चर्चा सत्र
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देश के जबर्दस्त दबाव के आगे झुकी सरकार, लेकिन
* डा. अश्विनी महाजन
केन्द्रीय कैबिनेट द्वारा 24 नवम्बर 2011 को “मल्टी ब्रांड” खुदरा व्यापार में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति देने के निर्णय के देशव्यापी विरोध, 10 दिन तक लगातार संसद की कार्यवाही के स्थगन, कांग्रेस को छोड़ लगभग सभी राजनीतिक दलों, चाहे वे सत्ता का हिस्सा हों अथवा विपक्ष का, द्वारा इस निर्णय का प्रबल विरोध, यह सब इस बात का द्योतक है कि सरकार का हमारे यहां विदेशी कंपनियों को अपनी दुकान खोलने की अनुमति देने का निर्णय देश की जनता ने स्वीकार नहीं किया। आखिरकार सरकार झुकने को मजबूर हुई और अब सभी संबंधित पक्षों से राय-मशविरा करके ही कोई फैसला करने की बात कह रही है। लेकिन इस सरकार की मंशा तो आखिर फिर एक बार जाहिर हुई है कि देश का अहित करने वाला कोई भी कदम उठाने में इस सरकार को लज्जा नहीं आती। ऐसे में खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के इस नए शगल का गहन विश्लेषण आवश्यक हो जाता है।
सरकार का उक्त निर्णय उन 3.5 करोड़ लोगों, जो रेहड़ी, पटरी, खोमचा और छोटी-बड़ी दुकानों में प्रत्यक्ष रूप से संलग्न हैं और 1.5 करोड़ लोगों, जो अप्रत्यक्ष रूप से (जैसे- यातायात, भंडारण, थोक व्यापार इत्यादि) कार्यरत हैं, की रोजी-रोटी पर सीधा-सीधा प्रहार करने वाला है। दुनिया भर की बड़ी बहुराष्ट्रीय खुदरा कम्पनियां काफी समय से देश में लोगों की बढ़ती आमदनियों के चलते, एक बड़े बाजार पर कब्जा करने की कवायद में लगी हुई थीं। देश का कुल खुदरा व्यापार लगभग 20 लाख करोड़ रुपये का है। राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (सी.एस.ओ.) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद में खुदरा क्षेत्र का योगदान 8 प्रतिशत से अधिक है, थोक व्यापार का हिस्सा 7 प्रतिशत है और इस प्रकार कुल व्यापार का 15 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। उल्लेखनीय है कि श्री नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में, जब डा. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे, खुदरा क्षेत्र में विदेशी कम्पनियों को अनुमति दे दी गई थी। बाद की सरकार ने उसे निरस्त कर दिया था। लगभग 15 साल से भी अधिक समय से इस बाबत प्रयासों के बावजूद अभी तक खुदरा क्षेत्र में विदेशी कम्पनियों को आने की छूट न मिलने का कारण यह है कि इस नीति का विभिन्न वर्गों में भारी विरोध होता रहा है। संसद की स्थाई समिति ने इस बाबत बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा था कि विदेशी कम्पनियों के खुदरा क्षेत्र में प्रवेश के भारी दुष्परिणाम होंगे, इसलिए सरकार को इस नीति से बाज आना चाहिए।
क्यों है विरोध
खुदरा व्यापार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रवेश 1960 में हुआ। केवल चार दशकों में ही दुनिया के खुदरा व्यापार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने लगभग अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। वालमार्ट, टेस्को, कार फूर और खुदरा व्यापार में संलग्न कई अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों का व्यवसाय कई देशों की राष्ट्रीय आय से भी अधिक पहुंच चुका है। आज अमरीका में 90 प्रतिशत, यूरोप में 80 प्रतिशत, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में 50 से 60 प्रतिशत और चीन में भी लगभग 30 प्रतिशत खुदरा व्यापार पर बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां काबिज हो चुकी हैं। इसके साथ ही इन देशों में अधिकतर छोटे खुदरा व्यापारी प्रतिस्पर्धा से ही बाहर हो चुके हैं। इसलिए व्यापारियों के लिए अस्तित्व का खतरा बना हुआ है। यही नहीं, देश के उद्योगों, विशेष तौर पर लघु उद्योगों पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा। सर्वविदित है कि वालमार्ट सरीखी कंपनियां अपने माल की खरीद वैश्विक आधार पर करती हैं। वालमार्ट इस समय चीन का सामान खरीदने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। ऐसे में इन कंपनियों के माध्यम से देश में विदेशी उपभोक्ता वस्तुओं का आयात और अधिक बढ़ेगा, जिससे हमारे छोटे-बड़े उद्योग नष्ट हो जायेंगे। हमारी सरकार का यह कहना कि इन कंपनियों पर यह शर्त लगाई गयी है कि वे 30 प्रतिशत खरीद लघु उद्योग से करें, मात्र एक छलावा है, क्योंकि उन पर लगाई जाने वाली इस शर्त का मतलब यह है कि वे विश्व में कहीं के भी लघु उद्योगों से सामान खरीद सकेंगे। भारत में पहले से ही रोजगार की बदतर हालत और अधिक भयानक रूप ले सकती है।
गलत हैं सरकार के तर्क
सरकार ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दबाव में यह निर्णय लिया है और इस निर्णय के पक्ष में दिये जाने वाले तर्क भी वास्तव में उन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के तर्क हैं, जिन्हें सरकार मात्र दोहरा रही है। सरकार द्वारा यह कहा जा रहा है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए यह निर्णय लिया गया है। देश में महंगाई का प्रमुख कारण कृषि की अनदेखी है। कृषि की अनदेखी के चलते खाद्य पदार्थों का उत्पादन घट रहा है अथवा उसके बढ़ने की गति बहुत ही धीमी है। कृषि पदार्थों की कमी के चलते बड़ी कम्पनियां जमाखोरी में लगी हैं और कीमतों को बढ़ाने का काम कर रही हैं। अब खुदरा क्षेत्र में बड़ी कम्पनियों को अनुमति देने से इस प्रक्रिया को और बल मिलेगा और कीमतें और अधिक बढ़ेंगी।
सरकार का यह तर्क कि इससे भंडारण और कोल्ड स्टोरेज का “इन्फ्रास्ट्रक्चर” मजबूत हो जायेगा, सही नहीं है। ये कम्पनियां जो भी सुविधा बनायेंगी, वह केवल अपनी दुकानों के लिए ही बनायेंगी, किसान को लाभ देने के लिए नहीं। यूं भी भंडारण और कोल्ड स्टोरेज की सुविधायें उपलब्ध कराना कम्पनियों का नहीं सरकार का दायित्व है, जिसे आजादी के 64 वर्ष बाद भी सरकार ठीक ढंग से नहीं निभा रही। सरकार का यह तर्क कि इससे किसानों को बहुत लाभ होगा, सही नहीं है। दुनिया का इतिहास बताता है कि इन कम्पनियों के प्रादुर्भाव के कारण किसान का शोषण बढ़ा है और किसान को उसकी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता। ये कम्पनियां किसानों से ठेके पर खेती कराती हैं और चूंकि किसानों की इन कम्पनियों पर निर्भरता बढ़ जाती है, ये कम्पनियां उन किसानों का शोषण करने में सफल हो जाती हैं।
कृषि के बाद देश में सबसे ज्यादा रोजगार प्रदान करने वाला व्यवसाय यानी तथाकथित असंगठित खुदरा क्षेत्र आज सरकार की गलत नीति के कारण खतरे में पड़ गया है। सरकार द्वारा अतिरिक्त रोजगार प्रदान करने के सभी रास्ते लगभग बंद हैं। ऐसे में जब देश की सरकार किसी को रोजगार नहीं दे सकती तो उसे किसी का रोजगार छीनने का भी कोई अधिकार नहीं है।द
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