संदर्भों के आलोक में रामचरितमानस

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दिंनाक: 10 Mar 2010 00:00:00

गोस्वामी तुलसीदास कृत कालजयी और अमर कृति है-“राम चरित मानस”। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की कथा के माध्यम से उन्होंने संपूर्ण मानव समाज को संस्कृति, सभ्यता और सदाचार का पाठ पढ़ाया। इसमें कोई संदेह नहीं कि ईश्वर के प्रति भक्तिभाव और लोक कल्याण के भाव को संतुलित करते हुए तुलसीदास जी ने एक अद्भुत ग्रंथ के रूप में “रामचरित मानस” की रचना की। यही वजह है कि तीन सदी से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी यह रचना जन-जन के मन में सादर विराजमान है। इस कृति में अनेक पौराणिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक संदर्भ सम्मिलित हैं, जिनका अपना अलग और विशेष महत्व है। हिन्दी के महान अध्येता और तुलसीदास जी की रचनाशीलता के प्रति विशेष प्रेम रखने वाले डा. ललित शुक्ल के द्वारा रामचरित मानस में उपस्थित कुल 321 संदर्भों की प्रामाणिक व्याख्या हाल में ही प्रकाशित ग्रंथ “रामचरित मानस: संदर्भ समग्र” में की गई है।इस पुस्तक से गुजरते हुए यह प्रमाणित हो जाता है कि लेखक ने इसे तैयार करने के लिए गहन अध्ययन, शोध और परिश्रम किया है। इस पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि इसमें एक ओर जहां कुछ कम चर्चित चरित्रों, स्थानों के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है, वहीं दूसरी ओर प्रसिद्ध संदर्भों के संबंध में गहन जानकारी भी मिलती है। मिसाल के तौर पर “अयोध्या” के संदर्भ में लेखक ने रामायण, रामचरित मानस के अतिरिक्त भी पुराणों, उपनिषदों तथा इतिहास में भी दर्ज अनेक प्रमाण दिए हैं। कालिदास के “रघुवंश” से लेकर सोलहवीं सदी में गजनवी के भांजे सैयद सालार मसूद के आक्रमण तक और अंग्रेज शासन के दौरान उसके प्रशासनिक ढांचे में हुए बदलावों का भी वर्णन किया गया है। इसी प्रकार काशी, चित्रकूट और मिथिला जैसी प्राचीन नगरी और गंगा, यमुना, गोदावरी और नर्मदा जैसी आदिकालीन नदियों के संदर्भ में अनेक ज्ञानवर्धक जानकारियां दी गई हैं। राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान और रावण जैसे प्रमुख चरित्रों को विशेष रूप से बहुआयामी संदर्भों के साथ अभिव्यक्त किया गया है। पुस्तक के बीच-बीच में लेखक ने दूसरे लेखकों और आलोचना की टिप्पणी को भी स्थान दिया है।कहा जाना चाहिए कि यह पुस्तक रामचरित मानस को गहराई से समझने में मददगार साबित होगी। पुस्तक के आरंभ में गोस्वामी जी के जीवन चरित को भी विस्तार से लिपिबद्ध किया गया है। लेखक ने तुलसीदास की जीवनी को बहुत ही मार्मिक और गंभीर शैली में लिखा है। उनके अंतिम क्षणों को याद करते हुए वे लिखते हैं, “तुलसी ने देश की दशा देखी और तीन बादशाह (अकबर, जहांगीर और शाहजहां) की बादशाहत देखी। मानव जाति का पतन देखा और देखा भारतीय संस्कृति का बचा हुआ रूप।”यह पुस्तक श्रीराम कथा में वर्णित अनेक कम महत्वपूर्ण चरित्रों को भी जानने का रास्ता उपलब्ध कराती है। इस पुस्तक को टीका या कोश कहना भी पूरी तरह उचित नहीं होगा। अपने आप में विशिष्ट शैली की यह पुस्तक मानस को पाठकों के सामने नए अर्थों, संदर्भों के साथ उद्घाटित करती है।पुस्तक : रामचरित मानस : संदर्भ समग्र लेखक : ललित शुक्ल, कल्पना पांडे प्रकाशक : आर्य प्रकाशन मण्डल, क्ष्ज्र्/221, सरस्वती भंडार, गांधी नगर, नई दिल्ली पृष्ठ : 32 – मूल्य : 220 रु.19

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