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फिर वही प्रतिशोधी हथकंडे

by
Sep 15, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 15 Sep 2011 13:25:45

जन लोकपाल को लेकर अण्णा हजारे के अनशन ने मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस को जैसा शीर्षासन करवाया, उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है। बेशक गिरगिट की तरह रंग बदलती सरकार ने छल-बल में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर अहिंसक आंदोलन और फिर उसे मिलते राष्ट्रव्यापी समर्थन के चलते अण्णा की तीन खास शर्तों पर शनिवार के दिन भी संसद में चर्चा हुई और उनसे सैद्धान्तिक सहमति का प्रस्ताव भी पारित किया गया। उसके बाद भी अगर सरकार की नीयत पर बहुतों को संदेह है तो वह सरकार की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान भी है, पर इसके लिए खुद वही जिम्मेदार भी है। संसद में प्रस्ताव के बाद अण्णा का अनशन समाप्त होते ही न सिर्फ दिग्विजय सिंह की बेहूदा बयानबाजी शुरू हो गयी है, सरकार ने बाकायदा 'टीम अण्णा' के सदस्यों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। फरवरी, 2006 में ही आयकर विभाग से इस्तीफा दे चुके अरविंद केजरीवाल को अब नोटिस भेज कर 9,27,787 रुपए जमा करने को कहा जा रहा है। उनके परिजनों के ही नहीं, रिश्तेदारों तक के यहां सरकारी कारिंदे भेज कर उन्हें फंसाने की हरसंभव संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। इस पर तुरर्ा यह कि केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से लेकर कानून मंत्री सलमान खुर्शीद तक सफाई दे रहे हैं कि उनकी सरकार प्रतिशोध में विश्वास नहीं रखती, कानून अपना काम कर रहा है। इस स्वाभाविक सवाल का जवाब देने को कोई तैयार नहीं है कि अण्णा के आंदोलन से पहले मनमोहन सरकार का यह 'कानून' कहां सो रहा था? इसी तरह बाबा रामदेव के पीछे तो सरकार हाथ धोकर पड़ी हुई है।

विशेषाधिकार की चिंता

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अण्णा की जन लोकपाल की मांग और आंदोलन को संसद और 'संसदीय लोकतंत्र पर खतरे' के रूप में पेश करने की जो चाल चली थी, वह भी कामयाब होती नजर आ रही है। कानून बनाने में 'सिविल सोसायटी' की सलाह पर जोर को सांसद अपने विशेषाधिकार में दखल के रूप में तो तब से ही देखने लगे थे, लेकिन अनशन के दौरान रामलीला मैदान में मंच पर किरण बेदी ने घूंघट ओढ़कर सांसदों के आचरण का जो मंचन किया तथा 'टीम अण्णा' के सदस्य प्रशांत भूषण व अरविन्द केजरीवाल के साथ-साथ फिल्म अभिनेता ओमपुरी ने सांसदों के कामकाज की बाबत जो तल्ख टिप्पणियां कीं, उनसे उन्हें विशेषाधिकार हनन के कटघरे में खड़ा करने का मौका भी मिल गया है। यह सही है कि इन लोगों ने सांसदों के कामकाज पर टिप्पणियां करने में संयम नहीं रखा, पर जवाबी प्रतिक्रिया में खुद कई सांसद  भी भाषाई संयम नहीं रख पाये। इन लोगों को भेजे गए विशेषाधिकार हनन नोटिसों की अंतिम परिणति क्या होती है, वह तो अभी देखना होगा, लेकिन अपने विशेषाधिकार के प्रति अधिक संवेदनशील सांसदों को अपने आचरण की बाबत भी गिरेबां में झांकना चाहिए। 'टीम अण्णा' और ओमपुरी द्वारा विशेषाधिकार के कथिन हनन के बाद भी लोकसभा में सोते हुए लालू प्रसाद यादव को जगाने के लिए अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार को एक अन्य सदस्य से कहना पड़ा था।

'युवराज' को सबक

कांग्रेसियों द्वारा भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश किए जा रहे 'युवराज'  राजनीति भी फिल्मी स्टाइल में करते हैं। किसी 'सेलिब्रिटी' की तरह अचानक टीवी कैमरों की चकाचौंध के बीच वे अवतरित होते हैं, उसी अंदाज में कुछ 'डायलॉग' बोलते हैं, 'फोटो सेशन' सा कराते हैं और फिर सुर्खियां बटोर कर वापस कहीं गायब हो जाते हैं, ऐसी ही किसी अगली उपस्थिति तक के लिए। भट्टा-पारसौल में धरने से लेकर लोकसभा में अण्णा के अनशन पर लिखा हुआ भाषण पढ़ने तक, उनकी इस शैली के उदाहरणों की फेहरिस्त लंबी है, पर सात सितम्बर को तो हद ही हो गयी। कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार आतंकवाद पर नियंत्रण करने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है। फिर भी कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ हर आतंकी हमले के बाद पहुंच जाती हैं पीड़ितों से सहानुभूति जताने। अभी जुलाई में मुम्बई में श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों के बाद भी यही हुआ था। सात सितम्बर को दिल्ली उच्च न्यायालय के प्रवेश द्वार पर आतंकी विस्फोट करने में सफल हो गए। उस वक्त प्रधानमंत्री बंगलादेश दौरे पर थे और 'आपरेशन' कराकर सोनिया स्वदेश लौटी नहीं थीं, सो राहुल निकल पड़े। घटनास्थल गए और राममनोहर लोहिया अस्पताल भी, जहां घायल भर्ती थे। इस अंतहीन राजनीतिक नौटंकी से आजिज आ चुके लोगों, खासकर पीड़ितों का धैर्य जवाब दे चुका था, सो उन्होंने 'राहुल गांधी शर्म करो' के नारों से 'युवराज' को आईना दिखा दिया।

तीस्ता की कसक

6-7 सितम्बर को बंगलादेश के दौरे पर गए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब ढाका के शाहियालाल हवाई अड्डे पर लाल कालीन पर उतरकर उन्नीस तोपों की सलामी के बाद बंगलादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ बातचीत की मेज पर बैठे तब बंगलादेशी अधिकारियों के चेहरों पर वह जोश नहीं था जो मनमोहन सिंह के आने की खबर से पैदा हुआ था। बंगलादेश को उम्मीद थी कि मनमोहन-शेख हसीना के बीच बाकी करारों के अलावा तीस्ता और फेनी नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर महत्वपूर्ण समझौता हो जाएगा। उन्हें तीस्ता का 50 फीसदी पानी मिल जाएगा और करोड़ों टका की लागत वाली दशकों से निष्क्रिय पड़ी तीस्ता सिंचाई परियोजना में जान आ जाएगी। अगर यह करार हो जाता तो इसे शेख हसीना सरकार की सर्वोत्तम उपलब्धि के रूप में प्रचारित करने की पूरी तैयारी कर ली गई थी। लेकिन तीस्ता ने बंगलादेशियों में एक कसक पैदा करके बुझा दी। दरअसल प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बात पर अड़ गई थीं कि तीस्ता करार से प्रदेश को नुकसान होगा, लिहाजा डा. सिंह के साथ ढाका जाने वालों की सूची में से उन्होंने अपना नाम भी कटवा लिया था। मनमोहन सरकार ममता के लिए वैसे ही पलक-पांवड़े बिछाए रहती है, सो तय हो गया कि फिलहाल तीस्ता मामले को यथावत रहने दिया जाए।

लेकिन बंगलादेश के अखबार चुप नहीं बैठे। 'द डेली स्टार' और 'प्रोथोम आलो' जैसे बड़े अखबारों में नाराजगी भरे लेख और सम्पादकीय लिखे गए कि ममता ने अड़ंगा लगा दिया। मनमोहन सिंह के ढाका पहुंचने से कुछ ही घंटे पहले बंगलादेश के विदेश सचिव मिजारुल कैस ने ढाका स्थित भारतीय उच्चायुक्त रजीत मित्तर को बुलाकर पूछा था कि आखिर नई दिल्ली उस तीस्ता करार से पीछे क्यों हट रही है जिसे करने के लिए उसने पहले वायदा किया था। रजीत मिजारुल का मिजाज बिगड़ता देखते रहे। मनमोहन-शेख हसीना के बीच जो दस करार हुए वे ढाका में तीस्ता के बिना फीके माने जा रहे हैं।

सरकोजी ने कहा- 'हम साथ-साथ हैं'

नई  दिल्ली में 7 सितम्बर को उच्च न्यायालय के बाहर हुए बम विस्फोट पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने कहा कि यह बेहद घिनौना आतंकी हमला था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भेजी अपनी चिट्ठी में सरकोजी ने लिखा कि 'उनका देश भारत के साथ है और हम मिलकर इस बर्बर आतंकवाद से लड़ेंगे।' सरकोजी ने लिखा, 'ऐसे वक्त में जब नई दिल्ली एक बार फिर घिनौने आतंकी हमले का निशाना बनी है, दसियों निर्दोष जिसके शिकार बने हैं, मैं फ्रांस और अपनी ओर से हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करता हूं। हम पूरी तरह आपके साथ हैं।… फ्रांस इस संकट की घड़ी में भारत के साथ है। आतंकवाद के खिलाफ युद्ध हमें एक करता है और हम (इसे समाप्त करने के) अपने प्रयास जारी रखेंगे।'

कांगो जेल पर हमला, एक हजार से ज्यादा कैदी भागे

7 सितम्बर को कांगो की लुबुम्बाशी जेल पर सशस्त्र नकाबपोशों ने हमला बोल दिया और इस अफरातफरी में जेल से एक हजार से ज्यादा कैदी निकल भागे। नकाबपोशों ने यह हमला विद्रोही नेता गिडियोन माटुंगा को जेल से भगाने के लिए बोला था, जिसमें वे कामयाब रहे, माटुंगा भाग निकला। हमलावरों ने जेल के पहरेदारों और पुलिसकर्मियों पर अंधाधुंध गोलियां दागनी शुरू कर दीं और इससे पहले कि पुलिस वाले संभल पाते वे माटुंगा को निकाल ले जाने में कामयाब हो गए, जिसके साथ एक हजार से ज्यादा कैदी भी भाग खड़े हुए। माटुंगा कांगो के सबसे बड़े खनन प्रांत काटांगा के विद्रोही गुट का पूर्व नेता है जिसे 2009 में मानवता के विरुद्ध अपराधों के लिए सजा दी गई थी। तांबे की खानों से भरे काटांगा में कई अंतरराष्ट्रीय कम्पनियों का कारोबार चलता है। बहरहाल, काटांगा की स्थानीय सरकार भागे कैदियों को फिर से पकड़ने के लिए जी-जान से जुटी हुई है।

सिंध सूबे में पढ़ाएंगे चीनी

पाकिस्तान किस कदर चीन के आगे बिछा-बिछा जा रहा है उसकी राजनीतिक, आर्थिक, रणनीतिक, औद्योगिक क्षेत्रों में तो आए दिन मिसालें मिलती रही हैं, पर हद तो यह है कि अब पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्र में भी चीनी पाकिस्तानियों के दिमाग पर हावी होते जा रहे हैं। पाकिस्तान के सिंध सूबे की सरकार ने फरमान जारी किया है कि सन् 2013 से सूबे के स्कूलों में चीनी भाषा पढ़ना अनिवार्य होगा। चीनी भाषा का सबक छठी से शुरू कर दिया जाएगा। सूबे की सरकार की साफगोई देखिए कि उसने इस फरमान के पीछे वजह पाकिस्तान की चीन के साथ नजदीकियों को ही बताया है। अभी मई में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने चीन को अपने देश का 'सबसे अच्छा दोस्त' बताया था। कुछ विशेषज्ञ सिंध सरकार के इस कदम को लेकर शंका जाहिर कर रहे हैं, क्योंकि न तो पर्याप्त पढ़ाने वाले हैं, न साधन-सामग्री है और सीमित संसाधनों के चलते इन सब पर भारी पैसा खर्च करना पड़ेगा।

सिंध के शिक्षा मंत्री पीर मंजर उल हक फरमाते हैं कि यह कदम चीन के आर्थिक महाशक्ति के तौर पर दुनिया में बढ़ते किरदार को झलकाता है। इसमें आने वाले लंबे समय के लिए पाकिस्तान का फायदा है। चीन से उनके कारोबारी, तालीमी और दूसरे रिश्ते बढ़ रहे हैं तो जाहिर है उनके बच्चे चीनी भाषा जानकर कल बढ़िया काम कर सकते हैं। हक का ऐसा मानना है। सूबे की सरकार चीनी पढ़ने वालों को खास सहूलियतें भी देगी, विदेशी 'स्कालरशिप' वगैरह।

फिलहाल इसके लिए चीनी पाठ्यक्रम बनाने का सिलसिला चल रहा है और योजना को अमल में लाने के लिए चीन की मदद की आस लगाई जा रही है। उधर पढ़ाने वाले कहते हैं कि यह उन पर और बच्चों पर और ज्यादा बोझ लाद देगा। बच्चे पहले से ही अनिवार्य विषयों के तौर पर अंग्रेजी, उर्दू और सिंधी भाषा पढ़ रहे हैं।

 

ब्रिटेन के स्कूलों में जासूस रोकेंगेे इस्लामी उग्रवाद!

 

ब्रिटेन की सरकार ने स्कूलों में से इस्लामी उग्रवाद और उग्रवादी तत्वों को छानकर निकाल बाहर करने के लिए अपने सुघड़ गुप्तचर तंत्र एम.आई.5 के पूर्व जासूस तैनात किए हैं। ब्रिटेन के मंत्री से लेकर संतरी तक को चिंता है कि मुस्लिम भड़काऊ तत्व और उन्मादी तत्व स्कूलों में बच्चों के बीच नफरत के बीज बो रहे हैं, इसीलिए इस्लामी उग्रवाद के जानकार पूर्व जासूसों की एक अलग से इकाई बनाकर उन्हें स्कूलों में यह काम सौंपा गया है। अब ये जासूस पता लगाएंगे कि कहीं कोई सबक पढ़ने या पढ़ाने वाला मजहबी उन्माद के बीज तो नहीं रोप रहा है।थ् आलोक गोस्वामी

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