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समाज में एक धारणा है कि पिता के बाद पुत्र ही घर का भरण-पोषण करता है। लड़कियां केवल घर की शोभा बन सकती हैं। लेकिन मधुबनी (बिहार) की 15 वर्ष की सुषिता ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है। गरीबी के कारण पिता स्वारथ यादव की मृत्यु आठ वर्ष पूर्व हो गई। इस प्रकार 10 सदस्यीय परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी बेटियों पर आ गई। पहले तो सुलभ और सुलोना ने घर चलाने की जिम्मेदारी उठायी और दूध बेचने का कारोबार शुरू किया। लेकिन कहा जाता है कि बेटियां पराया धन होती हैं। दोनों बहन शादी के बाद अपने-अपने घर चली गर्इं। इसके बाद फिर से घर की आर्थिक हालत दयनीय हो गई। इसके बाद तीसरी बहन सुषिता पर सारा भार आ गया। छोटी उम्र होने के बावजूद सुषिता ने हार नहीं मानी। उसने साइकिल पर दूध बेचने के कारोबार को जारी रखा। और पिछले पांच वर्ष से लगातार दूध बेचकर इन दिनों समाज की नजीर बन गई है। वह अपनी बहनों के नक्शेकदम पर चलते हुए हर रोज सोइली पाली गांव से 20 लीटर दूध इकट्ठा कर अनुमंडल मुख्यालय बेनीपट्टी पहुंचाती है। सुषिता की हिम्मत को देखकर दादा और मां उस पर गर्व कर रहे हैं। सुषिता दूध बेचकर तीनों बहनों और दो भाइयों सहित मां और 70 वर्षीय दादा का भरण-पोषण कर रही है। उधर दादा शोभित राम का कहना है कि इस गरीबी में देखने वाला कोई नहीं है। अगर उनकी पोतियां नहीं होतीं तो शायद वे भी भूख और गरीबी से मर गए होते। उनकी सबसे बड़ी चिन्ता यह है कि अगर सुषिता की शादी हो जाएगी तब उनका बोझा कौन उठाएगा। लेकिन सुषिता हमेशा अपने छोटे भाई-बहनों का हौसला बढ़ाती रहती है कि कुछ समय बाद दादा-दादी और मां का भरण-पोषण का जिम्मा उन्हें ही उठाना है। इस प्रकार एक बेटे के उन कर्तव्यों को सुषिता बखूबी निभा रही है, जो शायद बेटा भी नहीं कर पाता। संजीव कुमार31
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