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पाठकीय

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Dec 7, 2009, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Dec 2009 00:00:00

आवरण कथा “उड़ान पर प्रहार” के अन्तर्गत श्री आलोक गोस्वामी की रपट से वास्तविकता की जानकारी मिलती है। वास्तव में यदि हमारे अपने देश में शिक्षण संस्थानों, संसाधनों की कमी न हो, तो हमारे छात्र आस्ट्रेलिया अथवा अन्य देशों में क्यों जाएं। अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए माता-पिता अपनी आंखों के तारों को अपने से दूर भेजते हैं और वहां की स्थिति यह है कि वहां के लोग हमारे बच्चों को बर्दाश्त नहीं करते। ऐसे में हमारे बच्चों का भविष्य क्या होगा? सरकार भी ऐसी घटनाएं घटने के बावजूद हाथ पर हाथ धरे तमाशा देखती रही।-वीरेन्द्र सिंह जरयाल28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर (दिल्ली)द आस्ट्रेलिया के नस्लीय हमले संकेत करते हैं कि विकास के नाम पर यह दुनिया फिर से संकीर्ण दुराभावों एवं विदेशी द्वेषों की सामाजिक राजनीति की ओर लौट रही है। इसलिए आस्ट्रेलियाई समाज को वैश्विक दुनिया की सिकुड़न प्रतिस्पर्धा के विस्तार एवं उभरती प्रतिभाओं के गणित को समझकर अपने सामाजिक, शैक्षिक व सांस्कृतिक क्षितिज को बढ़ाने की आवश्यकता है। दूसरी ओर अपने देश में भी उच्च शिक्षा के ढांचे को विस्तार देकर समय रहते इस प्रतिभा पलायन को रोकने की आवश्यकता है। आस्ट्रेलिया के निम्न वर्ग के युवा, खासतौर से बेरोजगार छात्र, भारतीय छात्रों के अच्छे खान-पान, बेहतर रहन-सहन, आकर्षक जीवन शैली से ईष्र्या करते हैं। स्थिति यह है कि जो भारतीय छात्र हाथों में लैपटाप व आईपॉड लिए नजर आते हैं वे हिंसा के शिकार अधिक होते हैं। यह बाद में नस्लीय भेदभाव का प्रभाव प्रतीत होता है। आगे चलकर यही नस्लीय विभेद स्थानीय और विदेशी के संघर्ष में बदल जाता है।-शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी94, चौबान मुहल्ला, जिला-फिरोजाबाद (उ.प्र.)द विदेशों में हो रही नस्लीय हिंसा न सिर्फ आर्थिक मंदी, बल्कि क्षेत्रवाद से प्रेरित कुंठित मानसिकता की देन है। इसका भरसक विरोध किया जाना चाहिए। यह कोई पहली नस्लीय हिंसा नहीं है। इससे पहले भी दुनियाभर में ऐसी हिंसाएं होती रही हैं। इसी तरह जात-पात को लेकर होने वाली हिंसा भी इसी श्रेणी में आती है। उनके विरुद्ध भी आवाज उठाई जानी चाहिए।-अमित पटेरियादर्जी औली, बाड़ा, लश्कर ग्वालियर (म.प्र.)द आस्ट्रेलिया या अन्य देशों में भारतीयों के साथ हो रहे दुव्र्यवहार के प्रति भारत सरकार को कड़ा रुख अपनाना चाहिए। कहा जाता है कि आज 50 लाख से अधिक भारतीय आस्ट्रेलिया में हैं, उन सब की जानमाल की सुरक्षा सुनिश्चित हो। विख्यात अभिनेता श्री अमिताभ बच्चन की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने विरोध स्वरूप आस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैण्ड विश्वविद्यालय द्वारा दी जा रही मानद् उपाधि को लेने से मना कर दिया।-मनमोहन राजावत “राज”नई सड़क, शाजापुर (म.प्र.)हिन्दू वीर-शिवाजीइतिहास दृष्टि में डा. सतीश चन्द्र मित्तल का लेख “विदेशी तथा स्वदेशी दृष्टि में शिवाजी” अच्छा लगा। शिवाजी एक ऐसे हिन्दू वीर थे, जिन्होंने उस क्रूर औरंगजेब का विरोध किया, जिसने अपने ही दो भाइयों की हत्या की थी और पिता शाहजहां को जेल में डाल दिया और बाद में जहर दे दिया था। शिवाजी महाराज अदम्य साहस, राज कौशल, देशप्रेम, गुरुभक्ति और ईमानदार प्रशासन की सनातन मूर्ति हैं। शिवाजी में जो गुण थे, वे सभी गुण एक कुशल प्रशासक में होने चाहिए।-सांवलाराम नामा सदर बाजार, बड़ा चौहटा, भीनमाल, जालौर (राजस्थान)उनकी लेखनी को नमनपिछले कुछ समय से सरोकार स्तम्भ में वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती मृदुला सिन्हा की रचनाओं का आनन्द मिल रहा है। अन्य पत्र-पत्रिकाओं में भी उनकी रचना पढ़ने को मिलती है। उनकी लेखनी को नमन और आपको हार्दिक साधुवाद!-रामजस विजय132/7, मारवाड़ी सदन, सिविल लाइन्स, कोटा (राजस्थान)आस्ट्रेलिया और अंग्रेजआस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हमले होने से सारा देश आहत और चिंतित है। ऐसे आक्रमण नस्ली और मजहबी भेदभाव के कारण होते हैं। दो दशक पूर्व अमरीका जैसे देश में भी माथे पर बिंदी लगाने वाली हिन्दू महिलाओं से वहां के लोग मारमीट किया करते थे। हिन्दू महिलाएं अपने सुहाग के चिह्न के रूप में माथे पर लाल बिंदी लगाती हैं। उन दिनों बिंदी लगाने वाली महिलाओं से मारपीट करने वाले डाट-बस्टर के नाम से विख्यात हुए (डाट का अर्थ है बिंदी)। 1982 की बात है। न्यूयार्क के क्वींज नामक क्षेत्र में एक मन्दिर के स्वामी श्री जगदीशानन्द जी एक शिकारी कुत्ते को साथ रखा करते थे। मन्दिर के स्वामी का कुत्ते को साथ लेकर चलना हमें अटपटा सा लगता था। पूछने पर उन्होंने बताया कि मन्दिर पर कुछ मजहबी उन्मादी अमरीकी आक्रमण करते थे, मारपीट करते थे, मुझे उनसे जान का खतरा बना रहता था। समय पर कोई सहायता प्राप्त नहीं होती थी। मैंने इसके उपाय में दो शिकारी कुत्ते पालना ही उचित समझा।आस्ट्रेलिया में अंग्रेजों का राज है। सन् 1770 से अंग्रेजों ने आस्ट्रेलिया के क्षेत्रों पर अधिकार करना आरंभ कर दिया था। आस्ट्रेलिया का बहुत विशाल क्षेत्र उनके हाथ लगा। अंग्रेजों ने इंग्लैण्ड की जेलों में बंद अपराधियों को आस्ट्रेलिया भेजना शुरू कर दिया तथा वहां के मूल निवासियों को धीरे-धीरे समाप्त प्राय कर दिया या उन्हें ईसाई बना दिया। आस्ट्रेलिया के कई ईसाई मिशनरी भारत में भी हिन्दुओं का मतान्तरण करने में लगे हुए हैं। जो उड़ीसा जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों में लोगों की निर्धनता का लाभ उठाकर उन्हें अनेक प्रकार के प्रलोभन देकर उनका ईसाईकरण कर रहे हैं। चर्च की पहुंच शासन और सरकार में भी काफी मजबूत दिखाई देती है। भारत में नक्सलियों व माओवादियों जैसे भारत विरोधी संगठनों के पीछे इन मिशनरियों की क्या भूमिका है इसकी जांच की जानी चाहिए, क्योंकि पिछले वर्ष कंधमाल की घटनाओं से यह पक्ष खुलकर सामने आया था। कंधमाल में महान हिन्दू धर्म प्रचारक स्वामी लक्ष्मणानन्द जी के प्रचार कार्यों को ईसाई मिशनरियां एक बड़ी बाधा के रूप में देखती थीं। जो तथ्य एवं अकाट्य प्रमाण सामने आये वे इसी ओर इशारा करते हैं कि स्वामी जी और उनके साथियों की निर्मम हत्या में इन्हीं लोगों की भागीदारी थी। भारत में आस्ट्रेलिया से आकर जितने भी मिशनरी काम कर रहे हैं उन सबकी सूची और उन सबके कार्यों पर सरकार को पैनी नजर रखनी चाहिए। पिछले कुछ दशक पूर्व अनेक देश जैसे बर्मा, कीनिया, युगान्डा और फिजी जैसे देशों में भारतीयों पर अत्याचार हुए और वे वहां से पलायन करने पर विवश हुए। अब आस्ट्रेलिया में भी यही सब होने लगा है। बड़े दु:ख से कहना पड़ता है कि विदेशों में भारतीयों की सुरक्षा के लिए पहले भी भारत सरकार ने उचित कदम नहीं उठाये।-डा. कैलाश चन्द्र333, सुनहरीबाग अपार्टमेन्ट्स सेक्टर-13, रोहिणी (दिल्ली)डा. अम्बेडकर ने कहा था-बुरका एक सामाजिक बुराईफ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी के बुरका विरोधी कथन ने इस विषय में एक बहस को जन्म दे दिया है। बुरका-समर्थकों का यह कहना ठीक है कि भड़काऊ वस्त्र महिलाओं की शालीनता के विरुद्ध हैं, वे उन्हें गरिमामय व्यक्तित्व से वंचित कर दिखाऊ चीज बना देते हैं। पर बुरके को शालीन बताना कुतर्क मात्र है। बुरका स्त्रीत्व की गरिमा का नाशक, उसकी स्वतंत्रता का अपहर्ता और उसके स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाला है। डा. भीमराव अम्बेडकर ने बुरका तथा उसकी जन्मदाता इस्लामी पर्दा प्रथा की तीव्र समालोचना अपनी पुस्तक “पाकिस्तान और दि पार्टीशन आफ इंडिया” (शिक्षा मंत्रालय, महाराष्ट्र सरकार, 1990, पृष्ठ 230-31) में की है।अम्बेडकर कहते हैं कि मुसलमानों में हिन्दुओं की तमाम सामाजिक बुराइयां तो हैं ही, पर साथ में इन सबसे ऊपर वह पर्दा प्रथा नामक बुराई है, जो तमाम स्त्रियों के लिए अनिवार्य बनाई गयी है। इस पर्दा प्रथा ने मुस्लिम महिलाओं को समाज से अलग-थलग कर दिया है। घरों में इस प्रथा के कारण उन्हें पिछले कमरों में रखा जाता है। वे अपने पुत्र, भाई, पिता, पति जैसे पुरुष संबंधियों के अतिरिक्त किसी भी अन्य पुरुष (जिसमें घरेलू नौकर भी शामिल हैं) से मिल नहीं सकतीं, बात नहीं कर सकतीं। बाहर निकलते समय उनके लिए बुरका जरूरी है। डा. अम्बेडकर के अनुसार इसका भारी दुष्प्रभाव मुस्लिम महिलाओं के शरीर पर पड़ता है। वे अक्सर रक्ताल्पता (एनीमिया), टी.बी. और पायरिया की शिकार बनती हैं। उनकी हड्डियां कमजोर, कमर अक्सर झुकी और हाथ-पैरों की बनावट कुछ टेढ़ी हो जाती है। उनकी पसलियां, हड्डी और उनके जोड़ दर्द करते हैं। पेल्विक अस्थि के अक्सर विकृत्ताकार होने के कारण अनेक मुस्लिम महिलाएं प्रसव के दौरान मर जाती हैं। डा. अम्बेडकर का कहना है कि पर्दा प्रथा ने मुस्लिम महिलाओं को मानसिक और नैतिक पोषण से वंचित रखा है। स्वस्थ सामाजिक जीवन का अभाव उन्हें नैतिक पतन की ओर उन्मुख करता है। बाह्र संसार से पूर्ण पृथक रहने के कारण वे महत्वहीन घरेलू झगड़ों में अपना दिमाग खपाती हैं और संकीर्ण दृष्टिकोण रखकर चलती हैं। उन्हें ज्ञानार्जन की कोई इच्छा नहीं रह जाती। अपने सीमित संसार में रहने के कारण एक गुलाम मानसिकता और गहरी न्यूनतम ग्रंथि उनमें पायी जाती है। वे स्वयं को जीवन में असहाय, दब्बू और किसी भी संघर्ष के लिए असमर्थ पाती हैं।-अजय मित्तलखंदक, मेरठ (उ.प्र.)दंड भुगतना होगामाया के सिर पर चढ़ा, न्यायालय है आज टेढ़ा-तिरछा हो रहा, इससे उसका ताज। इससे उसका ताज, मूर्तियां बहुत लगार्इं इसमें झोंकी है जनता की नेक कमाई। कह “प्रशांत” अब सबका उत्तर देना होगा गलती की है, तो फिर दंड भुगतना होगा।।-प्रशांतपञ्चांगवि.सं.2066 – तिथि – वार – ई. सन् 2009 श्रावण कृष्ण 5 रवि 12 जुलाई, 09 ” 6 सोम 13 ” ” 7 मंगल 14 ” ” 8 बुध 15 ” ” 9 गुरु 16 ” ” 10 शुक्र 17 ” ” 11 शनि 18 ” 22

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