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पाठकीय

by
Feb 26, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Feb 2012 19:25:16

पाठकीय

अंक-सन्दर्भ

5 फरवरी,2012

देशी मुद्रा विदेशी छपाई

आवरण कथा के अन्तर्गत श्री मुजफ्फर हुसैन का तथ्यपरक आलेख “12 लाख करोड़ रुपए के जाली नोटों के कारोबार से चौपट होती भारतीय अर्थव्यवस्था” देश की इस मुस्लिम- परस्त, कमजोर, परन्तु सत्तालोलुप सरकार के लिए एक चेतावनी ही नहीं, बल्कि चुनौती भी है। यह सर्वविदित है कि गत कुछ वर्षों से जाली मुद्रा और हवाला की राशि बड़े पैमाने पर सीमा से विभिन्न स्रोतों के द्वारा भारत के विभिन्न भागों में पहुंचाई जा रही है। जैसा कि जनुमान है, इस कुकर्म में ढाका और काठमाण्डू स्थित पाकिस्तानी उच्चायोगों के अनेक अधिकारी तो शामिल हैं ही, साथ ही पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आई.एस.आई. और जिहादी गुट अलकायदा भी शमिल है।

-आर.सी.गुप्ता

द्वितीय ए-201, नेहरू नगर, गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)

द पता चला है कि सस्ती छपाई के लिए भारतीय नोट विदेश में छपवाए जा रहे हैं। वहीं पाकिस्तान भी अपनी मुद्रा छपवाता है। इस कारण भारतीय मुद्रा जिस कागज पर छपती है वह आसानी से पाकिस्तान को मिल जाता है। वहीं आई.एस.आई. की देखरेख में जाली भारतीय नोट छापे जाते हैं और भारत भेजे जाते हैं। यह समझ नहीं आता कि इस देश के शासक इतने गंभीर मामले पर कुछ करते क्यों नहीं हैं? जब तक भारतीय नोट विदेश में छपेंगे तब तक पाकिस्तान भारतीय अर्थव्यवस्था को खराब करता रहेगा।

-दयाशंकर मिश्र

सेवाधाम, मण्डोली, दिल्ली-110091

जनप्रतिनिधि और मतदाता

सम्पादकीय “मतदाता ही सिखा सकते हैं सबक” में ठीक लिखा गया है कि लोकतंत्र को सफल एवं सार्थक बनाने में मतदाता की अहम भूमिका है, यह देशवासियों को समझना होगा। मतदाता को अनिवार्य रूप से अपने मताधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए। मतदान अधिक होने से राजनीतिक अस्थिरता दूर होती है। मतदाताओं को गलत जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने का भी अधिकार मिलना चाहिए।

-देशबन्धु

आर.जेड- 127, सन्तोष पार्क, उत्तम नगर

नई दिल्ली-110059

द लोकतंत्र ही सबसे अच्छी शासन-प्रणाली है। इसमें सबको आगे बढ़ने का अवसर मिलना चाहिए। किन्तु जो लोग चुनाव जीतकर सरकार चलाने लगते हैं, वे अपने मतदाताओं के प्रति ईमानदार नहीं रह जाते हैं। आज की तारीख में यही लोकतंत्र का सबसे बड़ा अवगुण है। इस अवगुण को सजग मतदाता ही दूर कर सकते हैं।

-गणेश कुमार

राजेन्द्र नगर, पटना (बिहार)

द विभिन्न राजनीतिक दल मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दे रहे हैं। किन्तु अब युवा मतदाता जाग चुके हैं। वे देखने लगे हैं कि कौन-सा दल विकास कर रहा है। लोग विकास के नाम पर वोट देने लगे हैं। यह बात राजनीतिक दलों को समझनी चाहिए।

-अनूप कुमार शुक्ला

संस्कृति भवन, राजेन्द्र नगर

लखनऊ -226004 (उ.प्र.)

कांग्रेसी इतिहास

श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने लेख “वोट बैंक की राजनीति से संविधान की हत्या” में तथ्यों के आधार पर इस सच्चाई को स्थापित किया है कि कांग्रेस की वोट बैंक राजनीति से संविधान की हत्या हो रही है। कांग्रेस का यह इतिहास रहा है कि उसने प्रगतिशील मुसलमानों की अपेक्षा लम्बी दाढ़ी वाले मौलानाओं को ही तरजीह दी है। मुस्लिम समाज सर्वपंथ समादर भाव क्यों अपनाएगा? उनका मजहब इसकी अनुमति नहीं देता। हिन्दुओं को चाहिए कि वे इस्लाम के मूल तत्वों की जानकारी विधिवत् रूप से लें।

-क्षत्रिय देवलाल

उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया

कोडरमा-825409 (झारखण्ड)

तथ्यों के साथ अन्याय

इतिहास दृष्टि में डा.सतीश चन्द्र मित्तल के लेख “वास्तविक इतिहस को छिपाइए मत” का भाव है कि इतिहास को अपनी मर्जी के मुताबिक लिखने की मानसिकता ने तथ्यों के साथ अन्याय किया है। पं. नेहरू “भारत एक खोज” में मुस्लिम शासकों के अत्याचार को “वीरता” और मन्दिरों को तोड़े जाने को “तब्दीली” कह चुके हैं। दरअसल, इतिहासकारों ही नहीं, बल्कि आज के  लेखक, कलाकार भी हिन्दुओं पर चोट करते हैं। फिल्मों में ब्राह्मण को पाखण्डी, वैश्य को सूदखोर, राजपूत को अत्याचारी, मुसलमान को उदार और ईसाई को “रहमदिल” “भला” बताया जाता है। किसी मौलवी या पादरी को पाखण्डी दिखाने का साहस कोई कलाकार क्यों नहीं करता है?

-मनोहर “मंजुल”

पिपल्या-बुजुर्ग, प. निमाड़-451225 (म.प्र.)

राज्यपालों का दुरुपयोग

चर्चा सत्र में  डा. हरबंश दीक्षित ने राज्यपालों को मनमानी न कर संविधान की भावना के अनुरूप चलने की सलाह दी है। दुर्भाग्य से राज्यपाल केन्द्र सरकार के इशारे पर चलते हैं और उसका परिणाम विपक्षी नेता भुगतते हैं। इससे लोकतंत्र भी कमजोर होता है। किसी राजनीतिक व्यक्ति को राज्यपाल नहीं बनाना चाहिए।

-बी.एल. सचदेवा

263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली-110023

द कांग्रेस राज्यपालों के जरिए गैर-कांग्रेसी सरकारों को परेशान करती रहती है। चाहे बिहार, गुजरात या कर्नाटक हों, हर जगह पहले कांग्रेसी रहे लोग ही राज्यपाल हैं और वे वहां की सरकारों के कार्यों में जबर्दस्ती दखल देते हैं। पिछले दिनों कर्नाटक में राज्यपाल के कारण ही “भूचाल” आया था। बिहार के राज्यपाल ने सरकारी सलाह के बिना विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति कर विवाद खड़ा किया था। गुजरात में जो हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है।

-उमेश प्रसाद सिंह

के.-100, लक्ष्मी नगर, दिल्ली-110092

चीन की गलत मंशा

चीन के संदर्भ में श्री नरेन्द्र सहगल का लेख “पराजय का इतिहास” पढ़ा। 1962 में कम्युनिस्ट चीन द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू को पंचशील समझौते के चक्रव्यूह में फंसाकर किए गए आक्रमण से देश को अपमानित होने के साथ-साथ अपनी जमीन से भी हाथ धोना पड़ा था। इतिहास से सबक न लेकर वर्तमान केन्द्र सरकार केवल बातचीत द्वारा सभी विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान करना चाहती है। चीन तो समय-समय पर सीमाओं का उल्लंघन करके भारतीय स्वाभिमान एवं संप्रभुता को चुनौती देता रहता है। अनिर्णय की स्थिति से ग्रस्त भारत सरकार चीन की विस्तारवादी नीति पर अनुकूल फैसला नहीं ले पाती है। तिब्बत पर चीनी आधिपत्य को मान्यता देकर एक भयंकर भूल हम पहले ही कर चुके हैं। परन्तु यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन की विस्तारवादी नीति तिब्बत तक ही सीमित रहने वाली नहीं है। अरुणाचल प्रदेश को अपना एक प्रांत बताकर चीन ने अपनी यह मंशा स्पष्ट कर दी है।

-विक्रम सिंह

15/92, मोहल्ला जोगियों वाला, घरौंडा

करनाल-132114 (हरियाणा)

वीरता और बलिदान की भूमि

द.वा. आंबुलकर की रपट “महाराष्ट्र में गोवंश की रक्षा से बचती है कांग्रेस सरकार” पढ़कर दु:ख हुआ। महाराष्ट्र महाराज छत्रपति शिवाजी की वीरता और मराठों के बलिदान की भूमि है। इसके कण-कण में हिन्दू जाति का रक्त मिला हुआ है। गाय की रक्षा शिवाजी महाराज की प्रथम प्राथमिकता थी। आज “पृथ्वीराज” नाम लज्जित हो रहा है, वर्तमान मुख्यमंत्री के कारण। इस कठपुतली की डोरी सोनिया गांधी के हाथ में है।

प्रो. परेश

1251/8सी, चंडीगढ़

खेती पर ध्यान दिया जाए

भारत कृषि प्रधान देश है। यहां की अर्थव्यवस्था के केन्द्र में खेती है। यदि खेती पर ध्यान दिया जाए तो अन्न का उत्पादन बढ़ेगा, यह समय की पुकार भी है। किन्तु हमारे नीति-निधार्रक खेती के लिए कोई कारगर नीति नहीं बना रहे हैं। अधिक अन्न के उत्पादन से ही सभी को खाना मिल पाएगा। यह अर्थशास्त्र का नियम है कि जब सकल घरेलू उत्पाद बढ़ता है तब पूर्ति  बढ़ती है और जब पूर्ति बढ़ती है तो महंगाई दर नीचे गिरती है। खेती पर ध्यान दिया जाए तो हमारी पुरानी अथव्र्यवस्था (जो गो पर आधारित है) भी मजबूत होगी और किसान आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होंगे।

-लक्ष्मीचन्द

गांव-बांध, डाक-भावगड़ी

जिला-सोलन (हि.प्र.)

सांस्कृतिक जिहाद या घुसपैठ

अक्सर यह कहा जाता है कि भारत और पाकिस्तान की जनता और कलाकार तो दोनों देशों के बीच अमन और शान्ति चाहते हैं, परन्तु दोनों देशों की सरकारें और राजनेता इसमें रुकावट डालते हैं। इसी बेसुरे राग को लेकर पाकिस्तानी कलाकार 1947 के बाद से लगातार भारत आ रहे हैं। ये सभी यहां पर खूब पैसा, शोहरत, सम्मान कमाते हैं। कुछ तो इतना कुछ पा जाते हैं कि लम्बे समय तक भारत में ही पड़े रहते हैं। गुलाम अली, वीना मलिक, फतेह अली खान, लैला अली, मोहसिन खान, अदनान सामी जैसे अनेक उदाहरण हैं। इसके विपरीत भारतीय कलाकारों को पाकिस्तान जाने के लिए वीजा भी नहीं दिया जाता है। लता मंगेशकर जैसी विश्व प्रसिद्ध गायिका को भी पाकिस्तान वीजा देने से इनकार कर चुका है। हां अभिनेता दिलीप कुमार (मोहम्मद युसूफ असली नाम) को पाकिस्तानी सरकार ने “निशाने पाकिस्तान” नामक अपना सर्वोच्च पुरस्कार जरूर दिया था, वह भी शायद उनके मजहब के कारण। भारतीय टीवी धारावाहिकों तक पर पाकिस्तानी सरकार अपने यहां पाबन्दी लगा चुकी है। आखिर कला और संस्कृति के नाम पर पाकिस्तानी कलाकारों की भारत में यह एकतरफा घुसपैठ क्यों? भारत में घुसपैठिये ये पाकिस्तानी कलाकार कभी भी अपनी सरकार से भारतीय कलाकारों को पाकिस्तान जाने देने की अपील नहीं करते, कभी भी अपनी सरकार की भारत को बरबाद करने के सपने देखने वाली आतंकवादी नीति की आलोचना नहीं करते, बल्कि पाकिस्तान को लगातार भारत में “अमन चाहने वाला मुल्क” बताकर एक मुहिम चलाते रहते हैं। यह एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा नजर आता है, ताकि भारतीयों के मन से पाकिस्तानी अपराधों के प्रति जलने वाली स्वराष्ट्रभक्ति की ज्वाला को शान्त कर सकें। ऐसे ही पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर इमरान खान तो कई बार क्रिकेट के मैदान से ही भारत को कश्मीर पर युद्ध तक की धमकी दे चुके हैं। आखिर यह कैसी एकतरफा कला और संस्कृति की घुसपैठ है? कहीं यह पाकिस्तान की तरफ से “सांस्कृतिक जिहाद” तो नहीं है? अन्य विदेशियों की तरह पाकिस्तानी कलाकारों को भी निश्चित कार्यक्रमों व स्थानों के लिए निश्चित समय का वीजा मिलना चाहिए। आखिर ये लोग भी दुश्मन देश के ही नागरिक हैं, जहां की सम्पूर्ण जनता ओसामा बिन लादेन, मौलाना मसूद अजहर जैसे लोगों को अपना श्रेष्ठ इस्लामिक आदर्श मानती है।

-डा. सुशील गुप्ता

शालीमार गार्डन कालोनी, बेहट बस स्टैण्ड, सहारनपुर (उ.प्र.)

बहुत हो गया तमाशा

मैदानों में पिट रहे, धोनी और सहवाग

अखबारों में देखिये, उगल रहे पर आग।

उगल रहे पर आग, बहुत हो गया तमाशा

नहीं देश को अब तुमसे कोई भी आशा।

कह “प्रशांत” बिस्तर लपेट कर वापस आओ

साबुन-मंजन बेचो, घर का खर्च चलाओ।।

-प्रशांत

पञ्चांग

वि.सं.2068   तिथि   वार    ई.  सन्  2012

फाल्गुन शुक्ल 11        रवि   4   मार्च, 2012

“”     “”  12        सोम   5          “”    “”

“”     “”  13        मंगल  6          “”     “”

“”     “”  14        बुध   7          “”     “”

फाल्गुन पूर्णिमा            गुरु    8          “”     “”

चैत्र कृष्ण    1          शुक्र   9          “”     “”

“”     “”  2          शनि   10        “”     “”

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