दृष्टिपात
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* आलोक गोस्वामी
हू का नौसेना को इशारा
चीन की नौसेना के तीखे होते तेवरों की बाबत इसी स्तम्भ में हमने आने वाली परिस्थितियों की तरफ संकेत किया था, जिसकी पुष्टि चीनी राष्ट्रपति हू जिन ताओ के उस संदेश से हो जाती है कि नौसेना अपने को सुघड़ करने के प्रयास तेज करे और लड़ाई की तैयारी करे। उन्होंने सैनिकों से कहा, लड़ाई के लिए आगे तक की तैयारी रखो। दक्षिण चीन सागर में चीन के कई देशों के साथ इलाकाई विवाद चल रहे हैं, अमरीका के साथ राजनीतिक भूचाल आते जा रहे हैं, क्योंकि अमरीका इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाने को बेसब्र हो रहा है। अमरीका और चीन के बीच साल में एक दिन की अधिकारियों की बैठक होती है ताकि “दोनों के बीच कोई गलतफहमी न हो”। चीन ने अभी अभी अपना पहला विमानवाहक जहाज पानी में उतारा है और नौसेना के रुतबे का ढिंढोरा पीटा है। पर चीन जानता है कि अमरीका के सामने उसकी नौसेना बौनी है। पिछले दिनों हू ने सैन्य अधिकारियों की बैठक में कहा कि नौसेना को अपनी तब्दीली और आधुनिकीकरण में बराबर तेजी लानी चाहिए और राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए ज्यादा योगदान देने के लिए, लड़ाई के लिए तैयारी दिखानी चाहिए। वैसे हू दो टूक बात कहने के लिए जाने जाते हैं। इसलिए जानकार दक्षिण चीन सागर में बढ़ते उफान को अनदेखा न किए जाने की चेतावनी देते रहे हैं।थ्
जरदारी की बीमारी
क्या कयानी ने बाजी मारी?
7 दिसम्बर को इस्लामाबाद की पहाड़ियों से टकराकर आने वाली हवाएं सर्द नहीं, खुश्क थीं। पाकिस्तान की राजधानी की सड़कों, गलियों, चौराहों और सरकारी दफ्तरों में बस एक ही खबर तैर रही थी- जरदारी कहां गए, क्यों गए, कैसे गए, किसने भेजे, कब तक भेजे? खबर यह भी बड़ी तेजी से फैली कि तख्ता पलट हो चुका है, कयानी की बन आई है, जरदारी को जाने को कह दिया गया है। जरदारी के राष्ट्रपति पद पर बने रहने को लेकर यूं तो अटकलें लादेन-वध के साथ ही शुरू हो गई थीं, तिस पर वाशिंगटन से हाल में हटाए राजदूत हक्कानी के गुप्त पुर्जे ने हलचलें तेज कर दीं। हक्कानी ने कयानी के तेवर ठंडे करने को अमरीका से मदद मांगी थी। कयानी बिफर पड़े थे इस खुलासे पर। लिहाजा हक्कानी का बिस्तर गोल करवा दिया। लेकिन 6 दिसम्बर को जब जरदारी अचानक दुबई को निकल लिए तो पाकिस्तानियों की गफलत बढ़ गई। तेजी से अफवाह फैली कि जरदारी गए, फौज अब आई कि तब आई। उधर जरदारी-पुत्र बिलावल प्रधानमंत्री गिलानी से मिलने पहुंच गए तो धुंए को हवा मिल गई। दरअसल, ओबामा प्रशासन के एक पूर्व वरिष्ठ अफसर ने किसी पत्रिका को बताया था कि पिछले हफ्ते जरदारी राष्ट्रपति ओबामा से फोन पर बहकी-बहकी सी बातें कर रहे थे। अमरीका सरकार को बताया गया था कि उन्हें 6 की रात को दिल का हल्का दौरा पड़ा था और जरदारी शायद बीमारी के चलते इस्तीफा दे दें। उधर जरदारी के प्रवक्ता फरहतुल्ला बाबर ने इसे हवाई बातें कह कर नकार दिया, कहा कि राष्ट्रपति तो हमेशा की तरह कुछ चिकित्सकीय जांचें कराने दुबई गए हैं। जबकि पाकिस्तान के एक मंत्री मुस्तफा खोखर ने बाबर की बात गलत बताते हुए कहा कि जरदारी को दिल का दौरा ही पड़ा था। खैर, मौजूदा हाल यह है कि पाकिस्तान में हवाओं का रुख रह-रहकर बदल रहा है। मिजाज नरम तो कभी गरम हो रहे हैं। जरदारी की क्या “बीमारी” है, यह एकाध दिन में साफ हो ही जाएगा। पर फिलहाल अमरीका ने कहा कि तख्ता नहीं पलटा है।थ्
आस्ट्रेलियाई को 500 कोड़े, एक साल कैद
सऊदी सरकार ने दी “कुफ्र” की सजा
सऊदी अरब में कट्टर वहाबी सोच के तहत शरिया कानून का किस मुस्तैदी से पालन किया जाता है उसकी एक मिसाल देखने में आई है। आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया शहर का बाशिंदा मंसूर अलमारिब नाम का 45 साल का पांच बच्चों का पिता हज करने मदीना गया था। हज के दौरान 14 नवम्बर को मदीना में उसे “कुफ्र” के आरोप में धर-दबोच लिया गया। उस पर आरोप मढ़ा कि उसने “पैगम्बर मोहम्मद के साथियों का अपमान” किया था। सऊदी अरब की मजहबी पुलिस उसे उसके साथियों के बीच से धर ले गई। बताते हैं उस वक्त मंसूर समूह में नमाज अदा कर रहा था। वहां की अदालत ने उसे सजा दी- एक साल कैद और 500 कोड़े। सऊदी अरब में आस्ट्रेलियाई राजदूत नील हाकिन्स ने गुहार लगाई- रहम, रहम, कोड़े नहीं झेल पाएगा मंसूर। इधर मंसूर के परिवार में घबराहट फैल गई। उसके जवान बेटे मोहम्मद ने कहा कि, “अब्बा बहुत बीमार हैं, कोड़े नहीं झेल पाएंगे।” चूंकि मंसूर लिबरल पार्टी की सांसद शर्मन स्टोन के यहां काम करते हैं, लिहाजा स्टोन ने विदेश मंत्री केविन से दखल देने को कहा है। राजदूत नील तो पहले ही भाग-दौड़ में जुटे हुए हैं।थ्
फई ने गुनाह कबूला
अमरीका में आई.एस.आई. का कारिन्दा बनकर अपनी “कश्मीरी अमेरिकन काउंसिल” के जरिए कश्मीर पर पाकिस्तानी रुख का प्रचार करने वाले अलगाववादी सैयद गुलाम नबी फई ने वाशिंगटन में “दस्तावेजी तथ्यों” पर दस्तखत करके कबूला है कि वह आई.एस.आई. के काबू में रहकर खुफिया एजेंसी के “विस्तार” के तौर पर काम कर रहा था। फई ने कबूला कि वह अमरीकी सांसदों, अधिकारियों और विचारकों में पाकिस्तानी सोच के प्रति समर्थन जुटाने में लगा था। उसे अमरीकी सांसदों की मिजाजपुर्सी के लिए हर साल 80,000 से 1000,000 डालर मिलते थे। 1990 से ही वह अमरीका में इस काम में जुटा हुआ था। वह सम्मेलन करता, विचार गोष्ठियां करता, चर्चाएं आयोजित करता। उसके बुलावे पर कश्मीर पर भारत सरकार की तरफ से वार्ताकार बने एक बड़े वाले पत्रकार भी अमरीका घूम आए और भाषण दे आए थे। “दस्तावेजी तथ्यों” में फई ने आई.एस.आई. के उन अधिकारियों की भी पहचान की जो उसे रास्ता दिखाते थे। फई को जुलाई 2011 में पकड़ा गया था। अब सजा 9 मार्च को सुनाई जानी है। थ्
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