|
अभिव्यक्ति मुद्राएं
सब निर्णय पर्दे के पीछे
सिर हिलते हैं ऊपर-नीचे
देह देखिए, रीढ़ नदारद।
रानी मां है राजकुवंर है
हरा छत्र है लाल चंवर है
अब जनतंत्र यही है शायद।
-सत्यनारायण
कॉफी में डूबी सुबह थकी-थकी सी शाम,
भूल गए हम शहर में आकर अपना नाम।
मूल्य न्याय आदर्श सच प्रतिभा कला नवीन,
बिकने को बाजार में खड़े हुए बन दीन।
-डा. राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'
टिप्पणियाँ