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तेज होंगी आतंकवादी गतिविधियां

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Oct 29, 2011, 12:00 am IST
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कश्मीर को बचाने के लिए करना होगाप्रचण्ड जनांदोलन

दिंनाक: 29 Oct 2011 16:11:20

पाकिस्तान प्रायोजित अलगाववाद/आतंकवाद से ग्रसित जम्मू कश्मीर में इन दिनों कुछ अमन-चैन बताया जा रहा है। प्रदेश और देश के सरकारी प्रवक्ता इसे स्थाई शांति की ओर बढ़ रहे माहौल की संज्ञा दे रहे हैं, जबकि कश्मीर घाटी की भीतरी परिस्थितियों के जानकार इसे किसी बड़े तूफान के पहले का खामोश सन्नाटा बताते हैं। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस कथित शांति के वातावरण के आधार पर जम्मू-कश्मीर में अशान्त क्षेत्र अधिनियम के तहत लागू सशस्त्रबल विशेषाधिकार कानून को समाप्त करने का फैसला कर लिया है, जबकि सुरक्षा विशेषज्ञों ने इस प्रकार के किसी भी फैसले पर गहरी चिंता प्रकट की है।

भारतीय सेना की उत्तरी कमान के प्रवक्ता के अनुसार जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में लगभग आठ सौ प्रशिक्षित आतंकी युवक मौजूद हैं। इन आतंकियों के पास भारी मात्रा में आधुनिक हथियारों का भण्डार है। यदा कदा हो रहीं आमने-सामने की मुठभेड़ों में जिंदा पकड़े गए आतंकियों से मिलने वाली जानकारी के अनुसार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लगभग पांच दर्जन प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं। इनमें तैयार तीन हजार से भी ज्यादा कश्मीरी युवकों की सशस्त्र टोलियां कश्मीर घाटी में घुसने के लिए तैयार हैं। जम्मू संभाग के पुंछ, किश्तवाड़, डोडा, अखनूर एवं कश्मीर घटी के अनंतनाग, सोपुर, शोपियां, बारामूला तथा श्रीनगर के बाहरी क्षेत्रों में पहले से सुलग रही आतंकी आग को तेज करने के आतंकी मंसूबे गढ़े जा रहे हैं। आतंकियों के गुप्त ठिकानों से पकड़े जा रहे हथियारों के जखीरे भी यही संकेत दे रहे हैं कि आतंकवाद ने दम नहीं तोड़ा और न ही अलगाववादी संगठनों ने “जंगे आजादी” को जारी रखने के इरादों को कमजोर होने दिया है।

इन परिस्थितियों एवं चुनौतियों की पूर्णतया अनदेखी करके जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री द्वारा भारतीय सेना एवं अन्य सशस्त्र बलों के हाथ-पांव बांधने की तैयारियों से अलगाववादी संगठनों के आजादी की ओर बढ़ते जा रहे कदमों की रफ्तार तेज होगी। अपने दल नेशनल कांफ्रेंस के घोषित एजेंडे स्वायत्तता के लिए समर्थन जुटाने की फिराक में उमर अब्दुल्ला ने कई बार दोहराया है कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय अधूरा है। इस सीमावर्ती प्रांत में व्याप्त समस्याएं मात्र कानून व्यवस्था का संकट नहीं हैं। विकास और आर्थिक पैकेज कश्मीर समस्या का समाधान नहीं कर सकते।

अलगाववादी और मुख्यमंत्री

एक विशेष समुदाय के मजहबी उन्माद से उपजी कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए राजनीतिक पैकेज मांग रहे मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर के उन 80 प्रतिशत नागरिकों के कष्ट और मंशाएं नजर नहीं आतीं, जो अलगाववाद का समर्थन नहीं करते। लद्दाख और जम्मू सम्भाग के प्रति हो रहे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक भेदभाव की उन्हें रत्ती भर भी परवाह नहीं है। कश्मीर से उजाड़ दिए गए चार लाख से ज्यादा हिन्दुओं की घरवापसी, विभाजन के समय जम्मू में आकर बसने वाले लाखों हिन्दुओं की नागरिकता का मुद्दा, भारत पाक मुद्दों के समय सीमांत क्षेत्रों से रक्षा योजना के अंतर्गत विस्थापित कर दिए गए लोगों के पुनर्वास और आतंक पीड़ित समुदायों की जरूरतों की ओर मुख्यमंत्री का ध्यान नहीं जाता।

जम्मू-कश्मीर की अनेकविध समस्याओं को आंखों से ओझल करके मात्र कश्मीर केन्द्रित अलगाववाद से प्रेरित होकर अपनी राजनीतिक गोटियां चलाने वाले दलों, कट्टरपंथी/मजहबी संगठनों, हिंसक आतंकवादियों और पाकिस्तान के एजेंटों ने वास्तव में कश्मीर समस्या के समाधान के रास्ते में बाधाएं खड़ी की हैं। यह भारत विरोधी साजिशें पाकिस्तान के निर्माण के साथ ही शुरू हो गई थीं जो आज तक निर्बाध गति से न केवल चल रही हैं अपितु केन्द्र सरकारों की अति कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण बढ़ती जा रही हैं।

एक ही थैली के चट्टे-बट्टे

कश्मीर-घाटी में सक्रिय हुर्रियत कांफ्रेंस, जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और फ्रीडम पार्टी जैसे अलगाववादी संगठन आजादी मांग रहे हैं। इनके संरक्षण में आतंकवादी संगठन भारत की सेना से भिड़ रहे हैं। अलीशाह गिलानी के नेतृत्व वाला तहरीके हुर्रियत गुट पाकिस्तान में शामिल होने के षड्यंत्र रच रहा है। कश्मीर केन्द्रित राजनीतिक दलों में सत्ताधारी नेशनल कांफ्रेंस ने स्वायत्तता और विपक्षी दल पीडीपी ने स्वशासन जैसी देशविरोधी मांगों के झंडे उठा रखे हैं। इन सभी संगठनों, दलों एवं गुटों के नेता भारत के बड़े-बड़े शहरों में जाकर बिना किसी रोकटोक के अपने एजेंडे का प्रचार करते हैं। वोट बैंक की राजनीति कर रहे देश के अनेक राजनीतिक दल इन्हें आशीर्वाद देते हैं।

अलगाववादी संगठनों के नेता सार्वजनिक रूप से ऐलान करते हैं कि कश्मीर में चल रहा जिहाद कश्मीरियत की रक्षा के लिए है। उनकी इस कश्मीरियत का कश्मीर की धरती, सभ्यता एवं इतिहास से कोई लेना देना नहीं है। कश्मीर को लूटने, बर्बाद करने और गुलाम बनाने वाले विदेशी हमलावरों की उस तहजीब को कश्मीरियत कहा जा रहा है जिसका कश्मीर के उज्ज्वल/गौरवशाली अतीत से कोई वास्ता नहीं। यही अलगाववाद कश्मीर की वर्तमान समस्या की जड़, आधार और प्रेरणा है।

कश्मीरियत बनाम विदेशी तहजीब

विदेशी “कश्मीरियत” के इन्हीं भारत विरोधी संस्कारों से ओत-प्रोत कश्मीर केन्द्रित सभी राजनीतिक दल/संगठन अपने कथित राजनीतिक अधिकारों की आड़ में सुरक्षा बलों के विशेषाधिकारों की समाप्ति, हिंसक दहशतगर्दों की जेलों से रिहाई, पाकिस्तान की मुद्रा को जम्मू कश्मीर में जारी करने, नियंत्रण रेखा को समाप्त करने, पूरे प्रदेश पर भारत पाकिस्तान का संयुक्त नियंत्रण कायम करने एवं भारतीय सेना की वापसी जैसे खतरनाक मुद्दे उठा रहे हैं। इस प्रकार के सभी भारत विरोधी मुद्दों के पीछे अनुच्छेद 370 का आवरण है।

वास्तव में भारतीय संविधान के इसी अनुच्छेद 370 ने कश्मीर घाटी के समाज को भारत से कटकर रहने की प्रेरणा दी है। इसी अनुच्छेद ने अलगाववादी कश्मीरियत को बल प्रदान किया है। श्रीरामजन्मभूमि के ताले खुलने के समय कश्मीर घाटी के सौ से ज्यादा मंदिरों की तोड़-फोड़, पिछले 22 वर्षों से पनप रहे हिंसक आतंकवाद, हिन्दुओं के सामूहिक पलायन, भारतीय ध्वज एवं संविधान का अपमान, “भारतीय कुत्तो” वापस जाओ जैसे नारे, पाकिस्तानी एजेंटों की भरमार और आतंकी गुटों की बढ़ती तादाद का मुख्य कारण यह अलगाववादी “कश्मीरियत” ही है जिसने अनुच्छेद 370 का संवैधानिक सहारा लेकर कश्मीर घाटी के ज्यादातर समाज विशेषतया युवकों को भारत राष्ट्र की मुख्य धारा से काटने का षड्यंत्र       रचा है।

तुष्टीकरण से नहीं होगा समाधान

यही वजह है कि भारत की सरकारों द्वारा दिए गए एवं दिए जा रहे अरबों रुपयों के अनुदान/पैकेजों, अनेक प्रकार की रियायतों, भेजे गए सरकारी गैर सरकारी शिष्ट मंडलों, वार्ताकारों और गठित किए गए कार्य समूहों का कोई भी असर घाटी में पनप चुकी अलगाववादी मानसिकता पर नहीं हुआ। सच्चाई तो यह है कि वोट बैंक पर आधारित राजनीति करके सत्ता के गलियारों तक पहुंचे शासकों द्वारा पढ़ाए गए वार्ताकारों ने भी अलगाववादियों की हां में हां मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फलत: यह अलगाववादी मनोवृत्ति कश्मीरी अलगाववाद को समाप्त नहीं कर सकी, उलटा उसे हवा दे रही है।

अब महत्वपूर्ण प्रश्न यही है कि पिछले 64 वर्षों से पनप रहे अलगाववाद अर्थात् कश्मीर समस्या का समाधान कैसे होगा? इसके लिए क्या किया जाए? सरकारें, राजनीतिक दल, आर्थिक सहायता, समझौते, प्रस्ताव, वार्ताएं सब विफल हो चुके हैं। देश की सुरक्षा, अखंडता पर दलगत राजनीति हावी हो रही है। हमारी ढुलमुल कश्मीर नीति की वजह से पाकिस्तान के हौसले बुलंद हो रहे हैं। स्वायत्तता चाहने वाले दल नेशनल कान्फ्रेंस की प्रदेश सरकार को केन्द्र में काबिज राजनीतिक दल कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है और स्वायत्तता के सशक्त और प्रथम ध्वजवाहक केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हैं। यही राष्ट्रघातक सिलसिला पिछले 6 दशकों से चल रहा है। कश्मीर समस्या को सुलझाने के रास्तों पर दलगत राजनीति के कांटे बिखेरे जा रहे हैं। भारत की सुरक्षा के साथ जुड़े इस संकट के हल के लिए कहीं कोई राष्ट्रीय सहमति बनती नजर नहीं आ रही।

जनजागरण से झुकेगी सरकार

अब एक ही मार्ग शेष बचा है राष्ट्रव्यापी प्रचंड जनांदोलन। एक ऐसा संघर्ष जिसका नेतृत्व किसी एक राजनीतिक दल के हाथों में न होकर जनता के हाथों में हो। अहिंसा, सत्य और देशभक्ति पर आधारित एक ऐसा जनजागरण जो सभी राजनीतिक दलों को कश्मीर पर राष्ट्रीय सहमति बनाने को बाध्य कर दे। भारत की जनता में इस तरह का साहस, उत्साह और विवेक है। जिन भारतीयों ने निरंतर 1200 वर्षों तक दुर्दांत विदेशी आक्रमणकारियों से लोहा लिया है, जिन भारतीयों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षार्थ हुए अनेक जनांदोलनों के माध्यम से सत्ताधारियों को झुकाया है, वही भारतीय जब संगठित होकर कश्मीर बचाओ आंदोलन के झंडे को थामकर आगे बढ़ेंगे तो सभी देशघातक शक्तियां परास्त होंगी।

सारा संसार भारतीयों के इस सामथ्र्य को जानता है। हमने प्रजा परिषद जैसे आंदोलन को चलाकर पंडित नेहरू और शेख मुहम्मद अब्दुल्ला को झुकाकर कश्मीर को बचाया था। हमने देशभर में सत्याग्रह करके गोवा मुक्ति आंदोलन के रूप में संघर्ष करके गोवा को पुर्तगालियों के शिकंजे से छुड़वाया था। हमने गो रक्षा जैसे प्रबल जनांदोलन करके समाज को जाग्रत किया है। लोकतंत्र के हत्यारे आपातकाल को देशव्यापी सत्याग्रह करके उखाड़ फेंकने में हमने अद्भुत सफलता प्राप्त की है। हमारी ही संगठित शक्ति ने रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन करके परकीय दासता के चिन्हों को मिटाकर राष्ट्रीय अस्तित्व की रक्षा की है। हमने गैर राजनीतिक धरातल पर अमरनाथ भूमि आंदोलन का संचालन करके अलगाववादियों के कब्जे से हिन्दू यात्रियों की भूमि को छुड़ाया है। हाल ही में हमारी इसी शक्ति का परिचय कालाधन और भ्रष्टाचार के विरोध में सम्पन्न हुए जनांदोलनों में मिला है।

बजेगा जन प्रतिकार का बिगुल

कश्मीर को बचाने, कश्मीरी समाज को राष्ट्रीय धारा से जोड़ने, अलगाववादियों को परास्त करने और जम्मू-कश्मीर में अभी भी सक्रिय राष्ट्रवादी शक्तियों को बल प्रदान करने के लिए यथाशीघ्र एक जनांदोलन के बिगुल बज उठेंगे। अनुच्छेद 370 हटाओ, जम्मू-कश्मीर के अलग झंडे और संविधान को समाप्त करो, स्वायत्तता और स्वशासन जैसी मांगें उठाने वाले दलों का राजनीतिक बहिष्कार करो, अलगाववादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाओ, आतंकवादियों को सख्ती से कुचलो और प्रशासन में छिपे पाक समर्थकों, मजहबी स्थलों में छिपे उपद्रवियों, जंगलों में स्थापित गुप्त ठिकानों में शरण लिए पाकिस्तानी घुसपैठियों पर सख्त कार्रवाई करो। इस तरह के जयघोष देश के कोने- कोने में गूंजने चाहिए।

कश्मीर की रक्षा के लिए इस प्रकार का राष्ट्रव्यापी जनांदोलन अवश्यमेव सफल होगा। सरकारें झुकेंगी। विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं की सुरक्षित एवं सम्मानजनक घरवापसी होगी। भारत समर्थक देशभक्त मुसलमान स्वयं आगे आकर कश्मीर में चल रही भारत विरोधी हवा का रुख बदल देंगे। भारतीय संस्कृति के उद्गम स्थल कश्मीर का उज्ज्वल अतीत पुन: लौटेगा।

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