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राष्ट्रीय परिषद् अधिवेशन में श्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत राजनीतिक प्रस्ताव के मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं-संप्रग कुछ राजनीतिक पार्टियों का ऐसा बहुरंगा झुंड बनकर रह गया है जिसकी प्रतिबद्धता केवल वोट बैंक की राजनीति से है और जो राष्ट्र के सामने आने वाले संकटों और चुनौतियों से बेखबर बना हुआ है।जम्मू-कश्मीर की स्थिति चिंता का कारण बनी हुई है। पाकिस्तान की अस्थिरता ने भारत की चिंताएं और बढ़ा दी हैं। आतंकवादी संगठन पाकिस्तान की भूमि से अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। कांग्रेस सरकार द्वारा अफजल गुरु को फांसी देने में विलम्ब किया जाना भी सरकार द्वारा वोट बैंक की राजनीति को तरजीह देने का सबसे बड़ा सबूत है। “पोटा” का निरस्त किया जाना, खुफिया एजेंसियों की उदासीनता, जांच एजेंसियों की विफलता आदि संप्रग की नीतियों के ही परिणाम हैं। माओवादियों की हिंसा में बढ़ोत्तरी और विस्तार ने देश को पहले से कहीं अधिक असुरक्षित बना दिया है। साथ ही, पूर्वोत्तर की स्थिति भी तनावपूर्ण बनी हुई है। लिट्टे की धमकियों के चलते दक्षिण भारत तक में, पड़ोस में हो रहे संघर्ष के लक्षण देखे जा सकते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए भी कोई समीचीन विदेश नीति निर्मित नहीं की गई है।भारत-अमरीका के बीच परमाणु संधि से भारत के परमाणु और सामरिक कार्यक्रम को क्षति पहुंचने के आसार पैदा हो गये हैं।वामदल हमेशा बड़ी-बड़ी घोषणा करते हैं, किन्तु प्रहार करने से पीछे हटते हैं। इनका पाखंड जगजाहिर हो चुका है। संप्रग विघटनकारी नीति को अमल में लाना चाहता है। सच्चर आयोग की सिफारिशें स्वतंत्र भारत की किसी सरकार द्वारा उठाया गया सर्वाधिक विघटनकारी कदम है। मजहब के आधार पर योजनागत व्यय में 15 प्रतिशत आवंटन देश में एक विघटनकारी स्थिति पैदा कर देगा। भारतीय जनता पार्टी भारत के नागरिकों का आह्वान करती है कि वे संप्रग सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए तैयार हो जाएं।10
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