कविता और जीवन

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दिंनाक: 08 Feb 2009 00:00:00

राजेन्द्र निशेशजीवन एक कविता की तरह होता है और कविता जीवन की परिभाषा। इन्सान की पीड़ा की अनुभूति होती है कविता तलाशती है इन्सान के सवालों के जवाब, धर्म, मृत्यु और आडम्बर से परे होती है कविता। कभी नानक की वाणी सी छलकती करती है नेह की बरसात, कभी फक्कड़ होती है कबीर की सधुक्कड़ी भाषा की तरह; कभी बुल्लेशाह की तरह सीधी-सादी भाषा में ईश्वर से सुरताल मिलाती है, रैदास की तरह जीवन की गांठ को सिलती है, नाचती है, गाती है जूनून के आलम में मीरा की तरह बनकर दीवानी पी जाती है विष का प्याला अमृत समझकर। कभी शाम के धुंधलके को जीती है यह और कभी सुबह की ललिमा की तरह होती है, प्रेम की शाश्वत अभिव्यक्ति बनती है कभी कभी विरह और दर्द की साक्षी बन जाती है। इन्द्रधनुषी रंगों सी होती है कविता और जीवन विभिन्न रंगों का नाम ही तो है!20

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