एक-दो नहीं, चौदह
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एक-दो नहीं, चौदह

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Apr 7, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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बात बेलाग/दृष्टिपात

दिंनाक: 07 Apr 2012 16:35:35

बात बेलाग

समदर्शी

खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो अपनी ईमानदारी पर इतराते ही हैं, कांग्रेस भी उनकी ईमानदार छवि का राग अलापते नहीं थकती। अभी तक खुद मनमोहन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है इसलिए उन्हें ईमानदार मानने में शायद ही किसी को कोई आपत्ति हो, लेकिन इस सच से भी तो मुंह नहीं चुराया जा सकता कि वह आजाद भारत की सबसे भ्रष्ट सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। उनके पहले प्रधानमंत्रित्वकाल में हुए पौने दो लाख करोड़ रुपये के टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले को हाल तक आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला माना जाता रहा है, पर एक अंग्रेजी अखबार के खुलासे के मुताबिक यह रिकार्ड भी मनमोहन के प्रधानमंत्रित्वकाल के चलते ही एक अन्य घोटाले से टूटने वाला है। हालांकि सरकार के महालेखा परीक्षक 'कैग' ने अभी अंतिम रपट तैयार न होने के आधार पर सफाई जारी की है, लेकिन अखबार के खुलासे के मुताबिक वर्ष 2004-09 के बीच बिना नीलामी 155 कोयला खदानों के आवंटन से देश के राजस्व को दस लाख करोड़ रुपये से भी अधिक का चूना लगाया गया। इस महत्वपूर्ण तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इस दौरान कुछ समय तक खुद मनमोहन ही कोयला मंत्रालय देख रहे थे। फिर भी ये तो कुछ बानगियां हैं, फेहरिस्त बहुत लंबी बन सकती है। कारण? भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए सशक्त लोकपाल की मांग को लेकर मुहिम चला रही 'टीम अण्णा' के सदस्य अरविंद केजरीवाल की मानें तो मनमोहन सरकार में एक दो नहीं, बल्कि पूरे 14 मंत्री ऐसे हैं, जिनके विरुद्ध भ्रष्टाचार के मामले हैं और अगर लोकपाल होता तो वे सरकार के बजाय जेल में होते। केजरीवाल ने इनके नाम भी मंच से पढ़कर सुनाये, पर सिवाय एक वीरभद्र सिंह के किसी अन्य ने तो उन्हें मानहानि के मुकदमे की धमकी देने की जहमत भी नहीं उठायी है।

देशमुख के कितने मुख

एक हैं विलासराव देशमुख। जब वर्ष 2008 में मुम्बई पर दहला देने वाला आतंकी हमला हुआ तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उनका एक बेटा फिल्म अभिनेता है सो, उसके करियर को गति देने के लिए फिल्म निर्माता-निर्देशक रामगोपाल वर्मा को भी घटनास्थल पर घुमाने ले गये। हंगामा बरपा तो कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें पद से हटाकर मामला शांत किया। फिर जल्द ही उन्हें केन्द्र सरकार में मंत्री बना दिया गया, पर देशमुख के नित नये चेहरे और चरित्र सामने आ रहे हैं। बेशक ज्यादातर उनके मुख्यमंत्रित्वकाल के ही हैं। कर्ज के जाल में फंस कर किसान द्वारा आत्महत्या कर लेने के मामले में पुलिस को साहूकार के विरुद्ध कार्रवाई करने से रोककर पद का दुरुपयोग किया तो बेटे के फिल्मी करियर के मद्देनजर ही एक अन्य फिल्म निर्माता-निर्देशक सुभाष घई को अकादमी के नाम पर विशाल भूखंड आवंटित कर दिया। पर कहावत है न कि 'देर है, अंधेर नहीं', सो सारे कांड खुलकर सामने आ रहे हैं। साहूकार मामले में पहले उच्च न्यायालय ने जुर्माना लगाया था। उसे माफ कराने सर्वोच्च न्यायालय गये तो उल्टे जुर्माना बढ़ा दिया गया। अब अदालती सख्ती के बाद सुभाष घई को भी जमीन लौटानी पड़ेगी, लेकिन प्रधानमंत्री से लेकर कांग्रेस आलाकमान तक सभी अपने इस लाडले की करतूतों पर मूकदर्शक बने हुए हैं।

बेटों के बाद बहू भी

मुलायम सिंह यादव के 'युवराज' अखिलेश मायावती विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तो बन गये, पर विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। वर्ष 2009 में कन्नौज और फिरोजाबाद से लोकसभा चुनाव जीते थे। बाद में फिरोजाबाद से इस्तीफा देकर अपनी पत्नी डिम्पल को लड़वाया, पर समाजवादी से कांग्रेसी बने फिल्म अभिनेता राज बब्बर के विरुद्ध वह हार गयीं। जाहिर है, विधान परिषद का सदस्य बनने का फैसला करने वाले अखिलेश को अब कन्नौज लोकसभा सीट से भी इस्तीफा देना पड़ेगा। खबर है कि एक बार फिर डिम्पल को मैदान में उतारा जाएगा, आखिर समाजवाद के नाम पर परिवारवाद का पोषण जो करना है। वैसे एक और बहू चुनाव मैदान में उतर सकती है। राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख अजित सिंह ने मुख्यमंत्री बनवाने के मंसूबों के साथ अपने सांसद पुत्र जयंत चौधरी को विधानसभा का चुनाव लड़वाया था। जीत भी गये, पर संख्या के खेल में प्रासंगिकता गंवा बैठे। इसलिए उन्होंने विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया है। खबर है कि मुलायम की तरह अजित भी मांट विधानसभा सीट से अपनी पुत्रवधु चारू को उम्मीदवार बना सकते हैं।

 

दृष्टिपात

   द आलोक गोस्वामी

सईद पकड़ाओ, एक करोड़ डालर पाओ!

पाकिस्तान में खुलेआम कट्टरवादी तंजीमों मेंे आए दिन तकरीरें देने वाले कुख्यात आतंकी हाफिज सईद की सूचना देने/पकड़वाने पर अमरीका ने एक करोड़ डालर (करीब 50 करोड़ रु.) का इनाम घोषित किया है। सईद का नाम 'मोस्ट वांटेड' आतंकियों की फेहरिस्त में जोड़ते हुए अमरीका ने उसे 26/11 के मुम्बई हमलों के षड्यंत्रकारी की संज्ञा दी है। उल्लेखनीय है कि उस आतंकी हमले में 166 निर्दोषों की जान गई थी। आतंकी संगठन लश्करे तोएबा को खड़ा करने वाले सईद के खिलाफ भारत ने पहले ही रेड कार्नर नोटिस जारी कराया हुआ है और एक नहीं, कितने ही मौकों पर पाकिस्तान से उसे सौंपने की मांग की है। पर पाकिस्तान ने हर बार अपनी फितरत के तहत 'और सबूत लाओ', 'कोई ठोस सबूत लाओ', 'सईद यहां कहां है जी', ही कहा है।

अभी अमरीका की राजनीतिक मामलों की उपमंत्री वेंडी शरमन पहली बार भारत आई थीं। यहां उन्होंने सईद के सिर पर इनाम की अमरीकी घोषणा का खुलासा किया। भारत ने अमरीकी घोषणा का स्वागत किया। सईद के अलावा अमरीका ने उसके साले और लश्करे तोएबा को खड़ा करने में कथित मददगार अब्दुल रहमान मक्की के सिर पर भी 30 लाख डालर का इनाम घोषित किया है। दिलचस्प बात यह है कि 2008 में दुनियावी आतंकी घोषित किया गया सईद पाकिस्तानी हुक्मरानों की नाक के नीचे मजे से घूम रहा है, टेलीविजन चैनलों में इंटरव्यू दे रहा है, जब चाहे भारत के खिलाफ जहर उगल रहा है, पर पाकिस्तान सरकार के पास 'उसकी कोई जानकारी नहीं है।' बताते हैं, पाकिस्तानी सेना और आईएसआई में उसकी अंदर तक पहुंच है जिसके चलते कोई उस पर हाथ ही नहीं धरता।

अपनी 'रिवार्ड्स फार जस्टिस' वेबसाइट पर अमरीका ने सईद का कच्चा चिट्ठा दिया है। 6 मई, 1950 को सरगोधा (पाकिस्तान) में पैदा हुआ सईद कालेज में अरबी और इंजीनियरिंग पढ़ा चुका है। वह देवबंदी इस्लामी संगठन जमात-उद-दावा को खड़ा करने वाला है और 'इस्लामी राज' स्थापित करने के मंसूबे पाले है। थ्

जापानी सांसदों ने चीन को कहा

तिब्बत में दमन रोको!

जापान के पांच बड़े राजनीतिक दलों के 60 सांसदों ने 4 अप्रैल को तोक्यो में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया। सांसदों ने चीन के दमनकारी शासन के खिलाफ तिब्बतियों द्वारा आए दिन किए जा रहे आत्मदाहों पर गहन चिंता जताते हुए चीन सरकार को कहा है कि वह तिब्बत में तिब्बतियों के खिलाफ दशकों से चली आ रहीं दमनकारी नीतियों पर लगाम लगाकर तिब्बतियों की पीड़ा को समझे। प्रस्ताव कहता है, 'हम चीन सरकार का आह्वान करते हैं कि वह पांथिक या आस्था की स्वतंत्रता के अनुरोध पर सकारात्मक रुख दिखाते हुए मानवाधिकारों का दमन शीघ्र रोके।' प्रस्ताव के अनुसार, आत्मदाह करने के पीछे तिब्बतियों के अधिकारों पर सालों से चली आ रही पाबंदियां ही हैं, जिनके विरोध में आत्मदाह किया जाता है। वक्त आ गया है जब चीन सरकार अपने तौर-तरीकों पर बुनियादी रूप से फिर से विचार करते हुए तिब्बतियों की शिकायतों को सुने, उन्हें दूर करे। अगर चीन तिब्बतियों के अधिकारों का सम्मान करके वास्तव में 'सौहार्दपूर्ण समाज' का हामी बनता है तो जापान और चीन सही मायनों में रणनीतिक लाभ पाएंगे।

उल्लेखनीय है कि अभी मार्च के महीने में चीन में तिब्बतियों द्वारा आत्मदाह की घटनाओं में अचानक तेजी आई थी। इस घटनाक्रम पर भी प्रस्ताव में पर्याप्त जिक्र होना जापानी सांसदों की इस ओर चिंता को झलकाता है। सांसदों ने दो टूक शब्दों में चीन में तिब्बतियों के मानवाधिकारों के दमन को अविलम्ब रोकने की मांग की है। और एक महत्वपूर्ण मांग यह की गई है कि चीन सरकार आत्मदाह की घटनाओं के संदर्भ में पकड़े गए लामाओं और आम तिब्बतियों की सलामती की साफ जानकारी दे, यह भी बताए कि उन्हें कहां रखा गया है। मीडिया और विदेशी पर्यटकों को तिब्बती इलाकों में जाने की आजादी दी जानी चाहिए।

यह विडम्बना ही कही जाएगी कि जिस भारत को अपना घर मानकर दलाई लामा पिछले 50 से ज्यादा समय से यहां रह रहे हैं वहां से कभी इस तरह का, साफगोई से भरा कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया! थ्

बढ़ती उम्र, ज्यादा अनुभव

क्या नीचे जा रहा है 'युवा भारत' का दर्जा?

आने वाले 38 सालों के दौरान भारत में 'तरुणाई' की जगह 'प्रौढ़ाई' ले लेगी। संयुक्त राष्ट्र के विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) की रपट यही बताती है। डब्ल्यू.एच.ओ. कहता है, 2050 तक भारत में 60 और उससे ऊपर वालों की आबादी 30 करोड़ तक पहुंच जाएगी। यानी 'प्रौढ़' आबादी कुल आबादी में 17 फीसदी होगी जबकि 2001 में यह 7.7 करोड़ यानी 7.4 फीसदी थी। इतना ही नहीं, 2017 तक 65 साल से ऊपर वालों की आबादी पांच साल से कम बच्चों की आबादी को लांघ जाएगी और 2050 तक 14 से नीचे के बच्चों की आबादी से ज्यादा हो जाएगी।

डब्ल्यू. एच.ओ. की इस रपट की जानकारी भारत में संगठन की प्रतिनिधि डा.नाटा मेनाब्दे ने दी। नाटा ने आंकड़ों के आइने में यह दार्शनिकी टिप्पणी भी कर दी कि 'बड़ी उम्र का मतलब ज्यादा तजुर्बा, ज्यादा ज्ञान, ज्यादा जानकारी होता है जिसका भारत को लाभ उठाना चाहिए। हमें बड़ी उम्र वालों को बोझ समझने की पुरानी सोच को बदलना चाहिए।' थ्

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