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जम्मू-कश्मीर में सत्तारूढ़ उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कांन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन सरकार ने अपने मंत्रियों तथा प्रदेश के विधायकों को निहाल कर दिया है। इनके वेतन तथा भत्तों में भारी वृद्धि के साथ ही इस वृद्धि को असाधारण तरीके से सितम्बर, 2009 से लागू किया गया है। इस प्रकार मंत्रियों तथा विधायकों आदि को एक साथ ही 8 लाख से लेकर 10 लाख रुपए तक का भुगतान भी कर दिया गया है। इससे पूर्व मंत्रियों तथा विधायकों का वेतन प्रतिमाह 43000 से 45000 रुपए के बीच था, जिसे दोगुना करके 80000 तथा 95000 रुपए प्रतिमाह कर दिया गया है। मुख्यमंत्री का वेतन 95,000, मंत्रियों का 90,000 और 85,000 कर दिया गया है जबकि विधानसभा के सदस्यों का वेतन 80,000 प्रतिमाह कर दिया गया है। इसी प्रकार पूर्व विधायकों आदि की पेंशन में भी भारी वृद्धि की गई है और यह वृद्धि सितम्बर, 2009 में उस दिन से लागू की गई है जिस दिन राज्य के वित्त मंत्री ने इस विधेयक को सदन के पटल पर रखा था।
इस संबंध में यह भी उल्लेखनीय है कि विधानसभा सदस्यों के साथ काम करने वाले निजी सहायकों यानी व्पीएव् के वेतन में गत कई वर्षों से कोई वृद्धि नहीं की गई है। यद्यपि उन्हें मात्र 3000 रुपए ही मासिक वेतन दिया जा रहा है जबकि एक दिहाड़ी मजदूर का भी न्यूनतम वेतन 3750 रुपए है। इस बात की चर्चा भी चल पड़ी है कि शीघ्र ही इन निजी सहायकों के वेतन में भी वृद्धि संभव है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस राज्य की अपने रुाोतों से वार्षिक आय मात्र 6000 करोड़ रुपए के लगभग होती है जबकि सरकारी कर्मचारियों आदि का वेतन खर्च ही 15000 करोड़ रुपए से भी अधिक हो गया है। जम्मू-कश्मीर का वार्षिक बजट 31,000 करोड़ रुपए से भी अधिक का हो गया है जिसका 85 प्रतिशत भाग केन्द्रीय सहायता से प्राप्त होता है। साफ है कि केन्द्र सरकार से मिल रही सहायता के बल पर जम्मू-कश्मीर के मंत्री- विधायक मौज उड़ा रहे हैं, बावजूद इसके वे विधानसभा में स्वयत्तता की चर्चा करते हैं।
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