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बेनकाब छद्मवेश
जन लोकपाल की मांग को लेकर गांधीवादी अण्णा हजारे के अनशन ने मनमोहन सिंह सरकार के छल-बल को ही बेनकाब नहीं किया, अग्निवेश का भी छद्मवेश उतर गया। खुद को आर्यसमाजी बताने वाले और अक्सर राष्ट्रद्रोहियों के बगलगीर नजर आने वाले यह महाशय अप्रैल में जब जंतर-मंतर पर अण्णा के अनशन में नजर आये तब भी बहुतों का माथा ठनका था कि अक्सर सरकार का मध्यस्थ बनकर अपनी नाना नामधारी दुकानें चलाने वाले का सत्ता को चुनौती देने वाले मंच पर क्या काम? वह अनशन सिर्फ पांच दिन चल पाया इसलिए अग्निवेश का छद्मवेश बचा रह गया। फिर आया विदेशों में जमा काले धन के विरुद्ध रामलीला मैदान में योग गुरु बाबा रामदेव का अनशन-सत्याग्रह। भगवा वस्त्रधारी अग्निवेश मीडिया में छाये रहने के लिए उनके साथ भी बराबर नजर आये, लेकिन जब चार जून की रात बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर पुलिस बर्बरता का कहर टूटा तो वह कहीं नहीं थे। हां, मीडिया में पुलिस और सरकार की आलोचना की रस्म अदायगी का अवसर वह नहीं चूके। जन लोकपाल के मुद्दे पर व्सिविल सोसायटीव् को दगा देकर मनमोहन सरकार द्वारा की गयी मनमानी के विरुद्ध अण्णा ने 16 अगस्त से अनशन का ऐलान किया तो अग्निवेश फिर साथ-साथ थे। लेकिन सरकार से वार्ताकारों में शामिल न किये जाने पर उस ऐतिहासिक आंदोलन को ही पलीता लगाने में जुट गये। अण्णा को मिलते देशव्यापी समर्थन से सांसत में आयी सरकार झुकने लगी तो उनको अपनी दुकान बंद होती नजर आने लगी। कमोबेश हर आंदोलन में घुसकर सरकार के लिए मुखबिरी करने वाले अग्निवेश इस खेल में माहिर हैं, ऐसा उनके समर्थक और आलोचक, दोनों मानते हैं। पर इस बार वह मात खा गये। उन्हें किसी से फोन पर यह कहते व्टेपव् कर लिया गया कि व्कपिल महाराज, यह (अण्णा) तो पागल हाथी की तरह हैं, आप लोग तो उनको इतना सब कुछ दे रहे हैं, ये लोग आपके सिर पर चढ़ जाएंगे।व् जाहिर है, वह केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल को ही व्टीम अण्णाव् से सख्ती से निपटने की सलाह दे रहे होंगे। पोल खुलने पर अग्निवेश ने सफाई में मनगढ़ंत कहानियां भी कम नहीं सुनायीं, बोले, व्मैं किसी मंत्री को महाराज क्यों कहूंगा, कपिल नामक कई लोग मेरे परिचित हैं, मैं हरिद्वार के कपिल महाराज से बात कर रहा था।व् खुद को बड़ा कलाबाज समझने वाले अग्निवेश को मनगढ़ंत कहानियां सुनाते समय यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हरिद्वार के कपिल महाराज को भी ढूंढ निकालेगा। रही-सही कसर उन कपिल महाराज ने पूरी कर दी। उन्होंने मीडिया से दो टूक कहा कि व्एक दो दिन तो दूर, महीनों से मेरी अग्निवेश से कोई बात नहीं हुई है, आप लोग चाहें तो फोन डिटेल्स चेक करवा लें।व् जब लगा कि छद्मवेश पूरी तरह तार-तार हो गया है तो श्रीमान भूमिगत हो गये। राष्ट्रविरोधी आतंकवादियों और माओवादियों के हितैषी होने के नाते भूमिगत होने में भी वह पारंगत हैं ही, पर कब तक और कहां तक छिपेंगे? हिन्दुओं की अगाध श्रद्धा के केन्द्र बाबा अमरनाथ को व्पाखंडव् कहने के मामले में अपने विरुद्ध दर्ज एफआईआर रद्द कराने की कोशिश में भी अग्निवेश को मुंह की खानी पड़ी है। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एफआईआर रद्द करने संबंधी उनकी याचिका खारिज कर दी है।
व्युवराजव् नदारद थे
अण्णा के अनशन को देश-दुनिया से मिलते समर्थन के बीच कांग्रेस के व्युवराजव् राहुल गांधी की चुप्पी पर पार्टी प्रवक्ता ने सफाई दी थी कि वह तोता नहीं हैं, जब उन्हें बोलना होगा, तब बोलेंगे। बेशक व्युवराजव् बोले और संसदीय नियम-परंपराओं को धता बताकर बोले। 26 अगस्त को संसद में अण्णा की तीन अहम शर्तों पर बहस होनी थी। सरकार ने वह तो अगले दिन के लिए टाल दी, पर व्युवराजव् अचानक शून्यकाल में बोलने के लिए खड़े हो गये। विपक्ष की नेता ने लोकसभा अध्यक्ष से पूछा कि ऐसा किस नियम के तहत? जवाब मिला, व्मैंने अनुमति दी है।व् व्युवराजव् ने जो बोला और जिस तरह जन लोकपाल पर देशव्यापी बहस को भटकाने की कोशिश की, वह तो सबको पता है, पर उन्होंने जिस तरह लिखा हुआ भाषण पढ़ा, वह भी नियम-परंपराओं के विरुद्ध था। किसी बहस में भाग लेने के अलावा सांसद सिर्फ अपना पहला भाषण ही लिखित पढ़ सकता है। खैर, राहुल गांधी ने तोतारटंत अंदाज में ही अपना भाषण जल्दी-जल्दी पढ़ा और फिर सीधे पहुंच गये संसद परिसर में टीवी चैनलों को व्बाइटव् देने। आखिर प्रचार पाने का कोई भी अवसर हाथ से क्यों जाये? बहरहाल अगले दिन जब संसद में अण्णा की शर्तों पर बहस हो रही थी, तब सबकी नजरें व्युवराजव् को ढूंढ रही थीं, पर वह कहीं नजर नहीं आये।
गुमशुदा दिग्विजय
जनलोकपाल विधेयक को लेकर अण्णा के अनशन और उसे मिले विश्वव्यापी समर्थन ने कांग्रेसियों को तो वाकई बिल में दुबकने को मजबूर कर दिया। आम कांग्रेसी की तो बात ही छोड़िए, अक्सर विवादास्पद बयान देकर चर्चा में रहने वाले और अण्णा का भी रामदेव सरीखा हाल करने की सार्वजनिक धमकी देने वाले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह भी इस बीच नदारद ही रहे। विपक्षियों और मीडिया के साथ-साथ खुद कांग्रेस में कई लोग चटखारे लेकर पूछते रहे कि भई, ऐसे संकटकाल में अपने बयान बहादुर दिग्विजय किस दिशा में गुम हैं?
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