बात बेलाग
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अकसर दूसरों को छकाने वाले छोटे चौधरी यानी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के अध्यक्ष अजित सिंह बहुत बेचैन हैं। ऐसे वक्त जबकि घोटालों से घिरी कांग्रेस से उसके पुराने मित्र-दल भी दामन छुड़ाने के मौके की तलाश में हैं, अजित सिंह उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर उससे गठबंधन करना चाहते हैं। ऐसा वे चाहते तो पिछले विधानसभा चुनावों से पहले भी थे। उसी उम्मीद में मुलायम सिंह यादव सरकार से रालोद अचानक बाहर भी आ गया था, पर कांग्रेस ने अपने चरित्र के मुताबिक उन्हें अधर में छोड़ दिया। पंद्रहवीं लोकसभा का चुनाव रालोद ने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था और अप्रत्याशित रूप से पांच सीटें जीतने में भी सफल हो गया, पर अजित एक बार फिर कांग्रेस की ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं। कांग्रेस ने बात भी की है। उनकी उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव दिग्विजय सिंह से कई बार बात हो चुकी है तो राहुल गांधी से भी बात हुई है। पर कहा जा रहा है कि सीटों पर अंतिम फैसला सोनिया गांधी ही करेंगी। अब अजित सिंह इंतजार कर रहे हैं कि कब सोनिया के यहां से बुलावा आए, ताकि चुनाव की तैयारियां शुरू की जा सकें। वैसे अजित को इंतजार कराने वाली कांग्रेस 70 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान भी कर चुकी है, जबकि कई दर्जन अन्य सीटों पर भी उसने उम्मीदवार तय कर लिए हैं, बस घोषणा बाकी है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अजित के इंजतार का फल मीठा रहता है या कांग्रेस एक बार फिर उन्हें ठेंगा दिखाकर अधर में छोड़ देगी।
कैसे-कैसे भ्रष्टाचार विरोधी!
योगगुरु बाबा रामदेव और गांधीवादी समाजसेवी अण्णा हजारे के आंदोलन के बाद भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन आक्रोश तो मुखर हुआ ही है, राजनेताओं में भी खुद को भ्रष्टाचार विरोधी दिखाकर खुद को ही “क्लीन चिट” देने की होड़ सी लग गयी है। बेशक सभी राजनेता भ्रष्ट नहीं हैं और लोकतंत्र में सभी को हर मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अधिकार भी है। लेकिन यदि आय से अधिक संपत्ति के मामले में अदालत में मुकदमा झेल रहे राजनेता और उनकी पार्टी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का समर्थन करे तो हंसी भी आती है और शर्म भी। हरियाणा में एक मुख्यमंत्री रहे हैं ओमप्रकाश चौटाला। हरियाणा के मुख्यमंत्रियों में एक-दूसरे से अधिक दौलत बनाने की अघोषित स्पर्धा अरसे से चल रही है। चौटाला परिवार के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा भी चल रहा है। लेकिन उससे बेअसर उनकी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल ने पहले तो बाकायदा रामलीला मैदान में अपने एकमात्र राज्यसभा सांसद की अगुआई में प्रतिनिधिमंडल के द्वारा अण्णा हजारे के आंदोलन के प्रति समर्थन पत्र भिजवाया और अब उसे हिसार के लोकसभा उप चुनाव में भुनाने की कोशिश की जा रही है। इस नौटंकी के लिए उर्दू में एक चर्चित मुहावरा भी है, पर विडम्बना यह है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में डुबकी लगाकर अपना दामन साफ कर लेने के शातिर खेल के चौटाला ही अकेले खिलाड़ी नहीं हैं। इस खेल का असली खतरा यह है कि ऐसे लोगों की बढ़ती संख्या से कहीं भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन खेल बनकर न रह जाए।
अल्वी के आंकड़े
वैसे तो कांग्रेस के ज्यादातर प्रवक्ता एक से बढ़कर एक हैं, पर नवेले राशिद अल्वी का जवाब नहीं। वह दोनों तरह से नए नवेले हैं। अरसे तक बहुजन समाज पार्टी में मायावती का गुणगान कर कांग्रेस में आए हैं और पहले राज्यसभा सदस्य, फिर हाल ही में प्रवक्ता भी बना दिए गए हैं। इसलिए हमेशा दूसरों से कुछ ज्यादा कर दिखाने को बेताब रहते हैं। महंगाई की आग में और घी डालते हुए हाल ही में जब पेट्रोल के दाम 3 रुपए 14 पैसे लीटर और बढ़ा दिए गए तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को भी कुछ बोलते नहीं बन रहा था। अब अल्वी तो प्रवक्ता हैं। पार्टी ने लगा दिया मोर्चे पर तो उन्होंने विपक्षी राज्य सरकारों के सिर ही सारा ठीकरा फोड़ना शुरू कर दिया। इसी साल पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के दौरान अन्तरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में भारी उछाल के बावजूद मतगणना तक घरेलू बाजार में कीमतें न बढ़ने देने वाली मनमोहन सिंह सरकार को “क्लीन चिट” देते हुए वे बोले, “पेट्रोल की कीमतें तो अन्तरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से तेल कंपनियां तय करती हैं।” फिर विपक्ष शासित राज्यों में “वैट” और बिक्री कर की दरें ऊंची बताते हुए उन्हें कठघरे में खड़ा करने लगे। जब पत्रकारों ने पूछ लिया कि महाराष्ट्र समेत अन्य कांग्रेस शासित राज्यों के आंकड़े भी तो बताइए तो लगे बगलें झांकने। अल्वी ने आखिरकार यह कहकर पीछा छुड़ाया कि वहां के आंकड़े पता कर बताएंगे। पर वह घड़ी अभी तक तो आयी नहीं है।
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