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पूरा मुआवजा दे सरकार

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Jan 7, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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आवरण कथा1

दिंनाक: 07 Jan 2012 21:52:03

गुजरात उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला

1971 के युद्धबंदियों के आश्रितों को

अरुण कुमार सिंह

गुजरात उच्च न्यायालय ने 23 दिसंबर, 2011 को एक अभूतपूर्व और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। “मिसिंग डिफेंस पर्सनल रिलेटिव्स एसोसिएशन”द्वारा दायर विशेष नागरिक आवेदन (3633/1999) पर सुनवाई पूरी करने के बाद मुख्य कार्यकारी न्यायाधीश न्यायमूर्ति भास्कर भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति जे.बी.परदीवाला ने रक्षा मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह उन सैनिकों को, जो दिसंबर 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के दौरान से लापता हैं, उनकी सेवानिवृत्ति की आयु तक उन्हें सेवारत समझे। न्यायालय ने यह भी कहा है कि सेवानिवृत्ति से पहले तक उन्हें जो भी पदोन्नति मिलती और उस अनुसार जितना भी उनका वेतन बढ़ता उसका हिसाब किया जाए और वह राशि उन सैनिकों के वारिसों को तीन माह के अंदर दी जाए। न्यायालय ने उन सैनिकों के वारिसों को मिल रही पेंशन भी नये सिरे से तय करने को कहा है। उच्च न्यायालय ने भारत सरकार को यह भी कहा है कि वह दो महीने के अंदर उन सैनिकों के दर्दभरे मामले को अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय ले जाए और पाकिस्तान के खिलाफ अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा भी करे, क्योंकि उसने युद्ध से जुड़े अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया है।

“मिसिंग डिफेंस पर्सनल रिलेटिव्स एसोसिएशन” के उपाध्यक्ष हैं गुजरात के वरिष्ठ वकील श्री एम.के. पाल। न्यायालय में इस मुकदमे की पैरवी श्री एम.के. पाल और उनके पुत्र श्री किशोर पाल ने की। दोनों ने न्यायालय के निर्णय पर खुशी व्यक्त करते हुए पाञ्चजन्य से कहा, “इस मुकदमे को लड़कर हम दोनों अपने पेशे पर गर्व करते हैं। भगवान हमसे इसी तरह के लोककल्याणकारी कार्य कराते रहें।”

उल्लेखनीय है कि भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में 3 से 16 दिसंबर तक युद्ध हुआ था। उस युद्ध में पाकिस्तान बुरी तरह हारा था और उसके 91,000 सैनिकों को भारत ने युद्धबंदी बना लिया था। इस युद्ध के बाद ही बंगलादेश का जन्म हुआ था। भारतीय रणबांकुरों के सामने पाकिस्तानी फौज की एक न चली। परिणामस्वरूप 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में सायं 4.31 बजे पाकिस्तानी सेना के प्रमुख ले.जनरल अमीर अब्दुल्ला नियाजी को अपने 91 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सैनिक कमान के प्रमुख ले.जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा था। किंतु 2 जुलाई 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुए शिमला समझौते के बाद पाकिस्तानी युद्धबंदियों को भारत ने छोड़ दिया। पर उस लड़ाई में लापता हुए भारतीय सैनिकों में से 54 की तुरंत कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं हुई थी। बाद में ऐसे अनेक सबूत मिले जिनसे पता चला कि उन्हें युद्ध के दौरान पाकिस्तानी फौज ने पकड़ लिया था। (पकड़े गए भारतीय सपूतों का नाम जानने के लिए बाक्स देखें।) किंतु विडम्बना यह है कि इन वीर सपूतों को पाकिस्तान से छुड़ाने के लिए भारत सरकार ने कभी कोई सार्थक प्रयास नहीं किया। इधर उन सैनिकों के परिजन अपने प्रियजनों की आस अभी भी लगाए हुए हैं। उनकी यह आस बेवजह भी नहीं लगती है। कई ऐसे सैनिक हैं, जिनके पाकिस्तान में होने के समाचार पाकिस्तानी अखबारों में छपे हैं और पाकिस्तानी रेडियो ने युद्ध के दौरान ही घोषणा की थी कि कुछ भारतीय सैनिकों को पकड़ा गया है, जो पाकिस्तान की विभिन्न जेलों में बंद हैं। वायुसेना के पायलट फ्लाइंग आफिसर सुधीर त्यागी के विमान को 4 दिसंबर, 1971 को पेशावर के पास पाकिस्तानी फौज ने मार गिराया था। 5 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान रेडियो ने बताया कि फ्लाइंग आफिसर सुधीर त्यागी जिंदा हैं। उधर भारत सरकार ने भी 5 दिसंबर, 1971 को स्पष्ट किया था कि 5 पायलट लापता हैं। उनमें से एक फ्लाइंग आफिसर सुधीर त्यागी भी हैं। कैप्टन रविन्द्र कौर के बारे में भी 6 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान रेडियो ने जानकारी दी थी कि वे जिंदा हैं। 1972 में अम्बाला से प्रकाशित एक अखबार में रविन्द्र कौर के बारे में लिखा गया था कि वे अभी लाहौर जेल में बंद हैं। मेजर अशोक कुमार सूरी ने फरीदाबाद (हरियाणा) में रहने वाले अपने पिता स्व.रामस्वरूप सूरी को कराची जेल से 7 दिसंबर, 1974, 16 जून, 1975 और 13 अगस्त 1985 को तीन पत्र भेजे थे। पहले पत्र में तो उन्होंने लिखा था कि वे अभी पाकिस्तान में कैद हैं। दूसरे और तीसरे पत्र में उन्होंने विस्तार से बताया था कि वे अभी कराची जेल में हैं और उनके साथ 20 अन्य भारतीय फौजी अफसर भी हैं।

लाहौर की कोटलखपत जेल में भी भारतीय सैनिक बंद हैं। इसकी जानकारी ब्रिटिश पत्रकार विक्टोरिया स्कोयफील्ड ने अपनी पुस्तक “भुट्टो ट्रायल एंड एक्ज्यूशन” में दी है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी सेना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्तापलट कर उन्हें कोटलखपत जेल में बंद कर दिया था। 1978 में विक्टोरिया ने कोटलखपत जेल में भुट्टो से मुलाकात की थी। उस समय भुट्टो ने विक्टोरिया को आपबीती बताते हुए कहा था, “वे पूरी रात सो नहीं पाते हैं। बगल वाले कमरे से रातभर चीखने चिल्लाने की आवाज आती है। पता चला है उस कमरे में बदनसीब भारतीय युद्धबंदी कैद हैं।”

इतनी पुख्ता जानकारी होने के बावजूद पाकिस्तान सदैव यही कहता रहा है कि उसके यहां एक भी भारतीय युद्धबंदी नहीं है। पाकिस्तान ऐसा क्यों करता है? इसके जवाब में “मिसिंग डिफेन्स पर्सनल रिलेटिव्स एसोसिएशन” के अध्यक्ष कर्नल (से.नि.) राजकुमार पट्टू कहते हैं, “जेनेवा संधि के कारण पाकिस्तान किसी भी युद्धबंदी को अपने पास लम्बे समय के लिए नहीं रख सकता है। किन्तु उसने जानबूझकर ऐसा किया इसलिए शुरू से कहता रहा है कि उसके पास एक भी भारतीय युद्धबंदी नहीं है। जबकि पाकिस्तानी जेलों में भारतीय युद्धबंदी हैं। पाकिस्तान ने उनके नाम बदल दिए हैं और अपराध भी। किसी को युद्धबंदी के रूप में नहीं रखा है। पाकिस्तानी जेलों में बंद भारतीय युद्धबंदियों पर आतंकवाद को बढ़ावा देने या जासूसी के झूठे आरोप लगाए गए हैं।”

पायलट विजय वसंत ताम्बे की धर्मपत्नी श्रीमती दमयंती ताम्बे कहती हैं, “मेरे पति और अन्य सैनिक देश की रक्षा के लिए लड़ रहे थे। लड़ाई के दौरान वे लापता हुए हैं। इसलिए उनकी पूरी जानकारी लेना भारत सरकार की जिम्मेदारी है। किंतु भारत सरकार ने इस जिम्मेदारी को कभी नहीं निभाया। सरकार से सैकड़ों बार कहा गया कि हमारे लोग पाकिस्तानी जेलों में बंद हैं, उन्हें छुड़ाएं। किंतु सरकार कहती रही कि पाकिस्तान से बातचीत चल रही है। आखिर 40 साल तक बात ही होती रहेगी? जो काम सरकार को स्वयं करना चाहिए उसके लिए भी हम लोगों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। सरकार ने इस मामले पर पाकिस्तान को अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय तक क्यों नहीं घसीटा? जेनेवा संधि के अनुसार जीवित युद्धबंदी को वापस करना ही होता है। यदि वह बंदी के दौरान मर जाता है तो यह जानकारी उसके देश को देनी पड़ती है। किंतु पाकिस्तान ने ऐसा न करके जेनेवा संधि का उल्लंघन किया है। अब सरकार गुजरात उच्च न्यायालय के निर्णय को देखते हुए पाकिस्तान पर मुकदमा करे और अपने सैनिकों की रिहाई का रास्ता निकाले।”द

 

1971 के युद्ध के दौरान लापता भारतीय सपूत

1.         मेजर एस.पी.एस.वरियाच

2.         मेजर कंवलजीत सिंह

3.         मेजर जे.एस.मलिक

4.         कैप्टन के.एस.राठौर

5.         कैप्टन गिरिराज सिंह

6.         ले.एस.एम.सब्बरवाल

7.         कैप्टन कमल बख्शी

8.         एस./ले.पारसराम शर्मा

9.         मेजर एस.सी.गुलेरी

10.       मेजर ए.के.घोष

11.       मेजर अशोक कुमार सूरी

12.       स्क्वाड्रन लीडर एम.के.जैन

13.       फ्लाइट ले.सुधीर के.गोस्वामी

14.       सी.ओ.अशोक राय

15.       फ्लाइट ले. हरविन्दर सिंह

16.       फ्लाइंग आफिसर सुधीर त्यागी

17.       फ्लाइट ले. विजय वसंत ताम्बे

18.       फ्लाइट ले. एल.एम.शेषन

19.       फ्लाइट ले. राम आडवाणी

20.       फ्लाइट ले. एन.शंकर

21.       फ्लाइट ले. के.एस.नंदा

22.       विंग कमांडर एच.एस.गिल

23.       फ्लाइट ले.टी.एस.दनदास

24.       कैप्टन रविन्द्र कौरा

25.       स्क्वाड्रन लीडर मानिकशा मिस्त्री

26.       फ्लाइट ले. आर.जी.कदम

27.       फ्लाइट ले. बाबुल गुहा

28.       फ्लाइंग आफिसर के.एल.मलकानी

29.       लांसनायक हजूरा सिंह

30.       स्क्वाड्रन लीडर जे.डी.कुमार

31.       फ्लाइट ले. गुरुदेव सिंह राय

32.       फ्लाइट ले. ए.सी.दलवानी धविले

33.       फ्लाइट ले. एस.सी.महाजन

34.       फ्लाइट ले. के.पी.मुरलीधरन

35.       कैप्टन वशिष्ठ नाथ

36.       लांसनायक जगदीश राज

37.       सिपाही मदन मोहन

38.       सिपाही पाल सिंह

39.       सिपाही दलेर सिंह

40.       फ्लाइट ले. सुरेश चन्द्र संदल

41.       फ्लाइट ले. मनोहर पुरोहित

42.       पायलट आफिसर तेजेन्दर सिंह सेठी

43.       स्क्वाड्रन लीडर डी. चटर्जी

44.       ले. विजय कुमार आजाद

45.       सिपाही सचिन सिंह

46.       गनर श्याम सिंह

47.       सिपाही ज्ञानचंद

48.       सिपाही जागीर सिंह

49.       सूबेदार कालीदास

50.       लांसनायक बलबीर सिंह

51.       हवलदार किशनलाल शर्मा

52.       सूबेदार आशा सिंह

53.       सूबेदार एस. चौहान

54.       सिपाही बुध सिंह

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