सोनिया गांधी की हिन्दू विरोधी चाल
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सावधान!
हिन्दू विरोधी चाल
नरेन्द्र सहगल
विदेश प्रेरित हिन्दुत्व विरोधी विकृत मानसिकता वाले अराष्ट्रीय तत्वों द्वारा तैयार किए गए साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक 2011 को यदि भारत की वर्तमान लकवाग्रस्त सरकार ने संसद से पारित करवाकर राष्ट्रपति की मोहर लगवा ली तो यह एक ऐसा काला कानून होगा जो भारत के बहुसंख्यक राष्ट्रीय समाज हिन्दू को अल्पसंख्यकों (मुसलमान/ईसाई) का गुलाम बना देगा। अर्थात् जो काम मुस्लिम आक्रांता और अंग्रेज शासक पिछले 1200 वर्षों में नहीं कर सके वह इस कानून की आड़ में वर्तमान सरकार द्वारा सम्पन्न हो जाएगा। हिन्दू संस्कृति पर चोट इस विधेयक को उन लोगों ने तैयार किया है जो विदेश (ईसाई एवं मुस्लिम देशों) के इशारे पर भारत की संस्कृति, धर्म और राष्ट्रवाद को समाप्त करने के षड्यंत्र रच रहे हैं। किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारत की राजनीति में सक्रिय संप्रग की अध्यक्ष और कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी की रहनुमाई में गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के दिमाग की उपज इस विधेयक के अनुसार हिन्दू समाज आतंकवादी, कातिल और असभ्य है एवं अल्पसंख्यक (मुसलमान/ईसाई) शांत एवं अहिंसक हैं। अर्थात् बहुसंख्यक होना कानूनन अपराध है। इस काले कानून से हिन्दू धर्म को जड़मूल से उखाड़ फेंकने का स्वप्न देख रही राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के अधिकांश सदस्य अपने हिन्दुत्व विरोधी कुकृत्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। 22 सदस्यों वाली इस परिषद् के संयोजक हैं फराह नकवी और हर्ष मंदर। अन्य सदस्यों में सैय्यद शाहबुद्दीन और तीस्ता जावेद जैसे लोग हैं जो भारत में एक और पाकिस्तान के निर्माण की भूमिका तैयार करने में जुटे हैं। सभी जानते हैं कि तीस्ता को गुजरात में हुए दंगों के संबंध में झूठा शपथ पत्र पेश करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने जिम्मेदार माना है। असंवैधानिक/अलोकतांत्रिक उपक्रम दरअसल “हिन्दू आतंकवाद”, “भगवा आतंकवाद”, “बहुसंख्यक कट्टरवाद” और “संघी आतंकवाद” जैसे जुमले गढ़कर हिन्दुत्व को समाप्त करने में पूरी तरह विफल रही सोनिया मंडली ने अब हिन्दुओं पर कानूनी प्रहार करके भारत की राष्ट्रीय पहचान यहां के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बुनियाद खोखली कर देने की मंशा बनाई है। इसी एकमेव इरादे का व्यावहारिक रूप है यह विधेयक। यह राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् और इसके द्वारा गढ़ा गया यह विधेयक दोनों ही असंवैधानिक एवं अलोकतांत्रिक हैं। भारत के संविधान के तहत इस परिषद् का गठन नहीं हुआ। इस परिषद् के सदस्यों को देश की जनता, विधायकों एवं सांसदों ने नहीं चुना। यह गैर कानूनी संस्था जनता सहित किसी के प्रति भी उत्तरदायी नहीं है। डा.मनमोहन सिंह की सरकार को सलाह अथवा आदेश देने वाली इस असंवैधानिक संस्था का गठन वास्तव में बहुसंख्यक हिन्दू समाज को भारत में दूसरे दर्जे का प्रभावहीन नागरिक बनाने का एक ऐसा जघन्य प्रयास है जो देश के दूसरे विभाजन की नींव रखेगा। मौलिक अधिकारों का हनन साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक के 9 अध्यायों में समेटी गईं 138 धाराएं भारत के संविधान द्वारा यहां के नागरिकों को दिए गए सभी मौलिक अधिकारों का खुला उल्लंघन हैं। इस विधेयक का सबसे खतरनाक पहलू है धारा 8। इसके अंतर्गत भारत में रहने वाले सभी मजहबी एवं भाषाई अल्पसंख्यकों को एक ऐसे समूह की परिभाषा में बांधा गया है जो कभी भी दंगा या कोई साम्प्रदायिक झगड़ा नहीं करते। इस विधेयक की धाराओं 7-8 और 74 के अनुसार एक अल्पसंख्यक महिला के साथ हुए दुव्र्यवहार को भी अपराध माना जाएगा। किसी अल्पसंख्यक ने किसी बहुसंख्यक का मकान किराए पर मांगा तो वह देना ही पड़ेगा, अन्यथा प्राधिकरण द्वारा ऐसे बहुसंख्यक (हिन्दू) को अपराधी माना जाएगा। इसी तरह हिन्दुओं द्वारा गैर हिन्दुओं के खिलाफ किए गए कथित अपराध तो दंडनीय हैं परंतु गैर हिन्दुओं के द्वारा किए गए साम्प्रदायिक अपराध दंडनीय नहीं हैं। इस विधेयक के अंतर्गत अल्पसंख्यकों द्वारा किए जाने वाले अपराध का शाब्दिक विरोध भी वर्जित है। अर्थात् आतंकी हादसों की निंदा, इमामों और पादरियों के भड़काऊ भाषणों का विरोध, समान नागरिकता की चर्चा, गोहत्या का विरोध, राष्ट्रगीत वंदेमातरम का गायन, बंगलादेशी घुसपैठियों की वापसी, बलात् मतान्तरण पर रोक, मजहब पर आधारित धारा 370 को हटाने का मुद्दा और अफजल/कसाब जैसे आतंकियों को फांसी इत्यादि जैसे मुद्दों पर चर्चा करना भी कानूनन अपराध माना जाएगा। समाज को तोड़ने का षड्यंत्र भारतीय संस्कृति, धर्म, राष्ट्रवाद एवं सनातन तत्वज्ञान के पूर्णतया विरुद्ध सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने इस विधेयक का प्रारूप तैयार करके भारतीय समाज को मजहब, जाति, पंथ, क्षेत्र और भाषा के आधार पर विभाजित करने का राष्ट्रघातक दुस्साहस किया है। यह प्रयास भारत के संविधान के मूलाधिकार अनुच्छेद 15 का आपराधिक उल्लंघन है। भारतीय संविधान में किसी भी अपराध को मजहब/पंथ/जाति के आधार पर परिभाषित नहीं किया गया। परंतु इस विधेयक ने मुसलमानों/ईसाइयों के हाथ में एक ऐसा चाबुक देने की कानूनी व्यवस्था की है जिसकी मार हिन्दू समाज पर पड़ेगी। इस विधेयक के अनुसार गोधरा में हिन्दू कारसेवकों को जिंदा जला देने वाले अल्पसंख्यक मुसलमान अपराधी नहीं हो सकते परंतु इस कांड के बाद प्रतिक्रिया जताने वाले बहुसंख्यक हिन्दू दोषी हैं। किसी भी ऐरे-गैरे अल्पसंख्यक द्वारा छोटी सी अथवा मनगढं़त शिकायत करने पर प्रमुख हिन्दू संगठनों के प्रमुखों, जगद्गुरु शंकराचार्यों, महामंडलेश्वरों एवं धार्मिक सामाजिक संगठनों के नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में पहुंचाया जा सकता है। तुष्टीकरण की घृणित राजनीति इस हिन्दुत्व विरोधी विधेयक की धारा 8/115 के अनुसार धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों द्वारा आयोजित होने वाले प्रवचनों, प्रस्तुत की जाने वाली झांकियों, प्रकाशनों, परिचर्चाओं,पथ संचलनों, शोधकार्यों, धार्मिक अनुष्ठानों, रामलीलाओं का मंचन इत्यादि सभी कार्य दुष्प्रचार/घृणा फैलाने वाले इसलिए माने जाएंगे क्योंकि इनसे अल्पसंख्यकों की भावनाएं आहत होती हैं। साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक में कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को नौकरी से निकाला नहीं जा सकता। बहुसंख्यकों (हिन्दुओं) को अल्पसंख्यकों (ईसाइयों/मुसलमानों) को नौकरी एवं कारोबार में रखना ही होगा। इस विधेयक की अत्यंत आश्चर्यजनक धारा 9(2) एवं धारा 12 की परिभाषा के तहत ऐसे किसी भी प्रशासनिक अधिकारी को आजीवन कारावास की सजा दे दी जाएगी जिसके क्षेत्र में दंगा हुआ है। इसका यह अर्थ हुआ कि किसी भी अल्पसंख्यक के कहने पर इलाके का कोई भी पुलिस अफसर अथवा जिलाधीश आदि दोषी मान लिया जाएगा। हिन्दुओं पर कानूनी शिकंजा जाहिर है कि भारतीय संविधान के आधारभूत ढांचे, पंथनिरपेक्षता के सिद्धांत और सामाजिक सौहार्द को तोड़ने वाला यह विधेयक देश की न्यायिक व्यवस्था पर आघात करने वाला है। इसमें बहुसंख्यक समाज को प्रताड़ित करके अल्पसंख्यक मुसलमानों/ईसाइयों को लुभाने की गंदी राजनीति की दुर्गंध आती है। इस विधेयक के माध्यम से हिन्दू समाज पर तानाशाही का शिकंजा कसने की तैयारी है। वंचित एवं अन्य पिछड़े लोगों को “समूह” का हिस्सा मानकर उन्हें मुसलमानों एवं ईसाइयों के साथ जोड़ देने की खतरनाक साजिश हिन्दुओं को बांटने के उद्देश्य से रची गई है। इस विधेयक के कानून के रूप में सामने आने से हिन्दुओं का हिन्दुस्थान में रहना और सम्मान के साथ जीना दूभर हो जाएगा। कानूनी शिकंजा कसने से हिन्दुओं के धार्मिक एवं सामाजिक संगठन भी शक्तिहीन हो जाएंगे। परिणामस्वरूप जब हिन्दुओं को अपमान के घूंट पीने पड़ेंगे तो पहले से सक्रिय विदेशी/विधर्मी तत्वों को मतान्तरण की क्रूर चक्की तेज करने का मौका मिलेगा। इन भयावह परिस्थितियों में सुरक्षा बल भी कुछ नहीं कर सकेंगे। इस कानून की पकड़ इतनी गहरी और घातक होगी कि देश की सेना और पुलिस को भी कानूनन मजबूर होकर बहुसंख्यक समाज (हिन्दुओं) को ही दबाना होगा क्योंकि यह तो पहले से ही मान लिया गया होगा कि अल्पसंख्यक तो हिंसा फैलाते ही नहीं वे तो जन्मजात निर्दोष हैं। फूट डालो और राज करो भारतीय संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि “कानून की नजरों में सभी एक समान हैं।” संविधान में सभी को बिना किसी भेदभाव के संरक्षण देने का आश्वासन दिया गया है। परंतु इस संभावित काले कानून में भारत की एकता को ही खतरे में डालकर समाज के विभिन्न घटकों को आपस में लड़वाने के कानूनी इंतजाम किए गए हैं। अंग्रेज शासकों की “फूट डालो राज करो” की नीति और नीयत को स्वतंत्र भारत में 64 वर्षों के पश्चात् फिर से एक सरकारी हथियार बनाने के भयंकर षड्यंत्र के पीछे की अदृश्य मंशा आखिर क्या है? कहीं यह कानून जिहादी आतंकवादियों एवं ईसाई मिशनरियों के दबाव में तो नहीं बन रहा? उल्लेखनीय है कि सोनिया गांधी की सास पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में देश में आपातकाल थोपकर ऐसे कई काले कानून बना डाले थे जिनका एकतरफा इस्तेमाल विपक्षी दलों की आवाज बंद करने के लिए किया गया था। परंतु इस कानून का प्रारूप तो ऐसा प्रतीत होता है मानो बिना आपातकाल घोषित किए ही राष्ट्रवादी शक्तियों को कुचल डालने की संवैधानिक व्यवस्था की जा रही हो। अलगाववादियों को संरक्षण इस विधेयक की सभी धाराओं का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि इसके द्वारा अलगाववादी हिंसक तत्वों, एक दूसरे पाकिस्तान का ख्वाब देख रहे मुस्लिम कट्टरपंथियों और भारत का ईसाईकरण चाहने वाली पश्चिमी शक्तियों को कानूनी संरक्षण देकर राष्ट्रभक्त हिन्दू समाज का मनोबल तोड़ा जाएगा। भारत एवं भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक हिन्दू संतों सहित पूरे हिन्दू समाज के लिए एक स्थाई आपातकाल लगाने की तैयारी हो रही है। इस खतरनाक कानून के बन जाने से हिन्दू अपने ही देश में असुरक्षित, अनाथ एवं असहाय हो जाएंगे। एक समय जर्मनी में जिस तरह के अत्याचार यहूदियों पर हुए थे उससे भी कहीं ज्यादा भयंकर परिस्थितियां निर्माण करने की मंशा रखने वाले तत्व इस कानून के सहारे भारत के उस हिन्दू समाज को हिंसक कहकर बदनाम करेंगे जिसकी संस्कृति सत्य और अहिंसा जैसे मानवतावादी आधार पर टिकी हुई है। विदेशनिष्ठ एवं विधर्मी शक्तियां भारत/हिन्दू समाज के इसी परम तत्व को समाप्त करने पर तुली हैं। प्रचंड प्रतिकार इस तरह के “साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक 2011” को कानून के रूप में अस्तित्व में आने से पहले ही दफन करने के लिए समस्त हिन्दू समाज को संगठित होकर सशक्त प्रतिकार करना चाहिए। संसद से लेकर सड़क तक प्रचंड संघर्ष की रणभेरी बजाकर विधर्मी विदेशी ताकतों को परास्त करना होगा। इस विधेयक से हमारी कालजयी हिन्दू संस्कृति पर चोट की गई है। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नशे में अंधे होकर सत्ता पर चिपके रहने के आदी हो चुके कांग्रेसी सत्ताधारी सोनिया गांधी के ईसाई प्रेरित हिन्दुत्व विरोधी मायाजाल के गहरे तक फंस चुके हैं। ईसाई अंग्रेज शासकों और दारुल इस्लाम के झंडाबरदारों की भारत तोड़ो साजिश का शिकार होकर जिन कांग्रेसी नेताओं (नेहरू खानदान) ने 1947 में भारत का विभाजन करके पाकिस्तान नाम के भारत के दुश्मन को जन्म दिया था, आज उन्हीं नेताओं के वंशज पुन: ऐसी ही विधर्मी ताकतों के हाथों में खेलकर हिन्दू समाज के अस्तित्व को समाप्त करने पर आमादा हैं। समस्त हिन्दू समाज के लिए यह एक प्रबल चुनौती है।द
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