुन, प्याज, मूंगफली, कढ़ी पत्ता मिला लें, फिर उसमें टमाटर और सूखे मसाले भी मिला दें। फिर उसमें उबले चावल मिलाकर चलाएं। उस पर आधा नीबू भी निचोड़ दें और गरम-गरम परोसें।

सूचना

आप भी अपनी कोई विशिष्ट रेसीपी भेज सकती हैं, जिसे

पढ़कर लगे कि वाह क्या चीज बनाई है!

पता है-

सम्पादक, पाञ्चजन्य, संस्कृति भवन, देशबंधु गुप्ता मार्ग,

झण्डेवालां, नई दिल्ली-110055

 

 

 

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