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पड़ोसी देश पाकिस्तान से जब कभी हिन्दुओं के लिए समाचार आता है तो वह खून के आंसू रुलाने वाला ही होता है। हिन्दू और सिख लड़कियां प्रताड़ित की जाती हैं। उनसे जोर-जबरदस्ती से विवाह करके उनका मतांतरण किया जाता है। मतांतरण की मुहिम पिछले 64 साल से चल रही है। हिन्दुओं की सम्पत्ति की कोई रक्षा नहीं। एक समय था कि पाकिस्तान के हर नगर में हिन्दू बस्ती थी, लेकिन अब तो उंगली पर गिने जाने वाली संख्या रह गई है। हिन्दुओं के साथ-साथ पाकिस्तान के मन्दिरों के संबंध में भी दिल दहला देने वाले समाचार मिलते हैं। राष्ट्र संघ स्थित मानवाधिकार आयोग तो इस मामले में तनिक भी चिंता नहीं करता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि जब भारत का कोई मंत्री अथवा प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान जाता है तो वह भी पाकिस्तानी हिन्दुओं की सुध नहीं लेता है। हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों के समाचार मीडिया को नहीं मिलते हैं, ऐसी बात भी नहीं है। अमरीका से लेकर यूरोप और आस्ट्रेलिया के मीडिया में इस प्रकार के समाचार प्रकाशित होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। पिछले दिनों जब सरदार भगत सिंह के नाम पर लाहौर में प्रतिमा स्थापित करने का सवाल उठा तो उस समय भी शादाब नामक महिला ने ही इस मामले में नेतृत्व किया था, जिसकी सफलता पर सारी दुनिया दंग रह गई थी। पाक सरकार ने जिस चौराहे को भगत सिंह चौराहा का नाम दिया वहां वर्षों पूर्व ब्रिटिश काल में सेंट्रल जेल थी। इसी जेल में सरदार भगत सिंह को उनके दो साथियों के साथ फांसी पर चढ़ाया गया था।
इतिहास बनाने की चेष्टा
पिछले दिनों एक हिन्दू महिला फूलवती ने पेशावर के एक मंदिर को पुन: खुलवाने के मामले में सफलता प्राप्त कर ली। 50 साल पुराना इतिहास उस समय लौट आया जब फूलवती नामक एक महिला ने पेशावर में एक याचिका दायर कर हिन्दू मंदिर को पुन: पूजा स्थल के रूप में घोषित करने के लिए पाकिस्तान की अदालत को मजबूर कर दिया। पाकिस्तान की इस अदालत की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। इन दिनों के तंग वातावरण में उस महिला की जीत अपने आपमें एक नया इतिहास बनाने की सफल चेष्टा है।
पाकिस्तान का सीमांत प्रदेश आज भी वहां की लोकप्रिय भाषा में पख्तूनवाह के नाम से ही जाना जाता है। पेशावर किसी समय हिन्दू संस्कृति का गढ़ था। इसलिए वहां अनेक मंदिरों का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। पेशावर का एक प्राचीन क्षेत्र गोरखटडी है, जो अपने पुराने मंदिरों के लिए विख्यात है। इन प्राचीन मंदिरों को विभाजन के पश्चात् लगभग बंद कर दिया गया है। अब वहां जो हिन्दू शेष हैं, वे किस मंदिर में जाकर पूजा करें उनके लिए यह सबसे बड़ा सवाल है। लेकिन गोरखटडी क्षेत्र में एक फूलवती नामक बहादुर महिला रहती है, जिसे मंदिर में जाकर पूजा करने की तीव्र इच्छा थी। लेकिन मन्दिर के द्वार तो अत्याचारी सरकार ने बहुत पहले ही बंद कर दिये थे। इसलिए सवाल यह था कि वह जाए तो कहां जाए? लेकिन अपने देवता के दर्शन के लिए जो मन में तड़प थी उससे प्रेरित होकर उसने निश्चय किया कि वह सरकार से गुहार लगाएगी कि उनकी आस्था के अनुसार मन्दिर के पट खोल दिये जाएं। उसने इन मंदिरों में से एक मंदिर का चयन किया जिसे बंद हुए पचास साल बीत चुके थे। फूलवती ने इस मंदिर को खोले जाने की मांग लेकर स्थानीय अदालत में एक याचिका दायर कर दी। बंद होने के कारण इस मंदिर के अनेक भाग ढह गए थे। वह एकदम जर्जर स्थिति में था। फूलवती को लग रहा था कि अदालत का फैसला आने के पूर्व ही मन्दिर शेष नहीं रहेगा। लेकिन उसने इस बात की चिंता नहीं की। वह अपने संकल्प पर डटी रही। एक दिन अदालत ने उसकी गुहार सुन कर मन्दिर को खोलने की आज्ञा प्रदान कर दी। इतना ही नहीं, अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि मंदिर अत्यंत जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है। इसलिए उसमें पूजा-पाठ के अवसर पर कोई भी दुर्घटना घट सकती है। यह सरकार का दायित्व है कि वह मंदिर में जाने वाले भक्तों की रक्षा का बंदोबस्त करे। सरकार ने न्यायालय के आदेश का पालन किया और मंदिर का नवनिर्माण करवा दिया। लेकिन फूलवती की खुशी बहुत समय तक नहीं रही, क्योंकि अदालत के बीच में वहां की सरकार आ गई। राज्य सरकार की पुलिस आनन-फानन में आ गई और मंदिर को बंद करवा दिया और रात-दिन कड़ा पहरा बैठा दिया। लेकिन फूलवती ने हिम्मत नहीं हारी और फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया। इस बार मामला राज्य सरकार और अदालत के बीच हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि मामला निचली अदालत से निकलकर उच्च न्यायालय में पहुंच गया। दिलचस्प बात यह हुई कि सरकार को मात खानी पड़ी और फूलवती की विजय हुई। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह तत्काल मंदिर के पट खोल कर हिन्दू मतावलम्बियों को पूजा-अर्चना करने की सुविधा प्रदान करे। फूलवती का कहना था कि उसके हृदय में एक लगन थी। सफलता तो समस्त हिन्दू समाज की है, जिन्होंने मेरा हौंसला बुलंद किया और मैं अपने संकल्प को पूर्ण कर सकी। मेरे पास ऐसे साधन नहीं थे कि मैं इस खर्च को बर्दाश्त कर सकूं। पेशावर का सम्पूर्ण हिन्दू समाज इस सफलता के लिए बधाई का पात्र है।
अदालत की अवमानना
अदालत का निर्णय आ जाने के पश्चात् भी राज्य सरकार और जिला प्रशासन के कानों पर जूं नहीं रेंगी। अब तक उन्होंने हिन्दुओं को मंदिर नहीं सौंपा है। उस पर पुलिस ने ताला लगा दिया है और उसकी चाबियां पुलिस थाने में पहुंचा दी गई हैं। हिन्दू हर दिन इसकी मांग कर रहे हैं कि उन्हें शीघ्र पूजा करने दी जाए। लेकिन पुलिस का कहना है कि अदालत का निर्णय भले ही आ गया हो लेकिन प्रशासन की ओर से हमें मंदिर को खोलने के आदेश नहीं मिले हैं। समय बीतने के साथ हिन्दुओं में रोष है। उनका मानना है कि सरकार ने अदालत की बात को स्वीकार नहीं करके अदालत की अवमानना की है। मन्दिर के बाहर भीड़ लगी रहती है, क्योंकि आधी शताब्दी बीत जाने के बाद उन्हें अपने देवता के दर्शन होंगे। पेशावर के समस्त हिन्दू उस घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब स्थानीय पुलिस और राज्य प्रशासन उन्हें मंदिर सुपुर्द कर देगा। पेशावर के आसपास आज भी 20 हजार हिन्दू निवास करते हैं। उनके लिए कोई मंदिर उपलब्ध नहीं था। इस कारण अन्य नगरों में जाकर वे अपने धार्मिक क्रियाकलापों को पूर्ण करते थे। सबसे जटिल प्रश्न विवाह सम्पन्न कराने का था। उनके यहां कोई पुजारी अथवा पंडित नहीं था, जो विवाह संस्कार को पूर्ण कर सके। गरीबों के लिए यह एक जटिल समस्या थी। लेकिन बेचारे पेशावर के लोग करते तो क्या करते? अपनी धार्मिक परंपराओं को निभाने के लिए वे अन्य नगरों में पहुंचते थे। पेशावर के हिन्दू बहुत खुश हैं कि उन्हें पेशावर के मंदिर में ही पूजा की अनुमति मिल गई। आसपास के क्षेत्र में रहने वाले हिन्दुओं ने सरकार और अदालत का आभार व्यक्त किया। उनका मानना है कि पेशावर के मुस्लिम बंधुओं ने भी उनका इस मामले में पूरा-पूरा साथ दिया। कुछ मुस्लिमों ने तो उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान की। लेकिन आज भी यहां का हिन्दू टकटकी बांधकर उस घड़ी की प्रतीक्षा कर रहा है जब उन्हें अपने प्रिय देवता के दर्शन होंगे। पेशावर के लोगों ने यह तय किया है कि सबसे पहले पूजा करने का अधिकार फूलवती को होगा। जिस दिन वह घड़ी आएगी फूलवती पर फूलों की बारिश होगी, इसमें दो राय नहीं है। पाकिस्तान सरकार यदि अब भी हिन्दुओं के साथ द्रोह करती रही तो सरकार के हाथों ही पाकिस्तानी अदालत का अपमान होगा। कुछ लोग इस तैयारी में भी जुट गये हैं कि यदि प्रशासन अपनी बात पर अड़ा रहा तो फिर अदालत की अवमानना का मुकदमा सरकार पर दर्ज किया जाएगा।
भक्त प्रह्लाद का मन्दिर
मुल्तान स्थित भक्त प्रह्लाद के मंदिर का भी पुनर्निर्माण किया जाए, इसकी मांग भी वहां उठ रही है। वहां के एक मुस्लिम विधायक ने इस बात को पेश किया था कि सरकार यदि इस ऐतिहासिक मंदिर का हमें पुनर्निर्माण करने दे तो हमारी पार्टी उसका खर्च वहन करने के लिए तैयार है। आज भी उस ऐतिहासिक मंदिर के भग्नावशेष वहां देखे जा सकते हैं। मंदिर का वह स्तंभ आज भी खड़ा है, जहां भक्त प्रह्लाद को बांधा गया था। कराची में कभी अश्वत्थामा का मंदिर था, यद्यपि अब वह नहीं है, लेकिन आज भी वहां के लोगों का यह विश्वास है कि अश्वत्थामा उन्हें दिखाई देता है। इसी प्रकार भक्त प्रह्लाद को लेकर भी अनेक कहानियां मुल्तान के ईद-गिर्द घूमा करती हैं। पेशावर से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक “फ्रंटियर पोस्ट” इस संबंध में हिन्दुओं का पक्षधर है।
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