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खतरा पाकिस्तान से नहीं, चाटुकार राजनीतिकों से है- के.पी.एस. गिल, पूर्व पुलिस महानिदेशक, पंजाब”पाकिस्तान ने कश्मीर का जो राग अलापा हुआ है वह उसको ही ले डूबेगा। उसने वहां जो आतंकवाद प्रायोजित किया है वह उसी को महंगा पड़ रहा है।” यह कहना था पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री के. पी.एस. गिल का। वे गत 23 जून को जम्मू विश्वविद्यालय सभागार में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित राष्ट्रीय एकता संगोष्ठी में प्रमुख वक्ता के नाते बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हम बार-बार पाकिस्तान के बारे में बात करते हैं, हमने जानबूझकर पाकिस्तान का हौव्वा खड़ा किया हुआ है जबकि वास्तव में पाकिस्तान हमारे लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है। वह खुद ही ढह रहा है। पाकिस्तान के टूटने से भारत को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने यूगोस्लाविया का उदाहरण देते हुए कहा कि उसके टूटने पर छह नए देशों का निर्माण हुआ, वैसे ही पाकिस्तान के टूटने से भी कई देशों का निर्माण हो सकता है। उन्होंने कहा कि भारत को खतरा पाकिस्तान से नहीं बल्कि चाटुकार राजनीतिकों से है। भारत को आज फिर एक जामवंत की जरूरत है जो इसे इसकी शक्ति का स्मरण कराए। उन्होंने कश्मीर में केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा मौजूदा हालात में जम्मू-कश्मीर पुलिस की अहम भूमिका संबंधी बयान को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि उन्होंने अर्धसैनिक बलों को अप्रासंगिक बना दिया है। श्री गिल ने देश की आंतरिक सुरक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि विकट परिस्थितियां बनने पर सारी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल दी जाती। इससे तो अच्छा यह है कि गृह मंत्रालय के जरिए भेजने की बजाय धनराशि राज्यों को सीधे उपलब्ध करवा दी जाए जिससे राज्य सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध कर सकें। उन्होंने कहा कि इस समय राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की बात हो रही है। पर प्रश्न उठता है कि यह नीति बनायेगा कौन? उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार के दरबार में चाटुकार किस्म के लोग जमे हुए हैं जिनकी सबसे बड़ी चिंता तो यह है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री कैसे बनाया जाए। श्री गिल ने कहा कि कांग्रेस अगले पांच साल तक बस इसी दिशा में काम करेगी। उन्होंने सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि सरकार वही करती है जो अमरीका कहता है। उन्होंने कहा कि तालिबान को घुसपैठ करने की आवश्यकता कहां है, वह तो एक सोच है, जो कहीं भी फैल सकती है।इस अवसर पर लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) मोहन चंद्र भंडारी ने कहा कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा सवोर्परि है और इसकी एक नीति बननी चाहिए। देश में आतंकवाद, पाकिस्तान के साथ परोक्ष युद्ध तथा तस्करी जैसी कई चुनौतियां हैं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में स्थिति को नियंत्रण में बताते हुए कहा कि आर-पार की लड़ाई से ही दुश्मन को सबक सिखाया जा सकता है। प्रतिष्ठान के अध्यक्ष और पूर्व राज्यपाल श्री केदार नाथ साहनी ने कहा कि डा. श्याम प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर में परमिट प्रणाली को खत्म करने के लिए आंदोलन किया और देश की अखंडता के लिए आजादी के बाद पहला बलिदान दिया। उन्होंने कहा कि जम्मू विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस कार्यक्रम को आयोजित करने में कई प्रकार की बाधाएं खड़ी की गर्इं, जोकि दुर्भाग्यपूर्ण हैं। संगोष्ठी में श्री के.एन. पंडिता (पूर्व निदेशक, सेंटर आफ सेंट्रल एशियन स्टडीज, जम्मू-कश्मीर विश्वविद्यालय), मधु किश्वर (संपादक, मानुषी), प्रो. पी. स्तोप्दान, श्री थुप्स्तान छेवांग (अध्यक्ष, संघ शासित क्षेत्र मोर्चा, लद्धाख) एवं पूर्व राजदूत टी.सी.ए. रंगाचारी ने भी अपने विचार रखे। (इसी दिन बाद में एक राष्ट्र जागरण सभा का भी आयोजन हुआ जिसमें रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत उपस्थित थे। इस सभा की विस्तृत रपट पृष्ठ 20 पर प्रकाशित की जा रही है।) द बलवान सिंह8
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