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असम
बसपा और सपा के लिए राजनीति में शुचिता व नैतिकता का कभी कोई महत्व नहीं रहा। सत्ता और सुविधा ही
वार्ता के नाम पर भी स्वायत्तता की शर्तें
बासुदेब पाल
लगभग 1 महीना होने जा रहा है उल्फा के नेताओं और केन्द्र सरकार के बीच हुवर्् पहले दौर की आधिकारिक वार्ता को, पर स्थिति जस की तस है। न तो कोवर्् सरकारी अधिकारी कोवर्् बयान दे रहा है और न ही उल्फा के लोग कुछ कहने की स्थिति में हैं। व्ससे पहले ऐसा दर्शाया जा रहा था कि असम समस्या का समाधान बस निकलने ही वाला है। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम और प्रदेश के मुख्यमंत्री तरुण गोगोवर्् के हाथ में जादू की छड़ी लग गवर्् है, बस चुटकी बजाते ही 32 साल पुरानी समस्या को ये दोनों सुलझा लेंगे। पर गत 6 अगस्त को नवर्् दिल्ली में हुवर्् महत्वपूर्ण बैठक के बाद अब कोवर्् ऐसा दावा करता हुआ दिखावर्् नहीं दे रहा है।
उल्लेखनीय है कि बंगलादेश में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद वहां से अनेक उल्फा नेताओं को पकड़कर भारत भेजा गया। चूंकि भारत-बंगलादेश के बीच इबंदी प्रत्यर्पण संधिइ नहीं है व्सलिए यह कहना अधिक उचित होगा कि बंगलादेश रायफल्स ने उन्हें पकड़कर भारत की सीमा पर लाकर छोड़ दिया, जहां से भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने उन्हें गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। हालांकि सच यह है कि हिंसा के रास्ते स्वतंत्र असम का सपना दिखाने वाले उल्फा की कमर पहले ही टूट चुकी थी, अब उसमें संघर्ष की ताकत भी नहीं बची थी और जन समर्थन भी लगातार कम होता जा रहा था। उधर उल्फा नेता बंगलादेश व भूटान के शिविरों में कमा-खाकर, हथियारों की तस्करी करके खूब पैसा जुटा चुके थे और अब आराम और सुकून की जिंदगी बसर करना चाहते थे, व्सीलिए उन्होंने समर्पण करने का रास्ता चुना। भारत सरकार ने भी व्न कथित रूप से गिरफ्तार किए गए आतंकवादियों-अलगाववादियों को गुवाहाटी के कारागार में एक साथ रखा, ताकि वे आपसी मंत्रणा करते रहें और सरकार का साथ दें। जब व्न लोगों ने कहा कि जेल में रहकर शांति वार्ता नहीं हो सकती तो व्न लोगों को कानूनी प्रक्रिया का दिखावा कर मुक्त कर दिया गया। व्नकी जमानत याचिका पर सुनवावर्् के दौरान सरकारी वकील ने मौन साधे रखा। जेल से बाहर आने के बाद सरकार ने व्न अलगाववादियों को मोटा जेब खर्च दिया ताकि ये लोग आसानी से जीवनयापन कर सकें। व्तना पैसा दिया गया जितना उच्च मध्यमवर्गीय परिवार भी प्रतिमाह न कमा पाता हो। यह सब भुलाकर कि ये लोग पिछले 32 वर्षों में 20 हजार से अधिक निर्दोष लोगों और सुरक्षा बलों की मौत के जिम्मेदार हैं। फिर भी असम में शांति स्थापित करने के लिए यदि यह जरूरी है तो लोगों ने व्सका विरोध नहीं किया।
फिर अनौपचारिक वार्ता के दौर चले और 6 अगस्त को दिल्ली में आधिकारिक वार्ता हुवर््। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम व गृह मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोवर्् भी शामिल हुए। युनाव्टेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम (उल्फा) के 7 सदस्यों में व्सके अध्यक्ष अरविन्द राजखोवा, उपाध्यक्ष प्रदीप गोगावर््, उप सेनापति (डिप्टी कमाण्डर व्न चीफ) राजू बरुआ, विदेश सचिव शशधर चौधुरी, वित्त सचिव चित्रबेन हजारिका, संस्कृति सचिव प्रणति डेका और प्रचार सचिव मिथिंगा दावर््मारी शामिल हुए। उल्फा के वार्ता समर्थक गुट ने भारत सरकार को अपना जो मांग पत्र सौंपा है, उसे इपुरानी धुन पर नया रागइ ही कहा जा सकता है। क्योंकि व्समें स्वतंत्र या स्वायत्त असम की बात भले ही स्पष्ट रूप से न कही गवर्् हो, पर जो मांगें रखीं गवर्् हैं उनका निहितार्थ यही है। मांग पत्र सौंपने के बाद पत्रकारों से बातचीत में उल्फा की ओर से शशधर चौधुरी ने कहा कि उल्फा का आंदोलन कभी भी अलगाववादी नहीं था। हम भारत के भीतर ही रहकर स्वायत्त असम चाहते हैं। व्सी के साथ उल्फा ने साफ कर दिया कि हम नागालैण्ड के अलगाववादी संगठन एनएससीएन (आवर््एम) की तरह अनिश्चितकालीन शांतिवार्ता नहीं चाहते बल्कि भारत सरकार को एक निश्चित समय सीमा के भीतर समाधान खोजना होगा। उल्फा के वार्ता समर्थक गुट के तीखे तेवरों और उनके मांग पत्र के कारण ही 15 दिन के भीतर प्रस्तावित दूसरे दौर की वार्ता 1 महीना बीत जाने के बाद तक नहीं हो पावर्् है।
उल्फा ने अपने मांग पत्र में जो शर्ते रखी हैं, उनमें से प्रमुख हैं-
थ् असमवासियों का उनकी भूमि व प्राकृतिक रुाोतों पर अविवादित व एकछत्र अधिकार।
थ् उल्फा के संघर्ष और उसकी उपयोगिता पर उच्चस्तरीय वार्ता।
थ् असम मूल की जातियों का संरक्षण व संवर्धन तथा उनका सभी प्राकृतिक संसाधनों पर संवैधानिक व राजनीतिक अधिकार।
थ् असम के आर्थिक रुाोतों, जैसे तेल व अन्य उत्पादों पर असमवासियों का पूर्ण अधिकार, शोषण पर पूरी तरह रोक व अब तक जो शोषण किया गया उसकी क्षतिपूर्ति।
थ् अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर पूर्ण तारबंदी व नदियों में गश्त के द्वारा अवैध घुसपैठ पर पूर्ण रोक। व्सके लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थानीय व देशज लोगों का विशेष कार्यबल गठित करना।
थ् संविधान में संशोधन के द्वारा असम मूल की जातियों-जनजातियों की समस्याओं का समाधान, सीमा विवाद का निस्तारण व भूमि अधिग्रहण की समस्या का समाधान।
व्सके साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, कृषि व फल उपज, ग्राम विकास, बाढ़ नियंत्रण आदि मुद्दों पर भी ध्यान आकृष्ट किया गया है। व्नमें से कुछ मुद्दों पर तो सहमति बन सकती है, पर जिन मुद्दों से पूर्ण स्वायत्तता की झलक मिलती है, वहां वार्ता अटक भी सकती है। उधर उल्फा के वार्ता समर्थक व्स गुट की मंशा के विपरीत भूटान में बैठे सेनापति (कमाण्डर व्न चीफ) व कट्टर धड़े ने लगातार इभारत से वार्ताइ का विरोध किया है। उल्फा का महासचिव अनूप चेतिया, जोकि आजकल बंगलादेश में बंदी है, का भी रुख पता नहीं चल पा रहा है। उम्मीद है कि अनूप चेतिया को बंगलादेश सरकार अघोषित रूप से भारत सरकार को सौंप देगी, उसके बाद ही पता चलेगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा।
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