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महाराष्ट्र/द.वा.आंबुलकर
छगन भुजबल और इंडिया बुल्स
महाराष्ट्र के सार्वजनिक निर्माण मंत्री तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल से संबद्ध एक सार्वजनिक ट्रस्ट को भवन निर्माण क्षेत्र की प्रमुख कम्पनी इंडिया बुल्स द्वारा 2 करोड़, 45 लाख रुपए की राशि चंदे के रूप में दिए जाने के मामले के तूल पकड़ने से शासन-प्रशासन में खलबली मच गई है। इस सारे मामले की कड़ियों को जोड़कर देखने से छगन भुजबल और इंडिया बुल्स के बीच आर्थिक लेन-देन के कई मामले सामने आए हैं, जो इस प्रकार हैं-
थ् जिस समय छगन भुजबल के “भुजबल फाउंडेशन” को यह चंदा “इंडिया बुल्स रिअलटेक” द्वारा दिया गया, उन्हीं दिनों राज्य के सार्वजनिक निर्माण विभाग के बहुत बड़े कामकाज का ठेका इंडिया बुल्स को प्रदान किया गया।
थ् राजधानी मुम्बई के प्रतिष्ठित क्षेत्र शांताक्रुज के पांच सितारा “हयात” होटल के निकट एक भूखण्ड पर पूर्व योजना के तहत वाचनालय का निर्माण होना था, पर इस प्रस्तावित परियोजना को ताक पर रखते हुए यह भूखण्ड भी “इंडिया बुल्स” को इस शर्त पर दिया गया कि कम्पनी प्रस्तावित वाचनालय का निर्माण कहीं और करा देगी।
थ् राज्य के मुम्बई स्थित प्रशासनिक मुख्यालय के पुनर्निमाण के 6000 करोड़ रुपयों के ठेके का काम भी “इंडिया बुल्स” को ही देने हेतु छगन भुजबल ने विशेष रुचि दिखाई थी, पर यह परियोजना खटाई में पड़ जाने से सार्वजनिक निर्माण मंत्री के नाते छगन भुजबल हाथ मलते रह गए।
थ् जिन परियोजनाओं का काम “इंडिया बुल्स” या उससे संबद्ध प्रतिष्ठानों को दिया गया, उसकी निविदा (टेंडरों) का प्रकाशन बहुत चालाकी से तथा दिखावे के तौर पर ही किया गया।
थ् छगन भुजबल तथा उनका मंत्रालय जब इंडिया बुल्स पर मेहरबान होकर उसे विशेष परियोजनाएं प्रदान कर रहा था, उन्हीं दिनों छगन भुजबल के “पब्लिक वेल्फेयर फाउंडेशन” नामक सार्वजनिक न्यास के नासिक स्थिति बैंक खाते में पहले चरण में 98 लाख रु. तथा उसके पश्चात् ट्रस्ट के नई दिल्ली स्थिति बैंक खाते में 1 करोड़, 47 लाख रु. इस प्रकार कुल 2 करोड़ 45 लाख रुपयों की राशि “इंडिया बुल्स” द्वारा जमा की गई थी।
थ् “इंडिया बुल्स” द्वारा छगन भुजबल के कार्यक्षेत्र नासिक के निकट स्थित सिन्नर प्रौद्योगिकी क्षेत्र परियोजना भी अनियमितता में दूर नहीं रही है। वहां “इंडिया बुल्स रियलटेक लिमिटेड” द्वारा 2700 मेगावाट क्षमता की निर्माणाधीन बिजली उत्पादन परियोजना में प्रयोग में लाने वाले पानी का आवंटन तथा प्रक्रिया के पश्चात् छोड़े जाने वाले पानी के मामले को लेकर भी विवाद छिड़ चुका है। छगन भुजबल-इंडिया बुल्स की इस व्यापारिक मिलीभगत का पता चलने पर भुजबल के प्रभाव क्षेत्र नासिक संभाग में भी आम जनता में असंतोष उभर कर सामने आने लगा है। नासिक के निकट “इंडिया बुल्स” की बिजली निर्माण परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण से लेकर पानी का आवंटन एवं उसके विनियोग तक के मामलों को लेकर कई प्रकार के सवालिया निशान लगाए गए हैं। यहां तक कि सत्ताधारी गठबंधन के प्रमुख सहयोगी दल कांग्रेस ने भी सिन्नर स्थित “इंडिया बुल्स” की परियोजना में अनिर्यायमिता के लिए छगन भुजबल को सार्वजनिक तौर पर आड़े हाथों लिया है।
यह मामला नागपुर में राज्य विधानमंडल दल के शीतकालीन सत्र में भी गूंजा। भाजपा-शिवसेना तथा महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना के विधायकों ने एकजुटता दिखाते हुए “इंडिया बुल्स” की परियोजनाओं के संबंध में धोखाधड़ी के लिए छगन भुजबल को कई प्रकार से दोषी बताते हुए उन पर ठोस कार्रवाई करने की मांग की।
महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना के विधायक बाला साहब नांदगांवकर ने महाराष्ट्र विधानसभा को उस परम्परा की याद दिखाई जब 1 लाख रुपए का चंदा अपने प्रतिष्ठान के लिए स्वीकारे जाने पर राज्य के मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले को बड़े वेआबरू होकर अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। विपक्ष ने राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में इसी बात की याद दिलाते हुए सवाल उठाया कि अंतुले के साथ एक न्याय तथा भुजबल के साथ दूसरा, यह बात कैसे स्वीकार की जा सकती है। राज्य विधानसभा में नेता-प्रतिपक्ष एकनाथ खड़से ने राज्य सरकार को खुले तौर पर चुनौती दी है। भ्रष्टाचार के मामलों में भुजबल के अलावा अन्य तीन भ्रष्टाचारी मंत्री भी भाजपा के निशाने पर हैं तथा भविष्य में पूरे तथ्यों के साथ सारी जानकारी सार्वजनिक करने की बात कही जा रही है।
अपने पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से स्वयं का जैसे-तैसे बचाव करने हेतु छगन भुजबल ने उनके फाउंडेशन या ट्रस्ट द्वारा प्रस्तावित कार्यक्रमों के आयोजकों के नाते यह राशि “इंडिया बुल्स” तथा उससे संबद्ध प्रतिष्ठानों द्वारा प्राप्त होने की बात कही, जिसका कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि वास्तविकता यह है “इंडिया बुल्स” तथा छगन भुजबल के बीच का आर्थिक लेन-देन काफी पुराना है और इस बार इस सारे विवाद से छुटकारा पाना छगन भुजबल के लिए बहुत आसान नहीं होगा।द
उत्तर प्रदेश/धीरज त्रिपाठी
राहुल गांधी की मुस्लिम नेतृत्व उभारने की साजिश
थ् केवल अलीगढ़ विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव थ् कांग्रेस की छात्र शाखा भी विरोध में वाराणसी, इलाहाबाद व अलीगढ़ विश्वविद्यालयों में छात्र संघों की बहाली के मामले में आखिरकार राहुल गांधी की पोल खुल ही गई। साबित हो गया कि कथनी और करनी में अंतर के लिए पहचानी जाने वाली कांग्रेस के अन्य नेताओं से राहुल कतई अलग नहीं हैं। भले ही कांग्रेसी नेता उन्हें “युवराज” कहकर नई चाल व नए जमाने का नेता बताने का ढोल पीट रहे हों, पर उनकी सोच व तरीका अतीत की तरह साम्प्रदायिक, हिन्दुत्व विरोधी, दकियानूसी तौर-तरीकों पर आधारित है। मामला मुसलमानों को रिझाने का हो तो संविधान व लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को ठेंगा दिखाने में उन्हें भी देर नहीं लगती है।
उल्लेखनीय है कि उपरोक्त तीनों केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में अक्टूबर, 2010 में जाकर राहुल गांधी ने छात्र संघों को राजनीति का प्रवेश द्वार और लोकतंत्र का आधार बताकर इनकी बहाली की घोषणा की थी। साथ ही इसे लोकतांत्रिक देश का अनिवार्य हिस्सा बताते हुए इनके चुनाव करवाने का आश्वासन दिया था। कहा था कि केन्द्र सरकार से वह इन विश्वविद्यालयों में छात्र संघों की बहाली कराएंगे, ताकि राजनीति में अच्छे व राजनीतिक रूप से प्रशिक्षित युवाओं की भागीदारी बढ़ाई जा सके। पर, छात्र संघ बहाल हो पाया तो केवल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का। स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार ने यह काम मुसलमानों, खासतौर पर पढ़े-लिखे मुस्लिम युवाओं के बीच कांग्रेस, सोनिया व राहुल की मुस्लिम-हितैषी छवि को और धारदार बनाने के लिए किया, ताकि इनके थोक वोट कांग्रेस को हासिल हो सकें। साथ ही मुस्लिम नेतृत्व को उभारा जा सके।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव कराने के बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव कराने में राहुल गांधी की कोई रुचि नहीं है। वह नहीं चाहते कि युवा मुस्लिम नेतृत्व के मुकाबले हिन्दू युवा नेतृत्व भी उभरे। इसी साजिश के चलते शेष दोनों विश्वविद्यालयों में आज तक छात्र संघों के चुनाव नहीं हो पाए हैं। उल्टे छात्र संघ की मांग करने वाले छात्रों पर पुलिस ने लाठियां बरसाईं। राहुल गांधी ने एक साजिश के तहत केन्द्र सरकार से इन विश्वविद्यालयों में छात्र संघों के चुनाव की अनुमति नहीं दिलाई। इस पर खुद उनकी ही कांग्रेस पार्टी की छात्र शाखा (भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन-एन.एस.यू.आई.) ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दौरे में उनके खिलाफ हुए प्रदर्शन में शामिल होकर राहुल व कांग्रेस के पाखंड की सिर्फ पोल ही नहीं खोल दी बल्कि अपनी पार्टी के कथित युवराज की कथनी-करनी में अंतर पर आईना भी दिखा दिया। प्रदर्शनकारियों ने यह सवाल भी उठाया कि केन्द्र से दबाव डालकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्र संघ का चुनाव कराने वाले राहुल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय व इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव पर मौन क्यों साधे हुए हैं? इसका जवाब अभी तक न तो राहुल दे पाए और न ही कांग्रेस पार्टी का कोई अन्य नेता। जवाब दें भी तो क्या? जवाब तो एक ही है कि कांग्रेस हर अवसर को सांप्रदायिक चश्मे व वोट के गणित से देखती है। उसे यह भ्रम है कि जातियों में बंटे हिन्दू तो उसे वोट देंगे ही, इसलिए उनकी चिंता करने की जरूरत ही क्या है। द
प्रो.राजाराम को राष्ट्रीय वर्ण-पट सम्मान
कलावर्त न्यास (उज्जैन) के सोलहवें वार्षिक आयोजन-अंतरराष्ट्रीय कला महोत्सव (कलापर्व) में भोपाल के प्रसिद्ध चित्रकर्मी, आलोचक एवं कला इतिहासविद् प्रो. राजाराम को कला लेखन के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मान निधि के साथ शाल, श्रीफल, प्रशस्ति-पत्र और वाग्देवी (सरस्वती) की प्रतिमा भेंटकर राष्ट्रीय वर्ण- पट सम्मान से विभूषित किया गया।
गत 17 दिसम्बर से प्रारंभ हुए चार दिवसीय कलापर्व में एकत्र लगभग 300 छात्र-छात्राओं व वरिष्ठ कलाकारों के साथ कला पर खुली चर्चा के सत्र में प्रो. राजाराम ने संवाद किया व अपने व्याख्यान के एक अन्य सत्र में राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के स्वर्ण जयंती ग्रन्थ से मध्य प्रदेश अर्वाचीन के कला महर्षियों पर अपने लेखन से चयनित कुछ अंशों का पाठ किया। उन्होंने इन कला दिग्गजों की नष्ट हो रही मूल्यवान धरोहर पर भारी दु:ख और चिंता व्यक्त की। इन दिग्गजों में से एक साथ दस कला पुरोधाओं के 2010 से आरंभ शताब्दी दशक में भव्य, सार्थक, रचनात्मक और स्मरणीय आयोजन किए जाने का उन्होंने आह्वान भी किया। द प्रतिनिधि
लखनऊ/ शशि सिंह
भ्रष्टाचार से निपटने का मायावी खेल
पहले दागियों का किया इस्तेमाल, अब किनारे करने का नाटक
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने सत्ता पाने और चलाने के लिए पहले अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को प्रश्रय दिया, जब जनता में उनके प्रति घृणा का भाव सतह पर आ गया तो अब “आपरेशन क्लीन” चलाने का दावा कर रही हैं। लेकिन सिर्फ ऐसे लोगों को निशाना बनाया जा रहा है जो अब तक मोहरे भर रहे हैं, अपराध और भ्रष्टाचार के मुख्य खिलाड़ियों को तो अब भी बचाया जा रहा है। इस सारी कवायद का लक्ष्य फिर से सत्ता प्राप्त करना है। लेकिन जनता सब जान चुकी है। हाल ही में उन्होंने भ्रष्टाचार के मामले में लोकायुक्त की जांच में दोषी पाए गए कई मंत्रियों को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया और कहा कि भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जिस मुख्यमंत्री पर ताज कारिडोर, यमुना एक्सप्रेस वे, मनरेगा, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसे एक दर्जन से अधिक घोटालों में परोक्ष रूप से शामिल होने के आरोप लग रहे हों, आय से अधिक संपत्ति के मामले में सर्वोच्च न्यायालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) तक जांच हो रही हो, वह दावा करे कि उसने भ्रष्ट मंत्रियों को हटाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है, हास्यास्पद माना जा रहा है।
बहरहाल लोकायुक्त जांच में पिछले एक साल के भीतर एक दर्जन से अधिक मंत्री हटाए गए हैं। रंगनाथ मिश्र, राजेश त्रिपाठी, राकेशधर त्रिपाठी, हरिओम उपाध्याय, राजपाल त्यागी, अवधेश वर्मा, अवधपाल यादव, अकवर हुसैन, यशपाल सिंह आदि को लोकायुक्त की जांच में दोषी पाए जाने के बाद हटना पड़ा। रा.ग्रा. स्वास्थ्य मिशन (एनएचआरएम) घोटाले, दो मुख्य चिकित्साधिकारियों की हत्या और एक उपमुख्य चिकित्साधिकारी की जेल में हत्या मामले में मायावती के सबसे करीबी मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा तथा पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के करीबी अनंत कुमार मिश्र को हटाया गया। ऊपर से देखने में फैसला बहुत अच्छा लगता है कि जो दोषी पाया गया, उसे हटा दिया। लेकिन यह सवाल अनुत्तरित ही है कि जब ये अपराध में परोक्ष हिस्सेदारी कर रहे थे तो क्या मायावती को मालूम नहीं था। बताया जाता है कि उनकी जानकारी में सब कुछ था लेकिन जब जांच की आंच उन पर आने लगी तो उन्होंने इन सबको किनारे कर दिया। दो मुख्य चिकित्साधिकारी और एक उप मुख्य चिकित्साधिकारी की हत्या के मामले में जौनपुर के बाहुबली बसपा सांसद धनंजय सिंह की संलिप्तता पहले से पता थी, लेकिन जब जांच की दिशा सत्ता प्रतिष्ठान के करीब जाने को हुई तो उन्हें निलंबित कर दिया गया। रारी क्षेत्र से उनके पिता, विधायक राजदेव सिंह का टिकट भी काट दिया गया। लेकिन प्रदेश के चार टुकड़े किये जाने संबंधी विधेयक को पारित कराने के लिए विधायकों की जरूरत पड़ी तो राजदेव सिंह को खुश कराने के लिए धनंजय का निलंबन वापस कर लिया गया। काम निकल जाने के बाद फिर से उन्हें निलंबित कर दिया गया और अब वह जेल में हैं।
बाबू सिंह कुशवाहा कभी मायावती के अत्यंत करीबी थे। अपने मंत्री आवास की बजाय उनका अधिकतर समय मुख्यमंत्री के कालिदास स्थित सरकारी आवास पर बीतता था, लेकिन जब अदालत के आदेश से घोटाले की जांच में बाबू सिंह कुशवाहा फंसे और खुद मुख्यमंत्री मायावती तक उसकी आंच आने की संभावना बढ़ी, तो उन्हें लोकायुक्त की रपट के बहाने हटा दिया गया। यही नहीं, आनन-फानन में उनका मंत्री आवास भी खाली करा लिया गया। उनकी वाई श्रेणी की सुरक्षा भी वापस कर ली गई। हालांकि उन्होंने मायावती को पत्र लिखकर अपनी जान को खतरा बताया लेकिन मुख्यमंत्री ने सुरक्षा बहाल नहीं की। अंतत: उन्हें उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप व आदेश के बाद फिर से वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल पायी।
मायावती की पल-पल बदलती चालों पर गौर करना होगा। एनआरएचएम घोटाले तथा उप चिकित्साधिकारी सचान की जेल में हत्या के बाद अनंत कुमार मिश्र को स्वास्थ्य मंत्री के पद से हटाया गया था, फिर उन्हें लखनऊ की एक सीट से प्रत्याशी भी बनाया गया था। विवाद बढ़ा तो उनका टिकट काट दिया गया। लेकिन फिर उनकी पत्नी को कानपुर की एक सीट से विधानसभा प्रत्याशी बना दिया गया। लोकायुक्त जांच में दोषी पाए गए रंगनाथ मिश्र को पहले मंत्री पद से हटाया और उनका टिकट काट दिया। दावा किया कि दागियों को प्रश्रय नहीं दिया जाएगा। अब उन्ही रंगनाथ को मीरजापुर की उनकी पुरानी सीट से फिर प्रत्याशी बना दिया गया। अभी हाल ही में एक दर्जन विधायकों का टिकट काट दिया गया जबकि पहले कहा गया था कि वे अपनी पुरानी सीट से लड़ेंगे। बसपा के भीतर कहा जा रहा है कि उनकी दागी छवि को ध्यान में रखकर ऐसा किया गया, तो क्या पहले से नहीं मालूम था कि वे दागी हैं।
उधर सरकार में सबसे ज्यादा भ्रष्ट छवि के नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बचाने की पूरी कोशिश हो रही है। क्योंकि वे मायावती की निकट मंडली के महत्वपूर्ण सदस्य है। बताया जाता है कि मायावती के निकटतम लोगों में विवादित कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह, राज्यसभा सदस्य व पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र, सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, शराब व्यवसायी पोंटी चड्ढा, जेपी ग्रुप और मायावती के भाई आनंद की मंडली सारा “खेल” कर रही है। कथित कमाई वाले सारे फैसले इसी समूह की सहमति से लिये जाने की चर्चा रहती है। बांदा, महोबा, चित्रकूट और हमीरपुर आदि जिलों में खनन मामले में भारी घोटाले की शिकायत लोकायुक्त से की गई थी। नसीमुद्दीन पर लगे आरोपों को लोकायुक्त ने गंभीरता से लिया और जांच में गति आ गयी, लेकिन नसीमुद्दीन पर आंच नहीं आयी। यही नहीं, हटाए गए कई मंत्रियों के विभागों का अतिरिक्त कार्यभार भी उन्हें दे दिया गया। द
जम्मू-कश्मीर/ विशेष प्रतिनिधि
योजनाएं विकास की, हो रहा है विनाश
जम्मू-कश्मीर की जनसंख्या देश की जनसंख्या का मुश्किल से एक प्रतिशत होगी। किन्तु इस राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए केन्द्र की ओर से अन्य राज्यों की तुलना में प्रति व्यक्ति पांच गुना से भी अधिक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। किन्तु लाखों-करोड़ों रुपए की राशि अनुदान के रूप में उपलब्ध करने के पश्चात भी यह राज्य एक ऐसा अंधा कुंआ बनता जा रहा है जिसका कोई तल दिखाई नहीं देता। विकास योजनाओं के निर्माण तथा सम्पादन के पश्चात भी जो वास्तविक परिणाम सामने आ रहे हैं वह असंतोषजनक ही नहीं अपितु चौंकाने वाले हैं। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जिसमें विकास योजनाओं के लक्ष्य पूरे हो पाए हों। अधिकांश क्षेत्रों में असफलता कई तरह के प्रश्न उत्पन्न करती है। कारण, यह विकास योजनाएं अवास्तविक थीं या फिर केन्द्र से मिलने वाली भारी धन राशि का उचित प्रयोग नहीं हुआ है।
राज्य की 11वीं पंचवर्षीय योजना आगामी मार्च तक सम्पन्न हो जाएगी और 12वीं योजना का निर्माण कार्य शुरू हो गया है। किन्तु लगता नहीं कि योजनाओं की इस प्रक्रिया की प्राथमिकताओं में कोई बड़ा परिवर्तन आ पाएगा। क्योंकि लक्ष्य पूरा होना तो दूर, अधिकांश क्षेत्रों में स्थिति बिगड़ी है, कई नई जटिलताएं उत्पन्न हुई हैं। 1951 में जब इस राज्य की पहली विकास योजना बनी थी तो सबसे अधिक प्राथमिकता कृषि तथा खाद्य पदार्थो के उत्पादन को बढ़ाने पर दी गई थी। यह प्राथमिकताएं 60 वर्ष से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी जस की तस हैं। यद्यपि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अभी तक 80,000 करोड़ रुपए से भी अधिक की राशि खर्च की जा चुकी है। यह खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। किन्तु परिणाम यह निकला है कि 1950-51 में अनाज का आयात 28000 मीट्रिक टन था, 1955-56 में यह बढ़कर 40,000 मीट्रिक टन हो गया और तीसरी पंचवर्षीय योजना के निर्माण में रावी-तवी नहर के निर्माण कार्य को हाथ में लेने के साथ ही दावा किया गया कि इस नहर के बनने के पश्चात राज्य न केवल कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा अपितु भेड़ों-बकरियों तथा कुक्कुट का निर्यात भी होगा। इस नहर के निर्माण के पश्चात भी 1980-81 में अनाज की आयात 1.42 लाख मीट्रिक टन, 1995-96 में 3.72 लाख मीट्रिक टन और 2004-05 में 5 लाख मीट्रिक टन और अब यह 8 लाख मीट्रिक टन से भी अधिक हो गया है। सूत्रों के अनुसार अगले वर्ष के लिए केन्द्र से 11 लाख मीट्रिक टन चावल तथा गेहूं उपलब्ध करवाने का अनुरोध किया गया है। राज्य के बाहर से प्रतिवर्ष कुक्कुट का आयात, आश्र्चजनक रूप से 20 लाख भेड़ों-बकरियों तथा अरबों की संख्या में चूजों और अण्डों का आयात होने लगा है।
प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में साक्षरता तथा रोजगार की दूसरी प्राथमिकता दी गई। यह ठीक है कि इन वर्षों के दौरान जम्मू-कश्मीर में लगभग 10,000 स्कूल और अन्य शिक्षण संस्थान खोले गए, जिनके कारण साक्षरता अनुपात अच्छा खासा बढ़ा है, किन्तु सरकार की शिक्षा नीति के कारण कई प्रकार की बुराइयां भी उत्पन्न हुई हैं जिनमें साम्प्रदायिकता तथा शिक्षा क्षेत्र का बड़े घरानों तथा राजनेताओं के लिए कारोबार बनाना उल्लेखनीय है। सरकारी संस्थानों, विशेषकर स्कूलों की दयनीय स्थिति एक बड़ी चर्चा का विषय है। सरकार की अलगाववादी सोच तथा शिक्षा प्रणाली की त्रुटियों के कारण पढ़े-लिखे युवकों में बेरोजगारी बढ़ी है, सरकार के अपने आकड़ों के अनुसार 1975 में पढ़े-लिखे बेरोजगारों की जो संख्या 43,000 थी वह अब बढ़कर 6 लाख के लगभग हो गई है। बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि का एक कारण यह भी है कि अलगाववादी सोच के कारण भारत के संविधान की धारा-370 के कारण जम्मू-कश्मीर में औद्यागिक विकास नहीं हो रहा है।
अनेक पंचवर्षीय योजनाओं में विद्युत उत्पादन को बड़ी प्राथमिकताओं की श्रेणी में शामिल किया गया है किन्तु हजारों-करोड़ रुपए के व्यय के पश्चात भी बिजली आपूर्ति के लिए 70 प्रतिशत से भी अधिक बिजली बाहर से खरीदी जा रही है जिसके कारण बिजली का घाटा 2000 करोड़ रुपए वार्षिक से भी अधिक हो गया है, जो राज्य के बजट पर एक बड़ा बोझ सिद्ध हो रहा है। इस संबंध में यह उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में पनबिजली उत्पन्न करने के साधन देश के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत अधिक है। इन साधनों के अनुसार 20,000 मेगावाट से भी अधिक पन-बिजली उत्पन्न की जा सकती है, किन्तु अलगाववादी सोच तथा भ्रष्टाचार के कारण गत 60 वर्ष से भी अधिक समय से विद्युत परियोजनाएं खटाई में पड़ी हैं और उपलब्ध संसाधनों में से मात्र 10 प्रतिशत को ही प्रयोग में लाया जा सका है। यद्यपि इन साधनों से राज्य को बिजली के विषय में न केवल आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है अपितु इस उत्पादन से बिजली देश के अन्य भागों में पहुंचाकर राज्य की आय के स्रोतों को बड़ी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है।
पहली पंचवर्षीय योजना में राज्य का अपना वित्तीय भाग 15 से 20 प्रतिशत रहता था किन्तु गत 30 वर्षों से इस राज्य की परियोजनाओं की निर्भरता शत प्रतिशत केन्द्र पर निर्भर होकर रह गई है तथा वित्तीय स्थिति इस सीमा तक बिगड़ी है कि राज्य के आंतरिक स्रोतों से वार्षिक आय मात्र 6000 करोड़ रुपए के लगभग पहुंची है जबकि सरकारी कर्मचारियों के वेतन का खर्च 18000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। यह परिस्थितियां कैसे और क्यों उत्पन्न हुईं, यह गंभीर चर्चा का एक विषय है, ताकि पता चल सके लाखों-करोड़ों रुपए के व्यय के पश्चात भी इस दयनीय स्थिति के कारण क्या हैं तथा कौन लोग इसके जिम्मेदार हैं? यह ठीक है कि केन्द्र से हजारों करोड़ रुपए की सहायता इस राज्य को प्राप्त हो रही है किन्तु परिणाम क्या निकले हैं, यह विचारणीय विषय है। क्योंकि केवल धन ही खर्च नहीं हो रहा है, अपितु असफलताओं के कारण अलगाववाद की सोच भी बढ़ती जा रही है। द
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