सपा की सरकार बनते ही गुण्डों के हौसले बुलंद
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महाभारतकालीन शिवमंदिर में शिवलिंग को अपवित्र करने का मामला
द मेरठ से अजय मित्तल
मेरठ से 25 मिलोमीटर दूर स्थित प्राचीन नगर परीक्षितगढ़, जिसे महाभारत के युद्ध के बाद अर्जुन के पौत्र परीक्षित ने बसाया था, के एक प्राचीन मंदिर में स्थापित शिवलिंग को अपवित्र करने की घटना को प्रशासन ने जिस प्रकार निपटाया, उससे हिन्दू समाज के मन में 1989-1991 के दौरान मुलायम सिंह सरकार द्वारा अयोध्या आंदोलन से निपटने के तरीके की याद ताजा हो गयी है। घटनाक्रम के अनुसार धुल्हैंडी (होली पर रंग खेलने का दिन) 8 मार्च की सायंकाल परीक्षितगढ़ के गोपेश्वर मंदिर में कस्बे की एक महिला उर्मिला अपने पति हरिओम के साथ पूजा करने गयी थी। यह मंदिर परीक्षितगढ़ के बाहरी क्षेत्र में है तथा आबादी से कुछ दूर है। ऐतिहासिक महत्व के इस मंदिर के विषय में माना जाता है कि हस्तिनापुर दरबार में शांति प्रस्ताव ले जाते समय भगवान श्रीकृष्ण ने एक रात्रि यहां विश्राम किया था। इसी घटना की स्मृति में यह मंदिर महाराज युधिष्ठिर ने बनवाया था। यहां महिला ने जैसे ही पूजा हेतु दीपक जलाया, मंदिर परिसर में पहले से मौजूद एक सम्प्रदाय विशेष के कुछ लड़कों ने, जो सपा समर्थक बताये जाते हैं, अपशब्द कहते हुए उसे बुझा दिया और साथ ही शिवलिंग पर गंदगी डालकर अपवित्र कर दिया। यही नहीं, महिला के पति तथा इसी बीच वहां पहुंचे जितेन्द्र जाटव के साथ मारपीट की।
इस सनसनीखेज घटना की सूचना कस्बे में आग के समान फैली। लोगों ने दौड़कर मौके से रईस पुत्र रहीसुद्दीन को पकड़ लिया। बाकी सब भाग गये। जितेन्द्र जाटव ने घटना की प्राथमिकी दर्ज कराते हुए छह लोगों को नामजद किया। बाद में पुलिस द्वारा दो और पकड़े गये। शेष तीन समाचार लिखे जाने तक फरार हैं।
पौराणिक मंदिर को अपवित्र करने के विरुद्ध जब 9 मार्च को परीक्षित गढ़ के नागरिक शांतिपूर्ण जुलूस निकाल रहे थे तो इंतजार नामक एक सपा नेता के घर से गोलीबारी की गयी। बताते हैं कि इंतजार ने जुलूस में शामिल लोगों के साथ पहले गाली-गलौच की, इससे उत्तेजित होकर लोगों ने उसके घर पर पथराव किया तो उसके यहां से फायर किये गये। पुलिस ने बाद में इंतजार को हथियार सहित गिरफ्तार कर लिया। पर इसके साथ ही 70 से अधिक हिन्दुओं के खिलाफ लूट और मारपीट की संगीन धाराओं में मुकदमा लिख लिया। इन लोगों में नगर के अनेक प्रमुख जाने-माने हिन्दू नेता भी शामिल थे। हस्तिनापुर विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेे विजेन्द्र लाहोरे के परिजन भी इसमें नामजद किए गए। लाहोरे समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी प्रभुदयाल से चुनाव हार गये थे।
इस सारे घटनाक्रम का सबसे शर्मनाक पहलू था 10 मार्च को नगर के सुभाष चौक पर खड़े होकर आपस में वार्ता कर रहे हिन्दुओं पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज। पीड़ितों का आराप है कि खुद को सपाई दिखाने की ललक में पुलिस अधीक्षक (देहात, जिला मेरठ), सुधीर सिंह और क्षेत्राधिकारी हफीजुर्रहमान ने बिना बात लोगों पर लाठी बरसाईं, आसपास के घरों में घुस-घुस कर लोगों को पीटा, बच्चों-बूढ़ों- महिलाओं को भी नहीं बख्शा। रामवीरी नामक 77 वर्षीय वृद्धा, जो अपने घर में अकेली हाथ जोड़े पुलिस के आगे खड़ी थी, को भी पीटा गया। सेवानिवृत्त शिक्षक राजेन्द्र गर्ग को गंभीर चोटें आयीं। पिटाई से 75 साल के सुभाष चंद्र शर्मा के हाथों पर घाव हैं। घायल बीना गुप्ता पूछती हैं कि किस कारण पुरुष पुलिसकर्मियों से महिलाओं को पिटवाया गया?
इस पुलिसिया जुल्म के विरुद्ध परीक्षितगढ़ दो दिन बंद रहा। फिर जिले के संयुक्त व्यापार संघ की मध्यस्थता में यह तय होने पर कि जिन हिन्दुओं की लूट और मारपीट की धाराओं में झूठी नामजदगी की गयी है, के विरुद्ध जांच के बाद पुलिस कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगी, बाजार खुला। पर अभी भी लोगों को यह डर है कि सपा के कद्दावर नेता तथा समीपवर्ती किठौर क्षेत्र से निर्वाचित विधायक शाहिद मंजूर, जिनके पुराने चुनाव क्षेत्र में परीक्षितगढ़ शामिल था और जो भाजपा नेता विजेन्द्र लाहोरे से रंजिश रखते हैं, आगे चलकर स्थानीय हिन्दुओं को प्रताड़ित न करायें। मंजूर पूर्व में ऐसा कर चुके हैं, जब कुछ साल पहले उन्होंने लाहोरे तथा उनके साथियों पर पुलिसिया जुल्म कराये थे। परिसीमन में परीक्षितगढ़ उनके चुनाव क्षेत्र से बाहार अवश्य हो गया है, पर बाहुबली मंजूर के सपा सरकार में 15 मार्च को राज्यमंत्री के रूप में शपथ लिए जाने के बाद से कस्बे के लोगों की चिन्ता बढ़ गई है।
जहां हिन्दू पुरानी पृष्ठभूमि के चलते आशंकित हैं, वहीं मुस्लिम समाज का गुंडा तत्व सपा सरकार की आहट पाते ही स्वयं को ताकतवर मानने लगा है। परीक्षितगढ़ की घटना के अलावा मेरठ जिले के रुकनपुर गांव में होली खेलते समय हिन्दू महिलाओं से अभद्रता करने के प्रयास का विरोध किये जाने पर कुछ मुस्लिम असमाजिक तत्वों ने हिन्दुओं पर जानलेवा हमले किये। लोगों को घरों से घसीट कर मारा गया। पथराव व तोड़फोड़ की। उस हमले में घायल पप्पू की हालत गंभीर है। हमलावर युवक सपा के समर्थक बताये जाते हैं। इस मामले में भी पुलिस की कार्रवाई हिन्दू समाज में विश्वास बहाल करने में असफल रही है।द
पुलिस पर कार्रवाई
10 मार्च को परीक्षितगढ़ के सुभाष चौक पर हिन्दुओं पर अकारण बर्बर तरीके से लाठीचार्ज करने वाले पुलिस क्षेत्राधिकारी हफीजुर्रहमान और नगर के थानाध्यक्ष भानुप्रतापसिंह का स्थानांतरण कर दिया गया है। उक्त लाठीचार्ज के कारण प्रशासन को काफी आलोचना झेलनी पड़ रही थी। लाठीचार्ज में बच्चों-बूढ़ों और महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया था। घरों में घुसकर पुलिस ने निरपराध लोगों को पीटा था।
भाजपा सांसद-विधायकों ने दी आंदोलन की चेतावनी
मेरठ से भाजपा के सांसद और नवनिर्वाचित विधायकों ने चेतावनी दी है कि परीक्षितगढ़ और रुकनपुर की घटना में पुलिस ने यदि समाजवादी पार्टी के दबाव में पक्षपातपूर्ण कार्रवाई की तो भाजपा सड़कों पर उतर आयेगी। यह चेतावनी गत 10 मार्च को उन्होंने जिलाधिकारी अनिल कुमार और पुलिस उपमहानिरीक्षक हरिराम शर्मा से वार्ता के दौरान दी। मेरठ से सांसद राजेन्द्र अग्रवाल, विधायक डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी, रवीन्द्र भड़ाना, संगीत सिंह सोम, जिलाध्यक्ष विमल शर्मा और प्रदेश मंत्री अश्वनी त्यागी सहित करीब दो दर्जन भाजपा नेताओं ने इन प्रशासनिक अधिकारियों से भेंट की। परीक्षितगढ़ की घटना को निंदनीय बताते हुए इन्होंने कहा, पुलिस सपा विधायक के दवाब में निर्दोष लोगों को फंसाना चाहती है। इसी इरादे से एक और फर्जी मुकदमा कायम कर लिया गया है, जबकि इन लोगों का घटना से कोई लेना-देना नहीं है। जब जिलाधिकारी, पुलिस उपमहानिरीक्षक ने खुद मामला शांत करा दिया तो पुलिस अधीक्षक (देहात) और अन्य अधिकारी क्यों मामले को नया रूप देने पर तुले हुए हैं। जिलाधिकारी ने कहा है कि दोनों मामलों में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। पुलिस-प्रशासन किसी के दवाब में नहीं है। किसी भी दशा में निर्दोष लोगों पर कार्रवाई नहीं होगी और दोषी बख्शे नहीं जाएंगे। पर समाचार लिखे जाने तक न तो हिन्दुओं पर से झूठे मुकदमे वापस लिए गए हैं और न ही मंदिर अपवित्र किए जाने में नामजद व फरार तीन मुस्लिम गुण्डों को गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है।
आगाज हिंसा से तो अंजाम?
थ् सत्ता में आते ही बौरा गए सपाई थ् पूरे उत्तर प्रदेश में शुरू हो गया खूनी खेल
द लखनऊ से शशि सिंह
कोई कह सकता है कि बसपा की मुख्यमंत्री मायावती के भ्रष्टाचार और मनमानीपूर्ण शासनकाल के समाप्त होने और मुलायम की सपा के सत्तारूढ़ होने पर उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था सुधर जाएगी और विकास का पहिया दौड़ने लगेगा। लेकिन सपा की राजनीतिक संस्कृति और नीचे से ऊ पर तक के नेताओं और कार्यकर्ताओं में जिस तरह बदले की भावना काम कर रही है, उससे नहीं लगता कि सत्ता के बदलाव के बाद भी जनता को किसी तरह की राहत मिलेगी। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पारी शुरू करने के बाद मुलायम पुत्र अखिलेश यादव एक नई राजनीतिक संस्कृति का खाका खींचेंगे। इस आशावादी विचार का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन सपा से सीधे जुड़े या उसके नाम पर हिंसा की जो घटनाएं करीब-करीब रोज हो रही हैं, इसका किसी के पास जवाब नहीं है।
छह मार्च की शाम करीब-करीब सारे परिणाम आ चुके थे। यह तय हो गया था कि सपा की सत्ता आ रही है। उसी रात से हिंसा का जो दौर शुरू हुआ, वह करीब-करीब हर दिन जारी है। संभव है कि सपा के नाम पर अराजक तत्व अपनी करतूतों को अंजाम दे रहे हों, लेकिन उन्हें रोकने की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की ही तो है। वह यह कहकर नहीं बच सकती कि चीजें जल्द ही ठीक हो जाएंगी। क्योंकि जब शुरुआत में ही कानून-व्यवस्था की धमक कायम नहीं हो पाएगी तो भविष्य में हालात बिगड़ने से कोई रोक नहीं सकता है।
कुछ घटनाओं पर नजर डालें। इन घटनाओं से स्थानीय समाचार पत्रों ने सपा को चेतावनी और नसीहत देते हुए प्रमुखता से छापा भी। आरोप है कि भदोही में जर्मन यादव, दिनेश यादव, रोहित व पप्पू यादव ने मकदूमपुर में गुगई की झोपड़ी में आग लगा दी। बताते हैं कि जिस झोपड़ी में गुगई रहता है वहां राहुल गांधी चुनाव प्रचार के लिए गए थे। उधर पश्चिम के जिले मेरठ में अराजक तत्वों ने एक धार्मिक स्थल पर हमला बोल दिया और कई दिनों तक तनाव कायम रहा। अवध क्षेत्र के सीतापुर के रेउसा में होली के लिए कंडा लेना ही विवाद का कारण बना। मनसुख और उसके रिश्तेदार की झोपड़ी को फूंक दिया गया। अवध के ही अंबेडकरनगर में चुनाव बाद पूर्व मंत्री रामअचल राजभर के बेटे अजय राजभर और उनके साथियों ने जीत का जश्न मना रहे सपा कार्यकर्ता अनिल वर्मा को गोली मार दी। उसे लखनऊ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उधर बदले की भावना में सपाइयों ने पूर्व मंत्री राजभर की चावल मिल में आग लगा दी। पुत्र सहित पूर्व मंत्री राम अचल राजभर को नामजद किया गया। आगरा में लाठी डंडों से लैस एक दर्जन लोगों के समूह ने प्रधान गुड्डी के घर में घुसकर उसके पति की पीट-पीटकर हत्या कर दी। इस बीच पंचशील नगर में बदमाशों ने दिन में ही एक व्यक्ति की हत्या कर दी। बरेली में एक ही दिन फरीदपुर में राजेश सिंह और आरेंद्र प्रताप सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जालौन में पुरानी रंजिश में हर नारायण लोधी की हत्या कर दी गई। इलाहाबाद में मोहित और उसके साथियों ने मिलकर राहुल वर्मा और चंदन को मार डाला। 13 मार्च को आगरा से लखनऊ जा रही सपा की कार्यकर्ता शम्मी कोहली की हत्या सिकंदरा के पास हो गई।
15 मार्च को लखनऊ में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। शपथ-ग्रहण समारोह अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि सपाई हुड़दंग में उतर गए। सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाई गई। कुछ लोगों को गंभीर चोटें आईं।
ये घटनाएं बताती हैं कि सपा सरकार में किस तरह हिंसा की घटनाएं हो रही हैं। जरा 2007 को याद किया जाए। उस समय मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। उनके राज में इसी तरह की घटनाएं करीब-करीब हर दिन हो रही थीं। तभी तो मायावती जैसी जनता से कटी बसपा नेता ने जब नारा लगाया कि “चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर”, तो लोगों ने बसपा को भी हाथोंहाथ लिया और पूरे बहुमत के साथ सत्ता दे दी। लेकिन मायावती ने जनता को बुरी तरह निराश किया। नतीजन फिर मुलायम सिंह की सत्ता आ गई और शुरू हो गया हिंसा का दौर। नये मुख्यमंत्री को इसे रोकना होगा, अन्यथा उनकी कुछ कर गुजरने के जज्बे पर जल्द ही सवाल खड़ा होना शुरू हो जाएगा। द
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