व्यंग्य बाण
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व्यंग्य बाण
विजय कुमार
युवराज काफी समय से बोर हो रहे थे। महारानी जी बीमारी में, तो राजकुमारी अपनी घर-गृहस्थी में व्यस्त थीं। युवराज की बचकानी हरकतों से दुखी बड़े सरदार भी उन्हें नहीं पूछ रहे थे।
युवराज की यह बेचैनी उनके चमचों से नहीं देखी जाती थी। एक बार वे उन्हें घेर कर बैठ गये।
– युवराज, चलिये कहीं पिकनिक पर चलें। इससे आपका मन हल्का हो जाएगा।
– कहां चलें ?
– किसी जंगल में चलें। सुना है नगालैंड और मेघालय के जंगलों में शेर और चीते बहुत हैं। वहां वनवासियों जैसे कपड़े पहन कर, नाचते हुए आपका फोटो मीडिया वाले बड़े चाव से दिखाएंगे।
युवराज कुछ बोले नहीं। उन्हें जिम कार्बेट पार्क का पिछला भ्रमण याद आ गया। उस दिन घूमते हुए शाम हो गयी थी, पर शेर तो दूर, किसी गीदड़ तक के दर्शन नहीं हुए थे। अचानक एक जंगली सुअर सामने से निकला। सब चिल्लाए – सुअर, सुअर।
इस शोर से चालक का ध्यान भी बंट गया और गाड़ी गङ्ढे में जा गिरी। सुरक्षाकर्मियों ने कूदकर युवराज को निकाला। उन्हें कुछ खरोंच आ गयी थी। अत: कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया।
जंगल की बात से युवराज को वह बात याद आ गई। उनका चेहरा देखकर दरबारी समझ गये कि युवराज को यह सुझाव पसंद नहीं आया।
पर युवराज की बोरियत कैसे दूर हो, यह प्रश्न अभी बाकी था। एक दूसरे दरबारी ने अपनी बुद्धिमत्ता झाड़ी – युवराज, क्यों न हम लोग तिहाड़ चलें ?
– क्या होगा तिहाड़ जाकर। वह कोई घूमने की जगह है ? तीसरा दरबारी दहाड़ा।
– घूमने की जगह तो नहीं है, पर हमारे दरबार और कारोबार के कई विश्वस्त साथी तो वहां हैं। हमारे जाने से उनका मनोबल बढ़ेगा। जेल से छूटने पर भी हमें उनका सहयोग तो लेना ही है।
तिहाड़ के नाम से युवराज के चेहरे पर भय की लकीरें खिंच गयी। वह उस दिन की कल्पना करने लगे, जब उनके कुछ अति विशिष्ट दरबारी और रिश्तेदार भी तिहाड़ में होंगे। तब तो मिलने जाना ही पड़ेगा, पर अभी से यह बदनामी मोल लेना ठीक नहीं है।
एक घंटा बीत गया, पर समस्या वहीं की वहीं थी।
– युवराज, आप गरीब देखने चलें। चौथे दरबारी ने कहा।
– ये कहां पाए जाते हैं ? युवराज ने पूछा।
– वैसे तो ये भारत के हर कोने में मिलते हैं, पर कई पीढ़ियों से जो आपकी पुश्तैनी जागीर है, वहां गरीबी कुछ अधिक ही है। गरीब लोग भी आपको देखकर बहुत खुश होंगे।
– पर एक बार हमारी दादी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। क्या उसके बाद भी गरीब बच गये..? युवराज ने आश्चर्य से पूछा।
– इस नारे से उस समय तक के सब गरीबों की गरीबी दूर हो गयी थी, पर उस बात को चालीस साल हो गये। अब नये गरीब पैदा हो गये हैं। आप उन्हें देखने चलें।
युवराज को यह सुझाव काफी अच्छा लगा।
– पर वहां रहने और खाने-पीने का क्या होगा ? भिखारियों का खाना खाकर और पानी पीकर तो मेरा पेट खराब हो जाएगा, और यहां वाला खाना हम उनके सामने खाएंगे, तो उन्हें बुरा लगेगा।
– उसकी आप चिन्ता न करें। बरतन उनके होंगे और सामान हमारा।
– पर मीडिया वाले….?
– उन्हें भी मैनेज कर लेंगे। आप तो हां कहिये। बाकी सब काम हमारे जिम्मे है।
युवराज ने बहुत दिनों से गरीब और गरीबी नहीं देखी थी। अपनी खानदानी प्रजा को दर्शन दिये भी उन्हें बहुत दिन हो गये थे। उन्होंने सहमति दे दी। दरबारी गदगदा उठे।
युवराज की बोरियत पूरी तरह दूर हुई या नहीं, यह तो अगले साल ही पता लगेगा, पर सुना है वे इन दिनों बहुत तेजी से गरीब और गरीबी दर्शन के कार्यक्रम निबटा रहे हैं। द
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