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Jan 28, 2012, 12:00 am IST
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बालमन

दिंनाक: 28 Jan 2012 15:40:38

इनकी वीरता को नमन

गत 23 जनवरी को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के 24 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया। इनमें 16 लड़के और 8 लड़कियां थीं। 5 बच्चों को मरणोपरान्त यह सम्मान मिला। उत्तराखण्ड के कपिल नेगी (15), अरुणाचल प्रदेश के आदित्य गोपाल (14), पश्चिम बंगाल की सौधिता बर्मन (11), उत्तर प्रदेश की लवली वर्मा (12) और मिजोरम के लालदुआमा (16) ऐसे वीर बच्चे थे, जिन्होंने अपनी जान देकर दूसरों की जान बचाई थी। इस अद्भुत वीरता के लिए इन्हें मरणोपरान्त सम्मानित किया गया। गुजरात की 12 वर्षीया मित्तल पाटडिया के साहस के सामने तो उसके घर में घुसे बदमाश भी बदहवास हो गए और फिर वे पकड़े गए। हालांकि साहस दिखाने के दौरान बदमाशों ने पाटडिया की गर्दन पर चाकू मार दिया था। रक्तस्राव रोकने के लिए डाक्टरों को 351 टांके लगाने पड़े थे। उसकी इस अद्वितीय वीरता को सुनकर बड़े-बड़े हिम्मतबाज भी दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।

11 वर्षीय ओम प्रकाश यादव भी बड़ा बहादुर है। उ.प्र. के रहने वाले ओमप्रकाश ने अद्भुत साहस दिखाते हुए आग लगी स्कूल वैन से अनेक बच्चों को निकाला था और उनकी जान बचाई थी। दूसरे बच्चों को बचाने के चक्कर में ओमप्रकाश भी बुरी तरह जल गया था। उसके मुंह पर जलने का दाग साफ दिखता है। दिल्ली निवासी 12 वर्षीय उमाशंकर की भी वीरता गजब की है। इसने उस बस के यात्रियों की जान बचाई थी, जो बीच सड़क पर पलट गई थी और उसके अन्दर कई लोग फंस गए थे। उमाशंकर स्कूल जा रहा था। वह अपनी बस से कूद पड़ा और बस में फंसे लोगों को निकालने में जुट गया। इस कारण उन लोगों की जान बच पाई थी। इनके अतिरिक्त तमिलनाडु के जी. परमेश्वरन (12), राजस्थान के डूंगर सिंह (7), केरल के अंशिफ सी.के. (13), कर्नाटक की सिंधुश्री (13), आं. प्र. के सूत्रपु शिवा प्रसाद (14), केरल के मो. निषाद (13), उड़ीसा की प्रसन्नता शाण्डिल्य (11),  मणिपुर के के. राकेश सिंह (13), केरल के शहशाद (16), गुजरात की दिव्याबेन चौहान (13), मणिपुर के जॉन्सन तौरांगबम (14) और कर्नाटक के संदेश पी. हेगड़े (16) को भी वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर वीरता पुरस्कार उन बच्चों को दिया जाता है, जिन्होंने अपनी जान की परवाह न कर दूसरों की जान बचाई है। 1957 में पहली बार दो बच्चों को वीरता पुरस्कार दिया गया था। इसके बाद से ही यह क्रम जारी है। द प्रतिनिधि

वीर बालक

अभिमन्यु

अभिमन्यु महाभारत के महान धनुर्धारी अर्जुन का पुत्र था। श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा उसकी मां थीं। कहते हैं, जब अभिमन्यु गर्भ में था तब एक रात सुभद्रा को नींद नहीं आ रही थी। उस समय अर्जुन ने उसे चक्रव्यूह भेदने की कला बताई थी। सुभद्रा बीच में ही सो गई थी। इसलिए अर्जुन ने बीच में कहना बंद कर दिया था। इस प्रकार बालक अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने की कला तो सीख ली थी परंतु उससे बाहर निकलना न सीख पाया। जब अभिमन्यु बड़ा हुआ तो वह भी अपने पिता के समान बेजोड़ धनुर्धारी बना। महाभारत के युद्ध में एक दिन द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की। पांडवों की सेना में अर्जुन ही उस चक्रव्यूह को भेदने की कला जानते थे। लेकिन उस दिन वह संशप्तकों से युद्ध करने गए थे।

इसलिए युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव इस चिंता में डूब गए कि चक्रव्यूह को कौन तोड़े?

अभिमन्यु को जब पता चला कि पिता अर्जुन की अनुपस्थिति में द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की है तो वह सीधा वहां आया और बोला, “ताऊजी, आप चिंता न करें। मुझे चक्रव्यूह भेदने की कला आती है। आप मुझे आज के युद्ध में जाने की अनुमति दें।”

पहले तो युधिष्ठिर अभिमन्यु को युद्ध में भेजने के लिए तैयार नहीं हुए पर उसका हठ देखकर उन्हें अनुमति देनी पड़ी। उन्होंने सोचा था कि व्यूह टूटने पर वे भी अभिमन्यु के साथ अंदर चले जाएंगे और उसे सुरक्षित लौटा लाएंगे। पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका।

व्यूह के द्वार पर जयद्रथ था। जयद्रथ कौरवों की बहन दु:शला का पति था। अभिमन्यु उसे हटाकर व्यूह के अंदर घुस गया। जयद्रथ ने अन्य किसी को अंदर नहीं घुसने दिया। अभिमन्यु की वीरता देखने योग्य थी। अनेक वीरों को गाजर-मूली की तरह काटता हुआ वह बिना किसी भय के आगे बढ़ता रहा। उसके आगे किसी की एक न चली। अंत में सात महारथियों ने उसे छल से अकेले घेर लिया। कर्ण ने उसकी पीठ में बाण मारे। धीरे-धीरे उसका रथ, कवच, धनुष और तलवार तोड़ दी। तब वह रथ के पहिए से ही शत्रुओं का संहार करने लगा। उस समय वह चक्रधारी श्रीकृष्ण जैसा लग रहा था।

अभिमन्यु का शरीर तीरों से बिंध गया था। उसके घावों से खून बह रहा था। उसी दौरान दु:शासन कुमार ने उसके सिर पर गदा मार दी। वह अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा। अभिमन्यु के मरते ही कौरवों की सेना में खुशी की लहर दौड़ गई और पांडवों की सेना में शोक छा गया।

जब अर्जुन को यह शोक समाचार मिला तब वह बहुत दुखी हुए। उन्होंने उसी समय प्रतिज्ञा की कि अगले दिन सूर्य छिपने से पहले वह जयद्रथ का सिर उसके धड़ से अलग कर देंगे, नहीं तो स्वयं चिता में जल मरेंगे। अगले दिन घमासान युद्ध हुआ। सूर्य छिपने का समय हो गया। पर अर्जुन जयद्रथ को न मार सके क्योंकि वह अर्जुन के सामने ही न पड़ा। अपनी दूसरी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए अर्जुन ने चिता तैयार की। वह उसमें कूदने ही वाले थे कि माया के बादल छंट गए। सूर्य चमकने लगा।

श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन ने वहां तमाशा देखने आए जयद्रथ का सिर काट डाला। इस प्रकार अभिमन्यु की मौत का बदला पूरा हुआ। उसका छोटी आयु में दिखाया गया पराक्रम और बलिदान महाभारत में पांडवों के जीतने का महत्वपूर्ण कारण बना। द

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