चुनौतियां, राष्ट्र जागरण और रा.स्व.संघ
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चुनौतियां, राष्ट्र जागरण
और रा.स्व.संघ
डा. बजरंग लाल गुप्तक्षेत्र संघचालक, उत्तर क्षेत्र, रा.स्व.संघ
देश इस समय अनेक संकटों, समस्याओं एवं चुनौतियों से जूझ रहा है। चुनौतियों पर निगाह डालें तो सबसे पहला प्रश्न है देश की सुरक्षा के संदर्भ में, बाहरी सुरक्षा का विचार करें चाहे आंतरिक सुरक्षा का, दोनों दृष्टियों से हम बहुत संकट में हैं। चीन आए दिन भारत की सीमाओं का अतिक्रमण करता रहता है। पाकिस्तान घुसपैठिए भेजकर, जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों को प्रोत्साहन देकर भारत की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करता रहता है। बंगलादेश की ओर से भी हम अपनी सीमाओं को सुरक्षित महसूस नहीं कर सकते। ऐसा लगता है कि भारत चारों ओर से अपनी सीमाओं की सुरक्षा के संकट से जूझ रहा है। आतंरिक सुरक्षा भी बहुत ज्यादा चिंता का विषय हो गयी है। देश्ा के अनेक हिस्सों में नक्सलवाद-माओवाद की समस्याएं सिर उठाए खड़ी हैं। उग्रवादी संगठन अनेक प्रकार से देश्ा को तोड़ने के लिए समाज में अव्यवस्था निर्माण करने का काम करते रहते हैं।
अनिश्चितता और भय
उत्तर पूर्व हो या जम्मू-कश्मीर, अलगाववादियों की करतूतों के चलते कोई निÏश्चतता से नहीं कह सकता कि वह देश्ा के किसी भी हिस्से में निर्भय होकर जी सकता है। बाजार में, खेत- खलिहान में, घर में सब जगह आदमी अपने को असुरक्षित महसूस करता है। लचर कानून-व्यवस्था भी देश्ा के सामने एक संकट है। देश्ा का आम आदमी भय और आतंक के वातावरण में जी रहा है। इस अनिश्चितता और भय के वातावरण में घुसपैठ भी एक बड़ी समस्या है। 5 करोड़ से अधिक बंगलादेशी घुसपैठिए आज भारत की धरती पर हैं। दुनिया के बहुत सारे देश्ाों की आबादी भी उतनी नहीं है, जितने घुसपैठिए भारत में हैं। इस सबके बीच राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न बहुत गंभीर बनता जा रहा है। सर्वाधिक दुख की बात यह है कि ऐसे आतंकवादियों या उग्रवादियों अथवा घुसपैठियों के खिलाफ जब कभी भी कोई राज्य सरकार कठोर कार्रवाई करने के लिए आगे बढ़ती है तो वोट के लालच में अपने देश्ा के अनेक कथित सेकुलर राजनीतिक नेता या तथाकथित मानवाधिकारवादी कार्यकर्ता सरकार, सेना और पुलिस का मनोबल तोड़ने का काम करते हैं। इसलिए इन राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का मुकाबला कितनी तत्परता से किया जा सकता है, यह भी एक प्रश्नचिह्न है।
सामाजिक विद्रूपताएं
जब हम देश्ा की सामाजिक क्षेत्र की चुनौतियों का विचार करते हैं तो आज भी देश्ा में जातीय विद्वेष है। जातियों में आपसी झगड़े होते रहते हैं। कहीं भाषा को लेकर झगड़ा है, तो कहीं क्षेत्र को लेकर। नदी-पानी के विवाद अभी भी नहीं सुलझ पा रहे हैं। साथ ही समाज का सामाजिक ताना-बाना भी विश्रृंखल होता चला जा रहा है। महिलाएं सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। आए दिन दहेज हत्या और दहेज के कारण उत्पीड़न की घटनाएं होती रहती हैं। एक बहुत वीभत्स चलन सामने आ रहा है, कन्या भ्रूणहत्या का। देश्ा में अनेक अध्ययन हुए हैं उनमें जो तथ्य सामने आए हैं वे और भी चिंता उत्पन्न करने वाले हैं कि कन्या भ्रूणहत्या में समाज का तथाकथित सम्पन्न और पढ़ा-लिखा वर्ग भी श्ाामिल है। फिर छुआछूत की समस्या है। जातीय आधार पर राजनीति करने की समस्या खड़ी हो गई है। इसलिए सामाजिक दृष्टि से विचार करते हैं तो समाज की व्यवस्था बहुत सुखद प्रतीत नहीं होती। समाज को तोड़ने के भिन्न-भिन्न षड्यंत्र चल रहे हैं। जाति, मत, पंथ, भाषा, अगड़े-पिछड़े, श्ािक्षित-अश्ािक्षित, श्ाहरी-ग्रामीण के नाम पर कितने ही झगड़े हैं। सामाजिक ताने-बाने को सब प्रकार से छिन्न-भिन्न करने का प्रयत्न चल रहा है।
आर्थिक प्रगति का सच
तीसरा, जब देश्ा के बारे में विचार करते हैं तो देश्ा की आर्थिक स्थिति का प्रश्न आता है। आजादी के इतने सालों के बाद भी सब प्रकार की प्रतिभाएं और सब प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों के होने के बावजूद देश्ा को जिस गति से प्रगति करनी चाहिए थी और आर्थिक समस्याओं को सुलझा लेना चाहिए था, वह नहीं हो पा रहा है। सरकार भले ही भारत का उल्लेख विश्व में उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में करती हो, लेकिन वास्तविकता यह है कि आज भी भारत की गिनती दुनिया के अत्यंत गरीब और विपन्न देश्ाों की श्रेणी में होती है। आज भी देश्ा में 40 से लेकर 50 प्रतिशत तक गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोग हैं। और आश्चर्य है कि देश्ा के नीति-निर्माता ग्रामीण क्षेत्र में 26 रुपए और श्ाहरी क्षेत्र में 32 रुपए कमाने वाले को गरीबी रेखा के ऊपर मानते हैं! इससे अधिक लज्जाजनक बात देश्ा के लिए और क्या हो सकती है? आर्थिक असंतुलन लगातार बढ़ रहा है। अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। आम आदमी के काम आने वाली रोजमर्रा की वस्तुएं महंगी होती जा रही हैं और ऐसे में बेरोजगारी के संकट ने युवाओं के सामने एक अंधकारमय भविष्य निर्माण कर दिया है।
भ्रष्टाचार व राजनीतिक जोड़-तोड़
देश्ा में संस्कार, संस्कृति, सांस्कृतिक और नैतिक जीवन मूल्यों की दृष्टि से विचार करते हैं तो उनका भी लगातार स्खलन हो रहा है। समाज जीवन के हर अंग में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। अब भ्रष्टाचार किसी एक वर्ग या किसी एक काम तक सीमित नहीं रह गया है। उच्च पदस्थ राजनेताओं से लेकर नौकरश्ााह, सेना और पुलिस के बड़े अधिकारी तक इसकी गिरफ्त में आते जा रहे हैं। श्ािक्षा और समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आम आदमी इस भ्रष्टाचार के रोग से पिसता चला जा रहा है। लगता है कि नीतियां केवल पैसे के लेन-देन के आधार पर बनाने का कुचक्र चल रहा है। देश में किसी का कोई काम ईमानदारी से, प्रामाणिकता से हो सकता है, इसका विश्वास ही नहीं रह गया है। देश भ्रष्टाचार के अंधकार में उतरता चला जा रहा है।
राजनीति का जब विचार करते हैं तो मुद्दों की राजनीति कहीं पीछे ही छूट गई है। अब तो राजनीति जाति-मजहब आधारित हो गई है और वोट बैंक की जोड़-तोड़ करके जिताऊ उम्मीदवार के आधार पर राजनीति चल रही है। इसलिए कौन राजनेता कब, कौन से राजनीतिक दल का झंडा उठा लेगा, किस राजनीतिक दल के बैनर के नीचे चला जाएगा, कुछ नहीं कह सकते। मुद्दों और विचारों के आधार पर देश्ा की राजनीति पीछे छूट गई है। ऐसे मुद्दा-विहीन और विचारधारा-विहीन राजनीतिक तंत्र के चलते देश्ा में सही नीतियों का निर्माण कैसे हो सकेगा? चिंतनशील लोगों के सामने यह गंभीर प्रश्न खड़ा हो गया है। ऐसी सब स्थितियों में विदेश्ाी ताकतें और विदेश्ाी षड्यंत्रकारी, जो देश्ा को तोड़ना चाहते हैं, सक्रिय हो गए हैं।
निराशा नहीं, विश्वास जगे
मैंने देश का ऐसा वर्तमान दृश्य चिंता या निराश्ाा उत्पन्न करने के लिए प्रस्तुत नहीं किया है। किसी भी विचारवान व्यक्ति को और समाज जीवन में, राष्ट्र निर्माण में लगे कार्यकर्ता को अपने देश्ा की परिस्थिति का वस्तुपरक आकलन करना ही चाहिए। ऐसे आकलन से प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि इसमें से मार्ग कहां मिलेगा, कैसे मिलेगा? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 87 वर्षों से राष्ट्र निर्माण का सपना संजोकर देश्ा के लिए काम कर रहा है। संघ इन सब समस्याओं को कैसे देखता है और इन सब समस्याओं के समाधान का स्थाई मार्ग निकालने का उसका कैसा संकल्प है, यह आज के समय में समझना और अधिक आवश्यक हो गया है। इन सब प्रश्नों के मूल में एक ही बात समान रूप से दिखाई देती है राष्ट्र और राष्ट्रीयता की भावना का अभाव, जिसे दृढ़ बनाने में रा.स्व.संघ निरंतर सक्रिय है। राष्ट्रहित, देश्ाभक्ति, मातृभक्ति की जो भावना देशवासियों में जगनी चाहिए, वह तब कमजोर पड़ती है जब व्यक्तिगत स्वार्थ सर्वोपरि होने लगता है। ‘मैं देश्ा के लिए काम करूंगा’ व्यक्ति के मन में जब यह भाव कमजोर पड़ जाता है और ‘अपने स्वार्थों, अपने हितों, उनकी पूर्ति के लिए काम करूंगा’ का भाव बलवान होता है तब-तब समस्याएं भीषण रूप लेती जाती हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार ने प्रारम्भ से ही इस बात को समझ लिया था और इसलिए उन्होंने संघ के माध्यम से ही वह मूलभूत काम करने का निश्चय किया, राष्ट्रभक्ति और देश्ाभक्ति का जागरण करना, संस्कारवान लोगों को तैयार करना और राष्ट्र जागरण का ऐसा भाव पैदा करना जिससे सब समस्याएं अपने आप ही समाप्त हो जाएं।
राष्ट्र के आत्मतत्व का जागरण
अगर इस बात को समझना हो तो एक छोटे से उदाहरण से मैं स्पष्ट करना चाहूंगा- गर्मी की तेज दोपहरी में कोई नौजवान साइकिल से सड़क पर जा रहा हो, सामने से गाड़ी आए, टक्कर हो जाए और वह बेहोश्ा होकर गिर जाए, चारों ओर भीड़ एकत्रित हो जाए। भीड़ में से तरह-तरह के लोग उस नौजवान की सहायता करने के लिए आगे बढ़ेंगे। किसी को लगेगा कि इस नौजवान के हाथ में घड़ी बंधी हुई थी, जेब में पर्स था। घड़ी निकलकर गिर गई है, पर्स भी गिर गया है। अत: इसकी सहायता करने का एक ही तरीका है कि पर्स और घड़ी ठीक से संभालकर रख ली जाए, यानी उसके ध्यान में आर्थिक प्रश्न आया और वह उस दृष्टि से सहायता में जुटा है। किसी को ध्यान में आता है कि गिर जाने के कारण इसके पैर में चोट आई है, थोड़ा खून बह रहा है, इसका प्राथमिक उपचार करके इसकी पट्टी कर देने का कार्य कर देना चाहिए, वो वह कर रहा है। किसी को ध्यान में आया कि इसका चश्मा गिर गया है, पैंट के बटन खुल गए हैं, इसकी कमीज अस्तव्यस्त हो गयी है, यह अच्छा नहीं लग रहा है। तो वह उसकी पैंट का बटन, चश्मा, कमीज ठीक करने का काम कर रहा है। अब ये सब काम गलत नहीं हैं, ठीक हैं। पर उस समय की मूल आवश्यकता नहीं हैं, उस भीड़ में कोई समझदार आदमी होगा तो वह इनमें से कोई काम करने की बजाय घायल को डाक्टर के पास ले जाएगा या सबसे पहले वह उस बेहोश्ा पड़े नौजवान की बेहोश्ाी दूर करने का काम करेगा। अगर वह खड़ा हो गया तो वह जेब में पर्स भी डाल लेगा, घड़ी भी पहन लेगा, पैंट के बटन भी बंद कर लेगा और डाक्टर को कहेगा कि पैर में जरा खरोंच आ गई है, पट्टी भी कर दीजिए। यदि लोग बाकी सब काम करते रहे पर उसकी बेहोश्ाी दूर करने का प्रयत्न नहीं किया और धीरे-धीरे बेहोश्ाी से वह जान गंवा बैठा तो कोई सहायता उसके काम नहीं आएगी। इसलिए राष्ट्र के आत्मतत्व का जागरण यानी राष्ट्र जागरण का काम प्राथमिक कार्य है। ऐसा डा. हेडगेवार ने सोचा था। आज का हमारा समाज अपने अस्तित्व, अपनी अस्मिता, अपने स्वत्व, अपनी पहचान को भूल गया है। वह कौन है, इसको भूल गया है। उसका जागरण कराना और उसके अंदर उत्कट राष्ट्रभक्ति का निर्माण करना कि किसी भी कीमत पर, न किसी दबाव या प्रलोभन के कारण देश्ा के अहित का काम नहीं करूंगा। वहीं काम करूंगा जो देश्ा के हित में है’, जब व्यक्ति के मन में यह भाव जगने लगता है, तब उसके कारण से सब समस्याओं के समाधान के लिए लोग तैयार हो जाते हैं, खड़े हो जाते हैं। तो संघ की श्ााखाओं के माध्यम से राष्ट्रभक्ति के जागरण का काम संघ ने अपने हाथ में लिया है।
इसी काम के विस्तार के तौर पर कुछ और काम संघ बीच-बीच में करता है। समाज जीवन में भिन्न-भिन्न माध्यम से छोटी-बड़ी अनेक गोष्ठियां करके, अनेक पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से, अनेक छोटी-बड़ी पुस्तकों के माध्यम से, कार्यक्रमों में समाज के अनेक प्रमुख लोगों को बुलाकर, देश्ा की समस्याओं और उनके समाधान में व्यक्ति के नातेे, नागरिक के नाते हमारा कर्तव्य, समस्याओं के सही परिप्रेक्ष्य को प्रस्तुत करना और एक राष्ट्रीय कर्तव्य का जागरण करना। ये सारे काम रा.स्व.संघ भिन्न-भिन्न विचार गोष्ठियों के माध्यम से, सम्पर्क अभियान के माध्यम से, साहित्य के माध्यम से करता रहा है। उसका परिणाम बहुत अच्छा आया है। लोग यह मानने और समझने लगे हैं कि भिन्न-भिन्न समस्याओं का प्रामाणिक आकलन करने में रा.स्व.संघ की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। हमको देश्ाभर में अनेक विचारवान लोगों का सहयोग मिल रहा है। वे विचार-विमशर््ा में श्ाामिल हो रहे हैं और उसके कारण एक सही सोच के निर्माण में और सही दिश्ाा में काम करने में सबका सहयोग मिल रहा है।
प्रत्यक्ष उदाहरण
एक तीसरे आयाम पर भी रा.स्व.संघ काम करता है। प्रत्यक्ष रूप से वहां जाकर काम करना जहां समाज को आवश्यकता है। देश्ा में चाहे प्राकृतिक आपदा आ जाए- कहीं भूकंप, बाढ़ आ जाए, कहीं अकाल हो, तब राष्ट्रभक्ति के भाव और प्रेरणा के कारण ही रा.स्व.संघ के स्वयंसेवक और कार्यकर्ता वहां तुरन्त पहुंचते हैं और देश्ा के दुख-दर्द को दूर करने का प्रयत्न करते हैं। फिर चाहे वनवासी क्षेत्र हो, सेवा बस्ती हो- जहां समाज का उपेक्षित तथा अभावग्रस्त वर्ग रहता है, अश्ािक्षित रहता है, चिकित्सा की आवश्यकता वाला वर्ग रहता है, ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के सेवा कार्यों के माध्यम से लाखों स्वयंसेवक डेढ़ लाख से अधिक सेवा प्रकल्पों में संलग्न हैं। और अनुभव यह आया है कि वे प्रेम से, आत्मीयता से, बगैर राजनीतिक स्वार्थ के ऐसे लोगों के बीच काम करते हैं। इस तरह उनके मन में देश्ा और समाज के प्रति आत्मीयता का निर्माण होता है। वर्षों से ऐसे लोगों के बीच कोई नहीं गया, वे अपने को अकेला महसूस कर रहे थे। और अकेलेपन के कारण अनेक राष्ट्रविरोधी ताकतें उनको बरगलाने का काम कर रही थीं। रा.स्व.संघ के लोग सेवा कार्यों के माध्यम से ऐसे बहुत सारे क्षेत्रों में सक्रिय होकर काम कर रहे हैं।
सदाचार से दूर होगा भ्रष्टाचार
अभी भ्रष्टाचार का प्रश्न ज्वलंत रूप से देश्ा के सामने आया है। रा.स्व.संघ की प्रारम्भ से मान्यता है कि भ्रष्टाचार को सदाचारी जीवनश्ौली के द्वारा ही दूर किया जा सकता है। भ्रष्टाचार केवल आंदोलन का विषय नहीं है और केवल कानून तक ही सीमित नहीं है। यह सब आवश्यक होते हुए भी पर्याप्त नहीं हैं। इसलिए जब तक स्थाई रूप से व्यक्ति का मन सदाचारी नहीं बनेगा, नैतिक जीवनमूल्यों वाला नहीं बनेगा, तब तक समाज जीवन में से यह भ्रष्टाचार का रोग हमेश्ाा-हमेश्ाा के लिए दूर नहीं हो सकता। इसलिए सदाचारी व्यक्ति निर्माण करने के लिए, यह संस्कार देने का काम रा.स्व.संघ कर रहा है। देश्ा का इतने वर्षों का अनुभव बताता है कि रा.स्व.संघ की श्ााखा में दीक्षित, श्ािक्षित, संस्कारित कार्यकर्ता समाज जीवन के किसी भी क्षेत्र में कार्य करता है तो वह इस प्रकार के भ्रष्टाचार के दलदल में नहीं फंसता। वह अपने को मुक्त रख पाता है, यह बहुत बड़ा संबल है। वह लोगों को प्रेरणा देता है, लोगों के समक्ष आदशर््ा प्रस्तुत करता है। ऐसे सदाचारी, नैतिक व्यक्ति का निर्माण कर, ऐसे जीते-जागते ज्वलंत जीवन लोगों को सामने प्रस्तुत करने का, ऐसे कार्यर्ताओं के निर्माण की दृष्टि से इस प्रकार का प्रयत्न रा.स्व.संघ कर रहा है। ऐसे राष्ट्र जागरण और राष्ट्र निर्माण के माध्यम से समाज जीवन की तमाम समस्याओं के समाधान के लिए हम कार्यरत हैं।
समाज में जग रहा है विश्वास
देश में समस्याएं भी हैं, संकट और चुनौतियां भी हैं, यह सच है, परन्तु रा.स्व.संघ के कार्यकर्ताओं का इतने वर्षों का अनुभव समाज में एक विश्वास पैदा करने के लिए पर्याप्त है। समाज जीवन के अनेक क्षेत्रों के लोगों से मिलने और विचार-विमशर््ा करने के बाद और उनके अनुभव जानने के बाद यह विश्वास और पक्का होता है कि इस राष्ट्र को विजयी तो होना ही है, यह परमात्मा की योजना में है और सब संकटों को मात कर हमें आगे बढ़ना है, यह भी निश्चित है। इसके लिए मार्ग निकले, राष्ट्रवादी ताकतें बलवती हों, संगठित हों और इसलिए समाज जीवन के क्षेत्र में कार्य करने वाली सज्जन श्ाक्ति के बीच परस्पर संवाद बढ़े, वह मिलकर काम करे। रा.स्व.संघ इस प्रयत्न में भी लगा है कि चाहे अलग-अलग संस्थाओं, अलग-अलग संगठनों के रूप में देश्ा के लिए, समाज के लिए, राष्ट्र के हित के लिए भिन्न-भिन्न संस्थाएं लगी हों, ये तमाम श्ाक्तियां और संस्थाएं आपस में मिलकर इस काम को करें तो निश्चित रूप से हम बहुत श्ाीघ्र देखेंगे कि तमाम समस्याओं का समाधान होकर एक नीतिगत परिवर्तन भी आएगा और समाज जीवन में सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक संकटों का मुकाबला करते हुए यह राष्ट्र सम्पूर्ण विश्व का मार्ग प्रश्ास्त करने की क्षमता भी अर्जित कर पाएगा।द
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