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मुस्लिम राजनीति बनी
मुलायम के गले की फांस
आजम–बुखारी की लड़ाई से अखिलेश सरकार सांसत में
n लखनऊ से शशि सिंह
उत्तर प्रदेश के गांवों में एक चर्चित कहावत है 'बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से होय'। उसे दूसरे प्रकार से भी कहा जाता है जैसा बोया वैसा ही तो काटेंगे। ये दोनों ही कहावतें समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव पर सटीक बैठ रही हैं। सरकार के वरिष्ठ मंत्री व कट्टरवादी नेता आजम खां और दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम व हिन्दुओं के खिलाफ विषवमन करने वाले अहमद बुखारी के बीच वर्चस्व की लड़ाई मुलायम को परेशान किए हुए है। नतीजतन उनके पुत्र और राज्य के होनहार कहे जाने वाले युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार जनमानस पर अच्छा प्रभाव नहीं छोड़ पा रही है। शुरुआत में ही काम न कर पाने वाली सरकार का संदेश जा रहा है।
थोड़ा पीछे चलते हैं। विधानसभा चुनाव से पहले आजम खां सपा में वापस हुए। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की मुलायम से दोस्ती और तत्कालीन सपा महासचिव अमर सिंह से दुश्मनी के चलते आजम कुछ समय के लिए पार्टी से बाहर हो गए थे। वापसी इसी शर्त पर हुई बताते हैं कि सपा में उनके अलावा किसी भी मुस्लिम नेता को तरजीह नहीं दी जाएगी। बहरहाल उनके आने के बाद मुलायम के नजदीकी रशीद मसूद ने उपेक्षा से त्रस्त हो पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में चले गए। इस बीच विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। सत्ता के लिए लालायित मुलायम सिंह को मुस्लिमों का एकमुश्त वोट चाहिए था। उन्होंने जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी से संपर्क साधा। वह लखनऊ आए और सपा के समर्थन में मुसलमानों से वोट की अपील की। हालांकि इन्हीं इमाम बुखारी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन राजग सरकार के लिए मुसलमानों से वोट की अपील की थी, तब मुलायम सिंह ने उन्हें खरी खोटी सुनाते हुए कहा था कि वे राजनीति करने की बजाय इमामत (नमाज पढ़ाना) करें। बहरहाल समय बदला और वही मुलायम सिंह यादव बुखारी की शरण में गए। मुलायम और बुखारी के बीच क्या 'डील' हुई, यह तो पता नहीं चला लेकिन चुनाव में मुलायम ने उनके दामाद उमर अली को पश्चिम की एक विधानसभा सीट से विधानसभा का टिकट जरूर दे दिया हालांकि उनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही। वह चुनाव हार भी गए। चुनाव बीता और सपा पूरे बहुमत के साथ सत्ता में आ गई। अखिलेश मुख्यमंत्री जरूर हो गए लेकिन मुलायम के मजहबी एजेंडे से काम करने की रणनीति बनी और दस मुसलमान मंत्री बनाए गए। तीन को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया। बुखारी इससे खुश नहीं हुए। जैसा कि नाराज होने के बाद अभी हाल ही में उन्होंने कहा कि कैबिनेट में और मुसलमानों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए और तीन कैबिनेट मंत्री से काम नहीं चलेगा। हालांकि बुखारी निजी एजेंडे पर काम कर रहे हैं लेकिन उसे कौम से जोड़कर दिखा रहे हैं, ताकि अधिक भयादोहन किया जा सके। उधर, आजम सपा में अपने अलावा किसी भी मुस्लिम का हस्तक्षेप नहीं चाहते। इसीलिए राज्यसभा व विधान परिषद चुनाव की घोषणा हुई तो दोनों में भिड़ंत हो गई। मुलायम सिंह ने बुखारी के हारे हुए दामाद उमर को विधान परिषद में भेजने का फैसला किया लेकिन वह इससे संतुष्ट न हुए। जैसा कि उनके धुर विरोधी आजम खां का कहना है कि वह अपने भाई तैय्यब को राज्यसभा में भेजना चाहते थे। बात नहीं बनी तो अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं।
बहरहाल अपने भाई को टिकट मिलता न देख मौलाना बुखारी ने मुलायम को चिट्ठी लिख सपा को मुस्लिम विरोधी करार दे दिया और यहां तक धमकी दे दी कि उमर भी सपा से नहीं लड़ेंगे। अब मुलायम बुखारी के बीच तो समझौता हो गया, लेकिन इस लड़ाई से मुस्लिमों के नाम पर भयादोहन का संदेश तो चला ही गया। इसमें सरकार के वरिष्ठ मंत्री आजम खां जो सदा से मुस्लिमों के नाम पर मुलायम से करीबी बने हुए हैं, की भी असलियत सामने आ गई। बुखारी के पत्र के जरिए जब समाचार पत्रों में खबर आई, मुलायम तो नहीं बोले, आजम खां ने जरूर बुखारी पर पलटवार किया। कहा कि वह सरकार और सपा का भयादोहन कर रहे हैं। जामा मस्जिद में नमाज पढ़ाने का काम करें, राजनीति के फेर में न पड़े। आजम ने यह भी चुनौती दे डाली कि बुखारी मुरादाबाद से मेयर का चुनाव लड़ें और जीतकर दिखाएं तो वह राजनीति से संन्यास ले लेंगे। बताते चलें, मुरादाबाद में बुखारी की पहली ससुराल है। वहां उनका आना जाना रहता है। आजम ने ही कहा कि बुखारी अपने दामाद उमर के लिए विधान परिषद् और भाई तैय्यब के लिए राज्यसभा सीट चाहते थे। बहरहाल बुखारी ने भी आजम पर तगड़ा हमला बोला और मुलायम से अपेक्षा की कि वह आजम को रोकें। मुलायम सिंह चुप रहे। उनकी चुप्पी दोनों को खली। आजम ने तो खुलकर कहा कि बुखारी मामले पर पार्टी और सरकार उनका साथ नहीं दे रही है। वह बुखारी की मुलायम को चिट्ठी पर आक्रामक हुए थे। उन्हें तो चिट्ठी संबोधित ही नहीं थी। लेकिन पार्टी और सरकार का नैतिक समर्थन न मिलना उनको धक्का पहुंचाने वाला है। संभव है कि बुखारी और मुलायम का मनमुटाव दूर हो जाए, मुलायम से उनकी खटास, आजम से लड़ाई को विराम मिल जाए लेकिन इसका संदेश यही गया कि यह सरकार केवल वोट की राजनीति कर रही है, जनहित के काम पीछे होते जा रहे ½éþ*n
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