भिवंडी का वज्रेश्वरी मन्दिरजब देवी ने ऋषियों की रक्षा की
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जब देवी ने ऋषियों की रक्षा की
डा. लज्जा देवी मोहन
मुम्बई से 75 कि.मी. दूर ठाणे जिले के भिवंडी तालुके में मंदागिरी पर स्थित है वज्रेश्वरी माता का मन्दिर। 52 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। मन्दिर में प्रवेश करते ही “कूर्म” की स्वर्ण-मूर्ति के दर्शन होते हैं। मन्दिर के भीतर मध्य में वज्रेश्वरी देवी, बाईं ओर रेणुका (भगवान परशुराम की माता) तथा दाईं ओर कालिका देवी की प्रतिमाएं विराजमान हैं। इनके अलावा मन्दिर परिसर में परशुराम जी, गणेश जी, दत्तात्रेय, कपिलेश्वर महादेव, मोरवा देवी की मूर्तियां भी प्रतिष्ठित की गई हैं।
वज्रेश्वरी देवी को वज्रा योगिनी पार्वती देवी का अवतार कहते हैं। कहा जाता है कि वज्रेश्वरी माता का प्राचीन मन्दिर “बड़वाली” गांव से आठ किलो मीटर दूर “गुंज” के स्थान पर था। यह मंदिर पुर्तगाली सेना ने नष्ट कर दिया था।
सन् 1739 ई. में पेशवा बाजी के छोटे भाई चिमन जी अप्पा ने पुर्तगालियों से बसीन किले को मुक्त कराने के लिए “बड़वाली” गांव में शिविर लगाया। यह युद्ध तीन साल चलता रहा, परन्तु अप्पा जी किला जीत नहीं सके। उन्होंने वज्रेश्वरी देवी से प्रार्थना की, कि यदि वे किला जीत जाते हैं तो माता का भव्य मन्दिर बनवाएंगे। कहते हैं सपने में देवी ने उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद दिया। 16 मई को पुर्तगाली सेना हार गई। चिमन जी अप्पा ने सूबेदार शंकर फाड़के को वज्रेश्वरी माता का भव्य मन्दिर निर्माण का आदेश दिया।
वज्रेश्वरी मन्दिर से कुछ ऊंचाई पर श्रीगिरि गोसावी सन्त गोधड़े वुवा की समाधि (गौतम पर्वत पर) है। इस क्षेत्र के 5 कि.मी. के घेरे में गर्म पानी के 21 कुण्ड थे। इनमें स्नान करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिल जाती थी। अब कुछ कुण्ड सूख गए हैं। वज्रेश्वरी देवी की कथा विभिन्न पुराणों में इस प्रकार है- ऋषि भारद्वाज ने सातों पुरियों- अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवन्तिका, द्वारका की यात्राएं पूरी करने के पश्चात् यमुना, गंगा और सरस्वती में स्नान किया। तत्पश्चात् उन्होंने 12 ज्योतिर्लिंगों व चारों धामों की तीर्थ यात्राएं कीं। व्रत, दान, यज्ञादि करने के पश्चात् भी उनका मन शान्त नहीं हुआ। वज्रा नदी के तट पर उन्हें व्यास ऋषि मिले। उन्होंने व्यास जी से पूछा, “मुझे शान्ति क्यों नहीं मिलती।”
महर्षि व्यास जी ने ऋषि भारद्वाज जी की जिज्ञासा पूरी करते हुए कहा, “त्रेता युग में महर्षि वशिष्ठ हुए हैं। घोर तपस्या के बाद उन्हें दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई थीं। उसी समय कालकूट राक्षस ने ऋषि-मुनियों को तंग करना शुरू कर दिया था। “बड़वाली” क्षेत्र में उसने देवताओं के साथ युद्ध किया। देवों ने महर्षि वशिष्ठ के नेतृत्व में तेजाज नदी के तट पर चण्डी यज्ञ आरम्भ किया। यज्ञ में सभी देवों ने आहुतियां डालीं, परन्तु इन्द्र को आहुति नहीं डालने दी। (कभी-कभी इन्द्र का आचरण अशोभनीय रहा है, संभवत: इसीलिए इन्द्र को यज्ञ में आहुति नहीं डालने दी गई) इन्द्र बहुत नाराज हुआ। उसने वज्रास्त्र फेंका। भयभीत ऋषियों ने अपनी रक्षा के लिए देवी से प्रार्थना की। देवी ने राक्षसों को समाप्त कर दिया। श्री रामचन्द्र जी ने देवी से वहीं विराजमान रहने की प्रार्थना की।
वज्रेश्वरी देवी मन्दिर की इस क्षेत्र के लोगों में बड़ी मान्यता है। हिन्दुओं के सभी प्रमुख त्योहार यहां मनाए जाते हैं। यथा- रामनवमी, हनुमान जयन्ती, नवरात्रे, दशहरा दीपावली तुलसी विवाह, श्री दत्त जयन्ती, बसन्त पंचमी, होली आदि। द
इसलिए बढ़ रही है मुस्लिम आबादी
द आशीष कुमार “अंशु”
यदि कुल प्रजनन दर की बात करें तो दुनिया में मुसलमानों में यह सबसे अधिक है। मुसलमानों के बीच तेजी से बढ़ती जनसंख्या के पीछे समाजशास्त्री रोगर और पैट्रिका जेफरी उनकी सामाजिक, आर्थिक और मजहबी वजहों को देखते हैं। वहीं भारतीय समाजशास्त्री बी.के. प्रसाद कुछ अलग बात करते हैं- भारतीय मुस्लिम आबादी अपने हिन्दू साथियों के मुकाबले अधिक शहर केन्द्रित है। शिशु मृत्यु दर की बात करें तो यह मुसलमानों में 12 फीसदी है।
1996 में तैयार एक समिति के अनुसार इक्कीसवीं सदी के अंत तक भारत में मुस्लिमों की आबादी 34 करोड़ के आस-पास पहुंच जाएगी। प्रसिद्ध जनसंख्याविद् फिलिप लांगमैन ने लिखा है कि हिन्दू और मुस्लिमों की जनसंख्या में वृद्धि दर का यह अंतर समाज के सद्भाव में खटास ला सकता है।
“द फ्यूचर ऑफ ग्लोबल मुस्लिम पोपुलेशन” की रपट बताती है कि अगले दो दशक में गैर मुस्लिमों की तुलना में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर दोगुनी होगी। वर्तमान में दुनिया की आबादी में मुस्लिमों की भागीदारी 23.4 प्रतिशत (6.9 बिलियन) है, जिसकी 2030 तक बढ़कर 26.4 प्रतिशत (8.3 बिलियन) होने की संभावना है। “द पियू फोरम ऑन रिलिजन एंड पब्लिक लाइफ” की रपट के अनुसार इस वक्त 72 देशों में मुस्लिम आबादी दस लाख से ज्यादा है, यदि जनसंख्या विकास दर यही रही तो 20 साल में 79 देश ऐसे होंगे जहां मुस्लिम आबादी 10 लाख से अधिक होगी।
मुस्लिम समाज में जनसंख्या वृद्धि के इस चलन को समझने के लिए हाल में ही हरियाणा के मुस्लिम बहुल मेवात के कुछ गांवों में जाना हुआ। इस यात्रा की शुरुआत हुई मोहम्मद ईशाक के घर से, जो पिछले एक से अधिक साल से मीडिया से दूरी बनाए हुए हैं, वरना उससे पहले अपने तेईस बच्चों की वजह से वे देसी नहीं विदेशी मीडिया के लिए भी आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। ईशाक से मिलने के लिए उनके गांव अकेड़ा (नूंह) गया था। अब मीडिया से दूरी क्यों बनाई, इसके जवाब में वे कहते हैं कि शरियत उन्हें तस्वीर की इजाजत नहीं देता। जबकि एक साल पहले तक तमाम देसी-विदेशी मीडिया में छपी अपनी तस्वीरों के लिए वे कोई सफाई नहीं दे पाते। इस समय उनकी बहू और पत्नी दोनों गर्भवती हैं, यानि तेइसवें के बाद चौबीसवें की तैयारी है। ईशाक की शादी को अभी पैंतालिस साल हुए हैं।
जामा अल अजहर विश्वविद्यालय, मिस्र के ख्याति प्राप्त इस्लामी चिन्तक शेख जादउल हक अली के अनुसार-कुरआन की तमाम आयतों के गहरे अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि इनमें से कोई आयत ऐसी नहीं है जो गर्भ रोकने या बच्चों की संख्या को कम करने को हराम करार देती हो।
हम अकेड़ा से निकल कर कुछ अन्य गांवों से होते हुए हतीम के खाइका गांव पहुंचे। यह क्षेत्र मेवात के अंदर पलवल जिले में आता है। यहां मिले जाकिर हुसैन और नजीर अहमद। इन दोनों के क्रमश: बारह और तेरह बच्चे हैं। जाकिर को क्रम से याद नहीं है कि कौन सा बच्चा पहले आया और कौन सा बाद में। नजीर को तो अपने बच्चों के नाम तक याद नहीं हैं। जब असमंजस में होते हैं तो बच्चे से ही पूछ लेते हैं कि तुम्हारा नाम क्या है? लेकिन इस बात पर दोनों की सहमति है कि खुदा दे रहा है तो हम कौन होते हैं, उसके दिए को अस्वीकार करने वाले। जाकिर चुटकी लेते हुए कहते हैं, अपना इरादा तो ट्वेंटी-ट्वेंटी का है। ट्वेंटी मेरे और ट्वेंटी नजीर के।
मेवात के इन गांवों में छह-सात-आठ बच्चों वाले परिवार आम सी बात है। जो एक खास बात नजर आई इन गांवों में वह यह कि इतनी संख्या में बच्चों की वजह मजहब नहीं है, बल्कि गांव वालों के बीच शिक्षा का अभाव है। समाज में जागरूकता नहीं है। राह चलते कोई सड़क छाप व्यक्ति कोई बात कह गया तो गांव के लोग उस बात को दिल से लगाकर बैठ जाते हैं। ऐसे जोड़े भी मेवात के जिलों में बहुतायत में हैं, जिन्होंने सही देख-भाल के अभाव में अपने छोटे-छोटे बच्चे खोएं हैं। जब हम नजीर से बात कर रहे थे, उसी वक्त पता चला कि एक दिन पहले ही उन्होंने अपना एक बच्चा खोया है। गांव वाले बिल्कुल निर्दोष जान पड़े क्योंकि वे उस व्यक्ति की बात माने बैठे हैं, जिन्हें खुद इस्लाम की समझ नहीं है। खैर, यह बात हम गांव से निकलते-निकलते ही जान पाए कि पूरे समय हमारे साथ जो नजीर गांव के सरपंच बने घूमते रहे, वास्तव में उनकी पत्नी फजरीजी गांव की सरपंच थीं।द
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