भारत के भीतर एक "यूरोप"
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भारत के भीतर एक "यूरोप"

by
Jan 3, 2009, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Jan 2009 00:00:00

प्रखर गांधीवादी-समाजवादी विचारक श्री रघु ठाकुर की पुस्तक “विकल्प की खोज” बताती है कि “बाजार की संस्कृति” ने समाज में नाना प्रकार की विद्रूपताओं को जन्म दिया है, संवेदनशीलता को कुंद किया है।प्रथम खंड का पहला आलेख “विकल्पपूर्ण है दुनिया” अनेकानेक स्थापनाओं को खण्डित और भ्रांतियों को दूर करता है।रूस के विखण्डन और साम्यवाद की कमजोरियों से पूरा विश्व अवगत है। “अगर रूस गांधी की राह चला होता….” में विचारक ने रूस के विखण्डन के लिए पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा उपभोक्ताओं और विलासी संस्कृति का रूस में फैलाव और स्वयं रूस द्वारा बड़ी मशीनों द्वारा उत्पादन (यानी पूंजीवादी तरीका, उद्देश्य) के मुख्य कारण माना है। इस सन्दर्भ में गांधी के दर्शन को सामयिक माना है। और भारत को भी रूस के विखण्डन से सावधान होकर भारतीय दर्शन एवं मार्ग के अनुसरण करने की सलाह प्रशंसनीय है। “शिक्षा नीति और निजीकरण” अध्याय में भारत की शिक्षा नीति को विपथगामी माना है। निजीकरण को आड़े हाथ लेते हुए सरकार पर आरोप लगाया है कि इससे वह (सरकार, सरकारें) शिक्षा के दायित्व से मुक्त हो जाना चाहती है। अमरीका की भांति संविदा-नियुक्ति से समाज में असुरक्षा की भावना पैदा होती है इसलिए इस कार्य से परहेज रखना चाहिए।लेखक ने राजनेताओं की संकीर्णता और स्वार्थपरता पर गहरी चोट की है कि वे किस तरह अंग्रेजी भाषा को ही राष्ट्रभाषा बनाने पर तुले हुए हैं। आज देश के भीतर एक यूरोप बन रहा है। (पृ.सं. 64)”नारी मुक्ति का अर्थ है वैचारिक क्रांति” में क्रांतिकारी विचार से पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। स्वयं लेखक के शब्द हैं, “दरअसल नारी मुक्ति का तात्पर्य नारी को खुद की दिमागी गुलामी से मुक्त करना होना चाहिए। नारी मुक्ति का तात्पर्य न तो स्वेच्छाचारित है और न ही विकृति।” (पृ. सं. 104)अंतिम खण्ड में एक कविता “गांधी को वापस लाओ” इस पुस्तक की गरिमा बढ़ा देती है। कुछ पंक्तियां हैं-उठो, कब्रा से बाहर निकलो। रंग तिरंगा, हाथ में झंडा फिर से आजादी का गान गांधी को फिर वापस लाओ, तभी बनेगा देश महान! दपुस्तक का नाम : विकल्प की खोज लेखक : रघु ठाकुर प्रकाशक : समय प्रकाशन, आई-1/16, शांतिमोहन हाउस,अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 पृष्ठ : 152 – मूल्य : 60 रुपए (पेपर बैक)19

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