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सरकार और सेना के बीच खिंची तलवार

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Jan 7, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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सरकार और सेना के बीच खिंची तलवार

दिंनाक: 07 Jan 2012 14:52:35

पाकिस्तान में समय से पहले आम चुनाव की संभावना

मुजफ्फर हुसैन

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी ने जो कड़ा रुख अपनाया है उसे देखकर सब दंग हैं। इतना तो सभी जानते हैं कि पाकिस्तान का  कोई भी राजनीतिक दल सेनाध्यक्ष जनरल कयानी का इस मामले में समर्थन नहीं करेगा, क्योंकि भूतकाल में अनेक निर्वाचित सरकारों का इसी सेना ने खून किया है।  गिलानी ने यहां तक कह दिया है कि एक सरकार$img_title में दूसरी सरकार नहीं चल सकती, यानी सरकार सेना से सर्वोपरि है। आज तक पाकिस्तान की सेना जब चाहती थी वहां की सरकार को गिरा देती थी और सत्ता अपने नियंत्रण में कर लेती थी। लेकिन पहली बार पाकिस्तान की सरकार ने सेना पर अपना दबदबा बतलाया है।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी दुबई से इस्लामाबाद लौट आए हैं। उनके आगमन ने यह समाचार दिया है कि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं है। पिछले दिनों जिस 'मेमो कांड' ने पाकिस्तान की राजनीति में अनेक प्रश्नवाचक चिन्ह पैदा कर दिये थे, अब उन पर सम्पूर्ण पाकिस्तान में चर्चा हो रही है। 'इलाज' के लिए जरदारी के पाकिस्तान छोड़ते ही यह चर्चा चल पड़ी थी कि अब गिलानी सरकार कुछ ही दिनों की मेहमान है। पाकिस्तान में सेना एक बार फिर सत्ता संभाल लेगी और पाकिस्तान इतिहास के पिछले दौर में चला जाएगा। लेकिन जरदारी की वापसी के पश्चात प्रधानमंत्री गिलानी के तेवर बदल गए हैं। उन्होंने जिस प्रकार के बयान दिये हैं उससे तो लगता है कि सरकार अपनी सेना से ही दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है।

पहली बार सेना को दिखाई आंखें

पाकिस्तान में जो दृश्य उपस्थित हुआ है उससे तो ऐसा ही लगता है कि सरकार किसी अन्य देश की सेना से लड़ रही है। गिलानी ने यहां तक कह दिया है कि एक सरकार में दूसरी सरकार नहीं चल सकती, यानी सरकार सेना से सर्वोपरि है। आज तक पाकिस्तान की सेना जब चाहती थी वहां की सरकार को गिरा देती थी और सत्ता अपने नियंत्रण में कर लेती थी। लेकिन पहली बार पाकिस्तान की सरकार ने सेना पर अपना दबदबा बतलाया है। गिलानी ने अपना स्वर बुलंद करते हुए कहा है कि सेना स्वयं को राष्ट्र के भीतर दूसरा राष्ट्र समझेे, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। गिलानी का कहना है कि पाकिस्तान की सेना सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र रच रही है। पर सेना पहले अपने भीतर झांक कर देखे कि पिछले दिनों उसकी असफलता के कारण अमरीका पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन के ठिकाने तक चला गया। दुनिया की एक बाहरी शक्ति पाकिस्तान में घुसकर छह माह तक अपना काम करती रहे और हमारी सेना को उसकी आहट तक न लगे, यह तो हम सभी के लिए शर्म की बात है।

उठ गया भरोसा

गिलानी ने पहली बार जनता के बीच सेना को ऐसी फटकार  लगाई है। उन्होंने कहा कि नाटो की सेना ने हमारे 24 सैनिक मार डाले और हमारी सेना कुछ नहीं कर सकी। इतना ही नहीं, अमरीका ने 300 ड्रोन हमले किये और हम कुछ नहीं कर सके। इसका अर्थ यह हुआ कि सेना अपने दायित्व में खरी नहीं उतरी। गिलानी ने जनरल कयानी को याद दिलाया कि पाकिस्तान का रक्षा मंत्रालय सरकार के तहत चल रहा है। सरकार आपको सब कुछ मुहैया करवाती है। इसका अर्थ यह नहीं होता है कि आप अपनी असफलता को हमसे नाराजगी के रूप में दिखाने की कोशिश करें। साधारण भाषा में कहा जाए तो 'उल्टा चोर कोतवाल को डांटे'। गिलानी ने कड़े शब्दों में कहा कि हमारे विरुद्ध षड्यंत्र चल रहा है, इसके पीछे कौन है, यह नहीं कहा जा सकता।  हमारी सरकार का तख्ता पलटने के लिए जो कुछ हो रहा है, उससे हम परिचित हैं। हमें जनता ने चुना है, इसलिए हम जनता के प्रति जवाबदेह हैं। हमें हमारे दायित्व से कोई अलग नहीं कर सकता है।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का यह बयान स्पष्ट रूप से बता देता है कि सरकार का वर्तमान सेनाध्यक्ष पर विश्वास नहीं रहा है। क्या अब रक्षा मंत्री और पाकिस्तान सरकार सेनाध्यक्ष जनरल कयानी से त्यागपत्र मांगेगी? होना तो यह चाहिए था कि इस अविश्वास के बाद स्वयं कमांडर इन चीफ एवं सेना के तीनों मुख्य कमांडर अपने पद से त्यागपत्र दे देते।

इस बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी ने जो कड़ा रुख अपनाया है उसे देखकर सब दंग हैं। इतना तो सभी जानते हैं कि पाकिस्तान का  कोई भी राजनीतिक दल सेनाध्यक्ष जनरल कयानी का इस मामले में समर्थन नहीं करेगा। क्योंकि भूतकाल में अनेक निर्वाचित सरकारों का इसी सेना ने खून किया है। लोकतंत्र में किसी भी दल की सरकार आ सकती है, इसीलिए सभी विरोधी दल इस मामले में प्रधानमंत्री गिलानी के साथ हैं। उनमें अधिकांश का यह कहना है कि सेना और सरकार के बीच जो अविश्वास पैदा हो गया है, इसके लिए इस सरकार को भंग करके नए चुनाव कराए जाने चाहिए।

परिपक्व होते नवाज

'मेमो कांड' का जब भंडाफोड़ हुआ तो सबसे पहले पाकिस्तानी संसद में विरोधी दल के नेता नवाज शरीफ ने कहा कि संसद भंग कर दी जानी चाहिए और नए चुनाव होने चाहिए। उनका कहना था कि यदि चुनाव नहीं होते हैं तो फिर 'मार्शल ला' लगना तय है। नवाज शरीफ ने ज्यों ही समय से पहले चुनाव की बात की, सारे देश में हलचल मच गई। दैनिक 'डान' ने इस सुझाव पर अपने सम्पादकीय में लिखा है कि यह एक प्रासंगिक विचार है और जनतंत्र के अनुरूप भी। पत्र का मानना है कि यदि ऐसा किया जाता है तो सेना सत्ता से दूर रहेगी। इसका दूसरा अर्थ यह था कि नवाज शरीफ ने देश को यह संदेश दिया है कि केवल उन जैसा नेता ही पाकिस्तान को बिखराव से दूर रख सकता है। मियां नवाज शरीफ यह मान रहे हैं कि उनकी पार्टी की छवि पीपीपी की छवि से बेहतर है। नवाज शरीफ ने पिछले दिनों 'जनतंत्र, नागरिक प्रशासन की सर्वोच्चता, बलूचिस्तान में हो रही गड़बड़ी और भारत के साथ संबंधों में आए बिगाड़' आदि विषयों को लेकर जो विचार व्यक्त किये हैं उनसे उनकी छवि मुखर हुई है। पाकिस्तान की जनता हर रोज होने वाली उथल-पुथल से परेशान है इसलिए उसको यह विचार अच्छा लग सकता है। लेकिन पीपीपी को यह शायद ही रास आए, क्योंकि सन् 2013 तक राज करना वह अपना अधिकार समझती है।

सेना अपना काम करे

'डान' के इस सम्पादकीय का क्या अर्थ लगाया जाए कि पाकिस्तान में वर्तमान सरकार बहुत दिनों तक नहीं टिकेगी। गिलानी को यह आभास हो गया है कि जरदारी के 'मेमो कांड' से आहत हुई सेना किसी भी समय 'मार्शल ला' लगाकर इस सरकार को चलता कर सकती है। लेकिन वर्तमान सरकार के लिए एक सुकून की बात यह है कि इस समय पाकिस्तान के अनेक क्षेत्रों में सेना अस्वीकार्य है। बलूचिस्तान के नेता अताउल्लाह मेंगल ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि वर्तमान सरकार को भंग कर दिये जाने के पश्चात् 'मार्शल ला' आता है तो निश्चित ही बलूची जनता के लिए वह दिन अफसोसजनक होगा, क्योंकि सेना बलूचियों पर किस तरह के अत्याचार करती है, यह किसी से छिपा नहीं है। पाकिस्तान के अनेक नेता यह मानते हैं कि पाकिस्तान की पूर्वी सीमाओं पर भारत की सेना तैनात है। इतना ही नहीं अमरीका भी पाकिस्तान पर लगातार दबाव बनाए हुए है और आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है। वह किस समय क्या करे, कहा नहीं जा सकता। इसलिए इस समय 'मार्शल ला' लागू करना पाकिस्तान के पक्ष में बिल्कुल नहीं है। पाकिस्तान की सेना का काम देश की सीमाओं की रक्षा करना है। इसलिए सेना और उसके प्रमुख जनरल कयानी को इस समय सत्ताधारी बनने का सपना छोड़ देना चाहिए। सरकार असफल होती है तो प्रशासन बनाए रखने के अनेक विकल्प हैं, लेकिन यदि सेना असफल हो जाती है तो इसका अर्थ है एक बार पाकिस्तान का पुन: विघटन। इसलिए जनरल कयानी, जिनके नेतृत्व में इस समय सेना अपना काम कर रही है, उन्हें सत्ता के मोह में न पड़कर देश की रक्षा करने का दायित्व निभाना चाहिए।

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