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गत 15 जनवरी को कोझीकोड (केरल) की एक विशेष अदालत ने मराड नरसंहार मामले में कुल 139 आरोपियों में से 62 को उम्रकैद की सजा सुनाई। केरल के कोझीकोड जिले में मछुआरों की बहुतायत वाले मराड में 2 मई, 2003 की रात 8 हिन्दुओं की निर्मम हत्या कर दी गई थी। अदालत ने इस मामले में 76 अभियुक्तों को बरी कर दिया, क्योंकि सरकारी पक्ष उनके खिलाफ आरोप स्थापित करने में असफल रहा था। यह सजा अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बाबू मैथ्यु पी. जोसफ ने सुनाई।कुल 63 आरोपियों में से 62 को विभिन्न आरोपों के तहत अपराधी पाया गया जिन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 307 147, 148 और 149 के अंतर्गत आरोप तय किए गए। आरोपी क्रमांक 139, लतीफ, जो उस दौरान मराड मस्जिद समिति का सचिव था, को मस्जिद के दुरुपयोग का दोषी पाया गया और मजहबी संस्थान दुरुपयोग (निरोधक) कानून के तहत उसका जुर्म तय किया गया।नरसंहार की तीन महीने की जांच के अंत में राज्य पुलिस की अपराध शाखा ने 150 लोगों को आरोपी तय किया था जबकि आखिरी सूची में 139 के नाम दर्ज थे। यह ऐसा वीभत्स नरसंहार था जिसने मराड और आसपास के क्षेत्रों को आतंक और साम्प्रदायिक तनाव में झोंक दिया था। हालांकि सरकारी पक्ष ने फैसले पर संतोष जताया जबकि आरोपियों के वकीलों ने कहा कि सरकारी पक्ष मामले को साबित करने में नाकाम रहा है। अब सजा पाए लोग उच्च न्यायालय में अपील दायर करेंगे।2003 में हुए उक्त नरसंहार की जांच करने वाले न्यायिक आयोग ने कई चौंकाने वाली बातें उजागर कीं और इसके बड़े षड्यंत्रकारी आयाम की किसी केन्द्रीय एजेंसी से उच्च स्तरीय जांच की अनुशंसा की। इससे जुड़े षड्यंत्रों के बड़े आयामों में शामिल है- सी.पी.एम., मुस्लिम लीग और एनडीएफ जैसी राजनीतिक पार्टियां की साम्प्रदायिक नफरत का लाभ उठाने में संदिग्ध भूमिका।आयोग ने कहा कि मुस्लिम लीग का स्थानीय नेतृत्व इस षड्यंत्र में शामिल था। इसने ऐसे कई लोकसेवकों और पुलिस अधिकारियों का नाम लिया है जिन्होंने नरसंहार और उसके बाद हुई हिंसा को रोकने में अपने कर्तव्य की अनदेखी की थी।आयोग ने पुलिस के सहायक आयुक्त पर अपराध रचने वालों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है। इसने षड्यंत्र, हथियारों के स्रोत, नरसंहार के लिए पैसा आदि की पूरी जांच कराने को कहा है। आयोग ने तत्कालीन कांग्रेसनीत यू.डी.एफ. सरकार, जिसके तब मुख्यमंत्री थे ए.के. एंटोनी, पर इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के दबाव में इसकी सीबीआई जांच न कराए जाने का फैसला लेने की भत्र्सना की थी। मुस्लिम लीग यूडीएफ का दूसरा सबसे बड़ा घटक थी।सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि राज्य अब भी उन आसुरी ताकतों के बारे में अनजान है जो इस नरसंहार के पीछे सक्रिय थीं, क्योंकि विशेष अदालत ने सरकारी पक्ष के षड्यंत्र के आरोपों को सबूतों की कमी की वजह से खारिज कर दिया है। इससे न्यायिक आयोग द्वारा की गर्इं मजहबी संस्थानों, राजनीतिक दलों, नागरिक और पुलिस अधिकारियों की भूमिका की महत्वपूर्ण खोज दब गई हैं। अदालत ने यह भी पाया कि सरकारी पक्ष अनधिकृत शस्त्रों के भंडार, पैसे के स्रोत आदि को साबित नहीं कर सका था। इसने साफ तौर पर दर्शाया कि सरकारी पक्ष का रवैया सच की खोज के प्रति ढीला था। पर्यवेक्षकों का मानना है कि सरकारी पक्ष सत्तारूढ़ सीपीएम के कहने पर नरसंहार के षड्यंत्रकारियों के प्रति नरम रहा है।बहरहाल, सीबीआई जांच की मांग अभी क्रियान्वित की जानी बाकी है। कांग्रेस और सीपीएम, दोनों इस जांच का विरोध कर रहे हैं क्योंकि सभी दलों के मुस्लिम कार्यकर्ता उस नरसंहार में कथित तौर पर जुड़े थे। कुल 139 आरोपियों में कांग्रेस, सीपीएम, सीबीआई, मुस्लिम लीग, एनडीएफ और मदनी की पीडीपी के कार्यकर्ता शामिल थे।उल्लेखनीय है कि रा.स्व.संघ के लगातार प्रयासों की वजह से सरकार के साथ समझौते के अनुसार मारे गए 8 हिन्दू मछुआरों के परिवारों को दस-दस लाख रुपए और सरकारी नौकरी दी गई है। भाजपा, रा.स्व.संघ और एच.ए.वी. नेताओं-पी.एस. श्रीधरन, कुंबनम राजशेखरन और मराड सुरेश ने फैसले का स्वागत किया है पर साथ ही यह भी कहा है कि हिन्दू मछुआरा समुदाय के लिए यह पूरी जीत नहीं है। उनका कहना है कि सभी 62 आरोपियों को मृत्युदंड और घटना के षड्यंत्र की सीबीआई जांच ही हिन्दू समाज की वास्तविक जीत होगी। मारे गए हिन्दू मछुआरों के परिजन भी जिहादियों को मौत की सजा चाहते हैं, क्योंकि उनके हमले बहुत बर्बर और निर्मम थे। मारे गए व्यक्तियों के शरीर पर 80 से 90 घाव थे, उनके सर काट दिए गए थे और आंखें व कान तक निकाल लिए गए थे। राज्य के लिए यह जानना जरूरी हो गया है कि नरसंहार के पीछे की तस्वीर क्या थी, क्योंकि हाल के कुछ समय से इस खूबसूरत प्रदेश में भी उग्रवाद और मजहबी कट्टरवाद बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे सेकुलर नेताओं द्वारा इस्लामी जिहादियों को शह दिया जाना मुख्य वजह है। इसी कड़ी में सबसे ताजा और चौंकाने वाला तथ्य तब सामने आया था जब केरल के कई मुस्लिम युवक कश्मीरी आतंकवादियों द्वारा अपने साथ जोड़े गए थे और उन्होंने वहां कुछ घटनाओं को अंजाम भी दिया था। प्रदीप कुमार19
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