सम्पादकीय
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सम्पादकीय
जिस गांव में गुण–अवगुण को सुनने व समझने वाला कोई नहीं है और जहां अराजकता फैली हुई है, हे राजिया! वहां रहना कठिन है।
–कृपाराम (राजिया रा दूहा)
कुख्यात बोफर्स मामले में स्वीडन के पूर्व पुलिस अधिकारी के कबूलनामे से एक बार फिर कांग्रेस कटघरे में है और उसके हाथ पर लगी दलाली की कालिख चीख–चीखकर कह रही है कि कांग्रेस के दामन पर दाग हैं। बोफर्स तोप सौदे में दलाली का मुख्य आरोपी इटली का ओतावियो क्वात्रोकी, जिसकी इटली की ही सोनिया माइनो (सोनिया गांधी) के परिवार, विशेषकर सोनिया गांधी से निकटता जगजाहिर है, को कांग्रेसी सत्ता लगातार बचाती रही है। यहां तक कि उसे देश से भागने का पूरा मौका दिया गया और न्यायालय के आदेश पर 'सील' किए गए उसके खातों को निर्बाध कर उसे सारी रकम निकालने की सहूलियत दी गई तथा उसके विरुद्ध 'रेड कार्नर नोटिस' जारी होने के बाद भी उसके प्रत्यर्पण की कोई कोशिश नहीं की गई। अंतत: 2011 में भारत की मुख्य जांच एजेंसी सीबीआई ने 'क्वात्रोकी के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत न होने' की बात कहकर अदालत में मामला खारिज करा दिया। अब मामले के जांचकर्ता स्वीडन के पुलिस अधिकारी स्टेन लिंडस्टोर्न ने यह कहा है कि राजीव गांधी तो रिश्वत मामले में शामिल नहीं थे, पर उन्होंने सत्ता के बल पर क्वात्रोकी के खिलाफ की जा रही जांच को धीमी या बेअसर करने की कोशिश की। लेकिन सच्चाई तो स्टेन के इस कथन के आगे भी है कि राजीव गांधी के बाद क्वात्रोकी को बचाने की कमान सोनिया गांधी ने स्वयं संभाल ली और चर्चा तो यह भी है कि राजीव गांधी पर भी सोनिया गांधी का ही दबाव था अपने मित्र को बचाने का। राष्ट्र की सुरक्षा को ताक पर रखकर सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का पूरा अमला क्वात्रोकी को बचाने में जुटा रहा।
प्रश्न यह है कि कांग्रेस बोफर्स मामले को परिणति तक ले जाने से कन्नी क्यों काटती रही? क्यों नहीं उसने कभी दूध का दूध और पानी का पानी करने की कोशिश की? किसके इशारे पर क्वात्रोकी के खिलाफ उपलब्ध सबूतों को नजरअंदाज कर सीबीआई ने तथ्यों के अभाव का हवाला देकर मामला बंद करवाया? जाहिर है कि यदि क्वात्रोकी का मुंह खुलता और सच्चाई सामने आती तो कांग्रेस तो मुंह दिखाने लायक बचती ही नहीं, राजीव गांधी व सोनिया गांधी जैसे दिग्गजों की कारिस्तानी भी सबके सामने आ जाती। इसलिए कांग्रेस ने सत्ता के दुरुपयोग और सीबीआई को अपने इशारों पर नचाकर बोफर्स मामले को ठंडे बस्ते में डलवा दिया। यदि इस मामले में सख्ती से सच्चाई सामने लाई जाती तो देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर दलाली खाने वालों को एक संदेश जाता कि वे किसी भी कीमत पर बख्शे नहीं जाएंगे। परंतु ऐसा न होकर, सत्ता की शह पर दलालों की हिफाजत से रक्षा सौदों में कमीशनखोरी का चलन बढ़ता गया। जो आज कई सेनाधिकारियों को भी दागदार बना गया है। भारतीय सेना देशभक्ति और वीरता के श्रेष्ठ मानकों पर टिकी है, विश्व में उसकी साख और धाक है, लेकिन हथियारों और सैन्य उपकरणों की खरीद में दलाली कहीं हमारी सुरक्षा तैयारियों में सेंध न लगा दे, यह एक गंभीर चिंता का विषय है। इसलिए भाजपा की यह मांग कि बोफर्स मामले में न्यायिक आयोग बनाकर जांच कराई जाए और सच्चाई का पता लगाया जाए, एकदम उचित है, ताकि सत्ता की ढिलाई से रक्षा सौदों के दलालों के हौसले इतने न बढ़ जाएं कि वे राष्ट्र की सुरक्षा पर भारी पड़ें। कांग्रेस में यदि नैतिकता है और राष्ट्रसेवा के प्रति वह ईमानदार है तो उसके नेतृत्व में चलने वाली संप्रग सरकार बोफर्स मामले की सच्चाई को सामने लाए, क्योंकि कोई सोनिया गांधी या राजीव गांधी अथवा कोई अन्य देश से बड़ा नहीं हो सकता। इसलिए उनकी 'साख' बचाने के लिए देश की सुरक्षा को दांव पर नहीं लगाया जा सकता!
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