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कुछ समय पूर्व एक पत्रकार महोदय ने एक समाचार पत्र में प्रकाशित लेख में “गंगा की महिमा” के अन्तर्गत लिया कि “गंगा की पूजा करने के पीछे कोई तर्क नहीं है और न ही यह विश्वास करने का आधार है कि इसके जल में रोगमुक्त करने की शक्तियां हैं।” इस अज्ञानता को दूर करने के लिए यहां गंगा जल के विषय में कुछ वैज्ञानिक तथ्य प्रस्तुत हैं-मैकग्रिल यूनीवर्सिटी के प्रोफेसर ने तीन दशक पूर्व अपने प्रयोगों द्वारा यह पता लगाया था कि गंगा जल में हैजे के कीटाणु तीन-चार घंटे में स्वत: ही मर जाते हैं।ब्रिटिश मासिक पत्रिका “गुड हेल्थ” में लिखा है कि टेम्स नदी का रखा हुआ पानी जल्दी ही दूषित हो जाता है जबकि गंगा का जल महीनों तक वैसा ही बना रहता है।यूरोपीय वैज्ञानिक डा. हाकिन्स ने प्रमाणित किया है कि गंगा में ऐसे जीवाणु और रसायन होते हैं जो प्रदूषण और अनेक रोगकारी तत्वों को नष्ट कर देते हैं। गंगा जल में पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन भी होती है, जो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अति लाभकारी है।डा. एफ. कोहिमान, फ्रांसीसी डा. डी. हटेल और जर्मनी के डा. जे. ओलिवर आदि ने गंगा जल पर सन् 1924 से 1931 ई. के बीच शोध कार्य किये और उनके अध्ययनों का परिणम निकला कि गंगा जल अत्यन्त पवित्र तथा स्वच्छ है और इसमें रक्त बढ़ाने तथा कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता है। इसके जल में अनेक विटामिन भी हैं।डा. डी.एस. भार्गव (रुड़की विश्वविद्यालय) को तीन वर्षों के अध्ययन से पता चला कि गंगा जल बी.ओ.डी. (बायोकेमिकल आक्सीजन डिमाण्ड) के स्तर को दूसरे जलों की तुलना में तेजी से कम करता है।मुख्यत: दो गैसों-आक्सीजन एवं हाइड्रोजन के एक निश्चित अनुपात में मिलने से पानी बनता है। वैज्ञानिक अध्ययनों से सिद्ध हुआ है कि गंगा जल में अन्य जलों की तुलना में आक्सीजन की मात्रा अधिक होती है तथा इसके जल में यह अधिक समय तक सुरक्षित रहती है।गंगा जल निरन्तर बहते हुए भी अन्य जलों की तुलना में वायुमण्डल से अधिक मात्रा में आक्सीजन ग्रहण करता है। इसके कारण गंगा जल में निरन्तर आक्सीजन की काफी मात्रा बनी रहती है, जो मनुष्य के स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभप्रद होती है।गंगा नदी का स्रोत हिमालय की बर्फ या ग्लेशियर से निकलता है, जो समुद्र से 4000 मीटर से अधिक ऊ‚ंचाई पर हैं। इस ऊ‚ंचाई पर वातावरण बहुत निर्मल होता है। साथ ही उद्गम-स्थल पर पानी अत्यन्त ठंडा होता है। बहुत अधिक ठंड में कीटाणु अधिकांशत: मर जाते हैं और जो जीवित रह जाते हैं, वे मृतप्राय: हो जाते हैं। फलत: गंगा जल पवित्र रहता है।भागीरथी और उसकी सहायक नदियां (जो आगे चलकर गंगा नदी कहलाती हैं) जिन पहाड़ों से निकली हैं, उन पहाड़ों की चट्टानों में ऐसे खनिज पदार्थ हैं जो कीटनाशक हैं, जैसे- गन्धक, चूना आदि। इस तरह गंगा तथा इसकी सहायक नदियों को निरन्तर कीटनाशक खनिज पदार्थ मिलते रहते हैं जो गंगा जल को पवित्र रखते हैं।सन 1960 ई. में थियोडोर स्चेन्ट, जार्ज एडम और जान विल्किस ने यह पता लगाया कि गंगा जल की जीवन शक्ति का रहस्य इसकी लययुक्त गति में है। गंगा नदी के जटिल भूमि तल पर, जिससे पानी बहता है, गुरुत्व शक्ति का खिंचाव रहता है। इस गुरुत्व शक्ति के खिंचाव के कारण गंगा जल विभिन्न दिशाओं में बहता है- कभी यह दाएं बहता है, कभी बाएं। कभी नीचे जाता है, कभी ऊ‚पर आता है और कभी चक्राकार। पानी के इस प्रकार के प्रवाह से पानी में आक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है और यह वैसा ही हो जाता है जैसा कि यह अपने गन्तव्य स्थान के समय था।कुछ ही समय पूर्व तक की बात है कि जब कोई श्रद्धालु गंगा नदी के पास से गुजरता था तब वह हाथ जोड़कर गंगा मां को नमस्कार करता था तथा गंगा जी में पीतल का टुकड़ा या पीतल के बने सिक्के या चांदी के टुकड़े या चांदी के सिक्के फेंक देता था। पीतल तथा चांदी कीटाणुओं को मारने वाली तथा जल को शुद्ध करने वाली धातुएं हैं।एक जापानी विद्वान ने अध्ययन कर यह साबित किया है कि विभिन्न प्रकार की तरंगें- जो प्रार्थना, शब्दों, विचारों, संगीत, घण्टों आदि की ध्वनियों से उत्पन्न होती हैं, वे गंगा जल के पानी के परमाणुओं के ढांचे को बदलकर पानी को शुद्ध करती हैं। जूलियन क्रेण्डल हौलिक ने अपनी पुस्तक “गंगा” में वैज्ञानिक साहित्य के आधार पर गंगा की पवित्रता के कारणों को बताया है। इस प्रकार गंगा जल का स्वच्छ, पवित्र एवं उपयोगी होना मात्र धार्मिक विश्वास ही नहीं है, अपितु यह एक वैज्ञानिक सत्य भी है।9
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