इस राजनीतिक ढांचे पर हो चोट
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* रमेश नैयर
ग्यारह सितंबर को लोकनायक जयप्रकाश की जयंती पर एक प्रार्थना सभा में एक वयोवृद्ध पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने देश की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “शक होने लगा है कि वर्तमान सरकार देश भी बचा सकेगी या नहीं।” भ्रष्टाचार से समूचा तंत्र इस कदर खोखला हो गया है कि वह एक बड़े झटके में भरभरा कर बिखर सकता है। देश को भीतर से माओवादी और जिहादी आतंकवादी लहू-लुहान कर रहे हैं। चीन और पाकिस्तान के ताजा गठजोड़ से उत्पन्न खतरों को अपेक्षित गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। उनके पोषण, प्रशिक्षण और प्रोत्साहन से देश के भीतर सक्रिय आतंकवादियों के शमन की सरकार में न तो इच्छाशक्ति नजर आती है और न ही कोई स्पष्ट रणनीति। और भी त्रासद स्थिति यह है कि केन्द्र सरकार इस अप्रिय सत्य को स्वीकार भी नहीं कर रही है कि सीमा पार से भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर संकट की गर्म हवाएं आ रही हैं। अनुशासन की मर्यादाओं का निष्ठापूर्वक निर्वाह करने वाली सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख भी आसन्न संकट का उल्लेख कर चुके हैं। कहा गया है कि पाकिस्तान की ओर से कभी भी हमला हो सकता है। परंतु अधिक से अधिक सत्ता सुख भोगने में तन्मय सत्ताधारी अपने पदों की सुरक्षा को ही सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे हैं। दुश्मनों के सामने भीगी बिल्ली बनी रहने वाली सरकार का सारा नजला देश की जनता पर गिरता है।
भ्रम फैलाने की रणनीति
कुशासन और सर्वग्रासी भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता में कसमसाहट दिखाई देने लगी है तो सरकार एक और आपातकाल लगाने जैसी तैयारियों में जुट गयी है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे बाबा रामदेव के समर्थन में जुटे देशभर के सत्याग्रहियों पर दिल्ली के रामलीला मैदान में आधी रात के बाद पुलिसिया कहर बरपा दिया गया। अण्णा हजारे को भी हिरासत में लेकर तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया। परंतु बाबा रामदेव के समर्थकों पर किये गये पुलिस बल प्रयोग की बर्बरता से आहत लोकमानस को जब लगा कि पानी अब सिर से गुजरने लगा है, तो सरकार विरोधी जनाक्रोश का एक संयत झंझावात देश भर में अंगड़ाई ले उठा। नख-शिख भ्रष्टाचार में डूबी सरकार के सामने अण्णा हजारे को रिहा करने के अलावा कोई चारा रह नहीं गया था। जनता में भरपूर भ्रम फैलाने की रणनीति अपनाते हुए सरकार ने अन्ना हजारे और उनकी टीम में मतभेद पैदा करने के लिए हिटलरी गोयबल्स की दुष्प्रचार कार्यशैली अपनाई। वही नारे और सियासी फतवे उछाले जाने लगे जो 1975 में आपातकाल लगाने की पूर्व पीठिका के दौरान तराशे गये थे।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोक चेतना का निर्माण करने वालों को सरकारी विदूषकों द्वारा उपहास का पात्र बनाने के प्रहसन किये गये। सरकार के प्रवक्ता, मंत्री और मुसाहिब उसी भाषा का प्रयोग करने लगे जो 1973 से 1977 के दौरान अक्सर सुनी जाती थी। तटस्थ और निर्भीक समाचार पत्रों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया गया। इलेक्ट्रानिक मीडिया की गर्दन दबोचने के लिए सरकार ने टी.वी. चैनलों के लिए नयी नीति लागू करने का निर्णय लिया है। इसके तहत समाचार चैनलों पर विशेष नियंत्रण के प्रावधान किये गये हैं। इनके अनुसार यदि कोई चैनल नव निर्धारित सीमाओं का उल्लंघन करता पाया जाता है तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जायेगा। इसके निर्णय का अधिकार एक शासकीय समिति को दिया गया है। स्पष्ट है मीडिया का गला घोंटने की दिशा में तैयारियां चल रही हैं। सरकार नियंत्रित मीडिया का उपयोग विरोधी दलों के नेताओं तथा सरकार विरोधी सामाजिक कार्यकर्ताओं में भ्रम पैदा करने और उनके चरित्र हनन के लिए किया जा रहा है। कांग्रेस के अनेक नेताओं और कुछ मंत्रियों की भाव-भंगिमा भी आपातकाल के खलनायकों का स्मरण कराने लगी है।
भ्रष्टाचारियों को संरक्षण
राष्ट्र की शिराओं में भ्रष्टाचार के विषाणु प्रविष्ट करने वाली सरकार अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने वालों को प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती। डा. मनमोहन सिंह की सरकार को बचाने के लिए लोकसभा सदस्यों की निष्ठा करेंसी नोटों से खरीदने के घृणित खेल को जिन सांसदों ने संसद में साक्ष्यों सहित उजागर किया, उन्हें ही बंदी बना कर जेल में डाल दिया गया। लोकतंत्र को प्रदूषित करने और भ्रष्टाचारियों को मुक्त संरक्षण देने में सरकार समस्त मर्यादाओं को लांघ रही है। विदेश में जमा काले धन को वापस लाने के लिए उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर गठित विशेष जांच दल को ठंडे बस्ते में बांधा जा रहा है। विश्व में इससे पूर्व भारत की छवि कभी इतनी मलिन न थी। ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल की इस टीप को दोहराने की आवश्यकता नहीं कि विश्व के 178 भ्रष्टतम देशों में भारत 87वें क्रम पर है। बड़े देशों को लें तो हम भ्रष्टतम चार राष्ट्रों में गिने जाते हैं। भ्रष्टाचार को ढांपने के लिए दिये जा रहे राजनीतिक संरक्षण और उसकी ओर से जनता का ध्यान बंटाने के प्रयासों को लोकतांत्रिक विश्व घृणा से देख रहा है। अंतरराष्ट्रीय पत्र “द इकॉनामिस्ट” ने भ्रष्टाचार के संदर्भ में भारत को ऐसा देश करार दिया है जो सड़ांध मार रहा है। वैश्विक स्रोतों का कहना है कि स्विस बैंकों में सर्वाधिक धन भारतीयों का जमा है।
भ्रष्टाचार के नित नये खुलासों की श्रृंखला अंतहीन प्रतीत होने लगी है। राष्ट्रमंडल खेलों, आदर्श सोसायटी और लाखों-करोड़ के 2जी स्पैक्ट्रम सहित अनेक घोटालों के तार सत्ता के शिखर तक जुड़े हुए मालूम होते हैं। शायद ही कोई दिन जाता होगा जब केन्द्र तथा कांग्रेस शासित राज्यों में विकराल घोटालों का खुलासा न होता हो। 10 अक्टूबर को राष्ट्रमंडल खेल घोटालों के बारे में एक नया तथ्य प्रकाश में आया। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया द्वारा सूचना के अधिकार के तहत दायर एक याचिका पर केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त ने बताया कि खेलों में भ्रष्टाचार के जिन 26 प्रकरणों की जांच चल रही है उनके अतिरिक्त 71 और नये घोटालों के प्रकरण भी प्रकाश में आये हैं। अकेले राष्ट्रमंडल खेलों के “ऊंचे खिलाडियों” ने घोटालों का शतक बना लिया। यह सब सरकार की सहमति अथवा सरकार में स्थापित राजनेताओं की सक्रिय भागीदारी के बिना संभव नहीं हो सकता था। खेलों के आयोजन से लेकर उस हेतु कराये गये समस्त निर्माण कार्यों, खेलों के टिकटों की बिक्री, खेलों के प्रसारण अधिकार देने और खिलाड़ियों के लिए सामग्री खरीदने, उनको ठहराने की व्यवस्था करने और उनके भोजन तक में भारी बटमारी की गई। भारत की जो छवि विश्व में पहले ही मलिन पाई गई थी, जिसके चलते अनेक दिग्गज खिलाड़ी उनमें भाग लेने के लिए नहीं आये थे। जो आये वे भ्रष्टाचार की सड़ांध देखकर संतप्त रहे। वे अपने साथ जो जुगुप्सापूर्ण अनुभव लेकर गये उनकी विश्व मीडिया में काफी चर्चा हुई।
सनसनीखेज खुलासा
सरकारी संरक्षण में भ्रष्टाचार का बहुत ताजा दृष्टांत गोवा का है, जहां बड़े पैमाने पर हुए खनन घोटाले को दबाने के निर्लज्जतापूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं। लोक लेखा समिति ने अवैध खनन संबंधी एक रपट तैयार की है। इसमें दिगंबर कामत की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। प्रतिपक्ष के नेता मनोहर परिकर ने रपट विधानसभा के पटल पर रखनी चाही। परंतु विधानसभा अध्यक्ष प्रताप सिंह राणे ने रपट ही सदन में नहीं रखने दी। लोक लेखा समिति की रपट नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा पाये गये निष्कर्षों पर आधारित थी। गोवा से लौह अयस्क के खनन एवं विक्रय में भारी अनियमितताओं का उल्लेख है, जिनमें सैकड़ों करोड़ रुपयों का वारा-न्यारा हुआ है। इन सनसनीखेज खुलासों की जांच को पटरी से उतारने में कामत सरकार ने दिन-रात एक कर दिया। उसमें मुख्यमंत्री ने विशेष रुचि ली, क्योंकि खनन विभाग उनके ही पास है। लोक लेखा समिति की रपट में खनन घोटाले में राजनीतिज्ञों, विभिन्न विभागों के अधिकारियों, उद्योगपतियों और सत्ता के दलालों की चांडाल चौकड़ी के गठबंधन की ओर संकेत किये गये हैं। जितनी निर्लज्ज तत्परता के साथ लोक लेखा समिति की रपट को दबाया जा रहा है उससे प्रतिपक्ष के इन आरोपों की पुष्टि होती है कि गोवा के खनन घोटाले में कांग्रेस के कुछ शिखर नेता भी शामिल हैं। यदि सदन में खुली चर्चा होती तो आंच उन तक भी पहुंचती।
अनियंत्रित हो चुकी महंगाई के पीछे भी भ्रष्टाचार देखा जा रहा है। देश के 80 करोड़ से अधिक नागरिकों को महंगाई के कारण पोषक आहार उपलब्ध नहीं हो पाता। लगभग 50 करोड़ को तो भर पेट भोजन भी उपलब्ध नहीं है। आर्थिक विषमता की खाई निरंतर फैलती जा रही है। इसके लिए वह आर्थिक नीति भी दोषी है जो एक राष्ट्र में दो देशों का निर्माण कर चुकी है। एक ओर है तीस-पैंतीस करोड़ का “शाइनिंग इण्डिया” और दूसरी ओर है अस्सी-पचासी करोड़ का असहाय भारत। “शाइनिंग इंडिया” की चमक भारत के शोषण से बढ़ रही है। सत्ताधारी, उनके समर्थक, चारण तथा अधिकतर नौकरशाह “शाइनिंग इंडिया” के निवासी हैं। एक अनुमान के अनुसार राष्ट्र की 95 प्रतिशत संपदा इन्हीं के पास है। विदेशी बैंकों में और उनसे बाहर जो अकूत काला धन जमा है वह भी भारत की लूट से संपन्न हुए “शाइनिंग इंडिया” का ही है। इस “शाइनिंग इंडिया” का भारतीय सभ्यता, संस्कृति और जीवन मूल्यों से कोई लगाव नहीं रह गया है। यह उस पाश्चात्य अपसंस्कृति से आक्रांत है जिसने स्वतंत्रता प्राप्त होने के तत्काल बाद भारत को मानसिक दासता में जकड़ना शुरू कर दिया था।
राजनीति की आत्मा नैतिकता
भारतीय परंपरा में राज को नीति पर आधारित माना जाता रहा है। नीति का शाब्दिक अर्थ है अभीष्ठ की ओर ले जाना। जिस नीति से राजकाज का संचालन तथा नियमन होता है वह कहलाती है राजनीति। संपूर्ण राज्य ही राजनीति की परिधि में आता है। सरकार का गठन, मंत्रियों का दायित्व, आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय संबंध, लोकमत, न्याय व्यवस्था, संविधान तथा राजनीतिक दल सभी भारतीय परंपरा की राजनीति में आते हैं। राजनीति की आत्मा नैतिकता को माना गया है। भारतीय परंपरा के अनुसार राजकाज नीति से तभी संबद्ध रह सकता है जब शासक का आचरण नैतिकता पूर्ण हो, उसकी धर्म पर आस्था हो। महाकवि वाल्मीकि ने लिखा था :
धर्मेण शासिते राष्ट्रे न च बाधा प्रवर्तते।
नाधयो व्याधयश्चैव रामे राज्यं प्रशासति।।
(अर्थात् धर्मानुसार शासित राज्य में कोई परेशानी नहीं होती। इसलिए श्री राम के राज्य में कोई आधि-व्याधि नहीं थी।)
नीति से विचलन
दुर्भाग्य से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम कुछ ऐसा चला कि स्वतंत्र होते ही भारत की बागडोर ऐसे व्यक्ति के हाथों में पहुंच गई जो पाश्चात्य संस्कृति से आप्लावित था। प्रथम प्रधानमंत्री ने अमरीकी राजदूत से अपनी एकांतिक भेंट में कहा भी था “मैं इंडिया का अंतिम अंग्रेज शासक हूँ।” वस्तुत: राजसत्ता का नीति से विचलन भी उसी समय हो गया था। असंख्य दृष्टांत और कथन हैं, जो प्रमाणित करते हैं कि भारतीय लोकतंत्र उसी समय बीमार पड़ने लगा था। आर्थिक भ्रष्टाचार की कोपलें भी उसी समय फूटने लगी थीं। लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की पुत्री मणिबेन की प्रकाशनाधीन डायरी “इनसाइड स्टोरी ऑफ सरदार पटेल – द डायरी ऑफ मणिबेन पटेल-1934-1950” के कुछ अंश भारत के एक प्रमुख हिन्दी दैनिक में पिछले दिनों प्रकाशित हुए। उनमें अब तक अज्ञात कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख है। उनसे पता चलता है कि प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भ्रष्टाचार को प्रश्रय दिया।
जुलाई 1950 में जब स्वयं उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने फिरोज गांधी तथा रफी अहमद किदवई द्वारा रिश्वत लेकर लाइसेंस बेचने के प्रमाण पं. नेहरू के सामने रखे तो प्रधानमंत्री ने चुप्पी धारण कर ली। डायरी में उल्लेख है कि किदवई ने यहां तक धमकी दे दी थी कि यदि उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई की गई तो वह नेहरू को ब्लैकमेल करेंगे। सब जानते हैं कि पंथनिरपेक्षता के नाम पर कैसे-कैसे स्वांग रचे गये। राष्ट्रवादियों को किस प्रकार प्रताड़ित किया गया। कश्मीर को कैसे उलझाया गया। इस कटु सत्य से इनकार कैसे किया जा सकता है कि राजनीतिक हत्याओं की शुरुआत भी उसी समय हो गई थी। प्रखर राष्ट्रवादी नेता डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की कश्मीर में हत्या प्रथम प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुई थी। भारत का नवंबर 1962 में चीन के हाथों प्रथम त्रासद अपमान भी उन्हीं के कार्यकाल में हुआ था। यक्ष प्रश्न है कि भारत कब तक उसी राजनीतिक संस्कृति या अपसंस्कृति को ढोता रहेगा?
यदि राजा नैतिकता के मार्ग पर चलता है तो प्रजा भी उसका अनुसरण करती है। महाभारत में कहा गया है “यथा राजा तथा प्रजा”। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांडल जेल में लिखी अमरकृति “गीता रहस्य” में राजकाज को धर्मानुसार संचालित करने के श्रीकृष्ण के निर्देश का उल्लेख करते हुए लिखा “प्राणिमात्र में धर्म के अनुकूल जो काम है वही मैं हूं। इससे यह बात सिद्ध होती है कि जो काम धर्म के विरुद्ध है वही नरक का द्वार है।”
राष्ट्रीय चेतना के निर्माण और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए राजनीति का दिशा निर्देश करने वाली विभूतियों में अदम्य नैतिक बल था। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, बालगंगाधर तिलक, महर्षि अरविंद घोष, पं. मदनमोहन मालवीय, स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर, भाई परमानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, डाक्टर हेडगेवार और नेताजी सुभाष से लेकर महात्मा गांधी तक सभी राष्ट्र नायकों ने रामराज्य की अवधारणा को मूर्त रूप देने के लिए अपना सर्वस्व राष्ट्रवेदी पर अर्पित कर दिया। यदि उनके सपनों के भारत का निर्माण होता तो हम कबके विश्व की महाशक्ति बन गये होते।
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